राजनीति
नवनीत मिश्र
नई दिल्ली, 22 नवंबर | तमिलनाडु में अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा संगठन के विस्तार में जुटी है। बीते छह महीने में तमिलनाडु के मुख्य विपक्षी दल डीएमके के दो बड़े नेताओं को तोड़ने में मिली सफलता से उत्साहित भाजपा की नजर अन्य असंतुष्ट नेताओं पर है।
भाजपा ने राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि को इस मोर्चे पर लगाया है। बतौर तमिलनाडु प्रभारी सीटी रवि ने बीते 21 नवंबर को डीएमके के पूर्व सांसद डॉ. केपी रामालिंगम की भाजपा में ज्वाइनिंग कराकर राज्य में सियासी सरगर्मी पैदा कर दी है। इससे पूर्व मई में डीएमके के डिप्टी जनरल सेक्रेटरी पद से हटाए जाने पर वी.पी. दुरैसामी ने भाजपा का दामन थाम लिया था। भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि आने वाले वक्त में डीएमके के कुछ और नेता भाजपा में जुड़ सकते हैं।
डीएमके के अंदरखाने इस वक्त दो प्रमुख कारणों से नेताओं की नाराजगी चल रही है। कुछ नेता डीएमके में पार्टी मुखिया स्टालिन के बेटे उधयनिधि के बढ़ते वर्चस्व से चिंतित हैं। स्टालिन अपने बेटे उधयनिधि को लगातार प्रमोट करने में जुटे हैं।
सूत्रों का कहना है कि इससे पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता नाराज चल रहे हैं। उधयनिधि के हवाले डीएमके के यूथ विंग की कमान है। हाल में उधयनिधि ने डीएमके के लिए सौ दिन का आउटरीच प्रोग्राम तैयार किया। इसके लिए 15 वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई। मगर, संबंधित नेताओं को ऐन वक्त पर इस कार्यक्रम के बारे में बताया गया। वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि उधयनिधि संगठन से जुड़े फैसलों में आम रायशुमारी करने में ज्यादा यकीन नहीं रखते।
दलबदल कर आने वाले नेताओं को संगठन में जगह मिलने से भी पार्टी का एक धड़ा परेशान है। एआईएडीएमके से आने वाले पूर्व मंत्री राजा कनप्पन, डॉ. विजय और डॉ. लक्ष्मणन को स्टालिन ने डीएमके में अहम जिम्मेदारियां मिलने से पार्टी के पुराने नेता नाराज चल रहे हैं।
सत्ताधारी एआईएडीएमके ने भाजपा के साथ गठबंधन कर तमिलनाडु में वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला किया है। तमिलनाडु में इधर भाजपा ने हिंदुत्व के एजेंडे को धार देना शुरू किया है। एक तरफ एआईएडीएमके का जनाधार है तो दूसरी तरफ बीजेपी का बढ़ता प्रभाव है। इससे डीएमके के कई नेताओं को लगता है कि गठबंधन के कारण बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना फायदेमंद हो सकता है। ऐसे में चुनाव लड़ने के इच्छुक डीएमके के नेता भाजपा में आ सकते हैं।(आईएएनएस)
पटना, 21 नवंबर| बिहार विधानसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बन गई, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (युनाइटेड) के बीच जुबानी जंग थम नहीं रही है। जदयू ने शनिवार को कहा कि राजद के नेता तेजस्वी यादव को भ्रष्टाचार पर बोलने का अधिकार नहीं है। जदयू ने मेवालाल चौधरी के मंत्री पद से इस्तीफा मामले पर तेजस्वी को घेरते हुए जदयू के नेताओं ने कहा कि जिसका परिवार भ्रष्टाचार में डूबा हुआ हो, उनको अधिकार किसने दिया है वे दूसरों पर सवाल खड़ा करें।
जदयू प्रदेश कार्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि मेवालाल चौधरी ने मंत्री पद से इस्तीफा देकर एक बड़ा ही अच्छा उदाहरण पेश किया है।
सिंह ने कहा, "मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने राजनैतिक शुचिता का बराबर ध्यान रखा है, सार्वजनिक जीवन में कभी-कभी विवादास्पद मौके आते भी हैं। उसकी व्याख्या भी होती है। जब भी ऐसे मौके पर सवाल उठा है नैतिकता का परिचय देते हुए मुख्यमंत्री ने ऐसे आरोपियों से इस्तीफा लिया है।"
उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए सवाल किया, इस मामले में तेजस्वी यादव मुखर थे, लेकिन उन्हें बोलने का नैतिक पक्ष कहां है? कहां सार्वजनिक जीवन की प्रतिबद्धता और उसकी ऊंचाई, उसकी शुचिता उस पर पर भी उन्हें बोलने का अधिकार है, क्या?"
पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी ने कहा कि, "हमारे नेता नीतीश कुमार ने हमेशा दो बातों की चर्चा की है कि हम कभी भ्रष्टचार, अपराध से समझौता नहीं करेंगे और न हम किसी को फंसाते हैं और न हम किसी को बचाते हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण मेवालाल चौधरी का मामला है।"
प्रदेश प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि, "नीतीश कुमार के कार्यकाल में जितने भी विधायक, मंत्रियों या अन्य नेताओं पर आरोप लगा, उन्हें इस्तीाफा देना पड़ा, लेकिन हम तेजस्वी यादव से पूछना चाहते हैं कि जिसका परिवार भ्रष्टाचार में डूबा हुआ हो, उनको अधिकार किसने दिया है कि दूसरों पर सवाल खड़ा करें।"
विधानपार्षद नीरज कुमार ने कहा कि, "लालू परिवार से राजनीति में नैतिकता की उम्मीद नहीं की जा सकती है, लेकिन हमारी उम्मीद इतनी भर है कि सदन के सदस्य होने के नाते जब तेजस्वी यादव शपथ लें तो आरोपी होने की धाराएं जरूर लोगों को बताएं।"
जदयू नेता डॉ. अजय आलोक ने कहा कि, "मेवालाल चौधरी पर अभी तक अभियोजन नहीं हुआ है, अभियोजन होने से चार्जशीट होने तक एक प्रक्रिया होती है, तब जाकर चार्जशीट होगी। लेकिन उससे पहले ही इस्तीफा ले लिया गया। यह राजनीतिक शुचिता का उच्च मापदंड प्रदर्शित करता है।"
उल्लेखनीय है कि मेवालाल चौधरी को मंत्री पद की शपथ लेने के तीन दिनों के अंदर ही भ्रष्टाचार के आरोप होने के कारण मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 20 नवंबर | कांग्रेस ने शुक्रवार को केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों के महंगाई भत्ते को फ्रीज करने के फैसले पर केंद्र को आड़े हाथों लिया और कहा कि यह डूबती अर्थव्यवस्था का एक और संकेत है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि खाद्य पदार्थों में मुद्रास्फीति 11 फीसदी से ज्यादा हो गई है, लेकिन मोदी सरकार केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) के कर्मचारियों का महंगाई भत्ता (डीए) बढ़ाने की बजाय फ्रीज कर रही है। उन्होंने कहा कि "एक ओर सरकारी कर्मचारियों की हालत पस्त है और दूसरी ओर पूंजीपति 'मित्र' मुनाफा कमाने में मस्त हैं।"
राहुल ने ट्वीट किया, "खाद्य पदार्थो की महंगाई दर 11.1 फीसदी पार! लेकिन मोदी सरकार सेंट्रल पीएसयू कर्मचारियों का डीए बढ़ाने की बजाय फ्रीज कर रही है। सरकारी कर्मचारियों की हालत पस्त, पूंजीपति 'मित्र' मुनाफा कमाने में मस्त!"
वहीं पार्टी नेता सुप्रिया श्रीनेत ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, "अर्थव्यवस्था नियंत्रण से बाहर है और हर कोई परेशानी में है। यह सिर्फ असंगठित क्षेत्र नहीं है जो परेशानी झेल रहा है, बल्कि सरकारी कर्मचारी भी भारतीय अर्थव्यवस्था की अक्षमता का खामियाजा भुगत रहे हैं।"
कांग्रेस नेता ने कहा कि दिक्कतें सिर्फ असंगठित क्षेत्र में ही नहीं है, बल्कि यहां तक कि सरकारी कर्मचारी भी सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन का खामियाजा भुगत रहे हैं।
उन्होंने कहा, "तेजी से बढ़ती महंगाई ने मुश्किलें और भी बढ़ा दी हैं। अक्टूबर माह में महंगाई दर में 7.61 फीसदी की वृद्धि, विशेष रूप से खाद्य पदार्थों में 11.6 फीसदी की वृद्धि गहन चिंता का कारण है।"(आईएएनएस)
विवेक त्रिपाठी
लखनऊ, 17 नवंबर| बहुजन समाज पार्टी (बसपा) उपचुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद अपने संगठनिक ढांचे को नए सिरे से मजबूत करने में लग गयी हैं। अब उनका फोकस दलित और अति-पिछड़ा है। प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर राजभर समाज के व्यक्ति को बैठा कर पार्टी ने साफ संकेत दे दिया है कि वह वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में इसी जातीय समीकरण के आधार पर मैदान में उतरेगी।
प्रदेश अध्यक्ष पद से मुनकाद अली को हटाने के बाद अब निचले स्तर पर बड़े बदलाव की तैयारी है। इसके साथ वर्ष 2022 के आम चुनाव से पहले सामाजिक समीकरण मजबूत करने की कार्ययोजना भी तैयार की है। अगले वर्ष होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के जरिये सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत किया जाएगा। इसके लिए समीक्षा हो रही है। मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के वोट छिटकने पर चिंता व्यक्त की गयी है।
राज्यसभा चुनाव के बाद से बसपा सुप्रीमो के बयान का असर भी पड़ा है। उनको लगता है कि मुस्लिम अब उनके पाले में आसानी से नहीं आएगा। ऐसे में उन्होंने इस वर्ग के बजाए पिछड़े-अति पिछड़े वोट बैंक पर अपनी नजरें गड़ानी शुरू कर दी हैं।
पार्टी के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अभी तक अन्य पिछड़ा वर्ग द्वारा बसपा से दूरी बनाने के बाद मुस्लिम भी अपने पाले से खिसकने लगे हैं। पिछले तीन चुनावों का अनुभव देंखे तो पार्टी केवल दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण गठजोड़ बनाए रखने पर अधिक दिनों तक नहीं चल सकेगी। जब तक अन्य पिछड़ों को फिर से नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक मुस्लिमों को संभाले रखना संभव न होगा। यह बसपा का पुराना बेस वोट रहा है। इस कारण कई प्रकार की रणनीति में फेरबदल हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि अभी पार्टी का मुख्य फोकस है कि अपने बिखर चुके वोट बैंक को कैसे संजोय और संभाले। इसी को लेकर पार्टी नेतृत्व नए-नए प्रयोग आजमा रहा है।
नेता के अनुसार पार्टी के गिरते वोट बैंक को लेकर अच्छी खासी चिंता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को औसत 23.62 प्रतिश्त वोट मिले थे। जो कि उपचुनाव में 18.97 ही रह गये हैं।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि बसपा को अब तक दलित, ब्राम्हण और मुस्लिम वोटों के जरिए सफलता मिली है। 2014 के बाद से भाजपा ने दलित वोटों पर सेंधमारी की है। उससे बसपा का आधार खिसक रहा है। बसपा को एक नया क्षेत्र चाहिए। जिससे वह अपना आधार मजबूत कर सके। ऐसे में उन्होंने छोटा ही सही एक वर्ग ढूंढा है। क्योंकि भाजपा के निकटता के कारण मुस्लिम उनकी ओर नहीं आएंगे। अब मुस्लिमों पर उनका भरोसा नहीं होगा। दलित और पिछड़ों के बीच अति-पिछड़ा बचा है। इस पर अभी किसी पार्टी का कोई खास ध्यान नहीं है। इसी कारण बसपा ने इस वर्ग को खोजा है जहां वह अपने को मजबूती से स्थापित कर सके।
उन्होंने कहा कि बसपा के लिए समाज के किसी एक वर्ग का समर्थन मिलना बहुत जरूरी है। नहीं तो उनके अस्तित्व पर संकट आ जाएगा। क्योंकि उन्हें बड़े वर्ग का समर्थन मिल पाना मुश्किल है। सर्वणों का समर्थन मिलेगा नहीं। मुस्लिम अब जाएगा नहीं। पिछड़ों का अभी भी सपा एक बेहतर विकल्प है। बसपा की सत्ता पर कोई भागीदारी नहीं है। ऐसे में एक वर्ग की तलाश है। इसी कारण मायावती ने रणनीति के तहत यह कदम उठाया है। उपचुनाव के नतीजों ने यह तस्वीर साफ कर दी है कि उनकी तरफ किसी बड़े वर्ग का समर्थन अब बचा नहीं है। इसी कारण उन्होंने इस ओर फोकस करना शुरू किया है। (आईएएनएस)
बिहार बीजेपी के नेता और कटिहार से नवनिर्वाचित विधायक तारकिशोर प्रसाद को बीजेपी के विधानमंडल दल (विधानसभा और विधान परिषद) का नेता चुना गया है. केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने तारकिशोर प्रसाद को बीजेपी दल का नेता बनाए जाने की घोषणा की.
64 साल के तारकिशोर प्रसाद 2005 से कटिहार विधानसभा से विधायक हैं. इस बार उन्होंने आरजेडी के राम प्रकाश महतो को क़रीब दस हज़ार मतों से हराया है.
तारकिशोर प्रसाद का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पुराना रिश्ता रहा है. उनका परिवार मूलरूप से सहरसा ज़िले के तलखुआ गांव का रहने वाला है. वो कलवार वैश्य समाज से आते हैं जिसे बिहार में पिछड़ा वर्ग का दर्जा प्राप्त है.
मूलरूप से व्यापारिक परिवार से जुड़े तारकिशोर प्रसाद के पिता कपड़े का कारोबार करते हैं. उन्होंने मेडिकल स्टोर का संचालन भी किया है. 2001 में वो कटिहार में चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष भी रहे.
कटिहार में कशिश न्यूज़ के संवाददाता रितेश रंजन के मुताबिक शहर के व्यापारिक वर्ग में उनकी अच्छी पकड़ है और बीजेपी विधानमंडल का अध्यक्ष बनाए जाने और डिप्टी सीएम बनने के कयासों से कटिहार के व्यावसायिक समाज में ख़ुशी की लहर है.
तारकिशोर प्रसाद ने पहली बार साल 2005 में चुनाव लड़ा और बेहद नज़दीकी मुकाबले में डॉ. राम प्रकाश महतो को 165 वोट से हरा दिया था.
इसके बाद 2010 और फिर 2015 का विधानसभा चुनाव उन्होंने भारी अंतर से जीता.
रितेश रंजन के मुताबिक इस बार माहौल तारकिशोर प्रसाद के ख़िलाफ़ था, बावजूद इसके वो दस हज़ार के भारी अंतर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे.
रितेश बताते हैं, "कटिहार में इस बार भारी बारिश हुई और बाढ़ से लोग प्रभावित रहे. लोग जलजमाव की समस्या से परेशान थे. कटिहार के एक इलाके में तो लोगों ने वोटों का बहिष्कार तक कर दिया था. इस बार तारकिशोर प्रसाद का जीतना मुश्किल माना जा रहा था लेकिन अंततः ये दस हज़ार वोट से जीते हैं."
रेणु देवी
तारकिशोर प्रसाद के साथ-साथ बेतिया से विधायक रेणु देवी को विधानमंडल दल का उप नेता चुना गया है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस बार तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को बिहार में उप-मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. ये दोनों ही नेता वैश्य समुदाय से हैं.
तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी दोनों ही बिहार बीजेपी के पुराने नेता हैं. दोनों ही नेता स्वयंसेवक संघ के भी करीबी रहे हैं.
रेणु देवी
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "बीजेपी के कई नेता ये कह रहे हैं कि अब लगता है कि बिहार बीजेपी में सभी पदों पर बनिया समुदाय के नेताओं का वर्चस्व हो गया है. बीजेपी में ही अब ये बात उठने लगी है कि नए नेताओं के नाम की घोषणा करते हुए जातीय संतुलन का ख्याल नहीं रखा गया है."
मणिकांत ठाकुर के मुताबिक तारकिशोर प्रसाद कटिहार की छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे. लेकिन उनकी पहचान एक ऐसे जननेता की नहीं है जिसके पीछे भीड़ खड़ी हो जाए.
तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी के आगे आने का मतलब ये भी है कि अब नीतीश के डिप्टी सीएम रहे बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी को पीछे हटना पड़ेगा.
मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "आम लोगों और बिहार भाजपा के नेताओं में ये राय बनने लगी थी कि सुशील मोदी अपनी पार्टी से ज़्यादा नीतीश कुमार के वफ़ादार हैं. उनकी अपनी पार्टी में उनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठने लगी थी इसी वजह से सुशील मोदी बिहार में सर्वमान्य नेता नहीं बन पा रहे थे. अब लगता है कि एनडीएन की नई सत्ता में सुशील कुमार मोदी को जगह नहीं दी जा रही है."
कयास लगाए जा रहे हैं कि सुशील कुमार मोदी की भूमिका बिहार बीजेपी में सीमित करके उन्हें कहीं और जगह दी जाए.
तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी के उभार की वजह बताते हुए ठाकुर कहते हैं, "यदि नीतीश की चल रही होती तो बीजेपी नेतृत्व बिहार से सुशील मोदी को हटाने में कामयाब नहीं हो पाता. ये इस बात का भी संकेत है कि बीजेपी बिहार की सत्ता पर मज़बूत पकड़ चाहती है." (bbc.com/hindi)
पटना, 12 नवंबर। बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (युनाइटेड) के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने गुरुवार को कहा कि बिहार की जनता ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को बहुमत दिया है। चुनाव में राजग की सफलता के बाद पहली बार पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राजग की बैठक में तय होगा कि मुख्यमंत्री कौन होगा। पटना में जदयू कार्यालय में नवनिर्वाचित विधायकों और चुनाव में प्रत्याशियों के साथ बैठक के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि राजग विधायक दल की बैठक को लेकर अभी कोई तिथि तय नहीं हुई है। इस बैठक में मुख्यमंत्री कौन होगा तय कर लिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि संभव है कि शुक्रवार को राजग के घटक दलों के नेता आपस में बैठेंगे, उसके बाद राजग के विधायक दल की बैठक की तारीख तय की जाएगी। शपथ ग्रहण समारोह के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अभी इसकी कोई तारीख तय नहीं हुई है।
जदयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने बिना किसी के नाम लिए हुए लोजपा और राजद को निशाने पर लेते हुए कहा, "अगर हमारे काम करने के बावजूद भी कोई भ्रमित करने में कामयाब होता है और लोग भ्रमित होकर वोट करते हैं तो ये उनका अधिकार है। मैंने लोगों की सेवा किया है।"
उन्होंने कहा कि कुछ ने लोगों को भ्रमित करने का पूरा प्रयास किया और कामयाब भी हुए। जदयू को कम सीट आने पर उन्होंने कहा, "हमलोगों की सीट पर कैसे वोट बांटा गया वो देख रहे हैं। गठबंधन और पार्टी के लोग देख रहे हैं कि कहां क्या हुआ है।"
बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा, का जवाब देते हुए नीतीश ने कहा, "मैं कहां कोई दावा कर रहा हूं? निर्णय राजग द्वारा लिया जाएगा। हमारा अभियान पूरे राजग के लिए था, लेकिन प्रत्याशी नहीं होने के बावजूद ढूंढ़-ढूंढ़कर सिर्फ हमारी ही सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर नुकसान पहुंचाया गया।"
उन्होंने कहा कि यह भाजपा को देखना है। हालांकि यह भी कहा कि एक-एक सीटों पर विश्लेषण किया जा रहा है।
नीतीश ने एकबार फिर क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म से समझौता न करने की बात करते हुए कहा कि राजग की सरकार बनने के बाद तय किया जाएगा कि काम कैसे किया जाएगा, इसकी योजना बनाई जाएगी।
उन्होंने कहा कि काम करनेवाले को अगर कोई अपमानित करेगा, तो बिना काम करनेवाले आएंगे, तो क्या होगा। इस चुनाव में कई ऐसी चीजें भी प्रचारित की गई जो कभी पूरी हो ही नहीं सकी।
एक प्रश्न के उत्तर में नीतीश कुमार ने कहा कि राजग को बहुमत है, सरकार चलाने में कोई परेशानी नहीं होगी। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 12 नवंबर| बिहार चुनाव में कई युवा वैसे तो चुनाव जीत कर विधानसभा तक पहुंचने में सफल रहे हैं, लेकिन कई युवा ऐसे भी हैं जो अपने विधानसभा क्षेत्रों में वोट तो अच्छी खासी ले आए, लेकिन वे अंतिम तक बढ़त नहीं बना सके और उनका विधानसभा पहुंचने का सपना टूट गया। ऐसे में राजद नेतृत्व वाले महागठबंधन के कई युवा हैं।
महागठबंधन में शामिल कांग्रेस ने इस चुनाव में 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, लेकिन 19 प्रत्याशी ही जीत सके। कई युवा चेहरों को इस चुनाव में मात खानी पड़ी। कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि कांग्रेस को 70 सीटें दी गई। दरअसल, कांग्रेस केवल 45 सीटों पर ही लड़ रही थी, शेष 25 सीटों को तो महागठबंधन के सभी घटक पहले से ही हारी जा चुकी मान रहे थे, इनमें से कई भाजपा के गढ़ थे।
कांग्रेस ने सोचा कि आगे आने वाले समय में पार्टी के विस्तार को ध्यान में रखते हुए उसे अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए।
आंकडों पर गौर करें तो सुल्तानगंज क्षेत्र से कांग्रेस ने कई चुनावों के बाद अपने उम्मीदवार उतारे। कांग्रेस ने इस चुनाव में वहां से युवक कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ललन कुमार को प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस के ललन कुमार को जहां 61,017 मत मिले वहीं जदयू के प्रत्याशी ललित नारायण मंडल को 72,620 मत प्राप्त हुए। मतगणना के कई दौर के बाद ललन आगे भी रहे, लेकिन अंत में वे पिछड़ गए।
इधर, इस चुनाव में कांग्रेस भागलपुर के कहलगांव से नौ बार विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके सदानंद सिंह के पुत्र शुभानंद मुकेश को टिकट थमाया। यहां से भाजपा के पवन कुमार यादव ने शानदार जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी शुभानंद मुकेश को 42,893 वोटों से हराया। पवन यादव को 1,15,326 वोट मिले, वहीं शुभानंद मुकेश को 72,379 वोट ही मिल सके और वे कांग्रेस का किला नहीं बचा सके।
इसी तरह बेलदौर में भी कांग्रेस के युवा चेहरा चंदन यादव को कड़े मुकाबले में हार का मुंह देखना पड़ा। चंदन कांग्रेस कमिटि के सचिव हैं। चंदन को 51,064 वोट मिले जबकि जदयू के पन्ना लाल पटेल को 56,353 वोट मिले।
दिग्गज समाजवादी नेता शरद यादव की पुत्री सुभाषिनी यादव को भी इस चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। सुभाषिनी की जीत के लिए यहां कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी पहुंचकर वोट देने की अपील की थी, लेकिन वे जीत नहीं सकी। यहां से सुभाषिनी को 61,650 वोट पर संतोष करना पड़ा जबकि जदयू के निरंजन कुमार मेहता को 81,109 मत मिले।
कुल मिलाकर देखा जाए तो इस चुनाव में कांग्रेस के कई दिग्गज युवा नेता चुनाव हारे। ऐसे में अब उन्हें संगठन में जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी चल रही है। वैसे, कांग्रेस इस चुनाव के मतगणना में गड़बड़ी का भी आरोप लगा रही है। (आईएएनएस)
भोपाल, 11 नवंबर| मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा क्षेत्रों में हुए चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय िंसंह के खिलाफ आवाज उठने लगी है। कांग्रेस नेता और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हरपाल सिंह ठाकुर ने कमल नाथ से इस्तीफा देने और दिग्विजय सिंह को परामर्शदाता की भूमिका में आने की मांग की है। ठाकुर ने एक बयान जारी कर लोकसभा चुनाव में हुई हार के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि पार्टी हाईकमान ने राज्य के उप-चुनाव कमल नाथ व दिग्विजय सिंह को फ्रीहैंड लड़ने का मौका दिया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पूरी ताकत लगाई, मेहनत की।
उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं की तमाम मेहनत के बाद कांग्रेस उप-चुनाव हार गई, इसलिए पार्टी का जो सिद्धांत है, जिसे राहुल गांधी ने स्थापित किया, वही सिद्धांत राज्य में कमल नाथ को भी पालन करना चाहिए। उन्हें प्रदेशाध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा देना चाहिए। कमल नाथ व दिग्विजय सिंह को हार की जिम्मेदारी लेना चाहिए। खिलाड़ी का भावना का परिचय देते हुए दोनों को परामर्शदाता की भूमिका में आना चाहिए। साथ ही राज्य में नए नेतृत्व को मौका दिया जाना चाहिए। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 11 नवंबर| कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह केवल 19 सीटें ही जीत सकी। यही वजह रही कि महागठबंधन 122 के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच सका। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने ये बात कही है। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि 70 सीटों पर उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के बजाय पार्टी कम संख्या में चुनाव लड़ सकती थी, खास कर ऐसी जगहों पर जहां उसकी उपस्थिति मजबूत थी। स्थानीय कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वे पार्टी के केंद्रीय नेताओं को सीधे भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने के बारे में आगाह करते रहे हैं।
पार्टी के नेताओं का कहना है कि कांग्रेस के लिए ज्यादा सीटों पर लड़ने के बजाय छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करना ज्यादा बेहतर होता। आखिरकार छोटी पार्टियों -- हम और वीआईपी ने राजग को जादुई आंकड़े तक पहुंचने में मदद की।
कांग्रेस, हालांकि, हार के लिए और वोट काटने के लिए एआईएमआईएम को जिम्मेदार ठहराती है।
पार्टी के नेता अधीर चौधरी ने कहा, "वो ओवैसी हैं जो धर्मनिरपेक्ष दलों को हराने में भाजपा की मदद कर रहे हैं।"
सीमांचल में, जहां महागठबंधन अपने प्रदर्शन को दोहरा नहीं सका, एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीतीं और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता - अब्दुल जलील मस्तान और तौसीफ आलम - एआईएमआईएम उम्मीदवारों से हार गए।
कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री शकीलउजमान अंसारी ने कहा, "हमने स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडे को सही उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया।"
अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि कांग्रेस नेताओं ने पार्टी को मजबूत करने के लिए जमीनी स्तर पर काम नहीं किया और कोविड के कारण भी पार्टी समय पर लोगों तक पहुंच नहीं बना सकी।
कांग्रेस अगर अपने पिछले प्रदर्शन 27 सीटें जीतने को दोहरा लेती तो महागठबंधन को सत्ता में पहुंचाने में अहम भूमिका निभा सकती थी। लेकिन महागठबंधन से आरएलएसपी, वीआईपी और हम के बाहर जाने का इतना बड़ा नुकसान होगा ये किसी ने नहीं सोचा था। जबकि हम और वीआईपी ने राजग की झोली में आठ सीटें डाली हैं।
विपक्षी महागठबंधन के खाते में 110 सीटें आईं। राष्ट्रीय जनता दल ने 75 सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 19 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी-लेनिनवादी (लिबरेशन) ने 12 सीटें जीतीं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादीने दो-दो सीटें जीतीं।
शेष सीटों में से असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने पांच, जबकि बहुजन समाज पार्टी ने एक सीट जीती और एक निर्दलीय ने जीता। (आईएएनएस)
बिहार विधानसभा के लिए तीन चरणों में हुए चुनाव में बिहार में एनडीए सरकार की वापसी का रास्ता साफ हो गया है. मंगलवार को हुई मतगणना में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) को 126 तो प्रतिद्वंदी महागठबंधन को 109 सीटें मिली हैं.
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट-
पटना, 10 नवंबर : तीन चरणों में 28 अक्टूबर, तीन व सात नवंबर को हुए बिहार चुनाव के परिणामों ने पिछली विधानसभा चुनाव की तरह ही एक बार फिर एक्जिट पोल के नतीजे को नकार दिया है. 2020 के इस विधानसभा चुनाव में 74 सीटों पर विजयी होकर भारतीय जनता पार्टी तेजस्वी यादव के आरजेडी के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. कांटे की टक्कर में कभी कोई आगे जाता दिखा तो कभी कोई पीछे. बिहार में एकबार फिर नीतीश कुमार सरकार के मुखिया बनेंगे. एनडीए ने यह चुनाव ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा था. पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर व जयप्रकाश नारायण के शिष्य रहे 69 वर्षीय नीतीश कुमार ने अपना पहला चुनाव जनता पार्टी के टिकट पर 1977 में लड़ा था. करीब 32 फीसद वोट हासिल करने के बाद भी वे निर्दलीय प्रत्याशी भोला सिंह से चुनाव हार गए थे. दूसरी बार उन्होंने 1980 में चुनाव लड़ा लेकिन वे फिर हार गए.
दो बार की हार से विचलित हुए बिना नीतीश 1985 में लोकदल के उम्मीदवार बने और भारी मतों से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. उन्हें करीब 54 प्रतिशत वोट मिले थे. इसके बाद नीतीश कुमार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. यह जरूर है कि साल 1989 में उनके राजनीतिक जीवन में खासा उछाल आया. 1989 में बाढ़ (पटना) लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर अप्रैल 1990 से नवंबर, 1991 तक वे केंद्रीय कृषि मंत्री रहे. 1991 में वे फिर लोकसभा के लिए चुने गए. 1995 में जार्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर उन्होंने समता पार्टी बनाई. फिर 1996 में भी वे सांसद चुने गए. 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वे रेल मंत्री बने. 1999 में फिर 13वीं लोकसभा के लिए चुने गए और फिर केंद्रीय मंत्री बने.
सात दिन के मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार पहली बार तीन मार्च, 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री बने किंतु उनका यह कार्यकाल महज सात दिनों का यानी दस मार्च तक रहा. 2004 में वे छठी बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. इसके बाद वे फिर 24 नवंबर, 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने. 2010 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बिहार सरकार के मुखिया बने किंतु लोकसभा चुनाव में हुई हार की वजह से उन्होंने इस्तीफा देकर 20 मई, 2014 को जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया. मांझी 20 फरवरी, 2015 तक मुख्यमंत्री रहे.
तेजस्वी ने दी कड़ी टक्कर
नीतीश कुमार ने 2015 में एनडीए से नाता तोड़ लिया और उसके बाद अपने विरोधी राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर उन्होंने महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ा और 22 फरवरी, 2015 को पुन: उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि 18 महीने तक सरकार चलाने के बाद 2017 में महागठबंधन से अलग होकर वे एक बार फिर अपने पुराने सहयोगी एनडीए के साथ आ गए और बीजेपी तथा अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई.
नीतीश की पार्टी को नुकसान
2020 के चुनाव परिणाम में जो एक खास बात सामने आई है, वह है जदयू के सीटों की संख्या में कमी आना. एनडीए में जदयू अब तक बड़े भाई की भूमिका में था जबकि भाजपा छोटे भाई की. इस बार जदयू के सीटों की संख्या में खासी कमी आ गई. इस चुनाव में भाजपा को 74 तथा जदयू को 44 सीटें मिलीं. 2015 में जदयू को 71 तथा भाजपा को 53 सीटें मिलीं थीं. इसकी सबसे बड़ी वजह लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) रही. लोजपा राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए की घटक है किंतु बिहार विधानसभा चुनाव में उसने एनडीए के साथ दोस्ताना लड़ाई लड़ी.
लोजपा प्रमुख ने उन सभी जगहों पर अपने उम्मीदवार दिए जहां से जदयू के प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे. चुनाव प्रचार में भी उन्होंने नीतीश कुमार पर तीखा हमला किया. यहां तक की उन्हें जांच के बाद जेल भेजने की बात कही. राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि लोजपा की वजह से वोटों का बिखराव हुआ. जिन जगहों पर भाजपा थी वहां तो जदयू का वोट भाजपा को ट्रांसफर हुआ किंतु उन जगहों पर जहां जदयू के उम्मीदवार थे वहां भाजपा के वोटों का बिखराव हुआ.
कांग्रेस नहीं दिखा पाई कमाल
नीतीश मुख्यमंत्री रहेंगे या नहीं
अब जब नीतीश कुमार की पार्टी जदयू व भाजपा की सीटों का फासला काफी है इसलिए यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे या कोई और? पत्रकार सुमन शिशिर कहते हैं, "यही तो भाजपा की रणनीति थी और वह नीतीश कुमार का कद छोटा करने में सफल भी रही. इसलिए लोजपा को एक मायने में छूट ही दी गई थी." वाकई राजनीतिक गलियारे से अब यह चर्चा जोर पकड़ रही कि क्या मुख्यमंत्री भाजपा का होगा या नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे. ऐसे भाजपा के बड़े से बड़े नेता कहते रहे हैं कि नीतीश कुमार ही हमारे मुख्यमंत्री होंगे और भाजपा जैसी बड़ी पार्टी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि मुख्यमंत्री के नाम पर वह किसी भी रूप में पुनर्विचार करेगी. जहां तक नीतीश कुमार को जानने वाले लोगों का कहना है कि भाजपा तो अपनी ओर से ऐसा कुछ नहीं कहने जा रही किंतु सीटों के फासले को देखते हुए संभव है कि नीतीश कुमार खुद ही कोई फैसला ले सकते हैं.
वाकई, कोरोना संकट के दौरान हुआ यह विधानसभा चुनाव सत्तारूढ़ दल के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था. कोरोना के कारण लॉकडाउन के कारण प्रवासियों की स्थिति को लेकर भी बिहार सरकार की किरकिरी हुई थी और प्रदेश में आई बाढ़ ने भी कोढ़ में खाज का काम किया. फिर तेजस्वी यादव के दस लाख सरकारी नौकरी देने, कांट्रैक्ट पर नियुक्त विभिन्न सेवा संवर्ग के लोगों के मानदेय में इजाफा करने तथा समान काम के लिए समान वेतन जैसी लोकलुभावन घोषणाओं ने एनडीए को काफी मुश्किल में डाला. किंतु, परिणामों ने यह साबित कर दिया कि लोग नीतीश कुमार को एक और मौका देना चाहते हैं और शायद इसलिए कांटे की टक्कर होते हुए भी एनडीए को विजयश्री हासिल भी हुई.
पटना, 10 नवंबर | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा चुनावों में मंगलवार को पांच सीटों पर जीत हासिल कर ली है और वह 68 सीटों पर आगे चल रही है। चुनाव परिणाम के रुझानों में भाजपा राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। चुनाव आयोग की ओर से मिली हालिया जानकारी के अनुसार, अब तक कुल 4.10 करोड़ मतपत्रों में से 2.30 करोड़ से अधिक मतों की गिनती हो चुकी है और बाकी मतमत्रों की गिनती जारी है।
भाजपा की ओर से जीती गई पांच और अन्य 12 सीटों पर चुनाव आयोग ने शाम 5.54 बजे तक नतीजे घोषित कर दिए हैं।
12 घोषित सीटों में से सात पर तेजस्वी यादव की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने जीत हासिल की है। इसके अलावा वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल-युनाइटेड(जदयू) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने दो-दो सीटें हासिल की हैं, जबकि कांग्रेस के खाते में एक जीत आई है।(आईएएनएस)
पटना, 10 नवंबर| नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से चुनाव लड़ने वाले तेजप्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय अपनी परसा सीट नहीं बचा पाए। उन्हें 17 हजार से भी अधिक वोटों से राजद प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा। 2015 में वह परसा सीट पर राजद के टिकट से जीत दर्ज की थी। परसा सीट से जदयू प्रत्याशी चंद्रिका राय को कुल 50799 वोट मिले, जबकि राजद प्रत्याशी छोटे लाल राय को 67746 वोट मिले। इस प्रकार कुल 17293 वोटों से चंद्रिका राय को हार का सामना करना पड़ा। इस सीट से लड़ने वाले लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी राकेश कुमार सिंह को 12137 वोट मिले।
खास बात है कि परसा विधानसभा सीट पर चंद्रिका राय के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी प्रचार किया था। वहीं उनकी बेटी और लालू यादव की बहू ऐश्वर्या ने भी काफी कैंपेनिंग की। बावजूद इसके राजद के बागी नेता चंद्रिका राय अपनी सीट बचा नहीं पाए। चुनाव रुझानों की बात करें तो इस वक्त कुल 243 सीटों में भाजपा 65, राजद 67, जदयू 36 और कांग्रेस 18 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। (आईएएनएस)
गांधीनगर, 10 नवंबर| गुजरात में आठ सीटों पर हुए उपचुनाव में संभावित हार की ओर बढ़ रही कांग्रेस ने कहा कि पार्टी आने वाले दिनों में उपचुनाव में हार को लेकर आत्म अवलोकन करेगी। गुजरात प्रदेश कांग्रेस समिति (जीपीसीसी) के प्रदेश अध्यक्ष अमित चावड़ा ने मंगलवार को कहा, "ये चुनाव राज्यसभा में एक और सीट जीतने के भाजपा की लालच की वजह से यहां की जनता पर थोपे गए थे। इस चुनाव के दौरान, हमने उम्मीद की थी कि लोग दल-बदलुओं को करारा जवाब देंगे। लेकिन दुर्भाग्य से, जनादेश दल-बदलू उम्मीदवारों के पक्ष में चला गया। लेकिन हमने लोगों के जनादेश को स्वीकार कर लिया है और हम उपचुनाव में हार के कारणों की समीक्षा करेंगे।"
चावड़ा ने कहा, "निश्चित ही इन नतीजों से हमारा उत्साह कम हुआ है। अब हम आत्म अवलोकन करेंगे और अपने उत्साह को बढ़ाएंगे। हम लगातार लोगों की आवाज उठाते रहेंगे और लोगों के लिए काम करते रहेंगे।" (आईएएनएस)
इम्फाल/कोहिमा, 10 नवंबर | सत्तारूढ़ भाजपा के उम्मीदवारों ने मंगलवार को दो विधानसभा सीटों पर अपनी जीत दर्ज की, जबकि पार्टी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार ने मणिपुर में तीसरे सीट पर जीत हासिल की और इसी के साथ ही भाजपा चौथी सीट पर भी आगे रही है, जिसके लिए आधिकारिक परिणाम के खुलासे का अभी इंतजार है। अधिकारियों ने मंगलवार को कहा कि भाजपा के सहयोगी और सत्तारूढ़ एनडीपीपी (नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी) ने नगालैंड में एक विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की है, जहां दूसरी सीट पर एक निर्दलीय उम्मीदवार ने बढ़त हासिल की है, जो उपचुनावों में भी आगे रहा है।
इम्फाल में चुनाव अधिकारियों ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार ओइनम लुखोई सिंह ने (वांगोई सीट) पर जीतने के लिए 10,960 वोट हासिल किए हैं। उन्होंने इस मुकाबले में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी खुरईजाम लोकेन सिंह को 257 वोटों से हराया है।
वांगोई सीट पर भाजपा, एनपीपी और कांग्रेस प्रत्याशियों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखा गया। एनपीपी मणिपुर में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की सहयोगी है।(आईएएनएस)
लिलोंग सीट पर भाजपा समर्थित निर्दलीय वाई अंतास खान ने निकटतम निर्दलीय प्रतिद्वंद्वी मोहम्मद अब्दुल नासिर को 3,078 वोटों से हराने के लिए 17,106 वोट हासिल किए।
वांगजिंग-टेंटा सीट पर भाजपा प्रत्याशी पौनम ब्रजेन सिंह को कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वी मोइरंगहेम हेमंत सिंह को 1,560 वोटों से हराने के लिए 15,147 वोट मिले।
हालांकि चुनाव आयोग द्वारा सीटू सीट पर आधिकारिक रूप से परिणाम घोषित किया जाना बाकी है, लेकिन भाजपा प्रत्याशी नगमथांग हाओकिप अपने कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी लामिथांग हाओकिप से 7,661 से अधिक वोटों से जीत की दौड़ में आगे नजर आ रहे हैं।
7 नवंबर को मणिपुर की चार विधानसभा सीटों और 3 नवंबर को नगालैंड की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए।
भोपाल 10 नवंबर | मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा क्षेत्रों मतगणना का दौर जारी है। अब तक 10 नतीजे आए है उनमें भाजपा ने नौ सीटों पर जीत दर्ज की है। वहीं 10 सीटों पर बढ़त हासिल की है। कांग्रेस एक सीट जीत चुकी है और आठ पर आगे चल रही है। निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा ने मांधाता से भाजपा के नारायण सिंह पटेल ने कांग्रेस उम्मीदवार उत्तम पाल को 22129 वोटों की अंतर से शिकस्त दी है। इसी तरह सुवासरा से मंत्री हरदीप सिंह डंग ने कांग्रेस प्रत्याशी राकेश पाटीदार को 29404 से हराया है। इसके अलावा भाजपा के बमौरी से महेंद्र सिंह सिसौदिया, अशोक नगर से जजपाल सिंह जज्जी, मुंगावली से बृजेंद्र सिंह यादव, अनूपपुर से बिसाहू लाल सिंह, सांची से डॉ. प्रभुराम चौधरी, बदनावर से राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव, नेपानगर से सुमित्रा कास्डेकर ने जीत दर्ज की है।
भाजपा जहां एक ओर नौ सीटें जीत चुकी है और दूसरी ओर 10 सीटों पर बढ़त बनाए है। इसके अलावा ब्यावरा से कांग्रेस के रामचंद्र दांगी ने कांग्रेस के उम्मीदवार नारायण सिंह पंवार 12102 वोटों के अंतर से परास्त किया है। इसके अलावा आठ सीटों पर कांग्रेस आगे चल रही है।(आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 5 नवंबर | बिहार में तीसरे और अंतिम चरण के विधानसभा चुनाव के लिए सात नवंबर को 78 सीटों के मतदाता मतदान करेंगे। इस चरण का चुनाव तो ऐसे सभी राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल जनता दल (युनाइटेड) के लिए जहां अपनी पुरानी सीटों को बचाए रखना चुनौती है वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता 2010 के चुनाव वाली सफलता दोहराने के लिए मेहनत कर रही है।
इस चरण में भाजपा 35 सीटों पर चुनाव लड़ रही है वहीं उसकी सहयोगी जदयू ने 37 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं। इसके अलावा राजग में शामिल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के पांच और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के एक प्रत्याशाी चुनावी मैदान में है। दूसरी ओर महागठबंधन में राजद 46 सीटों पर जबकि उसकी सहयोगी कांग्रेस 25 सीटों में चुनावी मैदान में है।
पिछले चुनाव में महागठबंधन ने 78 में से 54 सीटें जीत ली थीं, लेकिन इस चुनाव में स्थिति बदल गई है। जदयू और भाजपा के साथ आ जाने के बाद राजद को पुरानी सफलता को बनाए रखना चुनौती है। राजद पिछले चुनाव में इस क्षेत्र से 20 सीटें अपनी झोली में डाली थी। यही हाल जदयू की भी है। जदयू ने पिछले चुनाव में 23 सीटों पर विजय दर्ज की थी।
तीसरे चरण के चुनाव में राजद और जदयू 23 सीटों पर आमने-सामने हैं जबकि 20 सीटों पर राजद का भाजपा से कांटे की लड़ाई है। कांग्रेस भी 14 सीटों पर भाजपा और नौ सीटों पर जदयू के मुकाबले में खड़ी है।
वर्ष 2010 में भाजपा को मिली 91 सीटों में से 27 सीटें इस क्षेत्र से आई थी, यहीं कारण है कि भाजपा इस क्षेत्र में अपने पुराने इतिहास को दोहराने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।
वैसे, कोशी और सीमांचल का चुनाव किसी भी दल के लिए आसान नहीं रहा है। यहां का गणित बराबर उलझा रहा है। सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) पहले से ही इस मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके में अपने प्रत्याशी उतारकर राजद के मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाने की तैयारी में है।
महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के लिए भी इस चरण का चुनाव कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। इस चरण में पार्टी के आधे निवर्तमान विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। पिछले चुनाव में पार्टी ने 27 सीटों पर चुनाव जीता था, लेकिन उसकी चार सीटिंग सीटें सहयोगी दलों के खाते में चली गई है।
इस चुनाव में कांग्रेस को जो 70 सीटें मिली हैं, उसमें 23 सीटिंग हैं, जिसमें इसी चरण में 11 सीटें हैं, जिनमें फिर से अपने कब्जे में रखना बड़ी चुनौती है।
बहरहाल, सभी दल अपनी स्थिति में सुधार को लेकर कड़ी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन मतदाता किसे पसंद करेंगे इसका पता तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा, जब मतगणना के बाद परिणाम घोषित किया जाएगा।(आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 4 नवंबर| बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 71 और दूसरे चरण में 94 सीटों पर मतदान हो चुके हैं, सात नवंबर को तीसरे और अंतिम चरण के लिए मतदान होना है। तीसरे चरण को लेकर सभी दलों के नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
अब तक दो चरणों के हुए चुनाव के लिए हुए प्रचार अभियान में जहां सत्ता पक्ष 'जंगलराज' के जरिए एक बार फिर सत्ता तक पहुंचने को लेकर बेताब दिख रही है, वहीं महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्ती यादव रोजगार के मुद्दे को प्रभावशाली ढंग से उठाकर बिहार में बदलाव की कहानी गढ़ने के लिए खूब पसीना बहा रहे हैं।
तेजस्वी के 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने के वादे से लोग महागठबंधन की ओर आकर्षित भी हो रहे हैं, लेकिन सत्ता पक्ष राजद के पुराने शासनकाल को 'जंगलराज' की याद दिलाकर भय भी दिखा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के नेता अपनी सभी चुनावी सभाओं में जंगलराज की चर्चा कर रहे हैं। हालांकि विपक्षी दलों के महागठबंधन के नेता जंगलराज की चर्चा करने से बच रहे हैं।
राजद ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में पहली कैबिनेट की बैठक में दस लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का वादा किया है। इस चुनाव की घोषणा के पूर्व राजग की जीत तय मानी जा रही थी, लेकिन राजद के सरकारी नौकरी के वादे के बाद महागठबंधन की तरफ राज्य के युवाओं का रुझान दिख रहा है।
पटना के दीघा विधानसभा क्षेत्र में तेजस्वी की एक सभा में पहुंचे दानापुर के एक युवा मतदाता ने कहा कि पहली बार विधनसभा चुनाव में रोजगार मुद्दा बना है। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा प्रारंभ से रहा है, लेकिन कभी किसी राजनीतिक दल ने इस मुद्दे को नहीं उठाया था। उन्होंने कहा कि इसका महागठबंधन को लाभ मिलना भी तय है।
इधर, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने भी अपनी सभी रैलियों में जंगलराज की याद करवाते हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार में 1995 में हुए चुनाव में नीतीश कुमार इसी 'जंगलराज' के नारे पर सवार होकर मजबूत माने जाने वाले लालू प्रसाद को हटाकर सत्ता तक पहुंचे थे। उस समय पटना उच्च न्यायालय ने राज्य में बढ़ते अपहरण और फिरौती के मामलों पर टिप्पणी करते हुए राज्य की व्यवस्था को जंगलराज बताया था, जिसे राजद विरोधियों ने मुद्दा बनाया था।
सत्ता में आने के बाद राजग ने नीतीश सरकार को 'सुशासन' का चेहरा बना दिया।
हालांकि 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार की जदयू, राजद और कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में उतरी, उस समय भी भाजपा नेतृत्व वाले राजग ने 'जंगलराज' को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी, लेकिन तब यह मुद्दा नहीं बन सका था और महागठबंधन विजयी हुई थी। इस चुनाव में जदयू भाजपा एक साथ चुनावी मैदान में हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारों ही इशारों में तेजस्वी यादव को 'जंगलराज का युवराज' तक बताकर जंगलराज कैसा था, इसका भी बखान अपनी चुनावी सभाओं में कर रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा भी जंगलराज का मुद्दा उठा रहे हैं।
बीबीसी के संवाददाता रहे बिहार के वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर भी मानते हैं कि भाजपा ने जिस तरह से इस मुद्दे को उभारा है, उससे उसको फायदा मिलेगा, क्योंकि अभी भी काफी लोग हैं जो उस दौर की वापसी नहीं चाहते हैं।
इधर, सुपौल के नवीन कुमार भी कहते हैं कि रोजगार ठीक है, नौकरी ठीक है। वे यह भी कहते हैं कि क्षेत्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी है, लेकिन जंगलराज की कल्पना करना ही डर पैदा करता है। युवा नवीन कहते हैं, ''जंगलराज की मुझे याद नहीं है, क्यांेकि उस समय सात साल का था, लेकिन उस दौर की कहानियां अजीब है।''
बहरहाल, रोजगार और जंगलराज के बीच बिहार का चुनाव दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। मतदाता किसे पसंद कर रहे हैं, यह तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा। (आईएएनएस)
ग्वालियर, 3 नवंबर| पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर में मतदान कर भाजपा की जीत का दावा किया। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर तंज भी कसा। राज्य के 28 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान हो रहा है, इनमें ग्वालियर पूर्व विधानसभा क्षेत्र भी शामिल है। सिंधिया इसी क्षेत्र से मतदाता हैं, वे यहां के एमआई शिशु मंदिर पहुंचे और मतदान किया। इसके बाद उन्होंने संवाददाताओं से चर्चा करते हुए दावा किया कि इस चुनाव में भाजपा बड़ी जीत दर्ज कर रही है।
सिंधिया से जब पूछा गया कि दिग्विजय िंसंह तो ईवीएम को लेकर सवाल उठा रहे है तो उनका जवाब था कि दिग्विजय सिंह अपने आप पर सवाल उठाएं, उन्होंने प्रदेश का क्या हाल कर रखा था, किस हालत में छोड़ा था।
इससे पहले दिग्विजय सिंह ने ईवीएम पर सवाल उठाए और कहा है कि ईवीएम हैक हो सकती है। उन्होंने मतपत्र से वोटिंग की वकालत की। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 2 नवंबर| भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल इस विधानसभा चुनाव में विपक्ष को कहीं नहीं मानते। उन्होंने विपक्ष के रोजगार देने के वादे को भी भ्रम फैलाने वाला बताते हुए सवाल किया कि पड़ोसी झारखंड में राजद व कांग्रेस भी सरकार में शामिल है, कितनों को रोजगार मिल गया?
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने आईएएनएस के साथ खास बातचीत में विपक्ष के वादे पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिहार में 15 साल राजद की सरकार रही है। उस दौर में वेतन भी समय पर नहीं मिलता था।
उन्होंने कहा कि राजद की 15 साल की सरकार में मात्र 90 हजार लोगों को नौकरी दी गई थी, वह आज 10 लाख नौकरी देने की बात कर रहा है, तो इससे बड़ी हास्यास्प्द स्थिति क्या होगी।
उन्होंने कहा, ''राजद झूठ का वादा कर रहा है। राजद और कांग्रेस पड़ोसी राज्य झारखंड में सरकार में है, कितने लोगों को रोजगार मिला? तेजस्वी यादव खुद बिहार सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे हैं, कई विभाग के मंत्री रहे, कितनों को रोजगार दिया? देखिए सब वोट पाने को लेकर किया जा रहा है, लेकिन लोगों को इन वादों पर विश्वास नहीं हो पा रहा है।''
दूसरी ओर जायसवाल ने कहा कि भाजपा ने 19 लाख लोगों को नौकरी नहीं रोजगार देने की बात की है। उन्होंने कहा कि इसके लिए भाजपा ने रोडमैप बनाया है। हमने स्पष्ट बताया 4.50 लाख नौकरियां तो शिक्षा-स्वास्थ्य के क्षेत्र में देंगे। इसके अलावा रिक्त पदों पर बहाली होगी। 19 लाख रोजगार के अवसर सृजित किए जाएंगे।
भाजपा के बागियों के चुनाव मैदान में उतर जाने के मुद्दे पर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में जायसवाल ने कहा कि पहली बार बड़ी संख्या में बागियों पर कार्रवाई हुई है। उन्होंने हालांकि माना कि भाजपा ही नहीं जदयू के बागियों से भी राजग को नुकसान हुआ है।
जायसवाल ने बेबाकी से आईएएनएस को बताया, ''नेता बदलते हैं, कार्यकर्ता और समर्थक नहीं बदलते हैं। कार्यकर्ता और समर्थक पार्टी के साथ होते हैं।''
लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) के राजग से अलग होने के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ''ऐसा नहीं है। लोजपा केंद्र में रहते भी झारखंड सहित अन्य प्रदेशों में अलग चुनाव लड़ चुकी है। लोजपा के संबंध में प्रश्न उनसे ही पूछा जाना चाहिए। यहां राजग में लोजपा नहीं है।''
उन्होंने लोजपाा के भाजपा के सामने प्रत्याशी उतारने के संबंध में पूछे जाने पर कहा, ''राजग में शामिल चार दलों के ही विषय में मैं बता सकता हूं। अन्य दल क्या कर रहे हैं, यह तो उनके नेता ही बता पाएंगें।''
उन्होंने आगे कहा कि इस चुनाव में विपक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ है। इस चुनाव में विपक्ष के पांच-पांच मुख्यमंत्री हैं।
भाजपा के अधिक सीट आने पर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ''अगर-मगर का प्रश्न ही नहीं उठता। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कह चुके हैं कि राजग के मुख्यमंत्री चेहरा नीतीश कुमार हैं, तो इसमें कुछ बचता ही कहां है।''
उन्होंने दावा करते हुए कहा कि राजग इस चुनाव में दो तिहाई बहुमत के साथ विजयी हो रही है। उन्होंने कहा कि तेजस्वी 'जंगल राज' के प्रतीक बने हुए हैं। लोग उस 15 साल के दौर को अभी भी नहीं भूल पाए हैं। आज के युवा भी बिहार में उस राज की कल्पना नहीं कर सकते। (आईएएनएस)
लखनऊ, 1 नवंबर| कांग्रेस की पूर्व सांसद अन्नू टंडन सोमवार को समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल होंगी। उन्होंने गुरुवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। टंडन ने पुष्टि की है कि वह सपा प्रमुख अखिलेश यादव की उपस्थिति में पार्टी में शामिल होंगी।
उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र उन्नाव के लोगों से बांगरमऊ में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को वोट देने की भी अपील की है, जहां मंगलवार को उपचुनाव के लिए मतदान होगा।
कांग्रेस महासचिव अंकित परिहार, जिन्होंने पिछले सप्ताह पार्टी छोड़ दी थी, वह भी समाजवादी पार्टी में शामिल होंगे।
उन्नाव में नेताओं द्वारा कांग्रेस का दामन छोड़ना जारी है और अब तक, उन्नाव में सदर से 42, भगवंतनगर से चार, मोहन से 29, बांगरमऊ से 24, सफीपुर से 18 और पुरवा से 12 पार्टी कार्यकर्ताओं ने इस्तीफा दे दिया है।
कहा जा रहा है कि ये सभी समाजवादी पार्टी में शामिल होने के लिए तैयार हैं। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 31 अक्टूबर| बिहार विधानसभा चुनाव में तीन चरणों में होने वाले मतदान में पहले चरण का मतदान संपन्न हो चुका है जबकि दूसरे चरण के तहत 3 नवंबर को मतदान होना है। इस चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और राजद नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच माना जा रहा है।
महागठबंधन में ऐसे तो राजद के अलावा, कांग्रेस और वामपंथी दल शामिल हैं लेकिन मोर्चा मुख्यमंत्री के प्रत्याशी तेजस्वी यादव ने खुद संभाल रखी है। तेजस्वी इस चुनाव में अलग नजर आ रहे हैं और अपने पिता तथा राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद के साये से खुद को निकालने के प्रयास में जुटे हैं।
भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन के नेता जहां राजद के 15 साल के शासनकाल के 'जंगलराज' को याद दिलाते हुए लगातार लोगों के बीच पहुंच रहे हैं, वहीं तेजस्वी इस पर कुछ भी चर्चा करने से बच रहे हैं।
तेजस्वी कहते भी हैं, "सत्ता पक्ष के लोग रोजगार, सिंचाई, शिक्षा के मामले में बात हीं नहीं करना चाहते। वे पुरानी फालतू की बातों को कर लोगों को मुद्दा से भटकाना चाह रहे हैं।"
वैसे, तेजस्वी ने इस चुनाव के पहले ही राजद के प्रमुख बैनरों और पोस्टरों से लालू प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की तस्वीर हटाकर यह संकेत दे दिए थे कि इस चुनाव में वे अपनी युवा और नई छवि के जरिए लोगों के बीच पहुंचेंगे।
लालू के दौर में राजद के लिए मुस्लिम और यादव (एम-वाई समीकरण) को वोटबैंक माना जाता था, लेकिन तेजस्वी सभी सभा में सबों को साथ लेकर चलने की बात करते हैं। रोहतास की एक सभा में 'बाबू साहब' के बयान को विरोधियों द्वारा मुद्दा बनाए जाने के बाद राजद तुरंत सफाई देने पहुंच गई थी।
भले ही चुनाव के दौरान लालू का निर्देश तेजस्वी सहित राजद के अन्य नेताओं को मिलते रहते हों, लेकिन तेजस्वी चुनावी रणनीतियों में अपनी रणनीति को शामिल कर रहे हैं। राजद के एक नेता भी कहते हैं कि तेजस्वी की सभा में जुट रही भीड़ इस बात के प्रमाण हैं कि उनकी रणनीति इस चुनाव में अब तक सफल रही है।
मंच से हंसी मजाक के बीच अपनी बात कहने वाले लालू की तरह तेजस्वी हंसी मजाक तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन भोजपुरी भाषा में बोलकर लोगों से जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
राजद के एक बुजुर्ग नेता नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहते हैं, "लालू प्रसाद
वाला लहजा और अंदाज तो नहीं, लेकिन तेजस्वी यादव को भी जनता की डिमांड समझ में आने लगी है। वे नौजवानो की नब्ज पकड़ने लगे हैं। रैलियों में युवाओं की ताली के लिए क्या बोलना है, तेजस्वी को समझ में आने लगा है। रोजगार देने का वादा कर और सबको साथ लेकर चलने की रणनीति अब तक सफल दिख रही है।"
राजनीतिक समीक्षक फैजान अहमद भी कहते हैं कि तेजस्वी ने पहले ही एक तरह से राजद शासनकाल में किए गए गलतियों के लिए माफी मांगकर अपनी जमीन तैयार कर ली थी और संकेत दिए थे कि वे नए सिरे से राजनीति की शुरूआत करेंगे।
उन्होंने कहा कि इस बीच उन्होंने राजद के पोस्टरों में केवल अपनी तस्वीर लगवाई और बेरोजगार का मुद्दा उछाल दिया। वे कहते हैं, "इसमें कोई शक नहीं तेजस्वी अपने पिता के साये से अलग हटकर अपनी जमीन तलाश करना चाहते हैं, जिसमें उन्हें सफलता मिल रही है और लोगों से कनेक्ट कर रहे हैं।"
हालांकि बीबीसी के संवाददाता रहे और वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर राजद के नेता तेजस्वी के विवादास्पद राजद के शासनकाल से अलग छवि पेश करने की तारीफ करते हैं, लेकिन वह यह भी कहते हैं कि कभी-कभार उनके जुबान का फिसलने से लोग में डर पैदा हो जा रहा हे। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 30 अक्टूबर| बिहार में 3 नवंबर को होने वाले दूसरे चरण के मतदान को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। लेकिन दूसरे चरण का चुनाव महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल जनता दल (युनाइटेड) को अपनी सीटें सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती है।
इस चरण की 94 सीटों में से पिछले चुनाव में करीब एक तिहाई पर राजद ने जीत दर्ज की थी। इसी चरण में महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव और उनके भाई तथा पूर्व मंत्री तेजप्रताप यादव सहित कई दिग्गजों की चुनावी किस्मत तय होनी है।
दूसरे चरण में जिन 94 सीटों पर मतदान होना है उनमें से पिछले चुनाव में राजद के 33, जदयू के 30 जबकि कांग्रेस के सात विधायक जीते थे, जबकि राजग को महज 22 सीटों से संतोष करना पड़ा था।
वैसे, पिछले चुनाव से इस चुनाव में परिस्थितियां बदली हैं। पिछले चुनाव में जदयू जहां राजद और कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी जबकि राजग में भाजपा के साथ लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) और राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा) थी। इस चुनाव में जदयू राजग में आ गई है जबकि लोजपा अकेले तथा रोलासपा के अलग गठबंधन के साथ है।
इस चुनाव में राजद ने 56 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं जबकि अन्य पर उनके सहयोगी चुनाव मैदान में है। इनमें से 27 सीटों पर भाजपा के साथ राजद का सीधा मुकाबला है जबकि 25 सीटों पर जदयू के साथ आमने-सामने की लड़ाई है। भाजपा ने इस चरण के चुनाव में 46 प्रत्याशी जबकि उसकी सहयोगी पार्टी जदयू ने 43 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
इस चरण के चुनाव में ही राघोपुर और हसनपुर सीट पर भी मतदान होना है जहां से तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव चुनावी मैदान में है। इसके अलावा भी महागठबंधन के 27 विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर है।
राजद के प्रधान महासचिव आलोक कुमार मेहता उजियारपुर से राजद प्रत्याशी हैं जबकि पूर्व सांसद युवा राजद के अध्यक्ष शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल बिहपुर सीट से मैदान में हैं। पूर्व सांसद आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद शिवहर सीट से चुनाव मैदान में हैं तो पूर्व सांसद रामा सिंह की पत्नी बीना सिंह वैशाली की महनार सीट से चुनावी भाग्य आजमा रही हैं। अभिनेता और पूर्व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के पुत्र लव सिन्हा का सियासी भविष्य भी इस चरण के मतदाता तय करेंगे।
बहरहाल, दूसरे चरण के मतदान को लेकर सभी दलों के नेता चुनावी मैदान में खूब पसीना बहा रहे हैं, लेकिन जदयू के बिना राजद के लिए पिछले चुनाव का जादू वापस दोहराना बड़ी चुनौती मानी जा रही है। इधर, जदयू-भाजपा 2010 की तरह इस बार वापस एक-साथ मैदान में हैं। ऐसे में दोनों पार्टियों के नेता अपने पुराने गढ़ को फिर से झटकने का प्रयास में खूब पसीना बहा रहे हैं। अब देखना होगा कि मतदाता किसे पसंद करते हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर| मधुसूदन मिस्त्री की अगुवाई वाली कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण ने पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है। उन्होंने राज्य इकाइयों से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के सदस्यों के नाम भेजने को कहा है जो पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के लिए मतदान करने के लिए पात्र हैं।
गुरुवार को राज्य प्रमुखों को जारी एक आंतरिक ज्ञापन में, मिस्त्री ने लिखा, "आपको सूचित किया जाता है कि एआईसीसी जल्द से जल्द अपनी बैठक बुलाने का इरादा रखता है, और आपको तिथियों और निर्धारित जगह के बारे में अवगत करा दिया जाएगा।"
प्राधिकरण ने पहचान पत्र जारी करने के लिए एआईसीसी सदस्यों के नाम और फोटो देने को कहा है ताकि वे बैठक में भाग ले सकें।
इसे पार्टी के 23 नेताओं द्वारा लिखे गए पत्र के मद्देनजर एक कदम के रूप में देखा जा रहा है जो ब्लॉक से सीडब्ल्यूसी स्तर तक संगठन में चुनाव और स्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति की मांग कर रहे हैं।
अगस्त में 23 कांग्रेस नेताओं द्वारा एक पत्र लिखे जाने के बाद, पार्टी ने एक तूफानी सीडब्ल्यूसी बैठक देखी, जिसमें पूर्व कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने पार्टी के असंतुष्टों को निशाना बनाया था और पत्र के समय पर भी सवाल उठाया था।
पार्टी की अंतरिम प्रमुख सोनिया गांधी को भेजे गए पत्र में नेतृत्व में बदलाव की मांग की गई थी। यहां तक कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने भी राहुल गांधी से पार्टी प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालने का अनुरोध किया।
सोनिया गांधी ने पार्टी के शीर्ष पद से हटने की पेशकश की, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता मनमोहन सिंह ने इसे अस्वीकार कर दिया और उन्होंने उनसे पद पर बने रहने का आग्रह किया था।
कई कांग्रेस नेताओं द्वारा राहुल गांधी को बिना किसी देरी के पार्टी प्रमुख के रूप में वापस लाने की मांग के साथ, पार्टी ने स्पष्ट कर दिया कि सीडब्ल्यूसी की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होगी।
पत्र में, भाजपा के उदय के साथ चिंता व्यक्त करते हुए, 'पूर्णकालिक' पार्टी अध्यक्ष का आह्वान किया गया था। सोनिया गांधी पिछले साल से अंतरिम अध्यक्ष हैं।
पटना, 29 अक्टूबर | बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पंजाब में पुतला जलाए जाने को लेकर दिए गए बयान पर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने राहुल गांधी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक साथ घेरा है। चिराग ने गुरुवार को कहा कि प्रायोजित तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम किया जा रहा है।
उन्होंने अपने अधिाकरिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, ''बिहार की धरती पर राहुल गांधी जी ने प्रधानमंत्री जी के सम्बंध मे पंजाब में हुई निंदनीय घटना का उल्लेख किया और बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी खामोश हैं। प्रधानमंत्री के साथ स्टेज शेयर करने को बेताब रहते हैं मगर राहुल गांधी के इस घृणित बयान पर अपना मुंह नहीं खोलते हैं।''
उन्होंने आगे लिखा, ''दशहरा के पावन अवसर पर पंजाब सरकार द्वारा प्रायोजित घटना की निंदा लोजपा करती है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का पुतला दहन किया गया था। यह पंजाब की संस्कृति नहीं है और ना ही पंजाब के लोगों ने यह किया है। यकीनन इस घृणित कार्य के पीछे पंजाब सरकार का हाथ है।''
उल्लेखनीय है कि बुधवार को राहुल गांधी ने बिहार में चुनावी सभाओं में कहा था कि इस दशहरा में गुस्से के कारण पंजाब में युवाओं और किसानों ने रावण नहीं प्रधानमंत्री का पुतला दहन किया।
लोजपा अध्यक्ष ने मुंगेर में पुलिस और स्थानीय लोगों की हुई हिंसक झड़प में एक व्यक्ति की मौत पर भी सरकार पर निशाना साधा।
उन्होंने अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, ''मुंगेर में मां दुर्गा के भक्तों के साथ जो हुआ उसे शर्मनाक घटना कहना कम होगा। 'महिसासुर' सरकार के इशारे पर स्थानीय प्रशासन ने कार्रवाई की। गोली बिना आदेश तो नहीं चल सकती। इस महिसासुरी व्यवस्था का वध मां दुर्गा के भक्त 10 तारीख को करेंगे।'' (आईएएनएस)
लखनऊ, 28 अक्टूबर| उत्तर प्रदेश में दस सीटों के लिए राज्यसभा चुनाव होने हैं। लेकिन उससे पहले बहुजन समाज पार्टी में बगावत हो गयी है। बसपा के प्रत्यशी रामजी गौतम के 10 प्रस्तावकों में से 5 प्रस्तावकों ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया है। इसके बाद 5 विधायकों ने सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात की। बगावत करने वालों में बसपा विधायक असलम चौधरी, असलम राईनी, मुज्तबा सिद्दीकी, हाकम लाल बिंद, गोविंद जाटव शामिल हैं। मंगलवार को ही असलम चौधरी की पत्नी ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ली थी। यूपी में दस राज्यसभा सीटों पर चुनाव होना है, जिसके लिए कुल 11 प्रत्याशी मैदान में हैं। भाजपा की ओर से आठ, समाजवादी पार्टी के एक, बहुजन समाज पार्टी के एक और एक निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं।
बसपा के राज्य सभा प्रत्याशी रामजी गौतम के प्रस्तावक के तौर पर अपना नाम वापस लेने वाले पांच बागी विधायक अखिलेश यादव से मिलने समाजवादी पार्टी कार्यालय पहुंचे। सभी की बंद कमरे में मुलाकात हुई है। कहा जा रहा है कि बसपा के पांचों विधायक समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। फिलहाल टूट के कगार पर पहुंची बसपा की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
बता दें कि रामजी गौतम ने राज्यसभा के उम्मीदवार के रूप में 26 अक्तूबर को नामांकन किया था, तब उनके साथ पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा व कई अन्य नेता मौजूद थे।
बुधवार को जब प्रस्तावक अपना नाम वापस लेने के लिए विधानसभा आए तो हलचल मच गई।
भिनगा के बसपा विधायक मो. असलम राईन ने कहा कि रामजी गौतम के प्रस्तावक के रूप में उन लोगों ने दस्तखत नहीं किया। उनके फर्जी हस्ताक्षर बनाए गए हैं। राइनी ने कहा कि कूटरचित हस्ताक्षर के लिए वह विधिक कार्रवाई करेंगे। फर्जी हस्ताक्षर की शिकायत करने वाले विधायकों में मुज्तबा सिद्दीकी, हाकिम लाल बिंद व असलम चौधरी हैं।
ज्ञात हो कि सपा से रामगोपाल यादव और बसपा से रामजी गौतम के अलावा भाजपा के आठ उम्मीदवार मैदान में हैं। सूत्रों की मानें तो इन विधायकों ने दो दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। (आईएएनएस)