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विशेष रिपोर्ट

दिव्यांगों को उपकरण देने के नाम पर घोटाला

  दर्जनों हितग्राहियों को बांट दिए साल में दो बार ट्राईसिकल, श्रवण यंत्र, पेट्रोल चलित स्कूटी  

विशेष रिपोर्ट : प्रदीप मेश्राम

राजनांदगांव, 16 मार्च (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। राजनांदगांव के समाज कल्याण विभाग में दिव्यांगों के उपकरण में बंदरबांट करने के मामले का पर्दाफाश हुआ है। समाज कल्याण विभाग ने दिव्यांगों को दी जाने वाली उपकरणों में ऐसा खेल किया कि दर्जनों हितग्राहियों को एक और  2 साल के भीतर ट्राईसिकल और व्हीलचेयर बांट दिए गए। वहीं श्रवण यंत्र, वाकर, छड़ी, डीसी पेयर तथा स्टीक भी हितग्राहियों को दो-दो बार दिया गया। इस बड़े घोटाले की जानकारी एक दस्तावेज के जरिये सामने आई है। 

कलेक्टर संजय अग्रवाल ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि मामले की जानकारी मिली है। जांच के पश्चात दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। विभाग के अफसरों ने बजट खर्च करने के लिए जरूरतमंद दिव्यांगों के नाम दो से अधिक बार उपकरण बांट दिए।  ‘छत्तीसगढ़’ को दस्तावेज की एक लंबी-चौड़ी हाथ लगी है, जिसमें 2017 से 2022-23 के अंतराल  में 17सौ से अधिक हितग्राहियों को उपकरण दिए गए हैं। कुछ नाम ऐसे हैं, जिन्हें दो बार उपकरण विभाग द्वारा मुहैया कराने का नाम जिक्र है। 

उक्त सूची में दिनेश कुमार, कमलेश यादव, भोजराम मरार, उर्मिला सिन्हा जैसे अन्य दर्जनों हितग्राहियों का नाम है, जिन्हें उपकरण मिले हैं। एक उदाहरण के तौर पर उर्मिला सिन्हा ग्राम खोभा को साल 2020 से 22 के बीच तीन बार मोटर ट्राइसिकल को दिया गया। अफसरों ने हितग्राहियों के उम्र में भी छेड़छाड़ किया है। उर्मिला को साल 2018 में दो बार मोटर ट्राईसिकल बांटा गया। जिसमें एक ही तारीख 30 जुलाई 2018 को 34 और 37 साल का उम्र दर्शाया गया। साल 2020 में उर्मिला को तीसरी बार मोटर ट्राइसिकल वितरित किए जाने के दौरान 30 सितंबर 2020 को 35 साल का उम्र अधिकृत सूची में जिक्र किया है। 

अफसरों ने हितग्राही को बढ़ती उम्र के अलावा घटती उम्र दिखाकर लाभान्वित किया गया। इस तरह अफसरों ने कई हितग्राहियों को फायदा पहुंचाने के लिए नियम विरूद्ध उम्र और विकलांगता के प्रतिशत में भी छेड़छाड़ की है। समाज कल्याण विभाग ने शहर के हितग्राहियों के नाम पर बड़ा हेरफेर किया है। शहर के सदर बाजार के रहने वाले मेघराज जैन को अफसरों ने बच्चे की उम्र दर्शाते 6 फरवरी 2018 और 19 मई 2020 को ट्राईसिकल दिया गया। 

दिलचस्प बात यह है कि मेघराज जैन की 2018 में उम्र 7 साल थी और 2020 में वह सीधे 58 वर्षीय बुजूर्ग बन गए। इस तरह सूची में सैकड़ों ऐसे हितग्राही हैं। जिनका नाम और पता एक ही है और उन्हें अलग-अलग सामग्री वितरित किया जाना दर्शाया गया है। वहीं अधिकारियों ने गोलमाल करते हुए हितग्राहियों के उम्र और विकलांगता प्रतिशत में भी काफी छेड़छाड़ किया है।  समाज कल्याण विभाग ने गुजरे 5 साल में बड़ा घोटाला किया है। बताया जा रहा है कि इस मामले को लेकर बड़ी कार्रवाई करने कलेक्टर ने संकेत दिया है। वह इस मामले की जांच करने के बाद आगे की कार्रवाई करेंगे।

दोषियों के खिलाफ हो कड़ी कार्रवाई-भरत
भाजपा के प्रदेश महामंत्री भरत वर्मा ने कहा कि समाज कल्याण विभाग की सूची में काफी गड़बडिय़ां है। इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दिव्यांगों के उपकरणों में अफसरों ने बड़ा खेल किया है। किसी बड़ी एजेंसी से जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की वह मांग करते हैं, ताकि जरूरतमंद लोगों को न्याय मिल सके।

विचार/लेख

अनुवाद के बारे में...

जय सुशील

किसी भी विदेशी भाषा मसलन जर्मन, रूसी, स्पैनिश से अंग्रेजी में किए गए अनुवाद से किसी तीसरी भाषा में अनुवाद करना आलस्य का प्रतीक है। यह काम भारत में कम से कम हिंदी और उर्दू में तो होता ही है। संभवत बांग्ला या अन्य भाषाओं में भी होता होगा।

अनुवादक यह नहीं समझते कि एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद होते ही कई चीज़ें छूटती और बदलती हैं लेकिन वो यह सोचे बगैर अंग्रेजी से उठा कर अनुवाद कर देते हैं और वाह-वाही बटोरते रहते हैं।

क्या आपने कभी सुना है कि अंग्रेजी जानने वाले ने किसी तीसरी भाषा से स्पैनिश उपन्यास का अनुवाद किया हो। पश्चिम के देशों में आम तौर पर किसी भाषा से अनुवाद करना हो तो लोग वो भाषा सीखते हैं मसलन डेजी रॉकवेल हिंदी और उर्दू से अनुवाद करती हैं। इसी तरह और भी लोग हैं। एक अनुवादक हैं (जिनका नाम भूल रहा हूं) वो पोलिश और स्पैनिश से अंग्रेजी में अनुवाद करती हैं। अनुवादकों ने पूरा जीवन लगाया है भाषा सीखने में तब अनुवाद करते हैं और इसी कारण अच्छा अनुवाद होता है अंग्रेजी में।

बहुत साल पहले महाश्वेता देवी की एक किताब का अनुवाद हिंदी में पढ़ते हुए बहुत ही खराब लगा। वही किताब बाद में अंग्रेजी में ठीक लगी। मेरा अनुमान है कि हिंदी अनुवादक ने अंग्रेजी अनुवाद से हिंदी में किया था जबकि बांग्ला से हिंदी बोलने समझने वाले बहुत लोग हैं भारत में। मैंने तमिल से अंग्रेजी में हुए अनुवाद का हिंदी अनुवाद भी देखा है और यह आलस्य भरा रास्ता है।

हिंदी भाषी लोगों को तो चाहिए कि वो अंग्रेजी के अलावा एक और भाषा जानें और उससे अनुवाद करें। पूरी दुनिया में अंग्रेजी की द्धद्गद्दद्गद्वशठ्ठ4 को चुनौती दी जा रही है लेकिन ये चुनौती दूसरी भाषाएं सीखकर ही दी जा सकती है। हवा हवाई नहीं होता है काम।

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