आजकल
अभी एक ऐसे सूदखोर को पकड़ा गया जो कि बंदूक की नोंक पर एक कारोबारी का अपहरण करके उससे पीटकर अपना कर्ज वसूल रहा था। यह साहूकार इतने मोटे ब्याज पर पैसा देता था कि उस पर पांच लाख कर्ज देकर तीस लाख वसूल लेने का मामला भी दर्ज है। उसने पहले भी एक कर्जदार कारोबारी पर ऐसा हमला किया था, और उसका अपहरण करके हिंसा करने के आरोप में उस पर हत्या के प्रयास का मामला चल रहा था। अब पुलिस ने उसे ऐसे कई मामलों में गिरफ्तार किया है तो पता लग रहा है कि वह एक जाति के संगठन के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष का भाई है।
कहीं धर्म के आधार पर, कहीं जाति के आधार पर, और कहीं क्षेत्रीयता के आधार पर ऐसे दर्जनों संगठन चलते हैं जो मोटेतौर पर लैटरपैड पर जिंदा रहते हैं, लेकिन बीच-बीच में कहीं पर चर्चित, विवादास्पद, और बनते कोशिश हिंसक प्रदर्शन करके अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहते हैं। वे बात किसी धर्म या जाति की हिमायत की करते हैं, लेकिन उनकी हरकतें नफरत फैलाने की रहती हैं, और वे एक काल्पनिक दुश्मन खड़ा करके या किसी धर्म या जाति को दुश्मन करार देकर अपने आपको एक रक्षक की तरह पेश करते हैं, और इस ताकत को हासिल करके वे जिंदगी के बाकी तमाम दायरों में भक्षक की तरह वसूली और उगाही करते हैं।
हम देखते हैं कि तरह-तरह के मुद्दों को लेकर कागजी संगठन बनते हैं, कहीं पर्यावरण के नाम पर, कहीं भ्रष्टाचार पकडऩे या खत्म करने के नाम पर, कहीं मानवाधिकार बचाने के नाम पर, तो कहीं महिला अधिकारों के लिए ऐसी नेतागिरी चलती रहती है जिससे कि अखबारों में नाम आता रहे, किसी प्रदर्शन के बहाने उनका चेहरा किसी छोटे-मोटे समाचार चैनल पर दिखता रहे, या आजकल तो अपना खुद का यूट्यूब चैनल बनाकर पुलिस से लेकर मुजरिम तक सब अपने आपको हीरो साबित करते रहते हैं, ऐसे में कल तक के कागजी संगठनों को आज एक साधारण मोबाइल फोन से बनने वाले वीडियो के माध्यम से समाज का नेता बनने की एक पूरी तरह मुफ्त सहूलियत हासिल रहती है।
ऐसे कोई भी संगठन लगातार इस ताक में रहते हैं कि कब किसी फिल्म का लेकर धर्म और जाति का बखेड़ा खड़ा किया जाए, और उस बहाने खबरों में रहा जाए, वसूली और उगाही की जाए, और उससे हासिल शोहरत से कुछ अधिक ऊंचे दर्जे के जुर्म भी किए जाएं। यह एक पूरी तरह से कामयाब साबित सिलसिला है, और इसका इस्तेमाल अनगिनत लोग करते हैं। हमने तो कभी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के नाम पर दशकों तक उगाही करने वाला संगठन देखा है, तो जब नए छोटे राज्य नहीं बने थे, तब राज्य बनाने के नाम पर ऐसे संगठनों की भरमार थी।
इनमें सबसे अधिक घातक, लेकिन जुर्म में सबसे अधिक मददगार और कामयाब संगठन धर्म के आधार पर बनते हैं, और अगर वे किसी दूसरे धर्म के खिलाफ हैं, कट्टर हैं, हिंसक हैं, तो फिर उसके नेता जल्द ही यह उम्मीद कर सकते हैं कि कुछ बड़े अपराधों में थोड़े-थोड़े वक्त के लिए जेल जाकर, जमानत पर बाहर आकर, वे जमीन-मकान खाली करवाने का धंधा भी कर सकते हैं, और किसी दूसरे की जमीन पर कब्जा भी कर सकते हैं। किसी शराबखाने के देर रात तक खुले रखने के खिलाफ वे रोजाना बयान जारी कर सकते हैं, पुलिस को लिखकर दे सकते हैं, और अपना खुद का हफ्ता बंधवा सकते हैं। ये लोग सूचना के अधिकार के तहत निकाली गई जानकारी को लेकर, अपने खुद के समाचार पोर्टल बनाकर, खुद के यूट्यूब चैनल शुरू करके, या फेसबुक पर किसी के खिलाफ अभियान चला सकते हैं, और उसे अपना कारोबार भी बना सकते हैं।
अभी जो साहूकार पकड़ाया है, वह एक जाति की सेना के अध्यक्ष का भाई है। इस जाति की यह सेना कहीं राजपूत सम्मान को लेकर सडक़ों पर रहती है, या किसी फिल्म के किरदार या कहानी को लेकर टॉकीजों में मामूली तोडफ़ोड़ करके असाधारण कवरेज पा जाती है, और फिर उस ताकत से उसके लोग तरह-तरह की गुंडागर्दी करते हैं। बहुत से संगठन समाज में आतंक पैदा करने के लिए ऐसा काम करते हैं, और उसके बाद किसी त्यौहार पर, या किसी समाज सेवा के काम के बहाने बाजार से रंगदारी-टैक्स वसूलते हैं।
बहुत सी पार्टियों के नेता ऐसे मवालियों को पालकर रखते हैं क्योंकि उन्हें चुनावों के बीच भी गुंडागर्दी के लिए ऐसे लोगों की जरूरत रहती है। अफसरों को अपनी कमाऊ कुर्सी बचाए रखने के लिए सत्तारूढ़, और विपक्ष के भी नेताओं को खुश रखना रहता है, और इसी चक्कर में दोनों ही तरफ के पसंदीदा मवालियों को हर तरह की छूट देकर रखना इन अफसरों की मजबूरी हो जाती है। जब कभी किसी संगठन के मवाली को देखें, तो याद कर लें कि वह संगठन किस पार्टी या नेता का समर्थन करता है। यह भी याद कर लें कि उन्हें पुलिस से बचाने के लिए किस नेता की दखल हर बार काम आती है। किसी भी मवाली की गिरफ्तारी के मौके पर राजनेताओं के बारे में भी जनता को अपनी सोच बनानी चाहिए जिनकी वजह से जनता के साथ गुंडागर्दी करने वाले ऐसे लोगों को ताकत हासिल रहती है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)