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बलात्कार के लतीफों का मजा लेने वालों पर बाजार का भरोसा
05-Jun-2022 12:26 PM
बलात्कार के लतीफों का मजा लेने वालों पर बाजार का भरोसा

भारत सरकार की विज्ञापनों पर नजर रखने वाली संस्था, एडवरटाइजिंग स्टैंडड्र्स कौंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) ने अभी एक बॉडी स्प्रे के इश्तहार को बहुत ही आपत्तिजनक मानकर उस पर रोक लगाई है। सरकार ने ट्विटर और यू-ट्यूब से भी कहा है कि इस विज्ञापन को अपने प्लेटफॉर्म से हटाए। इसकी खबरें आते ही लोगों ने इंटरनेट पर इसे ढूंढना शुरू किया, और पाया कि महिला से बलात्कार की तरफ इशारा करने वाला यह इश्तहार बहुत सोच-समझकर बनाया गया है, और इसका वीडियो हैरान करता है कि सामानों की कौन सी कंपनी, और कौन सी विज्ञापन एजेंसी इस दर्जे का घटिया और हिंसक काम कर सकती हैं? लेकिन जाहिर है कि ऐसा विज्ञापन बना है, एक अभियान की तरह एक से अधिक वीडियो इसके बनाए गए हैं, और देश के जिम्मेदार लोग इसे धिक्कार रहे हैं।

ये विज्ञापन किसी एक लडक़ी के साथ गैंगरेप की तरफ इशारा करते हुए लडक़ों की टोली पर बनाया गया है, और जो बतलाता है कि 21वीं सदी के 22वें बरस में भी हिन्दुस्तान में बाजार बलात्कार को बेचने का सामान मान रहा है, और पूरी बेशर्मी और हिंसा से यह काम कर रहा है।

वैसे तो पूरी दुनिया में इश्तहारों के बाजार में यह चलन रहा है कि उन्हें तरह-तरह से विवादास्पद बनाकर, खबरों में लाकर, बदनामी की भी कीमत पर उनका फायदा उठाया जाए। बाजार में यह आम सोच रहती है कि बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ? इंटरनेट पर ढूंढें तो प्रतिबंधित विज्ञापनों का अम्बार लगा हुआ है। और ये भी ऐसे देशों से हैं जहां पर सार्वजनिक जीवन के सांस्कृतिक मूल्य कई पैमानों पर हिन्दुस्तान के मुकाबले अधिक उदार हैं। वहां पर बदन का उघड़ा होना, शब्दों में कुछ अश्लीलता होना, इन सबको अधिक बर्दाश्त किया जाता है। इसके बावजूद इस बर्दाश्त को पार करके बनने वाले अधिक नग्न और अधिक अश्लील इश्तहारों पर अलग-अलग देशों में रोक लगती है, और फिर ऐसे प्रतिबंधित विज्ञापनों का एक अलग तबका रहता है जो कि इंटरनेट पर जगह पाता है, और लोग इनका मजा लेते हैं।

दरअसल यह पूरा सिलसिला शुरू इसी से होता है कि लोग बलात्कार पर भी लतीफों का मजा लेते हैं। लोग महिला, उसके बदन, उसके मिजाज से जुड़ी हुई हर बात पर मजा लेते हैं। लोगों की सोच ऐसी है कि मर्द तो मर्द, औरत भी जब गालियां देने का हौसला रखती हैं, तो मां-बहन की ही गालियां देती हैं। मतलब यह कि औरत बाजार से लेकर समाज तक लगातार निशाने पर रहती है, और मर्द तो तकरीबन तमाम ही इसका मजा लेते हैं। पौराणिक कहानियों में द्रोपदी के अपमान से लेकर कई दूसरे किस्म की ऐसी घटनाओं का जिक्र रहता है, और हिन्दुस्तान के संसदीय इतिहास में तमिलनाडु विधानसभा में जयललिता की साड़ी भी खींची गई थी। ऐसे समाज में एक बॉडी स्प्रे बेचने के लिए अगर औरत के साथ गैंगरेप, और रेप के मुकाबले को लतीफे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, तो वह गैरकानूनी चाहे जो हो, सजा के लायक चाहे क्यों न हो, वह अधिकतर लोगों को मजा देने वाला तो रहता है। और ऐसे ही मजे पर भरोसा करते हुए यह इश्तहार बना है, और यह गैरजरूरी सामान बेचा जा रहा है।

सोशल मीडिया की मेहरबानी से ऐसी हिंसा तुरंत ही नजरों में आती है, और उसका विरोध शुरू हो जाता है। सत्तारूढ़ पार्टियों को अगर इन पर प्रतिबंध लगाने से कोई सीधा नुकसान नहीं होता, तो उनकी सरकारें भी जल्द जाग जाती हैं, और अपने आपको औरतों का हिमायती साबित करते हुए इन पर तेजी से रोक लगाती हैं। इस ताजा इश्तहार-अभियान के साथ यही हुआ है, और आनन-फानन सरकार को कार्रवाई करनी पड़ी है, दिल्ली के महिला आयोग ने भी एक नोटिस जारी किया है, और सार्वजनिक जीवन के बहुत से प्रमुख लोगों ने खुलकर इसके खिलाफ लिखा है। लेकिन हो सकता है कि इस कंपनी और इसकी विज्ञापन कंपनी को इस अंत का अंदाज रहा होगा, और उन्होंने सोच-समझकर ब्रांड को चर्चा में लाने के लिए यह काम किया होगा।

अब सोशल मीडिया के तमाम चौकन्नेपन के बावजूद इस बात का कोई अंदाज नहीं है कि ऐसे सामान, ऐसी कंपनी, और ऐसी विज्ञापन कंपनी के बहिष्कार के फतवे का कोई असर होगा या नहीं? अगर कोई समाज जागरूक हैै तो वह ऐसे कारोबारी लोगों का जीना हराम कर सकता है, लेकिन हिन्दुस्तानी समाज अगर जागरूक होता, तो आज हिन्दुस्तान ऐसा क्यों होता? इसलिए यह मानने का भी हौसला नहीं होता कि यह समाज जो नफरत के खतरों के प्रति जागरूक नहीं है, वह बलात्कार के लतीफों के खिलाफ जागरूक हो सकेगा। फिर भी सोशल मीडिया की मेहरबानी से आज लोगों के सामने यह एक मौका है कि वे ऐसा अभियान छेड़ सकते हैं, और देख सकते हैं कि इसे कहां तक ले जाया जा सकता है। आखिर दुनिया के इतिहास का हर बड़ा आंदोलन कभी तो किसी एक इंसान से ही शुरू हुआ होगा, और बाद में लोग उससे जुड़ते चले गए होंगे।

बलात्कार का मजा लेने वाले, उसके लतीफों को गढऩे और फैलाने वाले लोगों को अपने परिवार को इन इश्तहारों में रखकर देखना चाहिए कि क्या वे अपनी मां-बहन-बेटी को इस जगह रखकर असल जिंदगी में इतना ही मजा लेंगे जितना कि वे इस इश्तहार को बनाकर या इसे देखकर पा रहे हैं? सरकार को महिला के खिलाफ ऐसा हिंसक नजरिया रखने वाले ऐसे अश्लील विज्ञापनों के खिलाफ जुर्म भी दर्ज करना चाहिए, और सजा दिलवाने की कोशिश करनी चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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