आजकल
जैसा कि किसी भी चौकन्नी सरकार को समझ आना चाहिए था, हिन्दुस्तान में कल शुक्रवार को, जुमे की नमाज के बाद कई शहरों में पथराव हुआ क्योंकि दो भाजपा प्रवक्ताओं ने टीवी की बहसों पर जिस तरह से मोहम्मद पैगंबर के खिलाफ ओछी और गैरजरूरी बातें कहीं, उनका विरोध तो होना ही था। हालांकि इन बातों को कहे हुए काफी दिन हो गए, और उसके बाद एक जुम्मा हो भी चुका था, लेकिन इस बार मुस्लिम देशों के दबाव में भारत सरकार कुछ सुनने के लिए तैयार हुई थी, और उसी दबाव के चलते देश के भीतर के मुस्लिमों को भी ऐसा लगा कि उन्हें भी कुछ कहने का हक है। नतीजा यह हुआ कि पिछले जुम्मे जो नहीं हो पाया था, वह इस जुम्मे हुआ, और लोगों की प्रतिक्रिया पत्थरों की शक्ल में सामने आई। कई प्रदेशों और दर्जन भर शहरों में मस्जिद से निकलते लोगों ने पत्थर चलाए, यह कोई अभूतपूर्व हिंसा तो नहीं थी, लेकिन इसने लोगों से लड़ाई का एक लोकतांत्रिक औजार छीन लिया, और इन्हें भाजपा प्रवक्ताओं के मुकाबले का हिंसक और हमलावर साबित कर दिया।
एक किसी समझदार ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि देश की राजनीतिक ताकतों ने जो पिच तैयार की, जाहिल मुस्लिम उस पिच पर खुशी-खुशी बल्लेबाजी करने लगे। मोहम्मद पैगंबर की इज्जत के नाम पर वे पत्थर चलाकर अपने आपको उन लोगों से भी अलग-थलग कर चुके हैं जो कि अभी कल सुबह तक उनके हिमायती थे, और उनकी तरफदारी कर रहे थे। जो मजहबी जख्मों को लेकर मुस्लिमों का साथ दे रहे थे, उनके हमदर्द थे, वे भी आज अलग-थलग हो चुके हैं कि पत्थरबाजों का किस तरह साथ दें? और जिन लोगों ने मुस्लिमों के इस तबके को पत्थर चलाने के लिए उकसाया है, और एक हिसाब से बेबस किया है, वे बहुत खुश हैं कि अब भाजपा प्रवक्ताओं के खिलाफ कोई तर्क बाकी नहीं रह गया। पत्थरों के बाद जो रही-सही कसर थी, वह उन फतवों ने दूर कर दी जिन्होंने भाजपा प्रवक्ता को चौराहे पर फांसी देने को कहा, उसका सिर काटने को कहा, उसकी जीभ काटने पर एक करोड़ रूपये का ईनाम रखा। इन सारी बातों के बाद अब मुस्लिम भावनाओं की हिफाजत में, तरफदारी में कुछ कहने की जुबान नहीं रह गई, और आम लोगों की जुबान में हिसाब चुकता हो गया।
जिस तरह भारत सरकार ने इस्लामिक दुनिया के सामने यह साबित करने की कोशिश की है कि मोहम्मद पैगंबर पर ओछी बात कहने वाले भाजपा प्रवक्ता हिन्दुस्तान में फ्रिंज इलेमेंट है, उसी तरह मुस्लिम समाज के एक तबके ने, या उसके फ्रिंज इलेमेंट ने बाजी उनके हाथ से छीन ली है जो कि अमन के लिए खेली जा रही थी। अब फ्रिंज इलेमेंट शब्द को लेकर सोशल मीडिया पर जितने तरह की व्याख्या चल रही है वह अपने आपमें अद्भुत है। कोई इसका मतलब तुच्छ लोग बता रहे हैं, तो कुछ दूसरे लोग इसे शरारती या छिछोरा बता रहे हैं। इसका शाब्दिक अर्थ बहुत आसान शायद नहीं है, लेकिन सरकार इसे मूलधारा से अलग के महत्वहीन लोग साबित करते दिख रही थी, और सरकार क्या सोचती है, और क्या साबित करते दिखती है, इसका विरोधाभास इस एक मामले से बढक़र और भला किस मामले में दिख सकता था?
खैर, आज यह वक्त हिन्दुस्तान के मुस्लिमों को यह याद दिलाने का है कि जब हिन्दू समाज के भी बहुत से लोग मुस्लिमों से इस देश में चल रही ज्यादती के खिलाफ लगातार बोल और लिख रहे हैं, तो फिर ऐसे हिमायती लोगों की कोशिशों पर पत्थर चलाना ठीक नहीं है। पत्थर चलाने से सरकार का मकसद ही पूरा होता है, और उसके बाद उसके किए हुए जुल्म भी जायज साबित करना मुश्किल नहीं रह जाता। जुम्मे की नमाज से निकलने के तुरंत बाद जगह-जगह चलाए गए पत्थरों से न इस्लाम की इज्जत बढ़ी है, न मुस्लिमों की। इनसे बिल्कुल अलग उन तमाम लोगों की इज्जत मटियामेट हुई है जो कि मुस्लिमों पर ढहाए जा रहे जुल्म के खिलाफ खड़े हुए हैं, खुद मुस्लिम न होते हुए भी। आज हिन्दुस्तान के मुस्लिमों को यह बात समझने की जरूरत है कि उनकी खुद की आवाज तो इस हद तक बेमायना हो चुकी है कि टीवी के पर्दों पर मोहम्मद पैगंबर के खिलाफ कही गई बातों को भी सरकार ने बुरा नहीं माना था। यह तो बुरा हो तेल के कुओं के मालिक उन देशों का जिन्होंने भारत सरकार से जमकर विरोध किया, अभूतपूर्व विरोध किया, और तब अचानक सरकार को यह पता लगा कि सत्तारूढ़ पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता तुच्छ और शरारती लोग हैं, फ्रिंज इलेमेंट हैं। इसलिए इस देश के मुस्लिमों को पत्थरों का सहारा लेने के पहले यह याद रखना चाहिए कि दुनिया के मुस्लिम देश उनके पत्थरों का बचाव करने के लिए नहीं आएंगे, वे मोहम्मद पैगंबर के सम्मान के लिए तो सामने आए थे, हिन्दुस्तानी मुस्लिम लोगों को भी बचाने के लिए आगे आना उनकी कोई प्राथमिकता नहीं रहेगी। हिन्दुस्तानी मुस्लिमों को यह भी समझ लेना चाहिए कि दुनिया के मुस्लिम और इस्लामिक देश चीन के भीतर मुस्लिमों के मानवाधिकार हनन और उनके साथ हो रहे जुल्म के खिलाफ मुंह भी नहीं खोलते हैं। इसलिए मोहम्मद पैगंबर के सम्मान से परे किसी और मुद्दे पर मुस्लिम देश हिन्दुस्तानी मुस्लिमों के साथ नहीं रहेंगे। ऐसे में आज भारत सरकार शतरंज की बिसात पर घोड़े की तरह ढाई घर पीछे आई हुई तो दिख रही है, लेकिन देश में चलने वाले हर पत्थर पर यहां के मुस्लिमों को कितने मामले-मुकदमे झेलने पड़ेंगे, इसे भी याद रखने की जरूरत है।
आज हिन्दुस्तानी मुस्लिम पत्थर उठाकर उन्हीं साजिशों के बनाए गए किरदार निभा रहे हैं, जो कि मुस्लिमों को खलनायक दिखाना चाहते हैं। हम इस देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता और सद्भावना के हिमायती हैं, इसलिए इस नाजुक मौके पर भी मुसलमानों के लिए सलाह की एक बात कह रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से भारत में आज सरकार ने अपनी पार्टी के जिन गलत कामों को चूक भी मंजूर कर लिया है, उस नौबत को जारी रहने देना चाहिए, पत्थर उठाकर उस जुर्म का हिसाब चुकता नहीं करना चाहिए।