आजकल
जिस अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद अमरीकी और पश्चिमी मदद बंद हो जाने से लोग भुखमरी के करीब पहुंच रहे हैं, वहीं पर बड़ा बुरा भूकंप आया, और हजार के करीब लोग अपने कच्चे मकानों के मलबे में ही दबकर मर गए। तालिबान-सरकार के पास न अस्पताल हैं, न इलाज है, और न ही मकानों का मलबा उठाने के लिए मशीनें हैं कि लोगों को बचाया जा सके। दूसरी तरफ रूस और यूक्रेन के बीच जो जंग चल रही है, उसके चलते यूक्रेन के अनाज भंडार वहां से निकाले नहीं जा रहे हैं, और नतीजा यह है कि दुनिया के कई देशों तक पहुंचने वाला यह अनाज बर्बाद होने जा रहा है, और खाने के बिना दसियों लाख लोग भुखमरी की कगार पर हैं। ये तमाम गरीब अफ्रीकी देश हैं, जहां की आबादी मुस्लिम और ईसाई है, धर्मालु है, ठीक उसी तरह की है जिस तरह की अफगानिस्तान में गरीब मुस्लिम हैं।
अब दुनिया की आज की इस पूरी तस्वीर को देखें तो लगता है कि जहां अधिक गरीबी और अधिक भुखमरी है, वहीं पर और अधिक मुसीबतें भी आ रही हैं। इस हाल को देखकर उन नास्तिकों के सोचने का तो कुछ नहीं है जो कि ईश्वर को नहीं मानते। लेकिन जो लोग ईश्वर को मानते हैं उनको यह सोचना चाहिए कि सबसे बदहाल लोगों पर मुसीबतों के और पहाड़ गिराना ईश्वर का कौन सा तरीका है? जिस ईश्वर को सर्वत्र, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान कहा जाता है, उसकी शक्ति तब कहां चली जाती है जब जम्मू के एक मंदिर में पुलिस से लेकर पुजारी तक, आधा दर्जन लोग एक गरीब खानाबदोश बच्ची से मंदिर में सामूहिक बलात्कार करते हैं, और उसे मार डालते हैं। उस वक्त कण-कण में मौजूद ईश्वर कहां रहता है? उस बच्ची से जिस जगह बारी-बारी से बलात्कार हो रहा था, उस जगह पर भी तो हर कण में ईश्वर के रहने की गारंटी धर्मालु लोग मानते हैं। वे यह भी मानते हैं कि उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। तो फिर उस बच्ची की देह बलात्कार के दौरान कैसे हिली होगी? कैसे बलात्कारियों के शरीर के कुछ हिस्से उस ईश्वर की मर्जी के बिना बलात्कार के लायक तैयार हो जाते हैं? नास्तिक को तो इनमें से किसी सवाल का जवाब ढूंढने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उसे धर्म और ईश्वर के पूरे पाखंड की अच्छी तरह खबर है, लेकिन आस्थावानों को अपने ईश्वर से अगली प्रार्थना के दौरान ये सवाल जरूर पूछने चाहिए।
दरअसल धर्म ने आस्थावानों को सभी तरह की पाप की धारणा से मुक्त हो लेने की पूरी सहूलियत जुटाकर दी है। तथाकथित ईश्वर के एजेंट और दलाल तरह-तरह की तरकीबें निकालकर रखते हैं कि किस तरह के जुर्म और उससे लगने वाले पाप से मुक्ति पाई जा सकती है। कुछ धर्मों में थोड़ा-बहुत जुर्माना रखा गया है कि किसी पंडित-पुरोहित को कुछ खिलाकर, कुछ दान देकर, कुछ और भूखों को अन्न देकर किस तरह पापमुक्ति हो सकती है। ऐसे मुक्त लोग एक नए उत्साह के साथ, एक नई ताकत के साथ फिर बलात्कार करने के लिए धरती में घूमना शुरू कर देते हैं, और धर्म उनके लिए वियाग्रा सरीखा रहता है जो कि उनकी उत्तेजना बढ़ाते रहता है। जुर्म और पाप से असली सजा मिलने का डर अगर किसी को रहता, तो उनका बदन उत्तेजित ही नहीं हो पाता। लेकिन धर्म से सहूलियतें बहुत रहती हैं, और ऐसी एक सहूलियत लोगों को बलात्कार के लिए तैयार होने में मदद करती है। एक बूढ़ा पुजारी भी अपने ही मंदिर में दूसरे धर्म की गरीब बच्ची से सामूहिक बलात्कार को न सिर्फ तैयार हो जाता है, बल्कि अपने बाद और लोगों को भी न्यौता दे-देकर बुलाता है, इसका मतलब है कि उसे ईश्वर की ताकत के बारे में सही-सही अंदाज है, क्योंकि मंदिर में मौजूद प्रतिमाओं के इतने करीब ऐसा काम भी ईश्वर को दिखेगा नहीं, वह कुछ करेगा नहीं, और वह दरअसल है ही नहीं, इसका पूरा भरोसा बलात्कारी पुजारी को रहा होगा, तभी एक गरीब बच्ची को देखकर भी उसका बूढ़ा बदन उत्तेजना से तैयार हो गया होगा।
सोशल मीडिया पर कल से कुछ वीडियो तैर रहे हैं जिनमें तीन-चार बरस की एक मुस्लिम बच्ची और उसी उम्र के एक बच्चे को गंदी गालियां देते हुए कोई जाहिर तौर पर हिन्दू लगने वाला नौजवान उनके मुंह से अल्लाह के नाम गंदी गालियां निकलवाना चाह रहा है, और इस पूरे सिलसिले का वीडियो भी बनाया गया है, जो कि फैलाया गया होगा। और ये वीडियो इंस्टाग्राम पर एक अकाऊंट में पोस्ट भी किए गए हैं जो कि पोस्ट करने वाले की शिनाख्त भी बताते हैं, और उनका यह हौसला भी कि वे तीन-चार बरस के बच्चों को किस किस्म की गंदी गालियां देकर उनसे अल्लाह को गंदी गालियां दिलवाना चाह रहे हैं। अब धर्म ऐसा ही होता है। अपने धर्म और अपने ईश्वर का नाम दूसरे धर्म के लोगों से लिवाने के लिए लोग बुरी तरह हिंसा करते भी आए दिन किसी न किसी वीडियो में दिखते हैं। इसी तरह वे दूसरे धर्म के ईश्वर के नाम गालियां देते हुए, और गालियां दिलवाने के लिए हिंसा करते हुए भी दिखते हैं। अब ऐसे धर्मों के ईश्वर अगर कहीं पर हैं, तो वे धार्मिक फिल्मों या धार्मिक सीरियल की तरह अपने ऐसे हिंसक भक्तों के हाथ-पैर क्यों नहीं तोड़ते? जब कभी आस्थावान लोग अपने ईश्वर से अगली बार मोबाइल फोन पर, या किसी प्रार्थना के दौरान बात करें, तो उन्हें इस बारे में भी पूछना चाहिए।
जिन लोगों को भी धर्म को लेकर कोई गलतफहमी है, वे जान लें कि दुनिया के सबसे बड़े हिंसक जुर्मों के दौरान ईश्वर तो अपनी हकीकत के मुताबिक बेअसर रहा, लेकिन उनके एजेंट और दलाल धर्मगुरुओं ने भी न हिटलर के सामने मुंह खोला, और न यहूदियों के सामने। कोई धर्म अपने लोगों को बमबारी से नहीं रोक पाया, जंग से नहीं रोक पाया, सामूहिक जनसंहार से नहीं रोक पाया। धर्म और ईश्वर की यही हकीकत है। कैमरा थामे हुए नौजवान तीन-चार बरस के बच्चों से उनके ईश्वर को गंदी गालियां दिलवाने का वीडियो बनाकर पोस्ट कर रहे हैं। इनको अपने ईश्वर की हकीकत भी मालूम है, और अपने देश की आस्थावान और धर्मालु सरकार की हकीकत भी। उन्हें मालूम है कि तीन-चार बरस के किस धर्म के बच्चों से उनके ईश्वर के लिए गंदी गालियां दिलवाना महफूज काम है, जिससे न ईश्वर खफा होगा, न सरकार खफा होगी।
आज का यह लिखना उन लोगों पर असर डालने के लिए नहीं है जो कि अपने ईश्वर के नाम पर सबसे भयानक किस्म के जुर्म कर रहे हैं, उन्हें तो अच्छी तरह मालूम है कि ऐसा कोई ईश्वर है नहीं, और ऐसे जुर्म की कोई सजा भी नहीं मिलेगी। यह लिखना उन लोगों से सवाल है जो कि ईश्वर को सचमुच मानते हैं, उसे सच का जानते हैं, और फिर भी जो ऐसे हिंसक जुर्म को भी अटपटा नहीं पाते।