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समाज की भी जिम्मेदारी है कि अपनी मिसालें संभालकर रखे..
11-Sep-2022 4:52 PM
समाज की भी जिम्मेदारी है कि अपनी मिसालें संभालकर रखे..

अभी कुछ दिन पहले दुनिया की सबसे महान टेनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम्स ने जब सन्यास लेने की घोषणा की तो वह एक ऐसा इतिहास रच चुकी थी जिसे पार पाना अगर नामुमकिन नहीं होगा, तो बहुत ही मुश्किल जरूर होगा। करीब तीन दशक लंबे टेनिस कॅरियर में सेरेना ने करीब दो दर्जन विश्व टाइटिल जीते, और ओलंपिक में भी कई मैडल जीते। एक वक्त था जब उसने दुनिया के एक सबसे बड़े मुकाबले में जीत हासिल की, लेकिन बैठे हुए दर्शक न सिर्फ उसकी खिल्ली उड़ाते हुए आवाजें कस रहे थे, बल्कि उसकी जीत पर भी किसी ने खुशी जाहिर नहीं की क्योंकि अमरीका के काले अफ्रीकी समुदाय की थी। टेनिस का इतिहास जानने वाले लोग अमरीका के काले समुदाय के वंचित अधिकारों वाले बच्चों की सीमाएं जानते हैं, और उस समुदाय से निकलकर जब सेरेना विलियम्स आसमान तक पहुंचीं, तो लोग देखते ही रह गए।

सेरेना विलियम्स ने टेनिस कोर्ट पर जीत की आतिशबाजी तो दिखाई ही, उसके अलावा वह अमरीका में अधिकारों से वंचित तबकों के हक के लिए लगातार लडऩे वाली रही। नतीजा यह हुआ कि खेल की उसकी शोहरत का फायदा उन तमाम सामाजिक मुद्दों को भी मिला जिन मुद्दों से वे जुड़ी रहीं। इनमें रंगभेद के खिलाफ लड़ाई, काले समुदाय के हक की लड़ाई, एलजीबीटी समुदाय के बराबरी के हक के लिए लड़ाई जैसा लंबा इतिहास सेरेना विलियम्स का रहा। वह न सिर्फ टेनिस के इतिहास की सबसे कामयाब और सबसे बड़ी खिलाड़ी रही, बल्कि वह दुनिया के महान एथलीट में से भी एक दर्ज हुई है। खेल से परे की अपनी सामाजिक जागरूकता की वजह से वह और महान हुई। आज दुनिया भर में यह माना जाता है कि सेरेना विलियम्स और उनकी बड़ी बहन वीनस विलियम्स ने जितने खिताब जीते हैं, खेल से परे जितनी कामयाबी पाई है, उससे अमरीका के अश्वेत और अफ्रीकी समाज की पूरी पीढ़ी को ही आगे बढऩे का एक अभूतपूर्व और बेमिसाल हौसला मिला। ये दोनों बहनें जिस किस्म की मिसाल बनकर अमरीका के वंचितों के लिए खड़ी रहीं, उसकी वजह से जिंदगी के अलग-अलग बहुत से दायरों में लोगों को आगे बढऩे का रास्ता सूझा, सामाजिक शोषण और गैरबराबरी से लडऩे की हिम्मत मिली।

अब सेरेना विलियम्स के बारे में आज के इस पूरे कॉलम को खत्म करने का कोई इरादा नहीं है। यह सिर्फ चर्चा शुरू करने के लिए है कि किस तरह किसी एक समुदाय के किसी महान व्यक्ति से उस समुदाय के और अनगिनत लोगों को आगे बढऩे का रास्ता मिलता है। अब इसके साथ जब हम हिन्दुस्तान को जोडक़र देखते हैं, तो अनगिनत प्रदेशों और अनगिनत पार्टियों के बड़े-बड़े नेता जो कि अपने धर्म या समुदाय के लोगों के नेता होने का दंभ पालते हैं, वे अपने लोगों और अपनी बिरादरी के सामने किस तरह की मिसाल हैं? आज बड़ी-बड़ी पार्टियों के लोग धर्म और जाति की राजनीति करते हुए नफरत और हिंसा की मिसाल पेश करते हैं, उन्हीं को बढ़ाते हैं। अगर इन नेताओं को कोई अपनी प्रेरणा माने, तो वे लोग इसी नफरती-हिंसा को बढ़ाते चलेंगे। जिस ओबीसी समाज के एक सबसे बड़े नेता लालू यादव साम्प्रदायिकता के खिलाफ अपनी पहल की वजह से वामपंथियों तक को मंजूर रहते आए हैं, उनकी अपनी मिसाल एक परले दर्जे के भ्रष्ट, अराजक, और घोर कुनबापरस्त की है। देश के इतने बड़े प्रदेश बिहार की इतनी बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी के लालू यादव को अपने कुनबे से परे कोई नहीं सूझा, भ्रष्टाचार तो वे अगली पीढ़ी को भी दे गए, तो उनकी मिसाल से बिहारी लोगों या ओबीसी के लोगों को क्या मिलेगा? कमोबेश ऐसा ही हाल पड़ोस के उत्तरप्रदेश के मुलायम सिंह यादव के कुनबे का है, इनकी राजनीति कुनबे तक सीमित है, और समाजवाद इनके लिए एक नारा है। सारा चाल-चलन समाजवाद के खिलाफ है। अब ओबीसी का यह दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार अपने समुदाय के लिए कोई भी सकारात्मक प्रेरणा नहीं है। इसी उत्तरप्रदेश की मायावती को देखें, तो बहुजन समाज पार्टी के बैनरतले वे देश की सबसे बड़ी दलित महिला नेता बनीं, और बिना किसी राजनीतिक विरासत के, वे अपने दम पर उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनीं। लेकिन खुद के महिमामंडन में वे दैत्याकार प्रतिमाएं बनवाकर, हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार में फंसकर राजनीति से बाहर सरीखी हो गई हैं, और उनकी अगर कोई मिसाल दलित तबके के सामने है, तो वह यही है कि किसी को इतना आत्ममुग्ध, और इतना भ्रष्ट नहीं होना चाहिए कि वे अपने से परे कोई पार्टी ही न बना सकें, और केन्द्रीय जांच एजेंसियों की वजह से मुंह सिलकर, घर बैठकर, सोच-समझकर चुनाव हारने को मजबूर हों। मायावती के भ्रष्टाचार और उनकी आत्ममुग्धता ने इस देश से दलित राजनीति की संभावनाओं को खत्म कर दिया, और उनकी वजह से सबसे बड़ा नुकसान अगर किसी का हुआ है तो वह दलित समुदाय का हुआ है।

एक तरफ सेरेना विलियम्स और उनकी बहन वीनस विलियम्स अमरीका में रंगभेद के शिकार अफ्रीकी-अमरीकी समुदाय के लोगों के लिए इतिहास की एक सबसे बड़ी प्रेरणा बनकर सामने आई हैं, खुद का तो जो भला उन्होंने किया, वह तो किया ही, लेकिन उन्होंने तमाम अश्वेत बच्चों, किशोरों, और नौजवानों में हौसला भर दिया। दुनिया में कहीं भी किसी बिरादरी के लोग जब भला काम करते हैं, तो वे अपने बाकी लोगों को भी भले काम की तरफ मोड़ते हैं, और देश-दुनिया के दूसरे लोगों को भी। गांधी ने दुनिया के सामने जो सकारात्मक और क्रांतिकारी अहिंसक सोच रखी, जिस नैतिक ताकत से वे दुनिया की सबसे बड़ी सरकार के मुकाबले खड़े रहे, उसने पूरी दुनिया में गांधी को एक ऐसी जगह दिलाई कि हिन्दुस्तान के बाकी लोगों को भी उस नाम से हौसला मिलता है। हिन्दुस्तान के भीतर जो लोग गांधी के हत्यारे गोडसे की पूजा करते हैं, उन्हें भी हिन्दुस्तान के बाहर जाने पर पूजा करने के लिए सिर्फ गांधी की ही प्रतिमा मिलती है, गोडसे की एक तस्वीर भी नहीं मिलती। हिन्दुस्तान में गांधी को गोली मारने वाली सोच के वारिस भी जब दुनिया में कहीं जाते हैं, तो उन्हें गांधी के देश का होने की वजह से ही इज्जत मिलती है।
आज हर धर्म, जाति, प्रांतीयता के लोगों को यह सोचना चाहिए कि उनके बीच के आदर्श कैसे हैं? आम लोगों को अपने वर्ग के खास लोगों के बारे में यह इसलिए सोचना चाहिए कि उन्हीं खास लोगों से बाकी तमाम आम लोगों की पहचान बनती है। लालू पर राजनीति से परे के भी ओबीसी लोगों को पहले सवाल उठाने थे, और इसी तरह मुलायम कुनबे से भी यादवों को पहले सवाल करने थे, मायावती से अगर दलित खुले सवाल करते, तो वे अपने आपको इस हद तक बर्बाद नहीं कर पातीं, और आज हमलावर-हिन्दुत्व के नाम पर जो हिन्दू नेता नफरत और हिंसा फैला रहे हैं, उनसे पहले सवाल हिन्दू समाज के लोगों को ही करने चाहिए, दाऊद इब्राहिम सरीखों से मुम्बई और महाराष्ट्र की मस्जिदों में हर शुक्रवार जुटने वाले मुस्लिमों को ही सवाल करने थे। अगर अपने बीच के चर्चित लोगों को कोई समाज पटरी पर रख सकता है, तो ही उस समाज को इन चर्चित लोगों से कोई इज्जत हासिल होती है, वरना ये कलंक बने रहते हैं, ठीक उस तरह जिस तरह तकरीबन तमाम जर्मन लोग आज हिटलर के नाम से शर्मिंदा हैं, और कोई हिटलर के इतिहास पर चर्चा भी करना नहीं चाहते।
रंगभेद के शिकार अफ्रीकी-अमरीकी समुदाय से निकलकर आसमान के सबसे रौशन सितारे बनने वाली विलियम्स-बहनों की मिसाल ही वर्गहित की सबसे बड़ी मिसालों में से एक है। हिन्दुस्तान में सबसे ताकतवर अफसरों के दो संगठन, आईएएस एसोसिएशन, और आईपीएस एसोसिएशन अपने बीच के सबसे परले दर्जे के भ्रष्ट अफसरों के मामले उजागर हो जाने पर भी उनके खिलाफ मुंह खोलते भी नहीं दिखते हैं, और इससे इन तबकों का भविष्य भी तय होता है कि उनके सदस्य कैसे रहेंगे।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

 

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