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आने वाले बरसों में मंदी का खतरा, देशों के साथ-साथ लोग भी संभलें
09-Oct-2022 4:45 PM
आने वाले बरसों में मंदी का खतरा,  देशों के साथ-साथ लोग भी संभलें

इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (आईएमएफ) ने अगले बरस दुनिया में मंदी के खतरे की आशंका गिनाई है। इसकी मुखिया क्रिस्टालिना जॉर्जिवा ने कहा है कि 2026 तक दुनिया की अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड गिरावट आ सकती है। उन्होंने अभी एक विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में कहा कि दुनिया की अर्थव्यवस्था सुधरने के बजाय बुरी तरह से बिगड़ती नजर आ रही है, और यह व्यापक अनिश्चितता की ओर बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि आईएमएफ के अनुमान लगातार नीचे जा रहे हैं, और आने वाले हालात इससे बहुत अधिक बुरे हो सकते हैं। आईएमएफ ने कोरोना महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध, और मौसम के प्रलयकारी बदलाव जैसी बातों को इस नौबत के लिए जिम्मेदार ठहराया है। और यह भी कहा है कि बहुत बढ़ी हुई महंगाई के मुकाबले मजदूरी और तनख्वाह में बहुत मामूली बढ़ोत्तरी हुई है जिससे लोगों का जीना मुश्किल हुआ है। अगले हफ्ते आईएमएफ और वल्र्ड बैंक की सालाना बैठक होगी जिसमें दुनिया भर के देशों के वित्तमंत्री पहुंचेंगे, और ताजा हालात पर चर्चा करेंगे। 

हिन्दुस्तान में अभी लगातार कई बातें देखी जा रही हैं, जिनमें से कुछ बातें तो विदेशी हालात से जुड़ी हुई हैं जिन पर हिन्दुस्तान का काबू बहुत कम है। इनसे हिन्दुस्तान का कहीं पर नुकसान हुआ है, तो कहीं पर फायदा भी हुआ है। पेट्रोलियम और दूसरी कुछ चीजों के दाम बढ़े हैं, लेकिन चीन जैसे दुनिया के मेन्युफेक्चरिंग केन्द्र ने कोरोना लॉकडाउन की वजह से जो नुकसान झेला है, उसका एक फायदा भी हिन्दुस्तान में हो रहा है। दुनिया के बहुत से देश जो चीन में सामान बनवाते हैं, उन्होंने पिछले दो बरसों में चीन का लॉकडाउन देखते हुए अब चाइना प्लस वन की एक नई नीति अपनाई है जिसमें चीन के अलावा किसी और एक देश में भी वे अपनी उत्पादन ईकाई बना रहे हैं। इसका एक फायदा अभी-अभी एप्पल कंपनी के फोन के हिन्दुस्तान में उत्पादन की घोषणा की शक्ल में देखने मिला है। और भी कई कंपनियों की भारत आने की तैयारी चल रही है। ऐसी कुछ बातों से भारत की अर्थव्यवस्था का फायदा भी हो सकता है, लेकिन आईएमएफ सतह के नीचे की इस हकीकत पर कुछ नहीं बोल रहा है कि अलग-अलग आय वर्ग के लोगों पर इस मंदी का कैसा असर पड़ रहा है। हिन्दुस्तान के एक सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी दुनिया के तीसरे-चौथे नंबर के रईस बन गए हैं, लेकिन देश की गरीब आबादी की बदहाली बढ़ गई है। एक वामपंथी लेखक ने अभी दो दिन पहले ही लिखा है कि देश में गरीबी और असमानता बहुत बुरी तरह बढ़ रहे हैं। 2014 में भारत में डॉलर-अरबपति 109 थे, जो कि 2022 में अब तक 221 हो गए हैं। 30 अगस्त के एक दिन में गौतम अडानी ने 42 हजार करोड़ रूपया कमाया, और दुनिया में एक अविश्वसनीय सा रिकॉर्ड बनाया है। उन्होंने आगे लिखा है कि जब सारे बाजार, कारखाने, काम-धंधे बंद थे, करोड़ों भारतीय कामगार हजारों किलोमीटर पदयात्रा करके गांव लौट रहे थे, तब मुकेश अंबानी हर घंटे 90 करोड़ और गौतम अडानी हर घंटे 120 करोड़ रूपये कमा रहे थे। 

दरअसल आईएमएफ या विश्व बैंक के आंकड़े किसी देश को एक ईकाई मानकर निकाले जाते हैं, और सकल राष्ट्रीय उत्पादन जैसी परिभाषाओं में गरीब की अलग से जगह नहीं रहती है। ऐसे में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को देश की आर्थिक स्थिति मजबूत साबित करना आसान हो जाता है क्योंकि अडानी-अंबानी, और आम जनता को मिलाकर जो औसत निकलता है, वह गरीब की बदहाली को कुछ कम करके दिखाता है। लेकिन सवाल यह है कि ऐसी अर्थव्यवस्था के आंकड़े भी आज आईएमएफ को सहमा रहे हैं कि एक मंदी आने वाली है, जो बहुत भयानक हो सकती है। अब यह मंदी जाहिर है कि गरीब लोगों पर अधिक बुरा वार करेगी। रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग के धीमे पडऩे का कोई आसार नहीं दिख रहा है, अमरीका और योरप के देश नाटो गठबंधन के तहत इस जंग को जारी रखने, और इसके चलते हुए रूस को कमजोर करने की अपनी व्यापक रणनीति पर काम कर रहे हैं जहां नाटो देशों का महज खर्च हो रहा है, और यूक्रेन के लोगों की शहादत। हम अभी इस युद्ध की बारीकियों में जाना नहीं चाहते, लेकिन एक बात तय है कि इस युद्ध के परमाणु युद्ध की तरफ बढऩे के खतरे दिख रहे हैं, युद्ध में मंदी के आसार नहीं दिख रहे। 

लेकिन इससे परे दुनिया पर मंडराते हुए एक दूसरे खतरे को देखने की जरूरत है। पाकिस्तान का एक बड़ा हिस्सा इन दिनों एक अनहोनी किस्म की बाढ़ में डूबा हुआ है। वहां इतनी बड़ी बर्बादी हो गई है, और करोड़ों की आबादी खुले आसमानतले बच गई है। ऐसी बाढ़ वहां किसी ने कभी देखी-सुनी नहीं थी जिसके पानी को अभी उतरने में महीनों लग सकते हैं। और दुनिया के विकसित और संपन्न देशों की दिलचस्पी पाकिस्तान की मदद में नहीं है क्योंकि मदद की उनकी क्षमता यूक्रेन जा रही है। दुनिया के सामने यह एक खुला रहस्य है कि पाकिस्तान की यह बाढ़ मौसम में आए उस भयानक बदलाव की वजह से है जिसके सबसे बड़े जिम्मेदार सबसे विकसित देश हैं। पाकिस्तान खुद अपनी गरीबी की वजह से दुनिया में सबसे कम प्रदूषण करने वाले देशों में से है, और विकसित देशों के प्रदूषण की वजह से मौसम में बदलाव की मार पाकिस्तान पर पड़ी है। दुनिया में ऐसा जगह-जगह हो रहा है, और होते चलेगा। योरप के कुछ संपन्न और विकसित देशों में इस बरस जैसी बाढ़ आई है वैसी बाढ़ लोगों ने कभी देखी-सुनी नहीं थी। लेकिन दुनिया के गरीब देश सूखा, बाढ़, टिड्डियों के हमले जैसी प्राकृतिक विपदाएं झेल रहे हैं, और इनसे उबरने की हालत में नहीं हैं। दुनिया में मौसम में बदलाव के जिम्मेदार देश किस तरह इस बदलाव के शिकार देशों की मदद करें, इसका कोई तरीका दुनिया ने अभी तक सोचा भी नहीं है। इसलिए दुनिया की अर्थव्यवस्था को लेकर जो भी हिसाब लगाया जाए, उसमें सबसे गरीब देशों या अलग-अलग देशों के सबसे गरीब लोगों को लेकर लगाए गए अनुमान अलग से समझने की जरूरत है। 

हिन्दुस्तान में अभी-अभी ऑनलाईन बिक्री करने वाली कंपनियों ने सस्ते में सामान बेचने का मुकाबला किया था। किसी एक कंपनी ने एक दिन में, एक बड़ी मोबाइल कंपनी के एक हजार करोड़ रूपये के मोबाइल फोन बेचे थे। इन आंकड़ों से यह नहीं लग सकता कि हिन्दुस्तान में कोई गरीबी चल रही है। लेकिन हिन्दुस्तान के जो लोग इस तरह की खरीदी कर रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि आने वाले बरस, और एक से अधिक बरस, आज के हालात से बहुत अधिक खराब हो सकते हैं, और उस वक्त आज की खर्चीली आदतें अफसोस और मलाल बनकर रह जाएंगी। अधिकतर लोगों को अपने खर्च में बड़ी कटौती करनी चाहिए, किफायत बरतनी चाहिए, और आने वाली अधिक बुरे वक्त की आशंका ध्यान में रखते हुए बचत करनी चाहिए। बहुत से लोगों ने हिन्दुस्तान में भी कोरोना-लॉकडाउन के दो बरसों का नुकसान झेला है, और उससे अब तक उबर नहीं पाए हैं। आने वाला वक्त कई किस्म की प्राकृतिक, या मानवनिर्मित मुसीबतें लेकर आ सकता है, या दुनिया की गिरती हुई अर्थव्यवस्था ही एक बड़ी मुसीबत साबित हो सकती है। इसलिए लोगों को कम खर्च में जीने की आदत डालनी चाहिए, कमाई बढ़ाने की आदत डालनी चाहिए, नए हुनर सीखने चाहिए, और नए-नए काम भी ढूंढने चाहिए क्योंकि एक नौकरी गई तो दूसरा कोई रोजगार हाथ में रहना चाहिए। आज हिन्दुस्तान की आबादी का एक बड़ा हिस्सा धर्म और धर्म की राजनीति में डूबे हुए दिख रहा है। लोग सडक़ों पर धर्मोन्माद को ही जिंदगी का खास मकसद मानकर हंगामा करते दिख रहे हैं। जब देश धार्मिक भक्तिभाव में इस तरह डूब गया है, तब आम जनता की अर्थव्यवस्था सुधारना आसान नहीं है। अर्थव्यवस्था से जुड़े हुए ऐसे बहुत से पहलुओं को एक साथ देखने की जरूरत है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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