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एक-एक शब्द का इतना विश्लेषण सोचने-लिखने को कहां पहुंचाएगा?
19-Mar-2023 4:01 PM
एक-एक शब्द का इतना विश्लेषण सोचने-लिखने को कहां पहुंचाएगा?

फोटो : सोशल मीडिया

जिन लोगों ने ब्लैक एंड व्हाईट टीवी के जमाने से क्रिकेट देखा है, उनके लिए अब 21वीं सदी का क्रिकेट टेलीकास्ट एक अलग ही दुनिया है। दर्जनों या सैकड़ों कैमरे बड़े असंभव किस्म के एंगल से मैच की वीडियो रिकॉर्डिंग करते हैं, विकेट से लेकर मैदान में जगह-जगह लगे हुए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से न सिर्फ वीडियो रिकॉर्डिंग होती है, बल्कि तरह-तरह का नाप लेकर एक-एक गेंद की लंबाई, रफ्तार, टप्पे की जगह, और विकेट तक उसके पहुंचने की संभावना पल भर में कम्प्यूटर बता देते हैं। किसने सोचा था कि एम्पायर के मानवीय फैसले से परे इतना कुछ हो सकता है जिसकी मदद दुविधा होने पर खुद एम्पायर ले सकते हैं। अब किसी एक गेंदबाज या बल्लेबाज के खेल का विश्लेषण भी पल भर में कम्प्यूटर की मेहरबानी से स्क्रीन पर देखने मिल जाता है, और एक-एक गेंद, एक-एक शॉर्ट का विश्लेषण हो जाता है, जो कि इंसानी आंखों से मुमकिन नहीं था। 

लेकिन बात सिर्फ क्रिकेट की नहीं है, जिंदगी के और भी तमाम दायरों में टेक्नालॉजी ने कुछ ऐसा ही करिश्मा कर दिखाया है। अब पिछले हफ्ते-दस दिन से मैं अपने यूट्यूब चैनल के लिए कुछ वीडियो तैयार करके पोस्ट कर रहा हूं। यह एकदम शुरुआत है, लेकिन उत्कृष्टता की तैयारी में बहुत से काम कभी हो ही नहीं पाते हैं, इसलिए मैंने बिना किसी तैयारी के यह काम शुरू कर दिया, और अगर उसमें सुधार और मरम्मत की ताकत होगी, तो धीरे-धीरे वह सुधर जाएगा। इसे शुरू करने के बाद यूट्यूब और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की आंतरिक तकनीक का वह हिस्सा जो कि लोग कम्प्यूटर पर देख सकते हैं, वह मेरे लिए किसी ब्रम्हांड की सैर करने की तरह का था। और टेक्नालॉजी का इंसान के काम में इतना बारीक दखल कुछ दहशत पैदा करने वाला भी था। 

मेरे कुछ पुराने साथी मेरे इस नए शौक में मदद करने के लिए अनायास ही जुट गए। कुछ मौजूदा सहकर्मी, और कई पुराने साथी, अखबार के दफ्तर के मेरे छोटे से कमरे में इतने लोग एक साथ कैमरा, लाईट, माइक्रोफोन, कुर्सी-टेबिल की जगह तय करते काम कर रहे थे कि मैं एक कोने में बैठकर सब देखते रह गया। फिर धीरे से सबके बीच कहा कि ऐसा लग रहा है कि परिवार के किसी कुंवारे बुढ़ऊ ने शादी के लिए हां कह दी है, तो हर कोई उसे दूल्हा बनाने और घोड़ी चढ़ाने की तैयारी में जुट गया है। बिना किसी मतलबपरस्ती आधा दर्जन चाहने वाले अपने घंटों लगाकर अगर मेरे इस नए शगल को कामयाब बनाने में लगे हुए हैं, तो कामयाबी को और लगता क्या है? 

इसी चक्कर में मेरे एक करीबी ने जब यूट्यूब पर डाले गए करीब दर्जन भर नए वीडियो का विश्लेषण करना शुरू किया, तो मुझे ही समझ ही नहीं पड़ा कि क्या सहज और सुलभ टेक्नालॉजी लोगों को अपने काम में इस गहराई तक झांकने का मौका देने लगी है! और यह भी बिना एक धेला खर्च किए। एक-एक वीडियो को कितने लोगों ने देखा, कितनों ने पसंद किया, कितनों ने नापसंद किया, यह बात तो किसी भी यूट्यूब चैनल पर जाने वाले दर्शक को ही दिख जाती है। लेकिन यह चैनल जिन्होंने बनाया है, जो इस पर वीडियो पोस्ट करने का हक रखते हैं, वे इसके हर वीडियो के विश्लेषण को जानने का हक भी रखते हैं। और उन्हें एक-एक क्लिक पर यह देखने मिल सकता है कि किस वीडियो को, दुनिया के किस हिस्से से, किस उम्र के, औरत या मर्द ने, किस वक्त देखा, कितनी मिनट देखा, कितने सेकेंड देखकर छोड़ दिया। ऐसी दर्जनों और जानकारियां यूट्यूब पेज के संचालक देख सकते हैं। 

अब टेक्नालॉजी क्या-क्या दिखा सकती है, यह तो हक्का-बक्का कर ही देता है, लेकिन इससे बढक़र यह लगता है कि कारोबारी या गैरकारोबारी, जैसा भी यूट्यूब चैनल हो, उसे चलाने वालों को यह समझ पड़ता है कि उसके किस इंटरव्यू, या किस विश्लेषण को कितने लोग कितने मिनट या सेकेंड के बाद छोड़ दे रहे हैं। इससे यह भी हिसाब निकल सकता है कि किस वाक्य को सुनकर लोगों ने उस वीडियो को बंद कर दिया। किस तर्क को सुनकर, किस बात को सुनकर लोग ऊब गए, खफा हो गए, लोगों के कानों का स्वाद खराब हो गया, और लोग आगे बढ़ गए, यह सब जानने के बाद क्या यूट्यूब वीडियो पर बोलने वाले लोग अपने विषय, अपने तर्क, अपनी भाषा, अपने लहजे, अपनी मिसालों के बारे में फिर से नहीं सोचेंगे? और अगर ऐसा चैनल चलाने वाले मालक-चालक हैं, तब तो फिर भी बेफिक्री से मनमर्जी जारी रखी जा सकती है, लेकिन अगर यह कारोबारी चैनल है, तो मालिक की तरफ से विश्लेषण करने वाले लोग सुबूत निकालकर पल भर में सामने धर देंगे कि किस विश्लेषक या किस पत्रकार की किस विषय पर कही गई किस बात के बाद कितने फीसदी लोगों ने वह वीडियो छोड़ दिया। यह कुछ उसी किस्म का रहेगा कि जिस तरह आज क्रिकेट के कम्प्यूटर हर गेंद का विश्लेषण करके बता देते हैं कि उसके विकेट तक पहुंचने की कितनी संभावना थी, वह किस विकेट पर किस ऊंचाई पर लगने वाली थी। एक गेंदबाज अपने काम को इस विश्लेषण के आधार पर लगातार सुधार सकता है, या उस पर लगातार यह दबाव रहता है कि वह कम्प्यूटर की बताई बारीकियों के मुताबिक फेरबदल करके काम सुधारे। 

अब अगर मुझे यह समझ पड़ता है कि किस विषय पर मेरी कही किस बात के बाद कितने लोगों ने आगे सुनना जरूरी नहीं समझा, तो बहुत बारीकी से समझने पर मुझ पर यह दबाव आ सकता है कि मैं ऐसे विषय पर ऐसी बातें कहूं कि लोग वीडियो के अंत तक उस पर टिके रहें। या इंटरव्यू में ऐसे सवाल करूं, और जवाब उतना ही लंबा चलने दूं कि जिससे लोग ऊबकर वीडियो बंद न कर दें। तो टेक्नालॉजी की यह सहूलियत दर्शक के हाथों हर लगाम दे रही है, और घोड़ा-गाड़ी पर बैठे लोग टेक्नालॉजी की तरफ देख रहे हैं कि किस रफ्तार से, किस तरफ, कितना आगे बढऩा है, कहां थम जाना है, कहां राह बदल देना है ताकि दर्शक कहीं और न निकल जाए। 

फिर मानो टेक्नालॉजी का इतना काबू काफी न हो, यह भी पता लगा कि यूट्यूब के कम्प्यूटर इसके परे भी सैकड़ों और पैमानों पर विश्लेषण करते रहते हैं कि किस व्यक्ति के किस वीडियो को बढ़ावा दिया जाए, और किसे ताक पर धर दिया जाए। छत्तीसगढ़ के कुछ छोटे-छोटे कस्बों और गांवों के ऐसे यूट्यूबर का भी पता लगा जिनके आधा-एक करोड़ सब्सक्राइबर हैं, और जिनके एक-एक वीडियो को आधा-एक करोड़ लोग देख चुके हैं। एक छोटे से कस्बे के एक अकेले शौकिया यूट्यूबर के वीडियो चीन में करोड़ों लोग देख रहे हैं। अब यूट्यूब के कम्प्यूटरों के कौन से पैमाने किसे कहां पहुंचा देते हैं, यह अब भी रहस्यमय बना हुआ है। पिछले एक हफ्ते में सोशल मीडिया के एक प्लेटफॉर्म की अंदरुनी टेक्नालॉजी की एक जरा सी झलक ने मानो संभावनाओं और आशंकाओं के ब्रम्हांड दिखा दिए हैं। इन संभावनाओं और इन आशंकाओं के चलते हुए क्या अब लिखते और बोलते हुए शब्द-शब्द पर दिल-दिमाग दबाव में नहीं रहेंगे? सरोकार और रचनात्मकता, मौलिकता, और कल्पनाशीलता, क्या इन सब पर सोशल मीडिया के कम्प्यूटरों का दबाव इतना नहीं बढ़ते जाएगा कि लोग मुद्दों पर सोचने के बजाय इनके आंतरिक विश्लेषणों के ग्राफ देखते रह जाएंगे? एक हफ्ते का यह तनाव छोटा नहीं है, देखते हैं कि यह काम को आगे किस हद तक प्रभावित करता है।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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