विचार / लेख
-प्रदीप सूरिन
कोरोना संक्रमण की वजह से हर रोज देश में हजारों लोग मर रहे हैं. सुबह फेसबुक और व्हाट्सएप खोलने पर हर दिन किसी न किसी की मौत की खबर ही आ रही है.
पिछले हफ्ते एक बड़े आईएएस अधिकारी से मेरी बातचीत हो रही थी. बता दूं कि ये अधिकारी पिछले साल देश में लॉकडाउन लगाने के लिए बनी कोर टीम के सदस्य रहे थे. मैने बड़ी मासूमियत से उनसे पूछा कि मोदी जी को देश में लॉकडाउन लगाने की सलाह किसने दी? अफसर ने बताया कि कोर टीम में सिर्फ स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की ही बात मानी गई और देशभर में लॉकडाउन का फैसला लिया गया.
मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता कि लॉकडाउन का फैसला सही था या गलत. लेकिन एक बात मुझे अभी तक कचोट रही है. भारत जैसा देश जो पूरी दुनिया को दवाईयां और टीके उपलब्ध कराता है, खुद कोरोना महामारी से क्यों नहीं बच पा रहा है? जो देश दूसरे देशों को टीके सप्लाई करता है वहां टीकों की किल्लत कैसे हो सकती है? क्या भारत में दूसरी नेशनल हेल्थ इमरजेंसी आ गई है?
आपको याद होगा टीके तैयार होने से कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी स्वयं सीरम इंस्टिट्यूट में टहल कर आए थे. ऐसा लगा मानो प्रधानसेवक टीकों की तैयारियों का जायजा लेने गए हैं. एक आम नागरिक की नजर से देखें तो आपको इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगेगा. लेकिन मेरे जैसे कि पब्लिक हेल्थ के जानकार के लिए ये घटना झकझोर देने वाली थी. आप भी समझिए इस बात को.
इस घटना का मतलब साफ था कि भारत जैसा बड़ा देश कोरोना टीकों के लिए दो निजी कंपनियों पर निर्भर होने वाला है. सरकारी टीका कंपनियां होने के बावजूद देश के करोड़ों लोगों को कोरोना से बचाने के लिए प्राइवेट टीका कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ेगा. यानी देश में एक बार फिर नेशनल हेल्थ इमरजेंसी आएगी.
पहले जानिए कि आखिर नेशनल हेल्थ इमरजेंसी होती क्या है और क्या भारत में पहले भी ऐसे हालात आ चुके हैं? आपको याद होगा कि 2008 में देश की तीन सरकारी टीका कंपनियों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के दबाव में बंद कर दिया गया था. देश के नवजात बच्चों को लगने वाले जीवनरक्षक टीके इन्हीं तीन संस्थानों में बनते थे. सरकारी यूनिट बंद होने से देश के करोड़ों बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए निजी टीका कंपनियों पर आश्रित होना पड़ा था.
पूर्व स्वास्थ्य सचिव जावेद चौधरी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने अपनी जांच में पाया कि सरकारी टीका कंपनियों के बंद होने के बाद निजी कंपनियों ने मनमाने दाम पर टीके बेचे. देश में लोगों की जान बचाने के लिए निजी कंपनियों पर निर्भरता को ही नेशनल हेल्थ इमरजेंसी कहा गया. जांच कमेटी ने सरकार से सिफारिश की थी कि देश के नागरिकों की जान बचाने के लिए कभी भी निजी कंपनियों पर निर्भरता नहीं होनी चाहिए. दुनिया के कोई भी नियम भारतीयों की जान से ज्यादा अहम नहीं हो सकते.
कुछ लोगों का मानना ये भी हो सकता है कि निजी कंपनियां टीका तैयार करके थोड़ा मुनाफा कमा भी ले तो इसमें बुराई क्या है? दरअसल देश में इस वक्त महामारी एक्ट लागू है. कोरोना संक्रमण की वजह से देश में करोड़ों लोगों के मरने की संभावना है. ऐसे में आप सामान्य नियमों से नहीं चल सकते है.
भारत सरकार ने सीरम इंस्टिट्यूट और भारत बायोटेक को टीका तैयार करने के लिए कई सुविधाएं दी है. कायदे से सरकार को इन दोनों निजी कंपनियों से टीके का फार्मूला लेकर सरकारी कंपनियों को दे देना चाहिए था. ताकि टीके की किल्लत से लोगों की जान न जाए. लेकिन सरकार ने ऐसा किया नहीं. उल्टे इन कंपनियों से 300-400 रुपये में प्रति टीका खरीदा जा रहा है.
सरसरी निगाह में 300-400 रुपये बेहद कम दिखता है. लेकिन जब मामला राष्ट्रीय टीकाकरण को हो तो 1-2 रुपये का फर्क भी बहुत ज्यादा होता है. क्या सरकार को ऐसे हालात में खुद टीके नहीं बनाने चाहिए? आखिर कब तक इतने महंगे दामों में टीका खरीदा जा सकता है?
सरकार के इस अनदेखी के तीन नुकसान है. पहला, निजी कंपनियां मनमाने दाम पर टीका बेच रही हैं. भारत में हजारों लोगों के मरने के बावजूद निजी कंपनियां ज्यादा मुनाफे के लिए दूसरे देशों को टीका सप्लाई कर रही हैं. देश में हेल्थ इमरजेंसी के बावजूद सरकारी टीका कंपनियां चुपचाप बैठी हुई हैं.
और उधर अदार पूनावाला ब्रिटेन में करोड़ो रुपये का अपना नया बिजनेस सेटअप करने में व्यस्त हैं.