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पाकिस्तान में ईश निंदा कानून और आर्थिक संकट
14-May-2021 7:24 PM
पाकिस्तान में ईश निंदा कानून और आर्थिक संकट

पाकिस्तान में व्यापारिक समुदाय ने यूरोपीय संघ के तरजीही व्यापारिक दर्जे के संभावित खात्मे पर चिंता जताई है. देश की अर्थव्यवस्था कोरोना आपदा और सरकारी कुप्रबंधन की वजह से पहले से ही संकट में है.

 डॉयचे वैले पर एस खान का लिखा

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान यूरोपीय संघ की संसद में सर्वसम्मति से पारित उस प्रस्ताव के बाद खुद को कठिनाई में महसूस कर रहे हैं जिसमें यूरोपीय संघ ने पाकिस्तान के साथ तरजीही व्यापारिक समझौते की समीक्षा की बात कही है. यूरोपीय संघ ने पाकिस्तान में विवादित ईशनिंदा कानून की वजह से यह प्रस्ताव पारित किया है.

एक तरफ यूरोपीय संघ की तरजीह की सामान्यीकृत योजना यानी जीएसपी+ दर्जे की वजह से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को काफी फायदा हो रहा है, तो दूसरी ओर ईशनिंदा कानून धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है. यूरोपीय संघ के प्रस्ताव में पाकिस्तान में ईशनिंदा मामलों की बढ़ोत्तरी और मानवाधिकारों के हनन पर चिंता जताई गई है. इसके अलावा इस प्रस्ताव में फ्रांस विरोधी भावनाओं पर भी चिंता जताई गई है जो कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के उस बयान के बाद बढ़ी हैं कि वो इस्लामी चरमपंथ के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे.

यूरोपीय संसद के जर्मन सदस्य राइनहार्ड बुटीकोफर कहते हैं कि तात्कालिक मामला एक ईसाई जोड़े से संबंधित है जो ईशनिंदा के आरोप में पाकिस्तानी जेल में पड़े हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "यह तो सिर्फ एक मामला है. ऐसे न जाने कितने और मामले हैं. और यह सिर्फ ईसाई जोड़े से संबंधित नहीं है बल्कि तमाम दूसरे धर्मों के लोग भी इस कानून का दंश झेल रहे हैं. हमारा मानना है कि यह मध्यकालीन ईशनिंदा कानून जैसा है.”

बुटीकोफर कहते हैं, "यह एक स्पष्ट राजनीतिक संकेत है कि जीएसपी+ दर्जा इकतरफा नहीं है. बल्कि यह समझना चाहिए कि संबंधित देश को भी मानवाधिकार, पारदर्शिता, जिम्मेदारी और दूसरे मानदंडों का पालन करना चाहिए. जीएसपी+ दर्जा पाकिस्तान के लिए एक बड़ी आर्थिक मदद है क्योंकि इसके जरिए वह यूरोपीय संघ के साझीदार की हैसियत से अपना 66 फीसद निर्यात बिना किसी शुल्क के ईयू के देशों को कर सकता है. मुझे लगता है कि इसके लिए कुछ शर्तें लगाना बहुत जरूरी है.”

एक ‘अछूत' कानून

पाकिस्तान के दक्षिणपंथी समूहों ने यूरोपीय संघ की संसद के इस प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की है और देश के ईशनिंदा कानून का जमकर बचाव किया है. उनका कहना है कि पश्चिमी देशों को इस्लाम या पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. इस हफ्ते की शुरुआत में प्रधानमंत्री इमरान खान ने यूरोपीय संघ के इस प्रस्ताव पर चर्चा के लिए कैबिनेट बैठक की. इस मुद्दे पर व्यावहारिकता दिखाने की बजाय, इमरान खान फैसला किया कि वो ईशनिंदा कानून पर किसी तरह का समझौता नहीं करेंगे. उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने भी इस बात पर जोर दिया कि ईशनिंदा कानून पर आंच नहीं आने देनी चाहिए. फिर भी, सरकार का कहना है कि वो मानवाधिकार से जुड़े दूसरे मुद्दों पर एक विधेयक ला सकती है.

इस्लामी देश पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून एक बेहद संवेदनशील विषय है, जहां 97 फीसद आबादी मुस्लिम है. ईशनिंदा कानून के आरोपों को झेल रहे सैकड़ों लोग पाकिस्तान की जेलों में सालों से सड़ रहे हैं. इस्लाम या फिर पैगंबर मुहम्मद के अपमान के आरोप में कई लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला है या फिर हत्या कर दी गई है.

साल 1947 में पाकिस्तान को यह कानून ब्रिटिश शासकों से विरासत में मिला था जिन्होंने धार्मिक भावनाओं को आहत करने और किसी की धार्मिक भावनाओं का जानबूझकर अपमान करने को आपराधिक कृत्य बना दिया था. बाद के दशकों में, इस्लामिक सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने साल 1977 और 1988 के दौरान इस कानून का विस्तार करते हुए पवित्र कुरान का अपमान करने के जुर्म में उम्रकैद की सजा निर्धारित कर दी. उसके बाद, पैगंबर मुहम्मद का अपमान करने के जुर्म में मौत की सजा तय कर दी गई.

व्यापारिक समूह व्यावहारिकता की मांग कर रहे हैं

सरकार यूरोपीय संघ की चिंताओं को दूर करने को लेकर जहां बहुत उदासीन दिख रही है, वहीं पाकिस्तान का व्यापारी वर्ग जीएसपी+ दर्जे की समाप्ति की आशंका से चिंतित है. पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज के डायरेक्टर और पाकिस्तान क्लॉथ मर्चेंट्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अहमद चिनॉय कहते हैं कि यूरोपीय संघ के आरक्षण को नजरअंदाज करना देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में चिनॉय कहते हैं, "पाकिस्तानी उत्पादकों के पास कोई विकल्प नहीं रह जाएगा. इसलिए उन्हें अपने टेक्सटाइल और रेडीमेड कपड़े जैसे उत्पादों को सस्ते दामों पर बेचना पड़ेगा. इसका मतलब यह हुआ कि उन्हें अपने कर्मचारियों के वेतन में भी कटौती करनी होगी और मजदूरी भी सस्ती हो जाएगी. सरकार को भावनाओं में बहने की बजाय इस मुद्दे के समाधान की कोशिश करनी चाहिए.”

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