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इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष, युद्ध एवं तनाव
14-May-2021 10:10 PM
इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष, युद्ध एवं तनाव

-विकास कुमार    

इजरायल और फिलिस्तीन का संघर्ष लगभग 73 वर्ष पुराना है। आज तक यह विवाद सुलझ नहीं पाया। महाशक्तियां इसमें अपना -अपना राष्ट्रीय हित देखती हैं। जिस कारण से आज पश्चिमी एशियाई देशों में अस्थिरता बनी हुई है। दोनों देशों के मध्य विवाद के चलते तनाव के कारण युद्ध होते रहते हैं। युद्ध किसी भी जाति, समुदाय, वर्ग एवं देश के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानवता के विरुद्ध है। आधुनिकता में युद्ध की रणनीति में भी परिवर्तन हुआ है। तकनीकी और प्रौद्योगिकी  के विकसित स्वरूप में एक क्षण में करोड़ों लोगों को मारा जा सकता है। इसे रोकने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समझौते हुए, परंतु महाशक्तियों के एकल रवैया के कारण यह संपन्न नहीं हो सका। युद्ध में कई परिवार बर्बाद हो जाते हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं, महिलाएं विधवा हो जाती हैं, और राष्ट्रीय विकास और चरित्र निर्माण का स्तर भी कमजोर हो जाता है। 

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच पिछले कुछ दिनों से ऐसे ही युद्ध चल रहे हैं। दोनों देशों में भयावह स्थिति हैं। बच्चे चीख चिल्ला रहे हैं , लोग बेघर हो गए हैं, घायल और पीड़ित तड़प रहे हैं, दैनिक जीवन से जूझता कामगार वर्ग छिपा बैठा है और कर्मचारी काम छोड़कर अपनी जान बचाने में लगा है। आख़िर यह बर्बादी का रास्ता मानवता को किस ओर ले जा रहा है। हम भविष्य की पीढ़ियों को क्या सीख दे कर जा रहे हैं? यह बातें सभी महत्वकांक्षीयों के समझ के परे हैं। इन देशों के विवाद का मूल कारण येरूशलम (तकरीबन 35 एकड़ क्षेत्र) है। जो ईसाई, यहूदी एवं मुस्लिम तीनों धर्म का पवित्र एवं प्रमुख क्षेत्र माना जाता है। 

तीनों धर्म - मतावलंबियों के लिए यह तीर्थ स्थल है। प्रथम विश्व युद्ध (1914 - 1918) एवं द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) मैं यूरोप में अशांति और अस्थिरता के चलते भारी संख्या में यहूदियों ने इस क्षेत्र में आकर बसना प्रारंभ किया। यह क्षेत्र अरब क्षेत्र का भाग था। जब दोनों में संघर्ष चलने लगा, 1947 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रस्ताव -181 पारित किया और फिलिस्तीन तथा इजरायल नामक दो राज्यों की घोषणा कर दी। इस प्रस्ताव से अरब देश नाखुश थे, मिश्र के नेतृत्व में इजरायल पर हमला कर दिया। यह विवाद तभी से बढ़ता चला गया, जो आज तक तनाव की स्थिति में बना हुआ है। 

इजरायल के सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को फिलिस्तीन परिवारों को सीमा क्षेत्र से बाहर करने का एक प्रस्ताव पारित किया। क्योंकि रमजान के चलते अलअक्सा मस्जिद में नमाज के लिए बहुत लोग एकत्रित हुए थे ,जिन्होंने इस प्रस्ताव का विरोध किया। सूत्रों के मुताबिक इस क्षेत्र में हिंसात्मक हमला भी किया। दूसरे पक्ष में इजरायल प्रत्येक वर्ष 10 मई को येरूशलम दिवस मनाता है, जिसमें हमास की ओर से आक्रमण किया गया। जिसके प्रतिउत्तर में इजरायल ने फिलिस्तीन पर हमला कर दिया। युद्ध अभी भी जारी है, जिसमें 80 से अधिक लोगों की जाने गई और 350 से अधिक लोग घायल हैं। इसमें बच्चे ,महिलाएं एवं बुजुर्ग आदि शामिल हैं। 

इजरायल एक तकनीकी संपन्न देश है जिसके तकनीकी मिसाल पूरी दुनिया मानती है। हमास द्वारा छोड़े गए मिसाइल और रॉकेट को इजरायल के 'आयरन डोन' ने हवा में ही  मार गिराया। इस युद्ध में अरब देश एवं अन्य मुस्लिम देशों के सम्मिलित होने की संभावना है। तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से इस संबंध में बात करते हुए फिलिस्तीन  का साथ देने को कहा । जिसमें इस्लामिक सहयोग संगठन (1969) की इमरजेंसी मीटिंग बुलाने के लिए भी कहा गया। उधर लेबनान ने भी इजरायल के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी है। तुर्की के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से बात करते हुए फिलिस्तीन सहयोग की आशा जताई है। ऐसे में एक पक्ष यह बन रहा है कि क्या यह युद्ध दो गुटों में परिवर्तित हो जाएगा? क्योंकि इसमें आशंका नहीं है कि अमेरिका एवं अन्य कई यूरोपीय देश इजरायल के पक्ष में हैं। यही कारण है कि अमेरिकन राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा की युद्ध जल्दी समाप्त होने चाहिए, परंतु इजरायल ने जो आक्रमण किया वह आत्म रक्षा हेतु था। इस संबंध में यही प्रतीत होता है कि आर्मेनिया और अजरबैजान जैसे विवाद की तरह इसमें भी सभी देश अपना हित देख रहे हैं। 

इजराइल के राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि अभी तो शुरुआत है , हम उसे इतना तबाह कर देंगे कि भविष्य में आक्रमण करना भूल जाएंगे। प्रतिदिन कई मिसाइल और रॉकेट फिलिस्तीन में दागे जा रहे हैं। हमास  भी इजराइल में लगातार आक्रमण कर रहा है। परंतु इजरायल तकनीकी एवं सैन्य सामग्री से अधिक संपन्न है। यही कारण रहा कि 1967 में (सिक्स डेज वार )एवं 2005 में लेबनान के विरुद्ध युद्ध में वह जीता। जब 1967 में इजरायल ने फिलिस्तीन की कई एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया। इस जमीन को छोड़ने को तैयार नहीं है और वहां स्थाई बस्तियां भी निर्मित कर दी थी। 1993 में इजरायल एवं 'फिलिस्तीन मुक्त संगठनों' के बीच ओस्लो शांति समझौता हुआ। इस समझौते में यह प्रावधान किया गया कि कब्जा किए गए सभी अवैध क्षेत्र वापस कर दिए जाएंगे। दोनों देश शांति के साथ रह सकेंगे। इसी बीच हमास (1987) संगठन ने इसका विरोध करते हुए इजरायल के विरुद्ध  सर्वनाश की जंग छेड़ दी। दोनों के मध्य आपसी संघर्ष चलते रहे। 

इजराइल सीमा में बनी फिलिस्तीन बस्तियों पर सैन्य हमला करता रहता है तो हमास इजरायल में। विगत 5 दिनों से इस युद्ध में फिलिस्तीन और इजरायल में भयावह स्थिति बनी हुई है। फिलिस्तीन में लगभग 80 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई है। जिसमें 17 बच्चे शामिल हैं। यह स्थिति कब तक बनी रह सकती है, इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं किया जा सकता। क्योंकि दोनों के मध्य विवाद की जड़ पुरानी है और तनाव की स्थिति अधिक है। इजरायल का मानना है कि 1967 के पहले के प्रावधान को नहीं मानेगा, क्योंकि वर्तमान स्थिति कुछ दूसरी है। उसका यह भी कहना है कि फिलिस्तीन से गए हुए शरणार्थी वापस फिलिस्तीन नहीं आएंगे और नाही भविष्य में वह अपनी सेना रख सकता है। यह मत पूर्णतया कट्टरवादी प्रतीत होता है। इस संबंध में भारत का मत बहुत ही स्पष्ट है। 

भारत का कहना है कि दोनों देशों के आपसी शांति और सुलह से यह विवाद का निपटारा हो सकेगा। यही कारण रहा कि 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री ने जब इजरायल की यात्रा की तो वहीं 2018 में उन्होंने फिलिस्तीन की यात्रा भी की। फिलिस्तीन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सर्वोच्च सम्मान 'ग्राउंड कलर ऑफ द स्टेट आफ पलेस्टाइन' से सम्मानित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और महाशक्तियों को चाहिए कि इसमें निष्पक्ष रूप से न्यायोचित तरीका अपनाकर निर्णय निर्मित करें। सर्वप्रथम तो दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों को युद्ध स्थगित कर देना चाहिए। युद्ध स्थगित के लिए सभी देशों को दबाव डालना चाहिए , क्योंकि इससे निर्दोष लोगों की जानें जा रही हैं। इस समस्या के समाधान का भी व्यावहारिक तरीका ढूंढना चाहिए। कट्टरवाद, हठधर्मिता और गलत रणनीति अपनाकर निपटारा नहीं किया जा सकता। युद्ध जब किसी देश में होते हैं तो आसपास के नागरिक भी इससे प्रभावित होते हैं और वह एक देश से निकाल कर दूसरे देश की ओर जाते हैं। युद्ध और हिंसात्मक तरीका कभी भी सन्मार्ग पर नहीं ले जा सकता। 
(रिसर्च स्कॉलर केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक)

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