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इसराइल-ग़ज़ा हिंसा: मीडिया के दफ़्तरों वाली इमारत गिराने पर इसराइली सेना की सफ़ाई
15-May-2021 9:00 PM
इसराइल-ग़ज़ा हिंसा: मीडिया के दफ़्तरों वाली इमारत गिराने पर इसराइली सेना की सफ़ाई

ग़ज़ा में इसराइली हमले में एक टावर ब्लॉक तबाह हो गया है. इसमें समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस और क़तर के समाचार चैनल अल-जज़ीरा के दफ़्तर थे.

रॉयटर्स समाचार एजेंसी ने बताया है कि इस हमले से पहले ही बिल्डिंग के मालिक को इसराइल की तरफ़ से हमले की चेतावनी मिली थी जिसके बाद इसको ख़ाली करा लिया गया था.

इस 12 मंज़िला टावर ब्लॉक में कई अपार्टमेंट और दूसरे दफ़्तर थे.

सेना ने कहा है कि इस इमारत में अल जज़ीरा और एसोसिएटेड प्रेस के दफ्तर थे उसने उस इमारत पर मिसाइल हमला किया था. हालांकि सेना ने कहा है कि हमले से पहले आम नागरिकों के लिए चेतावनी जारी कर दी गई थी गई थी ताकि वो समय रहते इमारत से निकल सकें.

इसराइली सेना ने ट्विटर पर पोस्ट किया कि इस इमारत में "हमास का सैन्य साजोसामान" था और यहां रहने वालों को "ह्यूमन शील्ड" के तौर पर इस्तेमाल करता था.

वहीं इस घटना के बाद एपी ने बयान जारी करके कहा है उसके सभी कर्मचारी और फ़्रीलांसर्स को हमले से पहले इमारत से निकाल लिया गया था.

एपी के अध्यक्ष और सीईओ गैरी प्रुएट ने बयान जारी कर कहा है कि वो इस घटना से हैरान हैं.

उन्होंने कहा कि 'इसराइली सेना जानती थी कि ग़ज़ा में एपी का और दूसरे समाचार संगठनों का ब्यूरो कहां पर है, वे हमारी लोकेशन जानते थे और जानते थे कि हमारे पत्रकार वहां पर हैं. हमें एक चेतावनी मिली थी कि बिल्डिंग पर हमला होगा.'

'युद्ध अपराधों की श्रेणी में आ सकती है हिंसा'
फ़लस्तीनी स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि शनिवार को ग़ज़ा पट्टी में इसराइली हवाई हमले में 13 लोगों की मौत हुई है. इसके बाद ग़ज़ा में मरने वालों का आंकड़ा 139 हो चुका है.

फ़लस्तीनियों के तेल अवीव के उप-नगर रामत गन में किए गए रॉकेट हमले में एक 50 वर्षीय पुरुष की मौत हुई है. इसराइल में अब तक नौ लोगों की मौत हुई है.

वहीं, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त ने इसराइल सुरक्षा बलों और फ़लस्तीनी सशस्त्र समूहों को चेतावनी दी है कि घनी आबादी वाले इलाक़ों पर रॉकेट हमले और साथ ही प्रदर्शनकारियों पर इसराइली सुरक्षाबलों के हथियारों के इस्तेमाल युद्ध अपराधों की श्रेणी में आ सकते हैं.

जेनेवा में जारी किए गए बयान में आयुक्त मिशेल बेशले ने अंतरराष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन के आरोपों में एक स्वतंत्र जांच की मांग की है और हिंसा रोकने की अपील की है.

वहीं बीबीसी के यरूशलम ब्यूरो ने बताया है कि ग़ज़ा में मौजूद बीबीसी का दफ़्तर इस इमारत में नहीं था.

अर्दोआन ने कहा- इसराइल के दमन को स्वीकार नहीं करेंगे
इससे पहले इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच जारी हमलों पर टिप्पणी करते हुए तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कहा है कि इसराइल ने 'सभी सीमाएं लांघ दी हैं.'

जस्टिस एंड डिवेलपमेंट पार्टी (एकेपी) के सदस्यों को ऑलनाइन संबोधित करते हुए अर्दोआन ने कहा, "यह आतंकी राष्ट्र यरूशलम जैसे शहर को लूटने की कोशिश कर रहा है... सभी सीमाएं लांघ दी हैं."

उनके इस बयान का वीडियो एनटीवी समेत कई प्राइवेट मीडिया चैनलों पर लाइव प्रसारित हुआ है.

अर्दोआन ने कहा कि तुर्की "इसराइल की क्रूरताओं से दुखी और ग़ुस्से में है. हम इसराइल के दमन को स्वीकार नहीं करेंगे चाहे पूरी दुनिया इसे नज़रअंदाज़ करे."

अर्दोआन ने कहा कि तुर्की 'अंतरराष्ट्रीय समुदाय की उदासीनता से भी दुखी है.' उन्होंने कहा कि यह हर देश और संगठन के लिए 'अनिवार्य' है कि 'यरूशलम में तेज़ी से शांति लाने को लेकर क़दम उठाए जाएं.'

अर्दोआन ने कहा है कि तुर्की संयुक्त राष्ट्र के साथ किसी भी पहल को समर्थन देने और शांति के लिए ज़िम्मदेरी लेने को तैयार है.

अमेरिकी दूत पहुंचे इसराइल
वहीं, इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच जारी हिंसा के बीच दोनों पक्षों में शांति स्थापित कराने के उद्देश्य से शनिवार को अमेरिकी दूत तेल अवीव पहुंचे हैं.

हैदी अम्र इसराइली, फ़लस्तीनियों और संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों के साथ बातचीत करेंगे. अमेरिकी राजनयिकों का कहना है कि इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच 'स्थायी शांति' की ज़रूरत है.

वहीं, मिस्र के अधिकारी हमास से बातचीत कर रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त अरब अमीरात भी दोनों पक्षों के बीच शांति के लिए कोशिशें तेज़ कर रहे हैं.

शनिवार को ग़ज़ा पट्टी पर इसराइली हवाई हमलों में 13 और लोगों की मौत हो गई जबकि फ़लस्तीनी लड़ाकों ने इसराइल की ओर रॉकेट दागे थे.

ग़ज़ा और इसराइल के बीच इस हफ़्ते हुई हिंसा 2014 के बाद से हुई सबसे बदतर हिंसा में से एक है. जब से यह हमले शुरू हुए हैं तब से ग़ज़ा में कम से कम 139 लोग और इसराइल में 9 लोगों की मौत हुई है.

शुक्रवार को वेस्ट बैंक में भी हिंसा हुई जिसमें कम से कम 11 फ़लस्तीनियों की मौत हुई और 100 से अधिक घायल हुए. इसराइली सुरक्षा बलों ने आंसू गैस के गोले, रबड़ बुलेट और लाइव फ़ायर का इस्तेमाल किया तो वहीं फ़लस्तीनियों ने पेट्रोल बम फेंके.

शनिवार को फ़लस्तीनियों का स्मरणोत्सव दिवस है जिसे वे अल-नकबा या तबाही कहते हैं. यह दिन लाखों फ़लस्तीनियों को उनके घर से जबरन निकालने की याद के तौर पर मनाया जाता है. 1948 में अरब-इसराइल युद्ध के बाद उन्हें ऐसा करना पड़ा था.

क्या हैं ताज़ा हालात?

बीबीसी को सूत्रों ने बताया है कि शनिवार को ग़ज़ा पट्टी में 10 लोगों की मौत हुई है जिसमें से सात लोग ग़ज़ा सिटी में शरणार्थी शिविर पर हुए इसराइली हमले में मारे गए हैं.

पांच महीने का एक बच्चा इस हमले में जीवित बचा है जो मलबे में अपनी मृत मां के पास पाया गया था. इसके अलावा कई लोगों के ग़ायब होने की भी ख़बर है.

रॉयटर्स समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, अकरम फ़ारूक़ (36) ने बताया कि उन्हें एक इसराइली अफ़सर ने फ़ोन किया था कि ग़ज़ा में उनकी बिल्डिंग को निशाना बनाया जाएगा जिसके बाद उनका परिवार वहां से भागा.

उन्होंने कहा, "बमबारी के कारण हम पूरी रात नहीं सोए और अब मैं अपनी बीवी और बच्चों के साथ सड़क पर हूं."

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, सोमवार से अब तक ग़ज़ा में 10,000 से अधिक फ़लस्तीनी अपना घर छोड़ चुके हं.

इसराइली अधिकारियों ने बताया है कि ग़ज़ा से बीती रात में 200 रॉकेट हमले हुए जिसमें एशदोद, बीरशेबा और सदेरोट शहरों के घरों को निशाना बनाया गया.

द टाइम्स ऑफ़ इसराइल के मुताबिक़, बीरशेबा में शेल्टर होम्स में जाते समय 19 लोग मामूली तौर पर घायल हुए जिन्हें अस्पताल ले जाया गया.

इसराइल ने कहा है कि वह ग़ज़ा में ज़मीनी हमले पर भी विचार कर रहा है लेकिन अभी इस पर फ़ैसला नहीं लिया गया है.

अमेरिकी दूत के आने से क्या हासिल होगा?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रविवार को होने वाली बैठक से पहले अमेरिकी दूत अम्र तेल अवीव पहुंचे हैं.

इसराइल में मौजूद अमेरिकी दूतावास ने कहा है कि इस दौरे का मक़सद "स्थायी शांति लागू करने की दिशा में काम करना है."

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन कूटनीतिक स्तर पर तेज़ी से काम करना चाह रहा है जबकि अभी उसकी पूरी टीम भी नहीं है. बाइडन प्रशासन ने अब तक इसराइल के लिए अपना राजदूत भी नामित नहीं किया है.

बीबीसी की बारबरा प्लेट अशर कहती हैं कि अम्र एक मध्य स्तर के कूटनीतिज्ञ हैं जिन्हें पिछले अमेरिकी प्रशासन ने विशेष दूत जैसी कोई रैंक नहीं दी थी.

क्लिंटन प्रशासन में इसराइल में अमेरिकी राजदूत रहे मार्टिन इंडाइक का मानना है कि ऐसी अच्छी संभावना है कि लड़ाई जल्द बंद होगी.

उन्होंने बीबीसी न्यूज़ से कहा, "मुझे लगता है कि दोनों पक्षों के पास बहुत सीमित उद्देश्य हैं और अनिवार्य रूप से उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं जहां इसका कोई मतलब नहीं है. न ही हमास के लिए और न ही नेतन्याहू के लिए."

लेकिन जानीमानी फ़लस्तीनी नेता हनान अशरवी कहती हैं कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि अम्र के शामिल होने से लड़ाई रुकेगी.

उन्होंने बीबीसी से कहा, "बाइडन ने पूरे सप्ताह इंतज़ार किया और उन्होंने तीसरे स्तर का ही नहीं बल्कि चौथे स्तर के एक नौकरशाह को भेजा है और आपको लगता है कि इसराइली उनकी सुनने जा रहे हैं?"

"अमेरिका ने सुरक्षा परिषद की बैठक में देरी की. मुझे लगता है कि यह एक प्रकार का केवल प्रारूप है अगर वे चाहते कि वे कुछ कर सकते हैं तो उन्हें उच्चतम स्तर पर आगे आना था और कहना था 'बमबारी रोको, हत्याएं रोको."

इसकी शुरुआत पूर्वी यरुशलम से फ़लस्तीनी परिवारों को निकालने की धमकी के बाद शुरू हुईं जिन्हें यहूदी अपनी ज़मीन बताते हैं और वहाँ बसना चाहते हैं. इस वजह से वहाँ अरब आबादी वाले इलाक़ों में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हो रही थीं.

शुक्रवार को पूर्वी यरुशलम स्थित अल-अक़्सा मस्जिद के पास प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच कई बार झड़प हुई.

अल-अक़्सा मस्जिद के पास पहले भी दोनों पक्षों के बीच झड़प होती रही है मगर पिछले शुक्रवार को हुई हिंसा 2017 के बाद से सबसे गंभीर थी.

हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसका समर्थन नहीं करता. फ़लस्तीनी पूर्वी यरुशलम को भविष्य के एक आज़ाद मुल्क की राजधानी के तौर पर देखते हैं.

पिछले कुछ दिनों से इलाक़े में तनाव बढ़ा है. आरोप है कि ज़मीन के इस हिस्से पर हक़ जताने वाले यहूदी फलस्तीनियों को बेदख़ल करने की कोशिश कर रहे हैं जिसे लेकर विवाद है.

अक्तूबर 2016 में संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक शाखा यूनेस्को की कार्यकारी बोर्ड ने एक विवादित प्रस्ताव को पारित करते हुए कहा था कि यरुशलम में मौजूद ऐतिहासिक अल-अक़्सा मस्जिद पर यहूदियों का कोई दावा नहीं है.

यूनेस्को की कार्यकारी समिति ने यह प्रस्ताव पास किया था.

इस प्रस्ताव में कहा गया था कि अल-अक़्सा मस्जिद पर मुसलमानों का अधिकार है और यहूदियों से उसका कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं है.

जबकि यहूदी उसे टेंपल माउंट कहते रहे हैं और यहूदियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता रहा है. (bbc.com)

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