संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अब गाय खुद तो उसे लेकर किये जा रहे फर्जी दावों के खिलाफ केस कर नहीं सकती
18-May-2021 5:28 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अब गाय खुद तो उसे लेकर किये जा रहे फर्जी दावों के खिलाफ केस कर नहीं सकती

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने भी सिवाय इसके कोई चारा नहीं रह गया है कि वे देश में कोरोना के भयानक खतरे को मंजूर करें। उन्होंने आज गांव तक कोरोना वायरस पहुँचने पर फिक्र जाहिर करते हुए कलेक्टरों का नाम लिया है कि वही इसे रोक सकते हैं। भारत की प्रशासनिक व्यवस्था में जिलों की सारी कमान कलेक्टरों के हाथ में देने का रिवाज अंग्रेजों के वक्त से चले आ रहा है, और वहीं पर सारे अधिकार केंद्रित रहते हैं, इसलिए मोदी ने अगर ऐसा कहा है तो उसमें हैरानी की कोई बात नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि क्या कलेक्टर देश की आम जनता के बीच में छाए हुए अंधविश्वास को अपने दम पर खत्म कर सकते हैं, या उसमें प्रधानमंत्री से लेकर उनके केंद्रीय मंत्रियों तक, उनके मुख्यमंत्रियों और उनके सांसदों-विधायकों तक को हाथ नहीं बंटाना चाहिए ? यह बात करना जरूरी इसलिए लग रहा है कि एक तरफ तो प्रधानमंत्री यह मान रहे हैं कि गांवों तक कोरोना के फैलने का खतरा बहुत बड़ा है, और वह सामने खड़ा भी है। और ऐसे में उनकी पार्टी की नाथूराम गोडसेप्रेमी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर सार्वजनिक मंच और माइक पर बोल रही हैं कि उन्हें कोरोना नहीं होने वाला क्योंकि वह हर दिन गोमूत्र पीती हैं। उनकी पार्टी के बहुत से लोग इस तरह के बयान देते आए हैं और सार्वजनिक रूप से गोमूत्र पीने का प्रदर्शन भी करते आए हैं। उनकी पार्टी के बड़े-बड़े पदों पर बैठे हुए लोग लगातार ऐसी बातें कहते आए हैं कि गाय ऑक्सीजन छोड़ती है। नरेंद्र मोदी जिस गुजरात के मुख्यमंत्री थे, और जहां आज भी उनकी पार्टी की सरकार चल रही है, वहां पर कोरोना मरीजों के इलाज के लिए गोबर और गोमूत्र से एक हॉस्पिटल चल रहा है, जहां की डरावनी तस्वीरें सामने आ रही हैं, और लोगों के जत्थे एक साथ अपने बदन पर गोबर पोत रहे हैं और शायद गोमूत्र पी भी रहे हैं। इसे कोरोना का पर्याप्त है इलाज मान लिया गया है। आज जब हिंदुस्तान ब्लैक फंगस नाम की एक अलग ही भयानक बीमारी का शिकार हो रहा है, उस वक्त फंगल इन्फेक्शन का खतरा बढ़ाने वाली यह गोबर चिकित्सा बाकी समाज के लिए भी जानलेवा साबित हो सकती है। 

इससे परे उनके केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से लेकर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री तक लगातार रामदेव की फर्जी दावों वाली दवाइयों के मॉडल बने घूम रहे हैं। अभी जब कल प्रतिरक्षा मंत्रालय के तहत डीआरडीओ ने कोरोना के मरीजों के लिए एक वैज्ञानिक दवाई पेश की, तो उस मौके पर प्रतिरक्षा मंत्री के अलावा स्वास्थ्य मंत्री की मौजूदगी ने उस दवाई की साख को घटा दिया, क्योंकि यही स्वास्थ्य मंत्री फर्जी दावों वाली रामदेवीय दवाइयों को भी इसी तरह मंच पर पेश करते आए हैं। बेहतर यही होता कि इसे प्रतिरक्षा मंत्रालय के मातहत संस्थान के वैज्ञानिकों की मौजूदगी में पेश किया जाता ताकि जनता के बीच इसका कोई भरोसा भी बैठता। अभी कल ही एक खबर आई है कि किस तरह केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल ने अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों के बीच रामदेव की तथाकथित कोरोना दवा बांटने के लिए पतंजलि से अपील की है, और लोगों से कहा है कि वे जो दवा ले रहे हैं, उसके साथ-साथ इसे भी लें। जब भारत के चिकित्सा वैज्ञानिक रामदेव की दवाई का कोई परीक्षण नहीं कर पा रहे, कोई जांच नहीं कर पा रहे, तो उस वक्त इस ब्रांड को इस तरह सर्वोच्च स्तर पर बढ़ावा देने का क्या मतलब है?

आज हिंदुस्तान में जिस तरह गोबर और गोमूत्र से कोरोना के इलाज के दावे किए जा रहे हैं और उसके लिए कैंप या अस्पताल बनाकर लोगों की जिंदगी को वहां खतरे में डाला जा रहा है, क्या ऐसे लोगों पर महामारी एक्ट लागू नहीं होता कि वे पूरी की पूरी आबादी को कोरोना के बाद खतरे में डाल रहे हैं। भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति कहकर किसी भी बात को गैरवैज्ञानिक तरीके से इस महामारी के दौर में इस तरह से बढ़ावा देना न केवल उन कमअक्ल लोगों की जिंदगी को खतरे में डालना है जो इस झांसे में आ रहे हैं बल्कि बाकी तमाम लोगों की जिंदगी को भी खतरे में डालना है जिनके बीच में यह लोग लौटेंगे और जिन्हें मौत की तरफ धकेल लेंगे। हमारा ख्याल है कि बिना राजनीतिक प्रतिबद्धता की फिक्र किए हुए प्रधानमंत्री के स्तर से ही इस देश में वैज्ञानिक बातें करने की जरूरत है। यह जरूरत इसलिए भी है कि उनकी पार्टी के बड़े-बड़े नेता अवैज्ञानिक बातें कर रहे हैं तो ऐसे में उनके स्तर से वैज्ञानिक बातें करने के अलावा और दूसरी बातों का कोई असर होते दिखता नहीं है। आज इस देश में कोरोना के लिए या आने वाली किसी भी और महामारी से बचाव के लिए लोगों के बीच एक वैज्ञानिक समझ विकसित करने की जरूरत है, वरना प्रधानमंत्री के स्तर से मुख्यमंत्रियों से चाहे जितने बार वीडियो पर बात कर ली जाए, चाहे जितने बार जिलों के कलेक्टरों से बात कर ली जाए उसका कोई फायदा नहीं होना है। 

जब देश में हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति, भारतीय चिकित्सा पद्धति, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेदिक चिकित्सा का नाम लेकर तमाम किस्म की फर्जी बातें प्रचलित की जा रही हैं, और आज की वैज्ञानिक जरूरत के खिलाफ लोगों को भडक़ाया जा रहा है, लोगों को उकसाया जा रहा है, तो उस वक्त महामारी एक्ट के तहत ऐसी बकवास करने वाले तमाम लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की जरूरत है और अगर राजनीतिक दलों की प्रतिबद्धता के चलते हुए ऐसा नहीं किया जा रहा है, तो कुछ राज्य जहां पर ऐसी प्रतिबद्धता से जुड़ी हुई सरकारें नहीं है वे राज्य अपने स्तर पर भी कार्रवाई कर सकते हैं क्योंकि महामारी एक्ट के तहत ऐसी कार्यवाही करना उनका अधिकार ही नहीं है उनकी जिम्मेदारी भी है। आज जब कोरोना के फैलाव को रोकने की सारी जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी गई है, और देश भर में फैलाए गए अंधविश्वास के चलते बहुत से लोग टीके लगवाने से भी कतरा रहे हैं, ऐसे में अंधविश्वास फैलाने वालों के खिलाफ महामारी एक्ट के तहत कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए। अब गाय खुद तो उसे लेकर किये जा रहे फर्जी दावों के खिलाफ केस कर नहीं सकती। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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