संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : वैक्सीन कंपनी ने खुलकर कहा, केंद्र सरकार ने टीकों का स्टॉक समझे बिना 18-44 शुरू किया !
22-May-2021 5:52 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  वैक्सीन कंपनी ने खुलकर कहा,  केंद्र सरकार ने टीकों का स्टॉक  समझे बिना 18-44 शुरू किया !

हिंदुस्तान में कोरोना वैक्सीन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी सिरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया ने केंद्र सरकार पर सीधे-सीधे यह तोहमत लगाई है कि उसने वैक्सीन की उपलब्धता देखे बिना अधिक आबादी को वैक्सीन लगाने की एकतरफा घोषणा कर दी। सिरम इंस्टीट्यूट के एक वरिष्ठ डायरेक्टर ने सार्वजनिक रूप से यह कहा कि केंद्र सरकार ने ना तो वैक्सीन के स्टॉक के बारे में जाना, न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन पर विचार किया, और इसके बिना ही कई आयु वर्ग के लोगों के टीकाकरण की घोषणा कर दी। इस अधिकारी ने स्वास्थ्य से संबंधित एक ऑनलाइन सम्मेलन में यह बात कही और कहा कि शुरुआत में हिंदुस्तान में 30 करोड़ लोगों को टीका लगाना था जिसके लिए 60 करोड़  खुराक की जरूरत थी, लेकिन इस लक्ष्य तक पहुंचने के पहले ही केंद्र सरकार ने पहले 45 साल से ऊपर के लोगों के लिए, और फिर 18 साल से ऊपर के सभी लोगों के लिए टीका लगाने की घोषणा कर दी। 

हिंदुस्तान की जमीन पर काम कर रही एक निजी कंपनी की तरफ से अधिकृत रूप से इतनी बड़ी बात कहना केंद्र सरकार पर राज्य सरकारों की तरफ से लगाए जा रहे आरोपों को सही ठहराने वाली बात है। उल्लेखनीय है कि 19 अप्रैल को मोदी सरकार की तरफ से 18 वर्ष से ऊपर के हर किसी को वैक्सीन लगाने की घोषणा की गई थी। साथ ही यह घोषणा भी की गई थी राज्य अपने बूते इन वैक्सीन को खरीदने का काम करेंगे और इसका भुगतान भी करेंगे। हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हमने 20 अप्रेल को ही केंद्र सरकार की इस नीति के खिलाफ एक कड़ा संपादकीय लिखा था कि केंद्र सरकार जिस चीज का भुगतान नहीं कर रही है, जिस चीज की सप्लाई को सुनिश्चित नहीं कर रही है, जिसका सारा इंतजाम राज्यों को खुद अपने दम पर करना है, और जो बाजार में उपलब्ध भी नहीं है, उसके लिए 60 करोड़ आबादी को कतर में लगाने का केंद्र को क्या हक़ है?  उसके लिए केंद्र सरकार ने जिस तरह से एक साथ 18 से 44 बरस की देश की करीब 60 करोड़ आबादी के लिए टीकाकरण खोल दिया था उससे मचने वाली बदअमनी का कौन जिम्मेदार होगा? हमने कई तरह से इस बात को उठाया था कि केंद्र सरकार को ऐसा करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं था और इस बात को राज्यों के ऊपर ही छोड़ा जाना चाहिए था कि वे धीरे-धीरे किस आयुवर्ग, आयवर्ग, या पेशे के लोगों को प्राथमिकता से टीका लगाने की अपनी क्षमता का इस्तेमाल कर सकते हैं और कितने टीके खरीद सकते हैं, कितने टीके उसे बाजार में मिल सकते हैं। हमने केंद्र सरकार की घोषणा के अगले ही दिन इस बात की आलोचना की थी कि केंद्र सरकार ने राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल देकर उनके किए जाने वाले इंतजाम के लिए अपनी तरफ से शर्तें तय कर दीं, जब देशभर में इतनी बड़ी आबादी वैक्सीन लगवाने के लिए टीकाकरण केंद्रों पर इक_ा हो जाएगी तो उस दिन बदइंतजामी के लिए कौन जिम्मेदार रहेंगे?


आज सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, जो कि हिंदुस्तान में वैक्सीन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है, ने देश में वैक्सीन को लेकर मचे हाहाकार के लिए खुलकर केंद्र सरकार को जिम्मेदार बताते हुए तोहमत का घड़ा मोदी सरकार के सिर पर फोड़ा है। और इस बात को समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस का जानकार होने की जरूरत नहीं थी हमारे जैसी मामूली समझ रखने वाले लोग भी इस बात को समझ सकते थे कि 18 से 44 बरस की सारी आबादी को एक साथ टीके के लिए कतार में लगा देने के क्या खतरे हो सकते हैं? और यह बात तो हिंदुस्तान के संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संबंधों में बहुत साफ है कि राज्यों के हिस्से के फैसले केंद्र सरकार को नहीं लेना चाहिए। कोरोना बीमारी के संक्रमण को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने महामारी एक्ट के तहत राज्यों के ऊपर अपने तमाम फैसले लादे और राज्यों ने बिना किसी विवाद के उन फैसलों को मान भी लिया। लेकिन अब जब टीकाकरण का काम इस महामारी एक्ट से परे, राज्यों को अपने बूते, अपने दम पर, अपने खर्चे से पूरा करना है, तो ऐसी कोई वजह नहीं थी कि मोदी सरकार राज्यों के ऊपर एक बदइंतजामी लादकर उनकी दिक्कत और बदनामी का सामान खड़ा करती। यह मामला कुछ उसी किस्म का था कि राज्यों के घर बारात लगनी थी और राज्यों के इंतजाम के बारे में किसी तरह की जानकारी के बिना, केंद्र सरकार ने अपनी पसंद के 60 करोड़ मेहमानों को न्योता बांट दिया। यही वजह थी कि जब देश में आज कहीं वैक्सीन नहीं बची है, लोगों की नाराजगी अपनी राज्य सरकारों पर बुरी तरह से उतर रही है, एक के बाद एक राज्य सरकारें केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही हैं, तब सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार को लेकर ये लतीफे बन रहे हैं कि अगर मोदी सरकार को भंडारा लगाने का इतना ही शौक था तो पहले रसोई की रसद को तो देख लेते और रसोइए को देख लेते जो कि लंदन जाकर बैठा है।

आज सिरम इंस्टीट्यूट ने जो बात कही है, वह बात उसके कहे बिना भी हमारे जैसे लोगों को पहले से समझ में आ रही थी, और इस देश में एक कारोबारी पर टीके सप्लाई के लिए दबाव इतना बढ़ते चले गया कि उसने फिलहाल हिंदुस्तान छोडक़र लंदन में जाकर रहने का फैसला लिया है। सिरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के मुखिया अदर पूनावाला ने सार्वजनिक रूप से यह कहा है कि उन पर इतने ताकतवर लोगों के इतने दबाव थे और उनकी जिंदगी को खतरा सरीखा था इसलिए वे देश छोडक़र बाहर आ गए। परिवार सहित कोई कारोबारी देश छोडक़र जा रहा है और उस देश में वैक्सीन बनाने का नया कारखाना शुरू करने की तैयारी कर रहा है, उसकी मुनादी कर रहा है, तो इस बारे में भारत सरकार को यह सोचना चाहिए कि उसने कौन-कौन से गलत काम किए जिसकी वजह से यह नौबत आई। लोगों को अच्छी तरह याद होगा कि जब तक भारत सरकार ने राज्यों को वैक्सीन भेजने की जिम्मेदारी खुद अपने हाथ में रखी थी तब तक कोई बदअमनी नहीं फैली थी और राज्यों ने केंद्र से कोई नाजायज मांग भी नहीं की थी। जिस दिन केंद्र सरकार ने इस सप्लाई से अपना हाथ खींचा और देश के 60 करोड़ लोगों का बोझ रातों-रात  राज्यों पर डाल दिया, और इसके साथ है ही वैक्सीन खरीदने, उसका भुगतान करने, मोलभाव करने जैसी तमाम जिम्मेदारियों के काम राज्य सरकारों पर डाल दिए, उस दिन यह समझ पड़ गया था कि केंद्र सरकार ने एक बहुत गलत काम किया है। कल की खबरें बताती हैं कि भारत के जिन राज्यों ने वैक्सीन खरीदने के लिए ग्लोबल टेंडर किये हैं उन्हें मनमाने रेट आ रहे हैं, जो कि वैक्सीन के हिंदुस्तानी बाजार भाव से कई गुना ज्यादा हैं। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री मनीष सिसोदिया ने मोदी सरकार के बारे में कहा कि उसे देश के लोगों से माफी मांगनी चाहिए कि उसने हिंदुस्तान की राज्य सरकारों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक दूसरे के खिलाफ बोली लगाते खड़ा कर दिया है। 

 जब एक अकेली भारत सरकार दो कंपनियों से मोलभाव करके, आज के बाजार भाव से काफी कम रेट पर वैक्सीन पा रही थी, और राज्य केंद्र सरकार से उसे पाकर अपने लोगों को लगा रहे थे, उस अच्छे-भले चलते हुए इंतजाम से अपना हाथ खींचने के लिए मोदी सरकार ने यह बहुत ही नाजायज काम किया था कि पल भर में उसने जिम्मा तो राज्यों के सिर पर डाल दिया और उसके बारीक फैसले खुद लेकर देश के लोगों के सामने घोषित कर दिए. इस एक अकेले फैसले का नुकसान हिंदुस्तान की जनता कब तक झेलेगी इसका कोई ठिकाना नहीं है, और राज्य मोदी सरकार के इस फैसले का कितना बड़ा दाम चुकाएंगे, इसका भी कोई ठिकाना नहीं है। जिस दिन हिंदुस्तान के किसी भी मुख्यमंत्री ने मोदी सरकार के 18 वर्ष से ऊपर के लोगों को टीकाकरण की एक साथ की गई घोषणा का विरोध नहीं किया था, उस दिन भी हमने इस बात को जोर से लिखा था कि यह फैसला गलत है। और अब उस दिन से लेकर आज तक राज्यों के जिम्मे डाले गए टीकाकरण की जितनी जानकारी सामने आ रही हैं, वे सब बता रही हैं कि इस फैसले ने महामारी से मौतों के बीच देश में टीकाकरण में तबाही खड़ी कर दी है। 

19 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बैठक ली और उस बैठक के तुरंत बाद 18 वर्ष से ऊपर के तमाम लोगों के लिए 1 मई से टीकाकरण शुरू करने की घोषणा कर दी गई। अब इस दिलचस्प बात को समझने की जरूरत है कि उस वक्त देशभर में कोरोना मोर्चे पर केंद्र सरकार की नाकामयाबी को लेकर खबरें आना शुरू हो गई थी। दूसरी तरफ बंगाल में इस तारीख के बाद तीन अलग-अलग दिनों के मतदान बाकी थे, 22 अप्रैल 26 अप्रैल और 29 अप्रैल को, 38 फीसदी सीटों पर मतदान होने थे। और मतदान की 18 बरस की उम्र से जोडक़र अगर इसे देखा जाए तो ऐसा लगता है कि नौजवान मतदाताओं के एक बड़े तबके को प्रभावित करने के लिए यह फैसला आनन-फानन घोषित किया गया। इसे आनन-फानन कहना इसलिए ठीक है कि भारत में टीकाकरण पर केंद्र सरकार की बनाई गई सर्वोच्च कमिटी, नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप के अध्यक्ष एन के अरोरा ने अभी इकनॉमिक टाईम्स को यह कहा कि उनके ग्रुप ने ऐसी कोई सिफारिश नहीं की थी, और उनकी सिफारिशें केवल 45 वर्ष से ऊपर के लोगों के टीकाकरण की थी। उनका कहना है कि कोरोना की वजह से 45+ उम्र के लोगों को अस्पताल में अधिक भर्ती करना पड़ रहा था और इसी उम्र में सबसे अधिक मौतें भी हो रही थी। उन्होंने कहा कि 45 से नीचे के लोग प्राथमिकता सूची में आते ही नहीं थे। उन्होंने यह भी कहा कि देश में अभी भी टीकाकरण की प्राथमिकता 45 वर्ष से ऊपर के लोग होना चाहिए और उनके ग्रुप ने यही सलाह भी दी थी। इस ग्रुप के करीबी सूत्रों का यह कहना है कि 18 से 44 बरस के आयु वर्ग के लिए टीके खोल देने का फैसला किसी तकनीकी राय पर आधारित नहीं था, बल्कि राजनीतिक था. अब यह समझने की जरूरत है कि जिस 19 अप्रैल के सामने पश्चिम बंगाल के तीन अलग-अलग मतदान दिन खड़े हुए थे उस दिन यह फैसला क्यों घोषित किया गया। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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