संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : राज्यों को बजट का एक चौथाई अप्रत्याशित मद में रखना चाहिए
27-May-2021 5:42 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : राज्यों को बजट का एक चौथाई अप्रत्याशित मद में रखना चाहिए

अभी देश के कुछ राज्य चक्रवाती तूफान का सामना कर ही रहे हैं, और जिस वक्त हम यह लिख रहे हैं, उस वक्त भी बंगाल, उड़ीसा जैसी जगहों पर लोगों को बचाने का काम चल रहा है। लेकिन पिछले 2 बरस से तूफानों का सामना करने वाले बंगाल की त्रासदी यह भी है कि उसके इन 2 वर्षों के बजट का 25 फीसदी हिस्सा चक्रवाती तूफानों से हुए नुकसान में निकल गया। ऐसा भी नहीं कि इनका अंदाज लगाकर कोई राज्य इनके लिए पर्याप्त इंतजाम बजट में कर सकता है. बंगाल ने प्राकृतिक विपदाओं के लिए 12 सौ करोड़ से अधिक बजट में रखा भी था, लेकिन 2 वर्षों में इन तूफानों से बंगाल में 58 हजार करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है जो कि बजट प्रावधान के करीब 50 गुना है। अब सवाल यह उठता है कि देश का कौन सा राज्य ऐसा है जो अपने एक चौथाई बजट को ऐसे तूफानों के लिए या ऐसी प्राकृतिक विपदाओं के लिए रख सके? और ऐसे ही मौकों पर यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी आती है कि वह प्राकृतिक विपदा से प्रभावित राज्यों को उबरने में मदद करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तूफान प्रभावित गुजरात के हवाई दौरे पर गए भी थे और उन्होंने गुजरात के लिए 1000 करोड़ रुपए मंजूर भी किए थे। इसी वक्त देश के कुछ और प्रदेश भी तूफानों का सामना कर रहे हैं, उसका नुकसान झेल रहे हैं और यह नुकसान इतना बड़ा है कि उसमें अगर केंद्र सरकार से गुजरात की तरह हजार करोड़ रुपए की कोई मदद मिलती भी है, तो भी वह मदद बिल्कुल ही नाकाफी रहेगी। 

ना सिर्फ बंगाल और उड़ीसा, बल्कि कुछ और राज्य इस तूफान से प्रभावित हैं, और हर बरस कुछ राज्य बाढ़ से भी प्रभावित होते हैं। उनका नुकसान छोटा नहीं होता है। ऐसे में देश में केंद्र सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है क्योंकि अकाल, बाढ़, भूकंप, या तूफान, यह सब राष्ट्रीय स्तर की प्राकृतिक आपदाएं हैं, जिन पर किसी राज्य सरकार का कोई बस नहीं चलता और इनसे अगर बड़ा नुकसान होता है, तो किसी राज्य सरकार के हाथ में इतनी ताकत भी नहीं रहती कि वह अपने लोगों की भरपाई कर सकें। ऐसे में केंद्र सरकार को ही अपने बड़े संसाधनों में से ऐसे राज्य सरकारों को नुकसान से उबरने की मदद करनी चाहिए और भारत में या लंबी परंपरा रही भी है। अब आज केंद्र सरकार कोरोना के वैक्सीन को लेकर राज्य सरकारों के साथ जिस तरह का बर्ताव कर रही है उसे देखते हुए प्राकृतिक विपदा में उससे बड़ी मदद की उम्मीद करना पता नहीं सही होगा या नहीं। यह भी जरूरी नहीं है कि आने वाले वर्षों में मोदी सरकार या कोई और केंद्र सरकार राज्यों की मुसीबत के वक्त उनके साथ खड़े रहे। इसलिए जब तक भारत के संघीय ढांचे में केंद्र के ऊपर अधिक निर्भर रहने की गारंटी ना लगे, राज्यों को अपने साधनों को बचा कर रखना चाहिए। ना अकाल पर किसी का बस रहेगा, ना जरूरत से अधिक बारिश में फसल के डूब जाने पर, और ना ही बाढ़ या तूफान पर।

हम राज्यों को पहले भी यह सुझाव देते आये हैं कि उन्हें अपने खर्चे घटाने चाहिए और अधिक किफायत बरतनी चाहिए। अब पश्चिम बंगाल की है ताजा मिसाल सामने हैं कि किस तरह 2 बरस के बजट का एक चौथाई हिस्सा केवल तूफान के नुकसान में निकल गया। बाकी राज्यों को भी यह सोचना चाहिए कि कोई ऐसी प्राकृतिक विपदा आए तो क्या होगा? और प्राकृतिक विपदा की ही बात नहीं है, सेहत की जो मुसीबत आज आई हुई है और कोरोना ने जिस तरह राज्यों की कमर तोड़ी है, तो अभी तो राज्य सरकारें सिर्फ मौतों को रोकने में लगी हुई हैं, लाशों को जलाने के इंतजाम में लगी हुई हैं,  वैक्सीन के इंतजाम में लगी हुई है। उनके पास अभी अपने राज्य के बजट में क्या बचा है, क्या डूबा है, यह देखने का समय भी नहीं है। लेकिन बंद कमरों में बैठकर जो फाइनेंस विभाग काम करते हैं, उनकी रातों की नींद हराम हुई होगी कि जब लॉकडाउन से कारोबार बंद है टेक्स आ नहीं रहा है और उसी वक्त इलाज, बचाव और दीगर चीजों पर जितना खर्च हो रहा है, वह आएगा कहां से? 

इसलिए लोगों को सबक लेना चाहिए कि राज्य सरकारों के पास जो बजट है उसमें अप्रत्याशित खर्चों के लिए इंतजाम बढ़ाएं। आज कोरोना वायरस है, कल हो सकता है कोई कंप्यूटर वायरस आए, और फिर किसी और किस्म की संक्रामक बीमारी फैले, या फसलों में कोई बीमारी लग जाए, या सूखा पड़ जाए। बहुत किस्म से मुसीबत आ सकती हैं। बंगाल में तो पहले चुनाव की मुसीबत आई, उसके बाद कोरोनावायरस, और उस बीच ही आज तूफान की यह मुसीबत आई है। तमाम राज्य सरकारों को अपने बलबूते मुसीबतों को झेलने की तैयारी के हिसाब से अगला बजट बनाना चाहिए और उसमें शायद एक चौथाई हिस्सा अप्रत्याशित मद में रखना समझदारी होगी।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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