संपादकीय
केंद्र सरकार की वैक्सीन पॉलिसी पर चल रही सुनवाई के दौरान आज सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के लिए असुविधाजनक कई सवाल खड़े किए और सरकार से पूछा कि अलग-अलग राज्यों को विदेशी वैक्सीन खरीदने के लिए अलग-अलग ग्लोबल टेंडर निकालने पड़ रहे हैं, क्या यह केंद्र सरकार की नीति है? और सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी पूछा कि जब केंद्र सरकार के पास मौजूदा कानून के तहत देश के भीतर बनने वाली वैक्सीन के रेट तय करने के लिए व्यापक शक्तियां हैं, तो अलग-अलग कीमत तय करने का काम वैक्सीन निर्माताओं पर क्यों छोड़ दिया गया? सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल इसलिए भी पूछा कि केंद्र सरकार ने 45 वर्ष से अधिक के लोगों के लिए वैक्सीन मुफ्त देने का कार्यक्रम चलाया हुआ है, और उससे नीचे उम्र के लोगों से इसकी कीमत वसूली जा रही है, यह कीमत या तो राज्य सरकार दे रही हैं, या निजी अस्पतालों में लोग खुद ही दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि यदि केंद्र सरकार 45 वर्ष से अधिक के लोगों के लिए टीके खरीद रही है तो 45 वर्ष से कम के लोगों के लिए टीके क्यों नहीं खरीद रही क्यों राज्य सरकार के ऊपर यह जिम्मेदारी डाली जा रही है?
यह पूरा सिलसिला बड़ा दिलचस्प है इसलिए है कि हमारे पाठकों को याद होगा कि मोदी सरकार ने जब से 45 बरस से नीचे के लोगों के लिए वैक्सीन की अपनी नीति घोषित की है, तबसे हम लगातार इस पर सवाल उठाते आ रहे हैं। लेकिन हमारे सवाल सुप्रीम कोर्ट की अभी सुनवाई से आगे बढक़र भी रहे हैं, जिसमें उम्र की सीमा तय करना, राज्यों के हिस्से के फैसले खुद लेना, और राज्यों पर वैक्सीन खरीदने का जिम्मा छोडऩा, जैसे बहुत से पहलू हैं। सुप्रीम कोर्ट की आज की सुनवाई वैक्सीन के रेट को लेकर थी और केंद्र सरकार की जिम्मेदारियों को लेकर थी कि वैक्सीन के ग्लोबल टेंडर की जरूरत अलग-अलग राज्यों को क्यों पड़ रही है, और केंद्र सरकार ने यह काम क्यों नहीं किया ? देश की वैक्सीन कंपनियों के उत्पादन का दाम केंद्र सरकार ने क्यों तय नहीं किया जबकि उसके पास ऐसा करने के लिए पर्याप्त अधिकार हैं? सुप्रीम कोर्ट ने एक बुनियादी सवाल भी उठाया है जिसे हमने इसके पहले नहीं लिखा था कि जब वह 45 वर्ष से अधिक के लोगों को वैक्सीन मुफ्त दे रही है, तो 45 वर्ष से नीचे के लोगों के लिए वैक्सीन का खर्चा लोगों को या राज्य सरकारों को क्यों उठाना पड़ रहा है?
सुप्रीम कोर्ट के सवाल बहुत पीछे हैं और हमारा मानना यह है कि ये सारे सवाल जायज हैं. अब देखना यह है कि केंद्र सरकार इसका क्या जवाब दे सकती है क्योंकि केंद्र राज्य संबंधों में केंद्र सरकार को अगर कुछ फैसले लेने का अधिकार भी है, और मनमाने फैसले लेने का भी अधिकार है, तो भी उन मनमाने फैसलों को अदालत में कोई चुनौती मिलने पर अदालत के सामने सरकार को उन्हें न्यायोचित तो ठहराना ही होगा और आज सरकारी वकील से सुप्रीम कोर्ट के जजों ने जो सवाल किए हैं, वे जनहित के सवाल हैं और वे राज्यों के अधिकार के सवाल हैं। दिक्कत एक छोटी सी यह है कि राज्यों ने अपने अधिकारों को लेकर केंद्र सरकार से पर्याप्त सवाल नहीं किए उर्मिला इसके पीछे की वजह शायद यह भी हो सकती है कि कोई राज्य सरकार कोरोना के खतरे के बीच, गिरती हुई लाशों के बीच, ऐसी दिखना नहीं चाहती है कि वह केंद्र सरकार के लिए कोई असुविधा खड़ी कर रही है. शायद इसलिए देश के तकरीबन तमाम राज्यों ने केंद्र सरकार के मनमानी हुक्म और फैसले ज्यों के त्यों मान लिए और वैक्सीन को लेकर तमाम किस्म की दिक्कतें खुद झेली हैं और झेलते चले जा रहे हैं।
केंद्र सरकार की टीकाकरण नीति और राज्यों के ऊपर उसके मनमाने फैसलों को थोपने का सिलसिला शुरू से ही बड़ा नाजायज चले आ रहा था। हमने इसी जगह यह लिखा था कि जब केंद्र सरकार अपने और राज्य सरकारों की खरीदी के लिए देश के छोटे-छोटे से सामान, स्कूटर, मोटरसाइकिल, फ्रिज और पंखे-एसी तक के रेट पूरे देश की कंपनियों से तय करके उन्हें घोषित करती है, और राज्य सरकारें उन्हें दोबारा टेंडर बुलाए बिना उस रेट पर खरीद सकती हैं, तो वैक्सीन के लिए ऐसा क्यों नहीं किया गया जो कि एक जीवनरक्षक सामान भी है, और जिसके लिए पूरे देश की जनता जनता बेचैन भी है। यह सवाल पूरी तरह अनसुना रहा क्योंकि केंद्र सरकार ने देश में किसी के सवालों का जवाब देना अपना जिम्मा मानना छोड़ ही दिया है। हमने यह सवाल भी उठाया था कि केंद्र सरकार ने खुद तो कम रेट पर वैक्सीन खरीदी और इसके बाद वैक्सीन कंपनियों को यह खुली छूट दे दी कि वे राज्य सरकारों से मोलभाव करें और राज्य सरकारें अपने हिसाब से उन्हें लें। यह फैसला केंद्र सरकार ने उस दिन किया जिस दिन इस देश में कुल 2 वैक्सीन कंपनियां काम कर रही थीं, बाहर से कोई वैक्सीन आयी भी नहीं थी और राज्य सरकारों की यह मजबूरी थी कि इन दो कंपनियों के एकाधिकारवादी इंतजाम के बीच इन्हीं से मोलभाव करें और खरीदें।
लोगों को याद होगा कि दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री मनीष सिसोदिया ने कैमरे के सामने दिए एक बयान में इस बात को लेकर केंद्र सरकार को घेरा था कि उसने दुनिया की मंडी में भारत के राज्यों को धकेल दिया है कि वे वहां एक दूसरे से मुकाबला करके अधिक बोली लगाकर वैक्सीन हासिल करें, और अपने प्रदेश के लोगों को लगाएं। मनीष सिसोदिया ने केंद्र सरकार से यह मांग की थी कि वह देश की जनता से इस नौबत के लिए माफी मांगे क्योंकि आज भारत की राज्य सरकारें दुनिया के बाजार में खड़े होकर एक दूसरे से अधिक बोली लगाकर पहले वैक्सीन पाने की कोशिश कर रही है जबकि यह काम केंद्र सरकार को करना चाहिए था। और दुनिया की कंपनियों ने ही यह साफ कर दिया कि वह हिंदुस्तान के किसी राज्य के साथ कोई सौदा नहीं करेंगी और वह सिर्फ केंद्र सरकार के साथ सौदा करेंगी क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सौदों में कई किस्म की राष्ट्रीय गारंटी की जरूरत पड़ती है जिसे देने का अधिकार किसी राज्य सरकार का नहीं है और सिर्फ केंद्र सरकार ही ऐसा कर सकती है। कुल मिलाकर यह एक बहुत ही बुरी नौबत देश के सामने है जब लोग वैक्सीन लगवाने के लिए तरस रहे हैं, जब देश के बड़े-बड़े होटल वैक्सीन पैकेज के इश्तहार छपवा रहे हैं कि कितने हजार रुपए देकर उनके होटल में आकर रुकें, तीन वक्त खाना खाएं, और वैक्सीन लगवाएं। ऐसे में देश के गरीब लोग कहां जाएं, जिनके लिए न केंद्र सरकार वैक्सीन भेज रही है ना उनकी राज्य सरकारों को बाजार में वैक्सीन मिल रही है ?उनकी राज्य सरकारें दुनिया से कहीं से आयात नहीं कर पा रही हैं और लोगों के सिर पर खतरा बना हुआ है.
भारत सरकार की वैक्सीन नीति से गरीब और अमीर के बीच इस जीवनरक्षक वैक्सीन को लेकर इतनी बड़ी खाई खोद दी गई है कि पैसे वाले तो बड़े अस्पतालों में जाकर, होटलों में जाकर, यह वैक्सीन लगवा सकते हैं, लेकिन गरीबों में जो तबका बहुत अधिक खतरा झेल रहा है, वह तबका भी इस वैक्सीन को पहले नहीं पा सकता, क्योंकि ना केंद्र भेज रही है, न उनका राज्य खरीद पा रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के बारे में इस किस्म का जुबानी कड़ा रुख पिछले वर्षों में कई बार, कई मामलों में दिखाया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला जब आता है तब लोगों को लगता है कि वह रुख और अदालत की जुबानी टिप्पणी उनमें से नदारद रहती हैं। ऐसे में लोग इंतजार करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट के जज आज इतनी कड़ी जुबान बोल रहे हैं, आज जितने इंसाफ की बात कर रहे हैं, जब केंद्र सरकार की टीकाकरण नीति और कार्यक्रम पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा, तो उस फैसले में भी अदालत का यह रुख झलकेगा। अदालत का फैसला महज फैसला नहीं रहना चाहिए वह इंसाफ भी होना चाहिए और अगर यह इंसाफ होगा तो पिछले महीनों में हमारी लिखी हुई तमाम बातें सही साबित होंगी और केंद्र और राज्य सरकार के संबंधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बहुत सारी नई परिभाषाएं गढ़ सकता है जो कि मौजूदा केंद्र सरकार के लिए दिक्कत की हो सकती हैं। अभी अदालत की सुनवाई की जितनी खबरें हम देख रहे हैं, उनमें राज्य सरकारों की कोई दखल नहीं दिख रही है, जबकि यह राज्यों को सीधे प्रभावित करने वाले मुद्दे पर चल रही सुनवाई है. आगे देखते हैं कि राज्य अपने अधिकारों के लिए सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में दखल देते हैं या नहीं।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)