विचार / लेख
-कनुप्रिया
आप और हम देश के क़ब्रिस्तान और श्मशान बन जाने को लेकर रोते रहेंगे, चिताओं की पर्देदारी होती रहेगी, मनुष्य पहले बॉडी, फिर खबर और फिर आँकड़ों में बदलते रहेंगे, मगर राजनीति की ज़मीन तो मंदिर और मस्जिद पर ही तैयार होगी और उस ज़मीन की खुदाई के आदेश जारी हो गए हैं। 2024 के चुनाव में देश 2020-21की त्रासदी पर रोना भूलकर ज्ञानवापी मस्जि़द और काशी विश्वनाथ पर वोट कर रहा होगा।
इतिहास वर्तमान तक की यात्रा को दजऱ् करता है तो समझ बढ़ाने के लिए, उसे यथासंभव दृष्टा की तरह देखने की जरूरत रहती है, मगर पिछले कई सालों से हम सुबह का इंतज़ार करते हुए भविष्य के सूरज की ओर से पीठ किये हुए, पश्चिम की ओर मुख किये सौइयो सालो पहले बीती रातों का हिसाब किताब कर रहे है। जब हम कृतघ्न और अहसान फऱामोश में से क्या बोला जाए, शुक्रिया कहें कि धन्यवाद, मुबारक कहें कि शुभकामना इसी में व्यस्त हैं, वर्तमान विश्व बदल चुका है।
टेक्नोलॉजी मनुष्य का विकल्प बन रही है, कॉरपोरेट विश्व संसाधनो पर कब्ज़ा कर खेत मे क्या बोया जाएगा और हम अपने घरों में क्या खाएँगे पियेंगे, जीने की शर्तें तक तय कर रहा है। प्रकृति मानव हमले सहते सहते अब ह्म्द्गड्डष्ह्लद्बशठ्ठ द्वशस्रद्ग में आ चुकी है, और इस सदी के बाद तक धरती का तापमान इतना होने वाला है कि आधी जनसंख्या ख़त्म होने के कगार पर है। कोरोना ने भी बता दिया है कि वो भेदभाव नहीं करता, उसने जीवन के लिए जरूरी व्यवस्थाओं को बहुत गहरे रेखांकित कर दिया है और भविष्य के लिये बहुत स्पष्ट संदेश दे दिए हैं।
फिर भी अगर हम नहीं जागते, वर्तमान को देखते हुए भविष्य के खतरों को नहीं पहचानते, अपनी मूर्खताओं से सबक़ नही लेते, अपने असल भयों की पहचान नही करते तो हमे नष्ट होने से कोई मंदिर मस्जिद बचा नही सकेंगे।
इन मंदिर-मस्जिदों की खुदाई में इतिहास के मंदिर मस्जि़द दफन हैं कि नहीं मगर भविष्य के क़ब्रिस्तान और श्मशान ज़रूर छिपे हैं।