संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नाश्ते के बिल को लेकर पीएम की पुलिस जाँच वाले देश भी धरती पर
03-Jun-2021 5:40 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नाश्ते के बिल को लेकर पीएम की पुलिस जाँच वाले देश भी धरती पर

Photo Sanna Marin Twitter

फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन के खिलाफ पुलिस ने जांच शुरू की है कि क्या उन्होंने अपने सरकारी निवास पर बाहर की एक कैटरिंग कंपनी द्वारा परोसे गए नाश्ते के हर महीने का भुगतान पाने के लिए कहीं नियमों को तोड़ा है? यह डेढ़ बरस के नाश्ते के बिल का मामला है, जो कि कुल मिलाकर प्रधानमंत्री के एक महीने के वेतन से काम का है।  और प्रधानमंत्री ने अपनी ओर से यह घोषणा भी कर दी है कि उनके पहले के प्रधानमंत्रियों द्वारा लिया जाता रहा यह भत्ता उन्होंने भी अपने अफसरों की राय पर लिया था, लेकिन इस भत्ते को तय करने में उनका कोई हाथ नहीं था, और ना उन्होंने इसे मांगा था, फिर भी उन्होंने अपनी तरफ से यह घोषणा कर दी है कि प्रधानमंत्री के जिम्मे और भी बहुत से काम रहते हैं, इसलिए वे इस विवाद की रकम का भुगतान अपने निजी खाते से कर रही हैं, और जांच के बाद अगर यह पता लगता है कि उन्हें पात्रता थी भी, तो भी वे इसका इस्तेमाल नहीं करेंगी। फिनलैंड एक ऐसा देश माना जाता है यहां पर सत्ता और जनता के बीच फासला दुनिया में सबसे कम है, और वहां पर जनता अपने नेताओं के इस किस्म के किसी भी गैरबराबरी के हक़ के बेजा इस्तेमाल के सख्त खिलाफ रहती है। फिनलैंड के जीवन स्तर के मुताबिक यह रकम बहुत बड़ी नहीं है, लेकिन एक अखबार की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने यह जांच शुरू कर दी है और प्रधानमंत्री कार्यालय के अफसरों से पूछताछ चल रही है कि यह खर्च किसने मंजूर किया था।

हिंदुस्तान में लोग इस बात को लेकर हैरान हो सकते हैं कि क्या किसी देश की प्रधानमंत्री के नाश्ते के ऐसे खर्च को लेकर इस किस्म की जांच की जा सकती है, क्योंकि दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करने वाले देश का हाल यह है कि सरकारी रेस्ट हाउस और सर्किट हाउस या दूसरे किस्म के विभागीय विश्राम गृह बनते ही इसीलिए हैं कि वहां पर नेता और अफसर जाकर मुफ्तखोरी कर सकें, और उनके मुफ्त खाने-पीने का इंतजाम विभागीय अधिकारी करें। जब-जब मंत्रियों या उनसे बड़े लोगों के दौरे किसी शहर में होते हैं, तो विश्राम गृह या सर्किट हाउस में चरने वाले लोगों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है, और उनके पास आने वाले उनके परिचित, रिश्तेदार, मीडिया के लोग, पार्टी के लोग वहां मुफ्त में खाते-पीते हैं और शायद ही किसी मामले में इसका कोई बिल किसी नेता या अफसर को दिया जाता है। यह मान लिया जाता है कि यह शिष्टाचार कुछ कुर्सियों पर तैनात अफसरों का अघोषित जिम्मा है। आमतौर पर सर्किट हाउस में मंत्रियों के खर्चे का सरकारी भुगतान के लिए छोटा सा बिल बनता है, या नहीं भी बनता है, लेकिन उससे 25-50 गुना अधिक खाने वाले लोगों का कोई भुगतान सरकार की तरफ से नहीं किया जाता, न मंत्री की तरफ से किया जाता, और भुगतान का जिम्मा तहसीलदार का मान लिया जाता है। इसी तरह वन विभाग के खासे अतिथि सत्कार दिखाने वाले रेस्ट हाउस में स्थानीय रेंज ऑफिसर के मत्थे खर्च पड़ता है, और इसके एवज में उसे यह रियायत मिलती है कि उसे अपनी काली कमाई का कुछ हिस्सा ऊपर तक नहीं पहुंचाना पड़ता और उसे मेहमाननवाजी के खाते में मान लिया जाता है। बहुत से मंत्री और अफसर तो इस बात के लिए जाने जाते हैं कि उनके पहुंचने पर खाने की मेज पर और कमरे में बड़े-बड़े मर्तबान मेवा भरकर रखे जाते हैं और वे अपने जाने के पहले अपनी गाड़ी में साथ लेकर चल रहे बड़े पीपों में उनको खाली करवाते चलते हैं। 

हिंदुस्तान में कभी इस बात की कल्पना नहीं की जा सकती कि किसी मंत्री, या मुख्यमंत्री, या प्रधानमंत्री के सरकारी निवास पर होने वाले सरकारी खर्च का कोई ऐसा बारीक हिसाब रखा जाता होगा। लेकिन फिर भी कम से कम दुनिया में कहीं ईमानदारी जिंदा है इसका एहसास करने के लिए किस्से कहानी की तरह ऐसे कुछ देशों के असल हाल को जान लेना भी अच्छा है ताकि अपने छोटे बच्चों को यह बतलाया जा सके कि दुनिया भी में ऐसे भी देश हैं। आज विश्व साइकिल दिवस भी है और यूरोप के कुछ देश ऐसे भी हैं जहां के प्रधानमंत्री साइकिलों पर चलते हैं। अधिक दूर क्यों जाएं भारत के बगल में भूटान के प्रधानमंत्री लगातार साइकिल पर चलते थे और राह चलते रुक कर कभी मजदूरों के साथ मिट्टी खोदने लगते थे, तो कभी खेतों में काम करने लगते थे। उनका फेसबुक पेज उनकी साइकिल सवारी से यूरोप के कुछ देशों के प्रधानमंत्रियों की तस्वीरों की तरह भरा रहता था। 

हिंदुस्तान जैसे देश में जहां जरूरत ना रहने पर भी गाडिय़ों का बड़ा काफिला नेताओं के साथ चलता है, वहां पर किसी सादगी की कल्पना असंभव सी है। लेकिन जो सच में ही विकसित देश हैं, और जहां पर लोकतंत्र परिपक्व है, ऐसे बहुत से देशों में इस तरह की सादगी लगातार दिखती हैं, जो किसी अपवाद के रूप में नहीं है, जो सचमुच ही वहां पर एक परंपरा है। अब क्या आज हिंदुस्तान में कोई ऐसी कल्पना कर सकते हैं कि यहां प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री या किसी मंत्री के नाश्ते के बिल के भुगतान को लेकर पुलिस की जांच शुरू हो सके? ऐसे पदों पर बैठे हुए लोगों के खाने-पीने के बिल का भुगतान करने की अगर कहीं नौबत आती भी होगी तो आसपास खड़े हुए पुलिस अफसर खुशी-खुशी उस भुगतान के लिए तैयार रहते होंगे। इसलिए फिलहाल फिनलैंड की इस सच्ची घटना को एक कहानी की तरह अपने बच्चों को जरूर सुनाएं कि दुनिया में ऐसे भी देश हैं जहां प्रधानमंत्री और आम लोगों के बीच अधिकारों को लेकर किसी तरह का कोई फासला नहीं है, और मामूली सी चूक होने पर भी उन्हें अपनी जेब से ना केवल भरपाई करनी पड़ती है, बल्कि उसकी पुलिस जांच भी चल रही है।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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