सामान्य ज्ञान

हबीब तनवीर
08-Jun-2021 12:11 PM
हबीब तनवीर

मशहूर भारतीय नाटककार, निर्देशक, कवि और अदाकार हबीब तनवीर 8 जून के दिन दुनिया के रंगमंच से विदा हुए थे। तनवीर के मशहूर नाटकों में आगरा बाजार और चरणदास चोर शामिल हैं। एक सितंबर 1923 को हबीब तनवीर का जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुआ था।
तनवीर हिन्दुस्तानी रंगमंच के नामचीन और बेहद महत्वपूर्ण स्तंभ थे। उनके पिता हफीज अहमद खान पेशावर के रहने वाले थे। स्कूली शिक्षा रायपुर से करने के बाद उन्होंने नागपुर से कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद एमए करने वे अलीगढ़ गए।  तनवीर को कविताएं लिखने का शौक था  और उसी दौरान उपनाम तनवीर उनके साथ जुड़ा।
तनवीर ने पत्रकारिता से अपने कॅरिअर की शुरुआत की। बाद में उन्होंने रंगमंच की दुनिया में कदम रखा। 1945 में वे मुंबई चले गए और ऑल इंडिया रेडियो में काम करने लगे। मुंबई में रहने के दौरान उन्होंने फिल्मों के लिए गीत भी लिखे। इसके अलावा उन्हें कुछ फिल्मों में अभिनय का भी मौका मिला। मुंबई में ही तनवीर प्रगतिशील लेखक संघ और बाद में इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन यानि इप्टा से भी जुड़े।
1954 में हबीब तनवीर दिल्ली आ गए और हिन्दुस्तान थिएटर से जुड़े और कई नाटक लिखे। इसी साल उन्होंने अपने मशहूर नाटक आगरा बाजार का मंचन किया। समय बीतने के साथ हबीब तनवीर भारतीय रंगमंच के अहम किरदार बनते गए। कला के क्षेत्र में हबीब तनवीर के योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म भूषण, पद्म श्री और संगीत नाटक अकादमी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
 50 वर्षों की लंबी रंग यात्रा में हबीब तनवीर ने 100 से अधिक नाटकों का मंचन किया। शतरंज के मोहरे, लाला शोहरत राय, मिट्टी की गाड़ी, गांव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद, पोंगा पंडित, द ब्रोकन ब्रिज, जहरीली हवा और राज रक्त उनके मशहूरों नाटकों में शुमार हैं। 8 जून 2009 को भोपाल में लंबी बीमारी के बाद उन्होंने 85 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा।

आयरन पर्वत
आयरन पर्वत, संयुक्त राज्य अमरीका के मिसौरी राज्य के पूर्वी भाग में स्थित सेंट फ्रांको पर्वत के दक्षिणी भाग का एक शिखर है (ऊंचाई 1 हजार 77 फुट)। मिसिसिपी नदी यहां से पूर्व की ओर लगभग 38 मील की दूरी पर है।
 आयरन पर्वत हैमेटाइट नामक लोहे के अयस्क का अनुपम भंडार है। यह कच्चा लोहा संपूर्ण संयुक्त राज्य में अपनी विशुद्धता में सर्वप्रथम है। यहां खुदाई का कार्य सर्वप्रथम 1845 ई. में आरंभ हुआ। उस समय एक पातालतोड़ कुआं (आर्टीजिय़न वेल) 152 फुट की गहराई तक खोदा गया । खुदाई में स्पष्ट हुआ कि यह   संपूर्ण क्षेत्र चुंबकीय कच्चे लोहे का  नहीं बना है।
 

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