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हीलियम थ्री, चांद की सतह पर मिलता है इससे काफी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इसे भविष्य के ईंधन के रूप में देखा जा रहा है। वर्ष 1972 के अमरीकी अपोलो 17 मिशन के जरिए चांद पर चलने वाले एकमात्र भूगर्भशास्त्री डॉक्टर हैरिशन श्मिड का कहना है कि चांद से हीलियम थ्री लाकर ऊर्जा निकाली जा सकती है। ब्रिटेन के कल्हम साइंस सेंटर के डॉक्टर डेविड वार्ड के अनुसार हीलियम थ्री से न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए बड़ी ऊर्जा निकाली जा सकती है। इसके लिए बड़ी मशीनरी जरूरत होती है। इसमें एक समय में एक ग्राम के सांैंवे हिस्से के बराबर ईंधन डाला जा सकता है। इस ईंधन का एक किलो उतनी ऊर्जा देता है, जितना पेट्रोलियम का 10 हजार टन देता है। इससे प्रदूषण भी कम होगा ।
यानी हीलिमय थ्री को ऊर्जा के बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। हीलियम थ्री केवल चांद पर ही मिलता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद पर इतना हीलियम थ्री है कि उससे सैकड़ों वर्षों तक पृथ्वी की ऊर्जा पूरी की जा सकती है। इसके लिए सबसे पहले रॉकेट के माध्यम से चांद पर जाकर हीलियम थ्री धरती पर लाना होगा। हीलियम ्रथ्री को सोने से भी महंगा बताया जा रहा है। इसलिए इसे धरती पर लाना आर्थिक रूप से सही साबित होगा।
जानकार लोगों का कहना है कि भविष्य में इस बात को लेकर देशों में लड़ाई हो सकती है कि चांद का फलां हिस्सा उनका है, फलां नहीं । आज तेल को लेकर विभिन्न देशों में लड़ाई होती रहती है। भविष्य में यही स्थिति हीलिम थ्री को लेकर होने वाली है।
अमरीकी के बाद भारत और चीन ने चांद पर अपने यान भेजने की घोषणा की है। भारत 2012 में चंद्रयान भेजना चाहता है और 2020 के आस-पास चांद पर पहले भारतीय को। हीलियम थ्री के कारण ही आज हर देश चांद पर जाने के लिए उतावला हो रहा है। यह काफी खर्चीली प्रक्रिया होगी, क्योंकि चांद पर एक मिनट रहने का खर्च लगभग पांच करोड़ रुपए है।
राजस्थानी भाषाएं
राजस्थानी भाषाएं भारतीय-आर्य भाषाओं तथा बोलियों का समूह, जो भारत के राजस्थान राज्य में बोली जाती हैं। इसके चार प्रमुख वर्ग हैं: पूर्वोतर मेवाती, दक्षिणी मालवी, पश्चिमी मारवाड़ी, और पूर्वी-मध्य जयपुरी। इसमें से मारवाड़ी भौगोलिक दृष्टिï से सबसे व्यापक है। र
ाजस्थान पूर्व के हिंदी क्षेत्रों तथा दक्षिण-पश्चिम में गुजराती क्षेत्रों के बीच स्थित संक्रमण क्षेत्र है। राजस्थानी भाषाओं को भारत के संविधान में सरकार भाषा के रुप में मान्यता प्राप्त नहीं है। इसके स्थान पर हिंदी का उपयोग सरकारी भाषा के रूप में होता है।