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तू डाल-डाल मैं पात-पात के मुक़ाबले में इस बार पुलिस ने बुरा पछाड़ा मुजरिमों को
13-Jun-2021 2:47 PM
तू डाल-डाल मैं पात-पात के  मुक़ाबले में इस बार पुलिस  ने बुरा पछाड़ा मुजरिमों को

दुनिया के जुर्म और पुलिस के इतिहास की एक सबसे बड़ी घटना अभी पिछले हफ्ते हुई जब अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने कई देशों की जांच एजेंसियों के साथ मिलकर दुनियाभर में फैले हुए संगठित अपराध के गिरोहों के बीच की बातचीत को पकड़ा, और उसके आधार पर करीब 800 बड़े माफिया सरगना को गिरफ्तार किया। दुनिया भर में नशीले सामानों की बहुत बड़ी जब्ती हुई, और एक किस्म से संगठित अपराधों की कुछ वक्त के लिए कमर टूट गई। लोगों का मानना है कि माफिया पर कार्रवाई में यह दुनिया के इतिहास की सबसे बड़ी कार्रवाई है, और इसे बड़े दिलचस्प तरीके से अंजाम दिया गया।

हुआ यूं कि अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने यह तरकीब सोची कि व्हाट्सएप किस्म का एक दूसरा मैसेंजर एप्लीकेशन ऐसा बनाया जाए जिसकी शोहरत मुजरिमों के बीच में सबसे सुरक्षित मैसेंजर के रूप में फैलाई जाए। उसके बाद इसके ब्लैक मार्केट में मौजूद कुछ खास मोबाइल हैंडसेट पर ही चलने की शोहरत भी मुजरिमों के बीच फैलाई जाए। इस सुरक्षित दिखाए जाने वाले मैसेंजर के लिए हर महीने एक फीस भी ली जाए ताकि वह मुफ्त का ना दिखे। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया की एक जेल में बंद एक बड़े माफिया सरगना को उसका भरोसेमंद बनकर एक अफसर ने एक ऐसा हैंडसेट पहुंचाया जिसमें यह मैसेंजर एप्लीकेशन डाला हुआ था। क्योंकि इतने बड़े सरगना ने इस मैसेंजर एप्लीकेशन की साख का दम भरा तो दुनिया भर में दूसरे मुजरिमों के बीच में जल्द ही उस पर भरोसा कायम हो गया, और वे खुलकर इसका इस्तेमाल करने लगे। जुर्म की अपनी तमाम बातें खुलकर करने लगे। इस एप्लीकेशन पर आने-जाने वाले संदेशों को पढऩे का इंतजाम अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई जांच एजेंसियों ने कर रखा था। इस मैसेंजर पर बड़े-बड़े मुजरिम खुलेआम नशे की आवाजाही की चर्चा करते थे, सामानों की फोटो भेजते थे जिनके भीतर ड्रग्स छुपाकर भेजी जा रही हैं, कत्ल की चर्चा करते थे कि किसका खून किया जाने वाला है, और तमाम किस्म के जुर्म की बातें खुलकर करते थे क्योंकि उन्हें यह भरोसा था कि यह मुजरिमों का अपना मैसेंजर है और इसकी कोई भी बात कहीं नहीं जा सकती। खास मोबाइल हैंडसेट और भुगतान वाला मैसेंजर, इन दो बातों से इसकी साख बढ़ती चली गई और जांच एजेंसियों को ऐसा लगने लगा कि दुनिया का हर बड़ा जुर्म उनकी आंखों के सामने उनकी जानकारी में हो रहा है, ऐसे में एक वक्त, एक साथ कई देशों में छापा मारा गया और 800 बड़े मुजरिमों को गिरफ्तार कर लिया गया।

आज इस मुद्दे पर चर्चा इसलिए भी जरूरी है कि आज दुनिया भर में इस बात को लेकर बहस चलती है कि कौन से देश की सरकार किस मैसेंजर सर्विस का गला दबाकर उससे मनचाहे लोगों के मैसेज निकलवाने में लगी हुई है। हिंदुस्तान में भी भारत सरकार का कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के साथ टकराव चल रहा है और व्हाट्सएप के साथ भी। इन सबने दुनिया के लोगों का भरोसा जीता है कि उन पर भेजे गए संदेश पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं, और उन्हें कोई भी सरकार या कोई दूसरी एजेंसी पढ़ नहीं सकती। लेकिन भारत में हाल ही में आईटी कानून में फेरबदल करके यह इंतजाम किया जा रहा है कि ऐसे तमाम सोशल मीडिया और मैसेंजर सर्विसों से सरकार और अधिक जानकारी ले सकें। भारत में जांच एजेंसियों के पास और राज्य सरकारों के पास, कुल करीब 10 एजेंसियों के पास इस बात के अधिकार रहते हैं कि वे लोगों के मोबाइल पर हो रही बातचीत को सुन सकें, फोन पर आने-जाने वाले संदेश पढ़ सकें, ईमेल में झांक कर सकें और यही वजह है कि आज सामान्य टेलीफोन कॉल और एसएमएस को सबसे कम महफूज माना जाता है। 

अब धीरे-धीरे लोगों का व्हाट्सएप पर से भी भरोसा हट गया है और बहुत से लोगों को आईफोन के फेसटाइम फीचर पर ही भरोसा रह गया है। इसकी एक वजह यह भी है कि अमेरिका में एक बड़े आतंकी के गिरफ्तार होने पर उसके आईफोन को एफबीआई भी नहीं खोल पाई, और आईफोन बनाने वाली एप्पल कंपनी ने सरकार की कोई भी मदद करने से इंकार कर दिया। अब दुनियाभर के लोगों को लगता है कि जिस फोन को एफबीआई भी नहीं खोल पाई, और जिसे एफबीआई के लिए भी खोलने से एप्पल ने मना कर दिया, वह एक सबसे सुरक्षित फोन और बातचीत करने की सर्विस है। 

राजनीति और सरकार में, मीडिया और खुफिया एजेंसी, या बड़े कारोबार में, जिन लोगों को गोपनीयता की जरूरत होती है, उनके बीच अलग-अलग समय पर अलग-अलग मैसेंजर पर भरोसा दिखता है। जब लोगों को यह लगने लगा कि हिंदुस्तान की खुफिया एजेंसी व्हाट्सएप को तोडऩे वाले इजराइली सॉफ्टवेयर खरीद चुकी हैं, तब लोगों ने किसी ने सिग्नल, किसी ने रॉकेट, और किसी ने और कोई मैसेंजर इस्तेमाल करना शुरू किया। धीरे-धीरे आज के बाजार में सबसे सुरक्षित फेसटाइम को माना जा रहा है और कोई हैरानी नहीं होगी कि साल दो साल बाद जाकर पता लगे कि अमेरिकी या इजराइली खुफिया एजेंसियां फेसटाइम की तमाम बातचीत को सुन रही थीं, उसके सारे वीडियो कॉल को देख रही थीं, और उस पर आने-जाने वाले संदेश अपने कंप्यूटरों पर पढ़ रही थीं।   

यह पूरा सिलसिला फोन या कंप्यूटर बनाने वाली कंपनियों और उनमें घुसपैठ करने वाले लोगों के बीच चलने वाले एक अंतहीन मुकाबले का है इसके अलावा अब मैसेंजर सर्विसों या ईमेल सर्विस का एक ऐसा नेटवर्क भी है जिस पर अलग-अलग लोगों को अलग-अलग समय में भरोसा रहता है, और खुफिया एजेंसियां या जांच एजेंसियां लगातार इनमें घुसपैठ करने की तरकीब निकालती रहती हैं. मुकाबला अंतहीन है, हमेशा चलते ही रहेगा, और ताकतवर तबकों को किसी न किसी भरोसेमंद मैसेंजर की जरूरत पड़ती रहेगी। किसी ना किसी भरोसेमंद फोन या कंप्यूटर की जरूरत भी लगेगी जिसमें घुसपैठ आसान ना हो, जिसकी जानकारी को कोई ना निकाल सके। दुनिया में ना सिर्फ मुजरिमों बल्कि सरकारों के कामों में भी ऐसी गोपनीयता की जरूरत रहती है कि उपकरणों से लेकर एप्लीकेशन तक को अधिक से अधिक सुरक्षित रखा जाए। ऐसा इसलिए भी है कि हाल के वर्षों में दुनिया के बड़े-बड़े देशों ने अपने नेटवर्क में ऐसी घुसपैठ देखी है जिसमें दुनिया के किसी कोने में बैठा हुआ कोई एक हैकर अमेरिका के एक शहर में पीने का पानी सप्लाई करने वाली कंपनी के कंप्यूटरों में छेडख़ानी करके किसी एक रसायन को इतना अधिक मिलाने की ताकत पा लेता है, जिससे उसे पीने वाले लोग मर जाएं। इसलिए जांच एजेंसियों की ऐसी घुसपैठ भी नाजायज नहीं है क्योंकि अपराधियों की ताकत बढ़ती चल रही है। 

फिलहाल लोगों को यह मानकर चलना चाहिए कि उनकी मैसेंजर सर्विस दुनिया की जांच एजेंसियों और खुफिया एजेंसियों की नजरों से तभी तक दूर है जब तक वे लोग महत्वपूर्ण नहीं हो जाते। जिस दिन उनकी कोई अहमियत हो जाएगी उस दिन उनके फोन, कंप्यूटर और उनके मैसेंजर पर घुसपैठ होने लगेगी, इसलिए अधिक अच्छा यही है कि किसी किस्म के जुर्म में शामिल ही ना हुआ जाए।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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