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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : राम मंदिर के नाम पर क्या इतना बड़ा घोटाला हुआ है?
14-Jun-2021 5:16 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : राम मंदिर के नाम पर क्या इतना बड़ा घोटाला हुआ है?

कार्टूनिस्ट इरफान (फेसबुक से)

अयोध्या में बन रहे राम मंदिर को लेकर एक बड़ा ही खराब विवाद आज सामने आया है जिसे आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने भी उठाया है और उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के एक विधायक ने भी। अगर इनके आरोप सही हैं और इनके पेश किए गए दस्तावेज कोई जालसाजी नहीं हैं, तो यह एक भयानक भ्रष्टाचार का मामला दिख रहा है और चूंकि यह राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट को लेकर है जो कि केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया एक ट्रस्ट है इसलिए यह देश की सर्वोच्च स्तर की जांच के लायक मामला है। 

पहली नजर में जो दस्तावेज इन दोनों नेताओं ने पेश किए हैं उनके मुताबिक, मंदिर से लगी हुई जमीनों को खरीदने के लिए मंदिर ट्रस्ट लोगों से बात कर रहा था। जिस जमीन को मंदिर खरीदना चाहता था उसका सरकारी रजिस्ट्री रेट करीब 5 करोड़ बताया जाता है। और इस जमीन को दो और लोगों ने उसके मालिक से 2 करोड रुपए में खरीदा। इसे खरीदने के 10 मिनट के भीतर राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट ने उस जमीन को इन नए मालिकों से 18 करोड़ रुपए में खरीदने का एग्रीमेंट किया, और 17 करोड़ रुपए आरटीजीएस से इन नए मालिकों के खाते में डाल दे दिए। 10 मिनट पहले की खरीद-बिक्री में जो दो गवाह थे, उनमें से एक मंदिर ट्रस्ट के सदस्य हैं और दूसरे व्यक्ति अयोध्या के मेयर हैं। और यही दोनों गवाह 10 मिनट बाद की उस जमीन की 18 करोड़ की बिक्री के मामले में भी गवाह हैं। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने इन दोनों रजिस्टर्ड दस्तावेजों को मीडिया के सामने पेश किया है जिनमें भुगतान की जानकारी भी है। मंदिर ट्रस्ट की तरफ से श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने इन आरोपों पर कहा कि उन पर तो महात्मा गांधी की हत्या के आरोप भी लगते रहे हैं और वे उसकी परवाह नहीं करते।

अब इस खरीद-बिक्री में जो दो खरीददार हैं उनमें एक हिंदू है और एक मुस्लिम है। इसके दोनों गवाह डॉ. अनिल मिश्रा और ऋषिकेश उपाध्याय मंदिर ट्रस्ट के सदस्य और अयोध्या के महापौर हैं। जमीन को बेचने वाले मूल स्वामी बाबा हरिदास हैं और खरीदने वाले मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपक राय हैं। समाजवादी पार्टी के विधायक और आम आदमी पार्टी के सांसद के उठाए हुए सवाल और उनके पेश किए हुए दस्तावेज हैरान करते हैं कि 5 करोड रुपए रजिस्ट्री दाम की जमीन को दो करोड़ में कैसे खरीदा गया और फिर 10 मिनट में ही उसे साढ़े 18 करोड़ में कैसे बेच दिया गया और आनन-फानन ट्रस्ट के 17 करोड़ों रुपए इस नए खरीददार के खाते में चले भी गए। 

जमीन जायदाद के काम करने वाले लोगों को यह बात बड़ी आसानी से समझ आ जाएगी कि यह गोरखधंधा किस तरह किया गया है। अब सवाल यह उठता है यह ट्रस्ट तो केंद्र सरकार का बनाया गया है, और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बनाया गया है जिसमें केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत प्रतिनिधि सदस्य हैं। इस तरह से यह धार्मिक ट्रस्ट होने के बावजूद सरकार निर्मित ट्रस्ट है, और इस पर अगर जमीन खरीदी में इतनी बड़ी रकम का घपला करने का ऐसा आरोप लगा है तो केंद्र सरकार को बिना देर किए हुए इसकी जांच करवानी चाहिए क्योंकि यह देश के करोड़ों राम भक्तों और हिंदुओं की आस्था का भी मामला है। इस मंदिर ट्रस्ट में जिस तरह शायद 5000 करोड़ का दान और चंदा  इकट्ठा किया है उसके इस्तेमाल पर भी एक बड़ा सवाल इन आरोपों से लगता है। 

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है और भाजपा के ही मुख्यमंत्री हैं इसलिए इस मामले की सीबीआई जांच में राज्य सरकार की असहमति की कोई बात नहीं हो सकती है। देश के इस सबसे बड़े मंदिर निर्माण ट्रस्ट को लेकर जितने गंभीर आरोप लगे हैं प्रधानमंत्री को इस मामले की सीबीआई जांच के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कहना चाहिए कि वे इसकी सिफारिश करें और इसकी तेजी से जांच करवाई जाए, ताकि दान देने वाले, और दान ना देने वाले आस्थावान, लोगों की भी आस्था को चोट ना पहुंचे। तब तक इस ट्रस्ट की ऐसी किसी खरीदी-बिक्री पर रोक भी लगना चाहिए। 

ऐसे ट्रस्ट आमतौर पर स्थानीय कलेक्टर के नियंत्रण में माने जाते हैं, जिसके भी नियंत्रण में यह हो उन्हें तुरंत ही इसके बैंक खातों पर एक रोक भी लगानी चाहिए ताकि ऐसी धोखाधड़ी की और कोई खरीदी ना हो सके। ट्रस्ट के प्रभारी सचिव चंपक राय का बयान बहुत ही  बुरी तरह अहंकार से भरा हुआ है और गैर जिम्मेदारी का है। यह मौका ऐसे अहंकार को दिखाने का नहीं है कि महात्मा गांधी की हत्या का आरोप भी उन पर लगा था। वे यह भी साफ नहीं कर रहे हैं कि वह किस पर आरोप लगने की बात कर रहे हैं, व्यक्तिगत रूप से उन पर गांधी की हत्या के आरोप की बात कर रहे हैं, या इस ट्रस्ट को लेकर बयान दे रहे हैं। 

ट्रस्ट के किसी जिम्मेदार पद पर बैठे हुए व्यक्ति को ऐसी गैरजिम्मेदारी की बात नहीं करनी चाहिए और खासकर धार्मिक आस्था से जुड़े हुए ट्रस्ट के सबसे बड़े ट्रस्टी अगर आरोपों पर सफाई देने के बजाय अपने आपको गांधी हत्या के आरोप झेल चुका साबित कर रहे हैं, तो यह ट्रस्ट के लिए भी बहुत ही शर्मिंदगी की बात है। जो दो लोग इन दोनों  खरीद-बिक्री में गवाह रहे हैं, उन्होंने मुंह खोलने से मना कर दिया है, इसलिए यह पूरा मामला भारी संदेह से भरा हुआ है, और जिन-जिन लोगों पर इस ट्रस्ट की जिम्मेदारी आती है उन्हें, और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार, और केंद्र सरकार को तुरंत एक बड़ी जांच की घोषणा करनी चाहिए जिसके बिना इस ट्रस्ट के पास आए हुए हजारों करोड़ों रुपए खतरे में भी हैं और लोगों का भरोसा भी टूट रहा है।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

 

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