संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : खुले धोखे को अनदेखा करने वाला मीडिया, सरकार, सब बराबरी से जिम्मेदार लूट के
15-Jun-2021 1:23 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : खुले धोखे को अनदेखा करने वाला मीडिया, सरकार, सब  बराबरी से जिम्मेदार लूट के

इन दिनों बड़े से बड़े अखबार या टीवी चैनल की वेबसाइटों को देखें, या कुछ ऐसी वेबसाइटों को देखें जो न अखबार की हैं न टीवी चैनलों की, और जो सिर्फ बहुत ही प्रमुख और कामयाब वेबसाइट हैं, तो उन पर कई किस्म के झांसे के इश्तहार दिखाई पड़ते हैं. बहुत से इश्तहार तो खबरों के बीच में इस तरह से दबे-छुपे रहते हैं जिस तरह किसी पेड़ के तने या पत्तों के बीच में कुछ जानवरों के छुपने की तस्वीरें कभी-कभी सामने आती हैं कि उन्हें पेड़ से अलग करके देखना ही नहीं हो पाता। ऐसे इश्तहार आमतौर पर धोखा देने वाले रहते हैं, और चूँकि वेबसाइटों को विज्ञापन से कमाई का लेना-देना रहता है इसलिए वे इस बात की परवाह भी नहीं करतीं कि उनकी खबरों के बीच, उनके दूसरे पोस्ट के बीच किस तरह के झांसे वाले इश्तहार दिखाई पड़ रहे हैं। जाहिर तौर पर बहुत से लोग इन्हें देख कर धोखा खाते भी होंगे। 

अभी ऐसा ही एक इश्तहार एक फिल्म कलाकार सुशांत सिंह राजपूत से जुड़ी हुई एक तस्वीर के नीचे आया जिसे रायपुर के ही एक कंप्यूटर से वेबसाइट पर जाकर देखा गया था और उसके नीचे इस इश्तहार में नोटों का ढेर उठाए हुए एक गरीब आदमी की तस्वीर है और यह लिखा हुआ है कि रायपुर के एक गरीब मजदूर ने किस तरह 1 करोड़ 16 लाख  रुपए अपने मोबाइल फोन से कमा लिए। अब इस तरह की अविश्वसनीय कमाई के बहुत से इश्तहार वेबसाइटों पर दिखते हैं, और अगर कंप्यूटर का इंटरनेट किसी तकनीकी वजह से अपने को इंदौर के इलाके में बताता है तो इस इश्तहार में रायपुर की जगह इंदौर आ जाता है। देश के अलग-अलग कोनों में जिस इलाके से आप इंटरनेट पर पहुंचेंगे, इसी इश्तहार में सिर्फ शहर का नाम बदल जाएगा और उस शहर का मजदूर एक करोड़ 16 लाख रुपए अपने मोबाइल फोन से कमाते हुए दिखने लगेगा। ऐसे दूसरे को इश्तहारों में एक बहुत ही आलीशान कोठी के सामने एक बहुत ही महंगी विदेशी कार में बैठा हुआ एक नौजवान, या एक युवती दिखते हैं और उसके साथ भी कुछ इसी किस्म का एक उकसाता हुआ विज्ञापन स्लोगन लिखा रहता है कि किस तरह उन्होंने 1 महीने में ही कमाई करके यह बंगला, गाड़ी सब कुछ खरीद लिया। आप जिस शहर से इंटरनेट पर पहुंचें, उसी शहर का नाम उसी इश्तहार में दिखने लगता है। 

अब सवाल ये उठता है कि भारत सरकार का इतना कड़ा सूचना तकनीक कानून है कि जिसके तहत मामूली चूक करने वाले और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करने वाले लोग भी आए दिन कानून के फंदे में फंसते रहते हैं। दूसरी तरफ जो ठग, धोखेबाज, और जालसाज लगातार इस तरह इंटरनेट पर लोगों को धोखा देते हैं, वह हमारे जैसे साधारण समझ वाले लोगों को भी मामूली आंखों से समझ में आने वाले धोखेबाज़ हैं,  लेकिन भारत सरकार के साइबर क्राइम पकडऩे वाले लोगों को यह नहीं दिखता, न ही राज्यों को यह दिखता है कि इसमें क्या जालसाजी है। यह कुछ उसी किस्म का है जिस तरह एक फाड़े गए साइलेंसर वाली बड़ी सी मोटरसाइकिल भारी शोरगुल करते हुए चौराहे पर से पुलिस के सामने से निकल जाती है, लेकिन पुलिस को उसकी आवाज सुनाई नहीं पड़ती। फिर चाहे बाकी तमाम लोगों को शोरगुल से दिक्कत क्यों ना हो। इसी तरह ये जालसाज विज्ञापन लोगों को इंटरनेट पर दिखते हैं, लोगों के व्हाट्सएप पर आते हैं, लेकिन सरकार इनमें से कोई जालसाजी नहीं रोक पाती। दूसरी बात यह भी है कि जिन वेबसाइटों पर धोखाधड़ी के ऐसे विज्ञापन रात-दिन आते हैं और उन पर टंगे रहते हैं, क्या उन वेबसाइटों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है कि वे अपनी सामग्री के साथ, अपनी खबरों के साथ, इस तरह की धोखाधड़ी के विज्ञापनों का दिखना बंद करें या फिर धोखे में भागीदारी करके भी कमाई करने की चाह में सब उलझे हुए हैं? 

यह सिलसिला खतरनाक इसलिए है कि इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ते चल रहा है और हर दिन लाखों नए लोग इंटरनेट पर जुड़ते हैं जो कि भरोसेमंद वेबसाइटों के विज्ञापनों को भी भरोसेमंद मान लेते हैं, और कई विज्ञापन तो ऐसे दबे-छुपे अंदाज में रहते हैं कि वे पहली नजर में खबर ही लगते हैं। इसलिए इस धोखाधड़ी को बंद करने का काम होना चाहिए और सरकार को इस पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। दूसरी तरफ हिंदुस्तान में एक एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल नाम की एक संस्था है और वह संस्था भी धोखा देने वाले विज्ञापनों या झूठे दावे करने वाले विज्ञापनों पर कार्यवाही करने का दावा करती है। इस संस्था को भी ऐसे विज्ञापन देने वाले से पूछना चाहिए कि वह रायपुर के उस मजदूर की जानकारी दें जिसे एक करोड़ 16 लाख रुपए की कमाई अपने मोबाइल फोन से हुई है। यह सिलसिला इसी तरह चलते रहने देना गलत है, और यह बहुत से लोगों की गैर जिम्मेदारी का नतीजा है यह मीडिया की भी गैर जिम्मेदारी है, केंद्र और राज्य सरकारों की भी गैर जिम्मेदारी है और एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया की गैर जिम्मेदारी तो है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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