संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नफरत का ऐसा सैलाब राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए है बहुत बड़ा खतरा
17-Jun-2021 5:22 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय  : नफरत का ऐसा सैलाब  राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए  है बहुत बड़ा खतरा

हिंदुस्तान बड़ा ही दिलचस्प देश है। लोगों को बारहमासी नफरत से कभी आजादी ही नहीं मिलती, और आबादी का एक बड़ा हिस्सा यह आजादी चाहता भी नहीं है। रात-दिन बहुत से लोग इस फिक्र में दुबले हुए रहते हैं कि हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच कोई तनातनी खड़ी क्यों नहीं हो पाई। जहां पर हिंदू-मुस्लिम विवाद की गुंजाइश कम दिखती है वहां पर लोग हिंदू-ईसाई झगड़ा ढूंढ निकालते हैं, जहां वह भी नहीं दिखता है वहां पर सवर्ण और दलित का झगड़ा ढूंढ निकालते हैं, आदिवासियों से शहरी लोग अपना झगड़ा ढूंढ निकालते हैं। यह सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता, और अब तो सोशल मीडिया की मेहरबानी से नफरत को किसी आग की तरह सुलगाते रहना आसान हो गया है। ताजा बवाल खड़ा किया जा रहा है एक मुस्लिम से शादी करने वाली हिंदू अभिनेत्री करीना कपूर का बहिष्कार करने का। 

ऐसी खबर आई ही थी कि सीता नाम की एक फिल्म बन रही है और उसमें सीता का किरदार निभाने के लिए करीना कपूर को छाँटा जा रहा है तो उसे लेकर कई हिंदू संगठन, और हिंदू धर्म के बहुत से स्वघोषित ठेकेदार विरोध करके अपने अस्तित्व को साबित करने में लग गए हैं कि वे अभी भी जिंदा है, और सक्रिय हैं। उनका विरोध है कि एक मुस्लिम अभिनेत्री को सीता के किरदार के लिए क्यों छांटा गया है। कई दिनों से ट्विटर पर बाइक और करीना खान नाम का एक बहिष्कार चलाया जा रहा था जिस पर दसियों हजार लोगों ने अपनी नफरत जाहिर की थी। आज नागपुर की खबर है कि वहां पर बजरंग दल के लोगों ने जाकर कलेक्टर को एक ज्ञापन दिया है कि अगर यह फिल्म बनी तो इसका जमकर विरोध किया जाएगा और विरोध करने की वजह में उन्होंने कुछ तस्वीरें भी लगाई हैं जिनमें करीना कपूर बिकनी पहने हुए दिख रही हैं और एक फोटो में वे अजमेर की दरगाह की यात्रा भी कर रही हैं। इन बातों को लेकर एक मुस्लिम अभिनेत्री के सीता का किरदार करने का विरोध किया जा रहा है। 

भाजपा से जुड़े हुए जितने अभिनेता और अभिनेत्री रहे हैं उन्होंने किस-किस फिल्म में किस धर्म के लोगों का किरदार निभाया था इसकी एक लंबी लिस्ट बन सकती है। लव जिहाद नाम का एक शब्द उछालकर जिस तरह से समाज में नफरत और दहशत दोनों फैलाई जा रही थी, उस वक्त भी नफरतजीवी लोग यह देखने से इंकार कर रहे थे कि किस तरह भाजपा की सांसद अभिनेत्री हेमा मालिनी ने पहले से शादीशुदा एक अभिनेता धर्मेंद्र से दूसरी शादी करने के लिए धर्म बदला था। अब यह बात लव जिहाद के दायरे में आती है या नहीं यह कहना मुश्किल है क्योंकि नफरतजीवी लोगों ने लव जिहाद की कोई सरकारी परिभाषा अभी तक जारी नहीं की है। लेकिन सवाल यह है कि अगर हिंदुस्तान में नफरत इस हद तक इस्तेमाल की जानी है कि किसी धर्म के किरदार को उसी धर्म के कलाकार निभाएं, तो फिर यहां एक धर्मराज की जरूरत है, यहां लोकतंत्र की जरूरत ही क्यों हैं?

यह बात हिंदू धर्म के देश के सबसे संगठित संगठन भाजपा की तरफ से औपचारिक रूप से नहीं उठाई गई है, लेकिन पिछले हफ्ते-दो हफ्ते से सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही सबसे घटिया और सबसे हिंसक इस नफरत का कोई विरोध भी भाजपा की तरफ से नहीं किया गया है, और न ही केंद्र सरकार ने ऐसी हिंसक नफरत पर कोई कार्रवाई की है जिसमें एक मुस्लिम से शादी करने वाली जन्म से हिंदू अभिनेत्री के एक हिंदू किरदार करने के खिलाफ यह आंदोलन चलाया जा रहा है। ऐसी नफरत फैलाना अगर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा नहीं है तो फिर क्या उत्तर प्रदेश और दिल्ली में की जाने वाली एक-एक अकेली ट्वीट को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मान लेना ठीक है? चूँकि बजरंग दल देश में सत्तारूढ़ भाजपा के सहयोगी संगठन आरएसएस के तहत आने वाले दर्जनों संगठनों में से एक माना जाता है, इसलिए भाजपा और आरएसएस को भी इस मुद्दे पर अपनी राय जाहिर करनी चाहिए कि वे फिल्मी किरदार निभाने वाले लोगों के लिए धार्मिक अनिवार्यता तय करना चाहते हैं क्या? अगर ऐसा नहीं है तो हिंदुस्तान में आज की जलती-सुलगती दिक्कतों और बुनियादी मुद्दों की तरफ से ध्यान भटकाने के लिए इस किस्म के शिगूफे राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा क्यों बनने दिए जा रहे हैं? क्या अब कोई मुस्लिम लेखक हिंदू किरदारों को लेकर कोई कहानी भी नहीं लिख सकेंगे? या क्या अब राही मासूम रजा को कब्र से निकालकर रामायण लिखने की सजा सुनाई जाएगी? देश के इस खतरनाक होते माहौल पर राजनीतिक दलों की, और उनसे भी अधिक सरकार की चुप्पी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा है। एक तरफ तो देशभर में अलग-अलग प्रदेशों में सत्तारूढ़ दल से असहमति रखने वाले लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश के तहत जुर्म दर्ज करने का काम थानेदार भी कर ले रहे हैं, और दूसरी तरफ पूरे देश में नफरत और हिंसा के ऐसे संगठित अभियान को चलाने वाले लोगों की नीयत और उनके खतरे को केंद्र सरकार इस हद तक अनदेखा कर रही है। आज यह नफरत फैलाने वाले लोग, लव जिहाद नाम का शब्द उछालकर हिंसा करने वाले लोग, इस बात को पूरी तरह अनदेखा करते हैं कि किस-किस राजनीतिक दल के कौन-कौन से सांसद और मंत्री ऐसे ही लव जिहाद के तहत अपना परिवार बसाकर सुख से जीते हैं।

एक तरफ तो बड़े-बड़े नेता अपनी खुद की शादी के वक्त ऐसे किसी फतवे की फिक्र नहीं करते, देश के बड़े-बड़े कामयाब लोग और दौलतमंद लोग ऐसे फतवों और झंडे-डंडों से परे जब चाहे जिससे शादी करते हैं, और अपनी मर्जी से धर्म निभाते हैं या नहीं निभाते हैं। लेकिन आम लोगों को ऐसे नफरत की मार मारने के लिए ऐसे ही बजरंग दल जैसे संगठनों के लोग झंडे-झंडे लेकर निकलते हैं। इनको अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए और उसे साबित करने के लिए ऐसे शिगूफा तलाशकर रखने पड़ते हैं। लेकिन ऐसी हरकतें हिंदुस्तान की राष्ट्रीय एकता के खिलाफ हैं, और जो राजनीतिक दल, जो सरकार इसके खतरों को कम आंकती हैं, वह हमारे हिसाब से कम गुनहगार नहीं हैं।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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