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ईरान के लोग आज नए राष्ट्रपति के लिए मतदान करेंगे. कुल चार उम्मीदवारों में से एक को राष्ट्रपति हसन रूहानी की जगह मिलेगी.
ओपिनयन पोल्स का अनुमान है कि रूढ़िवादी शिया मौलवी और सुप्रीम कोर्ट प्रमुख इब्राहिम राईसी को राष्ट्रपति की कुर्सी मिल सकती है. रइसी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी ईरान के केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर अब्दुलनासेर हेमाती हैं.
कई अंस्तुष्टों और कुछ सुधारवादियों ने चुनाव का बहिष्कार किया है. इनका कहना है कि कई उम्मीदवारों को चुनाव से बाहर करने के कारण रइसी की राह आसान हो गई है.
ट्रंप प्रशासन ने 2017 में ईरान से परमाणु समझौता ख़त्म कर दिया था और कई तरह की पाबंदियां लगा दी थीं. इन पाबंदियों से ईरान के लोग गंभीर आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं और इसे लेकर सरकार से काफ़ी नाराज़गी है.
हसन रूहानी की छवि नरम नेता की रही है और वे पश्चिम से संबंधों को ठीक करने की वकालत करते रहे हैं. हालांकि उनका दो कार्यकाल पूरा हो चुका है, इसलिए तीसरी बार वे राष्ट्रपति नहीं बन सकते हैं.
उम्मीदवारों की पुष्टि कौन करता है?
लगभग 600 उम्मीदवारों ने चुनाव के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था. इनमें 40 महिलाएं भी शामिल थीं. लेकिन पिछले महीने सात पुरुषों को गार्डियन काउंसिल से मंज़ूरी मिली. इस काउंसिल में 12 सदस्य हैं और इसे रूढ़िवादी माना जाता है.
राष्ट्रपति हसन रूहानी के पहले उपराष्ट्रपति इशाक़ जहांगिरी और ईरानी संसद के पूर्व रूढ़िवादी स्पीकर अली लार्जिआनी समेत कइयों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिली.
गुरुवार को तीन वैसे उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया जिन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति मिली थी. ये हैं- सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव सईद जलीली, सांसद अलीरेज़ा ज़कानी और सुधारवादी पूर्व उपराष्ट्रपति मोहसीन मेहरालिज़ादेह.
जलीली और ज़कानी दोनों कट्टरपंथी हैं और इन्होंने राईसी का समर्थन किया है. अगर पहले चरण में किसी भी उम्मीदवार को 50 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट नहीं मिलेगा तो एक रन-ऑफ चुनाव होगा.
कितने मतदाता?
ईरान में 5.9 करोड़ लोग वोट देने के योग्य हैं. ईरान की आबादी आठ करोड़ है. 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में मतदान 73 फ़ीसदी रहा था लेकिन इस बार सरकार समर्थित ईरानी स्टूडेंट पोलिंग एजेंसी आईएसपीए का कहना है कि मतदान 42 फ़ीसदी तक रह सकता है.
अगर ऐसा होता है कि 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद ऐतिहासिक रूप से राष्ट्रपति चुनाव में सबसे कम लोगों की भागीदारी होगी. चुनाव में लोगों की कम भागीदारी से वहाँ के नेताओं के लिए मुश्किल परिस्थिति खड़ी हो सकती है. (bbc.com)