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चेतन कुमार: कन्नड़ अभिनेता के ब्राह्मणवाद विरोधी बयान पर विवाद
18-Jun-2021 1:40 PM
चेतन कुमार: कन्नड़ अभिनेता के ब्राह्मणवाद विरोधी बयान पर विवाद

कन्नड़ अभिनेता चेतन कुमार, इमेज स्रोत,INSTAGRAM/CHETANAHIMSA

-इमरान कुरैशी

कन्नड़ अभिनेता और एक्टिविस्ट चेतन कुमार से बेंगलुरू पुलिस शुक्रवार को फिर से पूछताछ करने वाली है. मामला उनके ब्राह्मणवाद पर बयान का है.

चेतन कुमार के ब्राह्मणवाद पर बयान देने के बाद विवाद खड़ा हो गया है और उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई गई है.

चेतन कुमार को अन्य पिछड़े समुदायों से समर्थन मिल रहा है. हालाँकि, फ़िल्म उद्योग से जुड़ी हस्तियाँ इस मामले पर चुप्पी साधे हुई हैं.

चेतन अहिंसा के नाम से मशहूर चेतन कुमार सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल होने के बाद पिछले दो हफ़्तों से चर्चा में हैं.

इस वीडियो के बाद उनके ख़िलाफ़ ब्राह्मण डेवलपमेंट बोर्ड के अध्यक्ष और एक अन्य संस्था ने शिकायत दर्ज कराई थी.

एक सामाजिक कार्यकर्ता ने विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय में भी शिकायत दर्ज करते हुए कहा है कि अभिनेता को अमेरिका वापस भेजा जाए क्योंकि उन्होंने ओवरसीज सिटिजन ऑफ़ इंडिया का कार्ड धारक होने के मानदंडों का उल्लंघन किया है.

एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी हिंदी को बताया, ''हमने उनसे पूछने के लिए कुछ सवाल तैयार किए थे, जिसके उन्होंने काफ़ी लंबे-लंबे जवाब दिए. उन्हें रिकॉर्ड करना भी ज़रूरी है. इसलिए, हमने उन्हें बचे हुए सवालों के जवाब देने के लिए कहा है.''

पुलिस इस बात को लेकर जाँच कर रही है कि चेतन कुमार ने आईपीसी की धारा 153ए और 295ए का उल्लंघन किया है या नहीं.

इन धाराओं का मतलब है कि चेतन पर धर्म या नस्ल के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता पैदा करने और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए जानबूझकर और दुर्भावना के साथ कोई काम करने का आरोप है.

चेतन कुमार ने क्या कहा था
चेतन ने सोशल मीडिया पर डाले गए अपने वीडियो में कहा था, ''हज़ारों सालों से ब्राह्मणवाद ने बासव और बुद्ध के विचारों को मार डाला है. 2500 साल पहले बुद्ध ने ब्राह्मणवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी. बुद्ध विष्णु के अवतार नहीं हैं और ये एक झूठ है और ऐसा कहना पागलपन है.''

इसके बाद उन्होंने एक ट्वीट किया, ''ब्राह्मणवाद स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना को अस्वीकार करता है. हमें ब्राह्मणवाद को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए- #आंबेडकर. सभी समान रूप से पैदा होते हैं, ऐसे में यह कहना कि सिर्फ़ ब्राह्मण ही सर्वोच्च हैं और बाक़ी सब अछूत हैं, बिल्कुल बकवास है. यह एक बड़ा धोखा है- #पेरियार.''

उन्होंने ये प्रतिक्रिया कन्नड़ फ़िल्म अभिनेता उपेंद्र के उस कार्यक्रम को लेकर दी थी, जो आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की कोरोना में मदद के लिए आयोजित किया गया था.

चेतन कुमार का कहना था कि इस आयोजना में सिर्फ़ पुरोहित वर्ग के लोगों को बुलाया गया था. इसके लिए उन्होंने उपेंद्र की आलोचना की.

वहीं, उपेंद्र का कहना है कि केवल जातियों के बारे में बात करते रहने से जातिवाद बना रहेगा. जबकि चेतन का कहना है कि ब्राह्मणवाद असमानता की मूल जड़ है.

दोनों अभिनेताओं की बहस के बाद सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई और दोनों के समर्थक भी आपस में लड़ने लगे.

चेतन ने कहा कि वो ब्राह्मणों की नहीं, बल्कि ब्राह्मणवाद की आलोचन करते हैं. जैसे कि कन्नड़ दुनिया में कई ब्राह्मण ख़ुद ब्राह्मणवाद का विरोध करते रहे हैं.

इस बयान के बाद ब्राह्मण डेवलपमेंट बोर्ड और विप्र युवा वेदिका ने पुलिस में उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई.

सामाजिक कार्यकर्ता गिरीश भारद्वाज ने बीबीसी हिंदी से कहा, ''हम नहीं जानते थे कि वो अमेरिकी नागरिक हैं और ओसीआई कार्ड धारक हैं. ओसीआई कार्ड धारक इस तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकते.''

कौन हैं चेतन कुमार
37 साल के चेतन कुमार का जन्म अमेरिका में हुआ है. उनके माता-पिता डॉक्टर हैं.

''आ दिनागलु'' फ़िल्म के निर्देशक केएम चेतन्य ने बीबीसी हिंदी को बताया, ''जब चेतन येल यूनिवर्सिटी से पढ़कर वापस भारत आए थे, तो उनकी फ़िल्म के लिए वो एक नया चेहरा थे.''

2007 में आई ये फ़िल्म एक कल्ट फ़िल्म मानी गई थी.

इसके साथ ही चेतन ने कुछ और फ़िल्मों में भी काम किया, लेकिन वो ख़ास सफल नहीं हो पाईं. लेकिन, 2013 में आई उनकी फ़िल्म 'मायना' को काफ़ी सराहा गया था.

महेश बाबू के निर्देशन में बनी उनकी अगली फ़िल्म 'अथीरथा' सभी मसाले होने के बावजूद भी बॉक्स ऑफ़िस पर कोई कमाल नहीं दिखा पाई. इसकी वजह चेतन कुमार के राजनीतिक विचारों को माना जाता है.

एक तरफ चेतन की छवि एक एक्टिविस्ट के तौर पर मज़बूत होती गई है, तो दूसरी तरफ़ फ़िल्मों में उनकी भागीदारी घटती चली गई.

निर्देशक और स्टोरी राइटर मंजुनाथ रेड्डी उर्फ़ मंसोरे कहते हैं, ''वो एक समर्पित अभिनेता हैं लेकिन सफल नहीं हैं. वो अभी 'आ दिनागलु' चेतन के तौर पर जाने जाते हैं. लेकिन अब वो सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर आगे बढ़ रहे हैं. वो एक ऐसे अभिनेता के तौर पर सामने आए हैं, जिनके लिए सामाजिक मुद्दे ज़्यादा मायने रखते हैं.''

फ़िल्म जगत और सामाजिक मुद्दे
ये सभी जानते हैं कि कन्नड़ फ़िल्म उद्योग में जानमानी हस्तियाँ सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार नहीं रखतीं. वो सिर्फ़ कावेरी जल विवाद जैसे मामलों पर ही विरोध करने के लिए आगे आती हैं और वो भी इसलिए क्योंकि तमिलनाडु का फ़िल्म उद्योग भी कावेरी के भावनात्मक मसले पर विरोध करता है.

ऐसे हालात में अभिनेता से सामाजिक कार्यकर्ता बने चेतन कुमार आदिवासियों को जंगल से हटाए जाने पर कोडगु ज़िले में धरने पर बैठे. उन्होंने विस्थापित होने वालों को रहने की वैकल्पिक जगह दिलाए जाने की मांग का समर्थन किया.

दूसरे मामलों की तरह चेतन के मामले पर भी फ़िल्म उद्योग के जानेमाने चेहरे कुछ नहीं कहना चाहते हैं.

एक ने कहा, ''मैं इस मसले पर बात नहीं करना चाहता.'' दूसरे ने कहा, ''उस लड़के के बारे में बोलने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है.'' तीसरे ने कहा, ''इस तरह के विवादों में पड़कर वो अपनी मौजूदगी दिखाना चाहता है.''

मंसोरे कहते हैं, ''हमारे उद्योग में लोग विवादों में पड़ना पसंद नहीं करते. कोई भी एक्टर आदिवासियों को निकाले जाने पर या Me Too अभियान में उनकी तरह पक्ष नहीं लेगा. Me Too मामले में श्रुति हरिहरन का साथ देने पर लोगों ने उन्हें विलन ही बना दिया.''

मंसोरे को कोडगु में धरने के दौरान चेतन के सामाजिक कार्यकर्ता होने का पता चला था. वह कहते हैं कि मुद्दों को लेकर उनकी चिंताएँ वास्तविक होती हैं.

श्रुति हरिहरन कई भाषाओं में काम करने वालीं दक्षिण भारतीय अभिनेत्री हैं. उन्होंने Me Too अभियान के दौरान फ़िल्म जगत की जानीमानी हस्ती अर्जुन सरजा के ख़िलाफ़ 'अनुचित' व्यवहार का आरोप लगाया था.

तब चेतन ने 'फ़िल्म इंडस्ट्री फॉर राइट्स एंड इक्वेलिटी' (एफआईआरई) नाम से एक मंच बनाया था, जो फ़िल्मों में काम करने वाले लोगों के आर्थिक और शारीरिक उत्पीड़न जैसे मसलों पर काम करता है.

लेकिन, मंसोरे बताते हैं, ''तब से फ़िल्म जगत के लोगों ने उन्हें गंभीरता से देखना बंद कर दिया.''

श्रुति हरिहरण कहती हैं, ''चेतन ऐसे शख़्स हैं, जिन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है कि वो जो कर रहे हैं उससे उन्हें कितना नाम या प्रसिद्धि मिलेगी. फ़िल्म उद्योग में जो लोग अधिकारों से वंचित हैं वो उनकी मदद करने में विश्वास रखते हैं. वो सिर्फ़ कहते नहीं हैं, बल्कि करके भी दिखाते हैं.''

मंसोरे कहते हैं, ''उन्होंने ब्राह्मणों के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहा है. उन्होंने ब्राह्मणवादी संस्कृति की बात की है, जो फ़िल्म जगत में अपनी जड़ जमाए हुए हैं. उन्होंने सिर्फ़ ब्राह्मणवादी मानसिकता की बात की है.''

श्रुति ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह एक ब्राह्मण परिवार से हैं, लेकिन ऐसी कुछ धार्मिक प्रथाएँ थीं, जिनका उन्होंने पालन नहीं किया.

वह कहती हैं, ''मैं चेतन से सहमत हूँ कि ब्राह्मणवाद समानता को स्वीकार नहीं करता. माहवारी जैसे मसलों पर ये बेहद पितृसत्तात्मक है. मुझे नहीं लगता कि उन्होंने किसी को ठेस पहुँचाई है.''

राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कविता लंकेश कहती हैं, ''वो बस गर्म दिमाग़ वाले युवा हैं, जिनकी कूटनीतिक क्षमता कम है.'' (bbc.com)

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