संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना के मोर्चे पर फिक्र की दो अलग-अलग बातें
18-Jun-2021 5:14 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना के मोर्चे पर फिक्र  की दो अलग-अलग बातें

आज जब देश के बाकी तमाम हिस्सों में कोरोना की मार कुछ हल्की होती दिख रही है, तब महाराष्ट्र में यह अंदेशा जताया जा रहा है कि तीन-चार हफ्तों में कोरोना की तीसरी लहर वहां शुरू हो सकती है। लेकिन इस बीच एक बड़ी फिक्र की बात यह सामने आई है कि अहमदाबाद से लेकर असम तक जिन नदियों में कोरोना की जांच हुई, उन सारी नदियों के पानी के तमाम सैंपल कोरोना पॉजिटिव निकले। गुजरात में साबरमती नदी में पिछले 1 बरस में आईआईटी गांधीनगर ने जितने सैंपल लिए सब पॉजिटिव मिले और यह सैंपल सैकड़ों की संख्या में लिए गए। इसी तरह असम की कई नदियों से सैंपल लिए गए और उसमें भी कोरोना पॉजिटिव रिजल्ट आए। अब तक यह माना जा रहा था कि जो नाले-नालियों का पानी है जिनमें अस्पतालों से और कोरोनावायरस मरीजों के घरों से निकला हुआ पानी, अस्पताल के कचरे के बहकर आने से, कोरोना वायरस मिल रहा है, वह अब ऐसी नदियों के पानी में भी मिल रहा है जहां पर गंदा पानी सीधे नदी में नहीं मिलता है, और उन्हें जल शोधन संयंत्र से साफ करके ही नदी में भेजा जाता है फिर भी वहां कोरोना वायरस पाया गया है।

आईआईटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके पहले तक केवल गंदे पानी की नालियों में ही कोरोना वायरस के जिंदा रहने की बात मिली थी, लेकिन अब उन नदियों के पानी में भी यह मिल रहा है जहां पर लोग नहाते हैं या जहां से पानी लेकर उसे लोगों के पीने के लिए भेजा जाता है, तो यह एक नए खतरे की नौबत है। इस बात को लेकर विज्ञान थोड़ा सा हैरान भी है लेकिन यह खतरा हमें बहुत अजीब नहीं लग रहा है। यह वायरस जिस रफ्तार से अपनी शक्ल बदल रहा है, और अलग-अलग तरह से यह विज्ञान के लिए चुनौती खड़ी कर रहा है, उसमें इसके हवा से फैलने या पानी से फैलने का खतरा महज कुछ दूर ही था, वह खतरा पूरी तरह से नामौजूद नहीं था। अब जब दुनिया के देश, कोई कोरोना की तीसरी लहर के कगार पर है, कोई कोरोना की दूसरी लहर के कगार पर, तब पानी में ऐसा खतरा मिलना एक बहुत ही फिक्र की बात है। और फिर ये सैंपल एक-एक नदी से सैकड़ों की संख्या में लिए गए, और हर सैंपल में कोरोना वायरस मिला। इसका मतलब यह है कि यह किसी गलती से निकाला गया नतीजा नहीं है। ऐसे में पानी में कोरोना का होना आगे किस तरह खतरा बन सकता है यह भी सोचने की बात है, और उसके लिए सावधानी बरतने की बात भी है।

आज जो लोग कोरोना को गुजर चुका मान रहे हैं, और वैक्सीन से परहेज कर रहे हैं या लापरवाह हो रहे हैं उन्हें भी इन ताजा नतीजों को देखते हुए अपने तौर-तरीके बदलने चाहिए। इन वैज्ञानिक निष्कर्षों को देखते हुए भारत सरकार को देश भर के लिए इससे बचाव के तरीके निकालकर राज्यों के साथ बांटने चाहिए और देश के दूसरे वैज्ञानिक संस्थानों के लोगों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए कि ऐसे खतरे से कैसे बचा जा सकता है। यह मामला महज एक-दो नदियों का नहीं है गुजरात में तो कई झीलों का पानी भी लिया गया और उनमें भी हर सैंपल में कोरोना वायरस मिला है। इसलिए यह किसी एक नदी के प्रवाह से फैला हुआ नहीं है, और यह बात भी है कि यह पानी में इस तरह जिंदा रह रहा है कि वह कई हफ्तों तक लगातार लिए गए नमूनों में लगातार बने रहा। आईआईटी गुजरात ने 4 महीने तक लगातार हर हफ्ते कई नदियों और झीलों से सैंपल लिए, और उनमें से हर किसी में कोरोना पॉजिटिव मिला। इस देश की शायद आधी आबादी सीधे नदी-तालाब में निस्तारी से काम चलाती है, और अगर इनके पानी से कोरोना अगर इंसानों में आने लगेगा, या जानवरों में जाने लगेगा तो क्या होगा?

एक दूसरा खतरा 
कांग्रेस पार्टी के एक प्रवक्ता ने ट्विटर पर यह पोस्ट करके एक बवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कोरोना वैक्सीन में नवजात बछड़े के खून से निकला गया सीरम मिलाया गया है? वैज्ञानिकों ने इस पर खुलासा किया है कि वैक्सीन विकसित करते हुए किसी एक स्तर पर बछड़े के सीरम का इस्तेमाल होता है, लेकिन लोगों तक पहुँचने वाली वैक्सीन में ऐसा कुछ भी नहीं मिला है। भाजपा ने भी कांग्रेस प्रवक्ता की इस बात को गलत बताया है, और इसे लोगों को वैक्सीन से दूर करने की गैरजिम्मेदार हरकत करार दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता की ऐसी पोस्ट हम एक बहुत ही गैर जिम्मेदारी का काम मानते हैं, क्योंकि डायबिटीज के मरीजों के लिए इंसुलिन की दवाई हो या कई किस्म के टीके हों, इनको विकसित करते हुए कई बार जानवरों के शरीर के कुछ पदार्थ इस्तेमाल किए जा सकते हैं। हिंदुस्तान में हिंदुओं के बीच गाय को लेकर जैसी भावनाएं हैं, या मुस्लिमों के बीच में सूअर को लेकर जिस तरह की हिकारत है, या सिखों के बीच जानवरों को काटने के तरीके को लेकर अपनी मान्यताएं हैं, इन सबको पूरा करने की बात अगर की जाएगी तो दुनिया में कोई चिकित्सा-वैज्ञानिक परीक्षण हो भी नहीं सकेंगे। आज जब पूरी दुनिया महामारी का एक खतरा झेल रही है, आज इस वक्त हिंदुस्तान में इतनी बड़ी संख्या में लोग मारे जा चुके हैं, और तीसरी लहर के खतरे का अंदेशा बना हुआ है, उस वक्त इस किस्म की जटिल-वैज्ञानिक बात पोस्ट करना और एक सनसनीखेज समाचार की शक्ल में किसी वैज्ञानिक बात को, सच या झूठ को तोड़-मरोड़ कर सामने रखना, एक जुर्म सरीखा काम है। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है क्योंकि अगर हिंदुओं के बीच इस बात की दहशत हो गई कि इसमें गाय के शरीर के खून या किसी और चीज को मिलाया गया है, तो बहुत से लोग वैक्सीन से परहेज करने लगेंगे। 

लोगों को याद होगा कि जब पोलियो वैक्सीन दी जाती थी तो हिंदुस्तान के कुछ प्रदेशों में कई मुस्लिम इलाकों के बीच इसे लेकर तरह-तरह की आशंकाएं थीं और लोग अपने बच्चों को पोलियो ड्रॉप्स नहीं पिलाते थे। किसी वैक्सीन को विकसित करने की वैज्ञानिक प्रक्रिया में अगर किसी स्तर पर किसी जानवर के शरीर का निकला हुआ कोई अंश इस्तेमाल भी होता है तो उसे इस तरह सार्वजनिक मंच पर लापरवाही और गैरजिम्मेदारी से चर्चा और खबर में लाना, उसकी सनसनी फैलाना, एक बहुत ही गैरजिम्मेदारी का जुर्म है। कांग्रेस पार्टी पता नहीं क्या सोच कर अपने प्रवक्ता से ऐसा कहला रही है। अब तक तो कांग्रेस पार्टी का कोई खंडन अपने प्रवक्ता की ट्वीट के खिलाफ आया नहीं है, और उसने देश भर की फजीहत के इस सामान को लेकर अपनी आलोचना का एक बड़ा मौका विरोधी पार्टियों को दिया है। आज देश में तमाम लोगों को ऐसी सनसनी फैलाने से बचना चाहिए और कांग्रेस की इस गैरजिम्मेदारी का बुरा नतीजा पूरे देश में देखना पड़ सकता है।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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