संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सत्तारूढ़ गुंडों के जुर्म पर पार्टी को बोलना और सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए
20-Jun-2021 1:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सत्तारूढ़ गुंडों के जुर्म पर पार्टी को बोलना और सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए

कल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में सत्ता की गुंडागर्दी का एक भयानक नजारा देखने मिला जब कांग्रेस पार्टी के एक ब्लॉक अध्यक्ष ने सडक़ पर गलत तरफ से स्कूटर चलाकर लाने पर रोकने वाले ट्रैफिक सिपाही को खूब मां बहन की गालियां बकी, उसे तरह-तरह की धमकियां दीं, उससे धक्का-मुक्की की, उसे मारने के लिए कई बार हाथ उठाया, और उसका मोबाइल फोन छीन लिया। यह सब कुछ दिनदहाड़े व्यस्त सडक़ पर बाजार के बीच किया। पुलिस की पोशाक में ड्यूटी पर तैनात, अपना काम करते हुए एक सिपाही के साथ इस तरह का सुलूक लोगों को कई बरस जेल भेजने के लिए काफी होना चाहिए।  यह तो अच्छा हुआ कि बिलासपुर की पुलिस ने अपने सिपाही का साथ दिया और कांग्रेस नेता के खिलाफ जुर्म दर्ज किया, उसकी गिरफ्तारी के लिए उसकी तलाश की जा रही है, वरना आमतौर पर सत्ताधारी गुंडों को बंद कमरे में बिठाकर, पुलिस के छोटे कर्मचारियों को दबाकर एक जुबानी समझौता करवा दिया जाता है। 

इसी तरह का नजारा छत्तीसगढ़ में कई जगह सत्तारूढ़ गुंडों की हरकतों का देखने मिला है, दिक्कत यह है कि अधिकतर मामलों में सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी दोनों ही चुप भी रह जाते हैं। यह कोई नई बात नहीं है, और न ही यह केवल छत्तीसगढ़ की बात है, हिंदुस्तान के अधिकतर प्रदेशों में हर सत्तारूढ़ पार्टी के मवाली इसी तरह का काम करते हैं और अपनी ड्यूटी पूरी कर रही पुलिस का साथ देने के लिए अक्सर उनके बड़े अफसर भी साथ नहीं रहते। यही वजह है कि छोटे पुलिस कर्मचारी चेहरा देख-देखकर काम करते हैं। राजनीतिक गुंडों पर हाथ डालना, अपना किसी मुश्किल इलाके में तबादला करवाने सरीखा काम माना जाता है। देश में जगह-जगह ऐसा होता भी है कि सत्तारूढ़ गुंडों पर जिसने हाथ डाला, तुरंत ही या कुछ दिन रुककर उन्हें किसी मुश्किल जगह भेज दिया जाता है और यह बाकी लोगों के लिए भी एक इशारा होता है कि सत्ता पर हाथ डालने से बचें। यह भी एक वजह रहती है कि किसी प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल होने वाले लोग अधिक रहते हैं, और उसे छोडऩे वाले लोग कम रहते हैं। पश्चिम बंगाल में ही यह नजारा देखने लायक है कि जिन लोगों ने ममता बनर्जी की पीठ में छुरा भोंककर पार्टी छोड़ी थी और भाजपा में गए थे, उनमें से हजारों लोग आज कतार लगाकर घरवापिसी के लिए खड़े हैं और ऑटो रिक्शा में लाउडस्पीकर लगाकर पूरे शहर में मुनादी कर रहे हैं कि उन्होंने भाजपा में जाकर बहुत बड़ा गलत काम किया था, और अब दीदी के पास लौटना चाह रहे हैं। दीदी के पास लौटने की ऐसी और कोई मजबूरी नहीं है सिवाय इसके कि सत्तारूढ़ पार्टी की गुंडागर्दी और पुलिस के किसी मामले में फंसने पर विपक्ष में होने का नुकसान, इसका खतरा उन्हें दिख रहा है।

यह तो भला हो मोबाइल फोन पर वीडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा का जो कल बिलासपुर के बाजार में किसी ने कांग्रेसी गुंडे की इस हरकत को रिकॉर्ड कर लिया और यह भी रिकॉर्ड किया कि किस तरह एक पुलिस सिपाही सहनशील बना हुआ इस गुंडागर्दी के खिलाफ हाथ नहीं उठा रहा था वरना वह कद काठी में इतना था कि इस कांग्रेस नेता को वहीं पीटकर रख देता जिसने कि बाद में यह दावा किया है कि उसकी बीवी भी साथ में थी। यह बात भी सोचने के लायक है कि बीवी साथ में रहते कोई नेता सडक़ पर किस तरह की गुंडागर्दी कर सकता है और किस तरह पुलिस को गंदी गालियां दे सकता है। यह सिलसिला अधिकतर प्रदेशों में सत्ता की मेहरबानी से चलने वाली गुंडागर्दी को बढ़ाते भी चलता है। एक तरफ तो पुलिस सूरजमुखी की तरह हो जाती है जो कि सत्ता का चेहरा देख-देखकर यह तय करती है कि कौन सी बात जुर्म है, और कौन सी नहीं। 

दूसरी तरफ सरकारी वकील सत्तारूढ़ पार्टी के पसंदीदा और उसके तय किए हुए होते हैं इसलिए अदालत में सजा दिलवाने की उनकी दिलचस्पी उस वक्त घट जाती है जब कटघरे में उनके ही संगी साथी रहते हैं। फिर इसके बाद सत्ता की ताकत ऐसी रहती है कि पुलिस गवाहों को मार-मारकर भगा देती है या बागी बना देती है, तमाम सबूतों को बर्बाद कर देती है। और सच तो यह है कि सत्ता की मर्जी के खिलाफ किसी को सजा दिला पाना बहुत ही मुश्किल काम होता है। फिलहाल जिस घटना से यह लिखना शुरू हुआ है उसे लेकर प्रदेश कांग्रेस को अपना मुंह खोलना चाहिए और प्रदेश के गृह मंत्री को भी बताना चाहिए कि उनकी पार्टी के ब्लॉक अध्यक्ष जब उनकी उनके विभाग की पुलिस को पीट रहे हैं, मां-बहन की गालियां दे रहे हैं तो गृहमंत्री की जिम्मेदारी अपनी पार्टी के प्रति बनती है या अपने सिपाही के प्रति? 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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