संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सबको मालूम है आंकड़ों की हकीकत लेकिन दिल के बहलाने को रिकॉर्ड का तरीका अच्छा है
23-Jun-2021 1:38 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सबको मालूम है आंकड़ों की  हकीकत लेकिन दिल के बहलाने  को रिकॉर्ड का तरीका अच्छा है

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर देशभर में जलसे किए गए और इस दिन कोरोना वैक्सीनेशन का एक नया रिकॉर्ड बनाने के लिए कई राज्यों ने बड़ी मेहनत की। खासकर भाजपा के राज वाले पांच राज्यों ने इस दिन इतनी बड़ी संख्या में टीके लगाए कि भारत के कुल आंकड़े केंद्र सरकार के मुताबिक एक टीकाकरण विश्व रिकॉर्ड बना रहे हैं। यह एक अलग बात है कि चीन में टीकाकरण कई हफ्तों से लगातार इसके खूब अधिक चल रहा है और भारत के आंकड़े कहीं दूर-दूर तक उसे छू भी नहीं पा रहे हैं। भारत में हर दिन 25 30 लाख लोगों को टीके लग रहे थे और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के दिन यह टीकाकरण बढक़र 1 दिन में 85 लाख पहुंच गया। इसे बहुत बड़ी कामयाबी बताया गया लेकिन इन आंकड़ों की हकीकत देखना हो तो टीकाकरण के कुछ दिन पहले और उसके बाद के आंकड़े देखना जरूरी है। भाजपा के पांच राज्यों में 21 जून योग दिवस के पहले के दिनों में टीकाकरण कम किया गया और रोक कर रखे गए सारे टीके रिकॉर्ड बनाने के इस दिन लगाए गए। मध्यप्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात, और हरियाणा, इन सभी जगहों पर करीब एक सा ट्रेंड देखने मिला। मध्य प्रदेश के आंकड़े सबसे अधिक हैरान करते हैं जहां 20 जून को 700 से कम लोगों को टीके लगाए गए, 21 जून को 16 लाख 93 हजार लोगों को टीके लगाए गए, और 22 जून को 48 सौ लोगों को टीके लगाए गए। यह उतार-चढ़ाव इस बात का सुबूत है कि कई राज्यों ने टीकाकरण के दिन रिकॉर्ड बनाने के लिए टीके  बचाकर रखे।

आंकड़ों का यह खेल हिंदुस्तान में कोई नई बात नहीं है, यह पहले से चले आ रहा एक ऐसा खेल है जिसे रिकॉर्ड बनाने के लिए लोग इस्तेमाल करते हैं। लोगों को याद होगा कि आपातकाल में नसबंदी का रिकॉर्ड बनाने के मुकाबले में अफसर और नेता लगे रहते थे और संजय गांधी को खुश करने के लिए एक-एक नसबंदी कैंप में हजारों लोगों को दरी पर लिटाकर और तमाम किस्म की गंदगी के बीच रफ्तार से उनकी नसबंदी की जाती थी, और वे किसी सामान की तरह, बड़े-बड़े कमरों या हॉल में फर्श पर डाल दिए जाते थे। इसके बाद भी कभी किसी एक जिले में किए जाने वाले ऑपरेशन, या कभी किसी एक दिन में करने वाले सर्वाधिक नसबंदी का रिकॉर्ड, आंखों के ऑपरेशन के मामले में भी कई जगह किया जाता है। डॉक्टर रफ्तार से ऑपरेशन करते हैं और आंकड़ों का रिकॉर्ड बनाते हैं। ऐसा ही अभियान पौधे लगाने का होता है और एक-एक दिन में दसियों लाख से लेकर करोड़-करोड़ तक पौधे लगाने का अभियान छेड़ा जाता है फिर चाहे उनमें से दो चार फ़ीसदी भी पौधे जिंदा ना बचें.  कुछ संगठन रक्तदान का भी ऐसा रिकॉर्ड बनाते हैं फिर चाहे दान में मिले उतने खून को रखने की क्षमता ब्लड बैंक की हो या ना हो। रिकॉर्ड बनाने की चाह इंसान की जिंदगी की एक बड़ी चाह रहती है। सरकारों के अलग-अलग तबके इस फेर में रहते हैं कि कैसे कोई बड़ा रिकॉर्ड बने, और कैसे वह बड़ी खबर बने, और कैसे किसी विश्वसनीय या अविश्वसनीय रिकॉर्ड कंपनी की तरफ से एक सर्टिफिकेट हासिल करके उसे दीवार पर टंगा जाए। यह सिलसिला बड़ा खराब है। हिंदुस्तान में योग दिवस के दिन अधिक से अधिक टीके लगाने का रिकॉर्ड बनाने के लिए राज्य सरकारों ने कई दिन पहले से ही टीकों की रफ्तार घटा दी थी। जानकार लोगों ने यह सवाल भी उठाया है कि जिन लोगों को 4 दिन पहले टीके लग सकते थे उन्हें रोककर योग दिवस के दिन टीका लगाने से उनकी जिंदगी 4 दिन अधिक तो खतरे में पड़ेगी क्योंकि टीके का जो फायदा उन्हें जिस दिन मिलना शुरू हो सकता था उसे 4 दिन लेट किया गया।

सरकारों का ऐसा मिजाज देखना है तो लोक अदालतों में देखना चाहिए जो कि अपने प्रदेश के हाईकोर्ट जजों को खुश करने के लिए या जिला अदालत के जजों को खुश करने के लिए लगाई जाती हैं. उनमें आंकड़ों की भरमार करने के लिए छोटे-छोटे ट्रैफिक चालान रोककर रखे जाते हैं जिन्हें लोक अदालत में ही निपटाया जाए, राशन के या आबकारी के छोटे-छोटे मामले बनाए जाते हैं और उन्हें रोक कर रखा जाता है ताकि लोक अदालत की रिकॉर्ड बनाने के हसरत का पेट भरा जा सके। ऐसी लोक अदालतों में लोगों के बीच के छोटे-छोटे झगड़ों का निपटारा जो कि पहले हो चुका रहना चाहिए था उन्हें पुलिस या अदालत के पास रोक कर रखा जाता है कि इन्हें लोक अदालत में पेश किया जाएगा ताकि वहां अधिक से अधिक मामले निपटाने का एक नया रिकॉर्ड कायम हो सके। आंकड़ों की यह मोह माया बहुत ही गलत है और खासकर उस वक्त जब यह लोगों की सेहत से जुड़ी हुई है।

लोगों ने सोशल मीडिया पर यह गिनाया भी है कि हिंदुस्तान में जो लोग इसे भारत की एक दिन की सबसे बड़ी उपलब्धि करार दे रहे हैं और इसे दुनिया में एक दिन का सबसे अधिक टीकाकरण करार दे रहे हैं उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि चीन में पिछले कई हफ्तों से हर दिन औसतन डेढ़ करोड़ लोगों को टीके लग रहे हैं. हिंदुस्तान तो हफ्ते भर के टीके को रोककर भी इसके किसी किनारे तक नहीं पहुंच पाया है, शायद इसके आधे तक ही पहुंचा है। सेहत को लेकर ऐसे रिकॉर्ड कायम करने के खिलाफ किसी अदालती आदेश की जरूरत है क्योंकि सरकारों में बैठे हुए लोग तो अपनी कामयाबी दिखाने के लिए आंकड़ों पर सवार रहते ही हैं, यह सिलसिला खत्म होना चाहिए। जिस दिन जिस प्रदेश के हाथ में जितने टीके थे, उन्हें जल्दी से जल्दी लोगों को लगाना चाहिए था। अगर लोगों को किसी दिन के इंतजार में टीकों को फ्रिज में रखना है और लगवाने वालों को इंतजार करवाना है तो यह एक जुर्म है. भारत में अभी एक आईआईटी ने कोरोना की तीसरी लहर को लेकर अपना जो अंदाज यह सामने रखा है, वह दिल दहलाने वाला है इसके मुताबिक सितंबर के बीच तक कोरोना के आंकड़े पिछली लहर के सबसे अधिक से भी सवा गुना अधिक पहुंच जाएंगे। और ऐसी लहर के पहले जिस तरह देश की अधिकतर आबादी के टीकाकरण का काम हो जाना चाहिए, वह किसी किनारे लगते नहीं दिख रहा है। जो देश अपनी झूठी कामयाबी के झूठे आत्मगौरव में डूबा रहता है उसे कड़वी और खुरदरी जमीनी हकीकत का एहसास भी नहीं हो पाता, क्योंकि क्योंकि उसके पांव ही जमीन पर नहीं पड़ते हैं। हिंदुस्तान को ऐसे झूठे और फर्जी आत्मगौरव से बचना चाहिए क्योंकि ऐसी उपलब्धि का एक झूठा एहसास उसे सचमुच की मेहनत करने से रोक रहा है, उसे अपने सामने खड़ी हुई असली चुनौती को देखने से रोक रहा है।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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