संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : तेलंगाना का इतना बड़ा तोहफा पाने के लिए तैयार हैं दलित?
28-Jun-2021 7:26 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : तेलंगाना का इतना बड़ा तोहफा पाने के लिए तैयार हैं दलित?

तेलंगाना सरकार का एक नया फैसला सामने आया है जिसमें राज्य के तमाम गरीब दलित परिवारों को सरकार अगले 4 बरस में 10-10 लाख रुपए देगी। यह योजना 40000 करोड़ों रुपए खर्च करने की है और राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने बाकी पार्टियों से भी अपील की है कि वे राजनीति से परे इस योजना में साथ देने के लिए दलित परिवारों की शिनाख्त में मदद करें। दलित, आदिवासी, या देश के दूसरे कमजोर तबकों की मदद के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की बहुत सी योजनाएं हैं। लेकिन दलित परिवारों को सीधी मदद के साथ-साथ इस तबके के व्यापक फायदे के लिए उनके सशक्तिकरण पर तेलंगाना सरकार 40000 करोड़ रुपए खर्च करने जा रही है। यह देश में अपनी किस्म का सबसे बड़ा खर्च या पूंजी निवेश है। अगर इससे इन परिवारों और इस तबके की उत्पादकता बढ़ती है तो यह पूंजी निवेश है वरना यह एक अनुदान रहेगा और इससे होने वाले फायदों को लेकर सवाल उठेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के किसानों के खाते में सीधे मदद भेजने का एक सिलसिला शुरू किया, और छोटी-छोटी रकम किस्तों में उनके बैंक खातों में पहुंचने लगी और कुछ हजार रुपए हर कुछ महीने के बाद किसी किसान परिवार को मिले। वैसी योजना का तेलंगाना की ताजा योजना से कोई मुकाबला नहीं हो सकता। और कई राज्य हैं जो दलित या आदिवासी या गरीबी की रेखा के नीचे के परिवारों को कई तरह की मदद करते हैं। छत्तीसगढ़ ने बिना जातिगत आधार के सभी किसानों के कर्ज माफ किये, और सभी का धान महंगे में खरीदा, सबको धान-बोनस दिया। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना जैसी योजनाएं चलती हैं जिनमें हर जोड़े पर 25-30 या 50 हजार रुपियों तक का खर्च सरकार उठाती है। जयललिता ने तमिलनाडु का मुख्यमंत्री रहते हुए कई किस्मों की योजनाएं शुरू की थी जिनमें गरीबों को 5 या 10 में भरपेट खाना देने की योजना सबसे अधिक लोकप्रिय हुई थी और वह आज भी वहां जारी है। छत्तीसगढ़ में इस किस्म के खाने की योजना शुरू हुई, लेकिन वह चल नहीं पाई और धीरे-धीरे उसने दम तोड़ दिया। अब हर राज्य अपनी ऐसी लुभावनी योजना सामने रखकर बाकी राज्यों के सामने एक चुनौती भी खड़ी कर देते हैं कि वे अपने राज्य के उन तबकों के लोगों के लिए क्या कर सकते हैं? तेलंगाना की इस योजना पर प्रतिक्रियाओं को अभी हमने पूरा देखा नहीं है लेकिन खबरों में जितनी जानकारी आई है वह यही है के राज्य सरकार 4 बरस में दलित तबकों के लिए 40 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है और हर गरीब दलित परिवार को 10-10 लाख रुपए सहायता नगद देने का फैसला लिया गया है। 

यह रकम खासी बड़ी होती है और अगर दलित परिवार अपने मौजूदा रोजगार के अलावा इस रकम का समझदारी से इस्तेमाल करें तो उनकी जिंदगी बदल सकती है। लेकिन बहुत से लोगों का यह तजुर्बा रहा है कि जब लोगों को बिना मेहनत के अचानक ऐसी मदद मिलती है तो उनके पास इसके सही इस्तेमाल की सोच नहीं रहती और परिवार अपनी तमाम अपूरित हसरतों पर ऐसी रकम खर्च कर देता है। अगर सरकार ने इसके साथ कोई बंदिश नहीं रखी होगी, तो हो सकता है कि बहुत से परिवार शादी-ब्याह में इसे खर्च कर दें, या परिवार के लडक़े-लड़कियां शौक के दुपहिया खरीदने में इस रकम को लगा दें, या परिवार अगर धार्मिक होगा तो हो सकता है कि तीर्थ यात्रा पर इसका कुछ हिस्सा खर्च हो जाए। अब सवाल यह है कि आर्थिक रूप से कमजोर दलित परिवारों की मदद तो ठीक है, लेकिन उस मदद का उनके लिए अच्छा इस्तेमाल भी हो जाए, यह देखना भी सरकार का जिम्मा है, और रहेगा। 

सरकार को सिर्फ मदद नहीं देनी चाहिए यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इस मदद से उस परिवार का एक लंबे समय का भला होगा, वरना यह भी हो सकता है कि हर साल ढाई लाख रुपए मिलने हैं, जो कि बीस हजार रुपये महीने के करीब होते हैं, तो ऐसे में कोई भी काम करने की क्या जरूरत है? ऐसे परिवार मेहनत करना कम कर सकते हैं, मौजूदा काम से जी चुरा सकते हैं, और 4 बरस बाद वे उसी जगह बैठे रह सकते हैं, जहां आज हैं।  बात यह भी है कि दूसरे राज्यों के सामने तो यह चुनौती बाद में रहेगी, खुद तेलंगाना में अगली जो भी सरकार रहेगी, उसके सामने यह एक बड़ी चुनौती रहेगी कि इसका मुकाबला करने लायक और कौन सी लोक लुभावनी योजना वह सरकार ला सकती है? और यह मामला अगली सरकार के आने तक भी नहीं चलेगा, यह तो अगले विधानसभा चुनाव में मुकाबले में खड़ी तमाम बड़ी पार्टियों के सामने रहेगा कि वे अपने चुनाव घोषणापत्र में 10 लाख की इस रकम को 20 लाख तक ले जाती हैं, या दलितों से परे इसे आदिवासियों तक ले जाती हैं, या इसमें ओबीसी को भी शामिल किया जाता है, या गरीबी की रेखा के ऊपर के लोगों को भी इसमें शामिल किया जाता है। 

मुफ्त में दिए जाने वाले 100 फ़ीसदी अनुदान आदतों को बिगाडऩे वाले भी होते हैं। हम खुद गरीब दलित परिवारों के भले के लिए अपने सवाल खड़े कर रहे हैं कि इस रकम का बेहतर इस्तेमाल करने की उनकी तैयारी करवाना भी सरकार की जिम्मेदारी है। सीधे उनके खाते में एकमुश्त सालाना ढाई लाख या हर महीने 20000 भेज देना न तो जनता के पैसों का अच्छा इस्तेमाल होगा और न ही इनसे उन परिवारों का बहुत भला होगा। गरीब कल्याण की जितनी अनुदान योजनाएं रहती हैं उनके साथ लोगों को आलसी बनाने का एक खतरा भी लगे रहता है। इस देश में गरीबों के कल्याण की जो सबसे कामयाब योजना रही वह ग्रामीण रोजगार देने की मनरेगा योजना रही जिसे यूपीए सरकार ने शुरू किया था और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके घोर आलोचक थे, लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद उनको यह बात समझ में आई कि देश के सबसे गरीब तबके के कल्याण के लिए मनरेगा से बेहतर कोई योजना नहीं हो सकती और मोदी ने पूरे उत्साह के साथ इस योजना को जारी रखा आगे बढ़ाया और इस पर दांव लगाया। लेकिन वह योजना, रोजगार योजना थी, उसमें स्थानीय बाजार के मजदूरी के रेट से अधिक मजदूरी सरकार देती है, और जिन इलाकों में मजदूरी का कोई बाजार नहीं है वहां भी सरकार लोगों को साल में 100 दिन रोजगार देने के लिए इस योजना को चला रही है। ऐसी हालत में यह योजना घर बैठे बिना मेहनत खाने की योजना नहीं है बल्कि जाकर मजदूरी करके कमाने की योजना है। 

तेलंगाना सरकार की यह ताजा दलित कल्याण योजना हमारे मन में कई तरह के संदेह और कई तरह के सवाल खड़े करती है। गरीबी की रेखा के नीचे के या गरीबी के किसी और पैमाने पर छांटे गए दलित परिवारों की महीने की कमाई भी आज शायद उतनी नहीं होगी जितनी मदद यह सरकार उन्हें 4 वर्ष तक करने जा रही है। क्या यह मदद उन्हें 4 बरस तक बिना किसी काम के निठल्ला बैठने के लिए बढ़ावा देगी? अगर ऐसा होगा तो इस राज्य में यह रवैया बढ़ते बढ़ते और खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगा। हमने इसी पन्ने पर अभी कुछ दिन पहले तमिलनाडु सरकार की एक सोच की तारीफ की थी जिसमें राज्य के आर्थिक विकास के लिए एक ऐसी सलाहकार समिति वहां राज्य सरकार ने बनाई है जिसमें ज्यां द्रेज़ जैसे गरीबों के हिमायती अर्थशास्त्री हैं, और हाल ही में नोबेल पुरस्कार पाने वाली अमेरिका में पढ़ा रहे हैं एक दूसरी अर्थशास्त्री भी हैं। उसमें रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे हुए रघुराम राजन को भी रखा गया है, और ऐसे लोगों के रहते हुए वहां पर गरीबों के कल्याण की बात भी होगी और आर्थिक मामलों के जानकार लोगों के संदेह भी मेज पर रहेंगे कि इनसे सचमुच का फायदा लोगों को किस तरह पहुंचे। अभी तक की खबरों के मुताबिक तेलंगाना मुख्यमंत्री की यह ताजा घोषणा इस तरह की किसी सलाहकार समिति की सिफारिश या व्यापक जन चर्चा के बाद लिया गया फैसला नहीं है। यह फैसला लेकर इसकी घोषणा की गई है। इसलिए ऐसे फैसले के साथ जो खतरे जुड़े रह सकते हैं उन पर कोई चर्चा हुई हो ऐसा हमें नहीं दिख रहा है। हम किसी भी तरह से गरीब दलित परिवारों के उत्थान के लिए किसी राज्य सरकार द्वारा खर्च करने सीधी नगद मदद करने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इस मदद का उत्पादक इस्तेमाल हो यह  राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है और जो हमें आज तेलंगाना में नहीं दिख रही है।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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