विचार / लेख
-प्रकाश दुबे
78 बरस की आयु में भी सूबे में उसका दबदबा कायम है। एक बार सूबेदार को बदला। उसने पलटवार कर तख्ता पलट करने वालों का सूबे में सूपड़ा साफ कर दिया। वैसे वह राज-सन्यासी या सन्यासी-राजा है। सौदा-सुलफ, तबादले वगैरह बेटे के सिपुर्द कर रखे हैं। सूबे की गद्दी छिनने की हलचल भांपकर मांगों का कटोरा लेकर इंद्रप्रस्थ जा पहुंचा। दिल बड़ा कर कहा- सूबेदारी छोड़ दूंगा। इंद्रप्रस्थ दिल्ली की जमींदारी का कुछ हिस्सा कटोरे में मेरे लाडलों के लिए डाल दो। सूबे की एक रानी को बादशाह सलामत ने जमींदारी सौंपी। तब से बेटा बौखलाया है। कड़ी धूप में बेटे-पोते के साथ साधारण कहवाघर में काफी चुस्कियाते सूबेदार का नाम समझे? सूबेदारों का नाम बेरहम दिल्ली के बादशाह सलामत और उनके मोठा भाई तय करते हैं। कर्नाटक के लिए वैधानिक चेतावनी-नाम का संतोष भी सिर्फ संगठन पाकर सदा सुखी नहीं रहता।
परिषद का पढ़ाकू
नए शिक्षा मंत्री की प्रधान पात्रता क्या है? यही, कि उनकी डिग्री को लेकर बखेड़ा खड़ा नहीं होगा। एमए की डिग्री सच्ची है। पीएचडी का झूठा दावा नहीं किया। उनके प्रतिनिधित्व पर जरूर तीन तीन दावे किए जा सकते हैं। प्रधान दावा पैदाइश और शिक्षा के आधार पर ओडिशा का है। संसद में पहुंचने का पहला अवसर बिहार से मिला। मेहमानों की आवभगत में मध्यप्रदेश को अजब गजब महारत हासिल है। लालकृष्ण आडवाणी, एम जे अकबर, प्रकाश जावड़़ेकर, रामदास आठवले मध्य प्रदेश से राज्यसभा में पहुंचे। दूसरी बार राज्यसभा में मध्य प्रदेश से पहुंचे प्रधान को प्रधानमंत्री ने शिक्षा महकमे का मानीटर बनाया। केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड की परीक्षा रद्द करने में आनाकानी करने पर हेड मास्टर ने निशंक को क्लास से निकाल दिया। शिक्षा मंत्री बने धर्मेन्द्र अनुशासित विद्यार्थी परिषदिया हैं। दूरदर्शन दौर के चमकदार टीवी पत्रकार प्रभात डबराल ने मित्र निशंक के आंसू पोंछे। कहा-उत्तराखंड के कोटद्वार में जन्मे दो वीर हेड मास्टर की मनमानी नहीं मानते। वे हैं-उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रमेश पोखरियाल निशंक। प्रभात स्वयं कोटद्वारिया हैं।
बंदिनी पिया की
सौतिया डाह का बखान करने की अपनी हैसियत कहां? कई धुरंधर ज्ञानी बैठे हैं। तीन तलाक का समर्थन करना अलग बात है। इतना कहने की हिम्मत करें
कि सौतों को आपस में भिड़ाकर चैन की सांस ली जा सकती है। दिल्ली के उपराज्यपाल पसंदीदा सौत की तरह हैं। उन्हें अधिक अधिकार हैं। और जब सैंया हों कोतवाल तो डर काहे का? मतदाता माई-बाप ने सात वचन के साथ पेरे लगवाए। इसलिए निर्वाचित रानी की मनीषा को यह बात नागवार गुजरी। उपराज्यपाल अनिल बंसल के पास दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया की शिकायती चिट्ठी पहुंची। इबारत का मजबून कुछ यूं था-बहना। अपनी देहरी मत लांघो। वे तो बदनाम हैं ही। तुम किसे मुंह दिखाओगी। हमारे अहाते में घुसकर इस तरह दखलंदाजी करना ठीक नहीं है। इस दिलचस्प सियासी खींचतान में दो उपरानियां भिड़ी हैं। उपराज्यपाल और उपमुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मैच का नतीजा देख रहे हैं। मुख्य और प्रधान बनने पर यह गुण अपने आप आ जाता है।
पढ़ो और पढ़ाओ
इस पाठशाला में बिना परीक्षा दिए पास होना कठिन है। परीक्षा हमेशा आन लाइन नहीं होती। दिल्ली बारिश को तरस रही है। संसद में वर्षाकालीन अधिवेशन के मेघ बस बरसने को हैंअचानक बड़ा ओहदा पाने वाले हों या राज्यमंत्री, सब पढ़ाई में जुटे हैं। मंत्रियों को सिखाने-पढ़ाने लिखाने का जिम्मा संभालने वाले कुछ नौकरशाह मंत्री बन गए। वे अपने बाद अफसरी करने वालों से सबक सीख रहे हैं। तीन कृषि कानून, चुनावी खींचतान वगैरह की बिजली कडक़ रही है। माहौल पर काबू पाने के लिए मंत्रालयों से जानकारियां मंगाकर सत्तापक्ष के सांसदों को सौंपी जा रहीं हैं। पढक़र सही जवाब देना, ताकि सदन में सरकार का बचाव हो सकें। सत्ता पक्ष के मुख्य सचेतक के सिर पर इस बार एक और जिम्मेदारी है। अन्य दलों से आए सांसदों को अपनी पार्टी की कार्य-संस्कृति में ढालना आसान काम नहीं है। मुख्य सचेतक राकेश सिंह ने सभी संसदों को लोकसभा की पाठशाला में हाजिर रहने का आदेश जारी कर दिया है। इसे सचेतक यानी व्हिप कहते हैं। व्हिप यानी चाबुक। सत्र के दौरान कई मर्तबा मंत्री तक सदन से गैरहाजिर पाए जाते हैं।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)