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‘हम हार गए’: अफगानिस्तान में बहाए लहू को बर्बादी मानते हैं कई अमेरिकी सैनिक
21-Jul-2021 1:32 PM
‘हम हार गए’: अफगानिस्तान में बहाए लहू को बर्बादी मानते हैं कई अमेरिकी सैनिक

अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से लौटता देख लोग पूछ रहे हैं कि इस युद्ध से क्या हासिल हुआ. बहुत से सैनिक मानते हैं कि अमेरिका यह युद्ध हार गया.

   (dw.com)

जेसन लाइली मरीन रेडर नाम के विशेष अमेरिकी बल का हिस्सा थे और उन्होंने इराक व अफगानिस्तान में कई अभियानों में हिस्सा लिया. 41 साल के लाइली जब राष्ट्रपति जो बाइडेन के अफगानिस्तान से सेनाएं वापस बुलाने के फैसले के बारे में सोचते हैं तो जितना उन्हें अपने देश पर प्यार आता है, उतनी ही राजनेताओं के प्रति घिन भी जाहिर करते हैं.

अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध में जो धन और लहू बहाया गया, उस पर लाइली को बहुत अफसोस है. वह कहते हैं कि उन्होंने जो साथी इस युद्ध में खोए हैं, वे बेशकीमती थे. लाइली कहते हैं, "हम यह युद्ध हार गए. सौ फीसदी. मकसद तो तालिबान का सफाया था. और वो हमने नहीं किया. तालिबान फिर से देश कब्जा लेगा.” बाइडेन का कहना है कि अफगानिस्तान के लोगों को अपना भविष्य खुद तय करना होगा और अमेरिका को एक ना जीते जा सकने वाले युद्ध में एक और पीढ़ी बर्बाद नहीं करनी है.

बेमकसद युद्ध
11 सितंबर 2001 को न्यू यॉर्क में अल कायदा द्वारा किए गए आतंकवादी हमले के जवाब में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया था. ब्राउन यूनिवर्सिटी के कॉस्ट्स ऑफ वॉर प्रोजेक्ट के तहत दो दशक तक चले इस युद्ध में अमेरिका और उसके सहयोगियों के 3,500 सैनिकों की मौत हुई. 47 हजार से ज्यादा अफगान नागरिक मारे गए. कम से कम 66 हजार अफगान सैनिकों की जान गई और 27 लाख से ज्यादा अफगान नागरिकों ने देश छोड़ दिया.

16 साल तक अमेरिका के ‘आतंक के खिलाफ युद्ध' में मोर्चे पर तैनात रहे लाइली पूछते हैं कि क्या यह युद्ध लड़ने लायक था? वह तो सोचते थे कि फौजों को इसलिए तैनात किया गया है ताकि दुश्मन को हराया जाए, अर्थव्यवस्था को गति मिले और अफगानिस्तान को पूर्ण रूप से ऊपर उठाया जा सके. लेकिन जो हासिल हुआ, उस पर वाइली कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि इसके लिए दोनों तरफ से एक भी जान गंवाई जानी चाहिए थी.”

ऐसा सोचने वाले लाइली अकेले नहीं हैं. दो दशक की जंग के बाद जब अमेरिकी फौजें घर लौट रही हैं तो देश के बहुत से लोग इसके नतीजों पर विचार कर रहे हैं. कई अन्य पूर्व सैनिक लाइली से सहमत नहीं हैं. बहुत से लोगों को लगता है कि इस युद्ध की बदौलत महिलाओँ की स्थिति बेहतर हुई और नेवी सील कमांडो अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में घुसकर खत्म करने में कामयाब रहे.

सेना की वापसी सही
हालांकि, सेनाओं को वापस बुलाने के बाइडेन के फैसले के पक्ष में ज्यादातर लोग हैं. इसी महीने हुए रॉयटर्स-इप्सोस के एक सर्वेक्षण के मुताबिक सिर्फ 30 प्रतिशत डेमोक्रैट्स और 40 प्रतिशत रिपब्लिकन मानते हैं कि सेनाओं को वापस बुलाने का फैसला गलत है. लेकिन लाइली और उन जैसे बहुत से पूर्व सैनिक इस युद्ध की तुलना वियतनाम युद्ध से करते हैं. वह कहते हैं कि दोनों ही युद्धों का कोई स्पष्ट मकसद नहीं था. दोनों युद्धों के दौरान एक से ज्यादा राष्ट्रपति बदले और दोनों बार सामना एक बहुत खूंखार दुश्मन से था जिसकी कोई वर्दी नहीं है.

लाइली और उनका नेटवर्क अमेरिकी जनता को युद्ध की कीमत बताने का काम कर रहा है. उन्हीं के नेटवर्क में काम करने वाले 34 वर्षीय जॉर्डन लेयेर्ड कहते हैं कि उनके साथी अफगानिस्तान और इराक को ‘विएतस्तान' कहते हैं. वह अफगानिस्तान के हेल्मंड प्रांत में अक्टूबर 2010 से अप्रैल 2011 के बीच तैनात रहे. इस दौरान उन्होंने 25 साथी खोए और 200 से ज्यादा अपंग हो गए.

साम्राज्यों की कब्रगाह
वाइली कहते हैं कि अफगानिस्तान में तैनाती के दौरान उन्होंने जाना कि क्यों इस जगह को इतिहासकारों ने ‘साम्राज्यों की कब्रगाह' कहा है. 19वीं सदी में ब्रिटेन ने दो बार अफगानिस्तान पर हमला किया और 1842 में सबसे बुरी हार झेली. सोवियत संघ ने 1979 से 1989 तक अफगानिस्तान में जंग लड़ी और 15 हजार लाशें व हजारों घायल सैनिक लेकर लौटा.

लाइली बताते हैं कि अमेरिकी सेना के युद्ध के नियमों को लेकर वह हमेशा सशंकित रहे. जैसे कि उन्हें रात को तालिबान पर हमले की इजाजत नहीं थी. वह कहते हैं, "मरीन सैनिक बच्चों को चूमने और पर्चे बांटने के लिए नहीं बने हैं. हम वहां सफाया करने के लिए होते हैं. हम दोनों काम नहीं कर सकते. इसलिए हमने कोशिश की और हार गए.”

लाइली की आलोचना पर अमेरिका सेना ने कोई टिप्पणी नहीं की. लेकिन लाइली एक तालिबानी कैदी की बात को अक्सर याद करते हैं. उस कैदी ने लाइली से कहा था कि तालिबान अमेरिका के जाने का इंतजार करेंगे क्योंकि वे जानते हैं कि एक दिन अमेरिकी इस युद्ध पर भरोसा खो बैठेंगे, ठीक वैसे ही जैसे सोवियतों के साथ हुआ था. लाइली कहते हैं, "यह 2009 की बात थी. आज हम 2021 में हैं. और वह सही था.”

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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