विचार / लेख

खतरनाक है जातीय जन-गणना
27-Jul-2021 11:56 AM
खतरनाक है जातीय जन-गणना

बेबाक विचार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मांग की है कि इस बार जातीय जन-गणना जरुर की जाए और उसे प्रकट भी किया जाए। पिछली बार 2010 में भी जातीय जन-गणना की गई थी लेकिन सरकार उसे सार्वजनिक नहीं कर पाई थी, क्योंकि हमने उसी समय 'मेरी जाति हिंदुस्तानी' आंदोलन छेड़ दिया था। देश की लगभग सभी प्रमुख पार्टियों का रवैया इस प्रश्न पर ढीला-ढाला था। कोई भी पार्टी खुलकर जातीय जन-गणना का विरोध नहीं कर रही थी लेकिन कांग्रेस, भाजपा, कम्युनिस्ट पार्टी के कई प्रमुख शीर्ष नेताओं ने हमारे आंदोलन का साथ दिया था। उसका नतीजा यह हुआ कि सरकार ने जातीय जन-गणना को बीच में रोका तो नहीं लेकिन श्रीमती सोनिया गांधी ने हमारी पहल पर उसे सार्वजनिक होने से रुकवा दिया।

2014 में मोदी सरकार ने भी इसी नीति पर अमल किया। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी ने हमारा डटकर समर्थन किया था।अब कई नेता दुबारा उसी जातीय जन-गणना की मांग इसीलिए कर रहे हैं कि वे जातिवाद का पासा फेंककर चुनाव जीतना चाहते हैं। उनका तर्क यह है कि जातीय जन-गणना ठीक से हो जाए तो जो पिछड़े, गरीब, शोषित-पीडि़त लोग हैं, उन्हें आरक्षण जरा ठीक अनुपात में मिल जाए लेकिन वे यह क्यों नहीं सोचते कि 5-7 हजार नई सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिल जाने से क्या 80-90 करोड़ वंचितों का उद्धार हो सकता है? यह जातीय आरक्षण-अयोग्यता, ईर्ष्या-द्वेष और अविश्वास को बढ़ाएगा ही। जरुरी यह है कि देश के 80-90 करोड़ लोगों को जिंदगी जीने की न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं।

उनका आधार जाति नहीं, जरुरत हो। जो भी जरुरतमंद हो, उसकी जाति, धर्म, भाषा आदि को पूछा न जाए। उसके लिए सरकार विशेष सुविधाएं जुटाए। जातीय आरक्षण एकदम खत्म किया जाए। अंग्रेज ने जातीय जन-गणना 1857 के बाद इसीलिए शुरु की थी कि वह भारतीयों की एकता को हजारों जातियों में बांटकर टुकड़े-टुकड़े कर दे। 1947 में उसने मजहब का दांव खेलकर भारत को दो टुकड़ों में बांट दिया। 1931 में कांग्रेस ने जातीय जन-गणना का इतना कड़ा विरोध किया था कि अंग्रेज सरकार को उसे बंद करना पड़ा था। स्वतंत्र भारत में डॉ. लोहिया ने 'जात तोड़ो' आंदोलन चलाया था। सावरकर और गोलवलकर ने जातिवाद को राष्ट्रवाद का शत्रु बताया था।

कबीर, नानक, दयानंद, विवेकानंद, गांधी, फुले, आंबेडकर आदि सभी महापुरुषों ने जिस जातिवाद का खंडन किया था, उसी जातिवाद का झंडा यह राष्ट्रवादी सरकार क्यों फहराएगी? बेहतर तो यह हो कि मोदी सरकार न सिर्फ जातीय आरक्षण खत्म करे बल्कि सरकारी कर्मचारियों के जातीय उपनामों पर प्रतिबंध लगाए, विभिन्न संगठनों, गांवों और मोहल्लों के जातीय नाम हटाए जाएं और देश के सभी वंचितों और पिछड़े को किसी भेद-भाव के बिना शिक्षा और चिकित्सा में विशेष सुविधाएं दी जाएं।
(नया इंडिया की अनुमति से)

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news