सामान्य ज्ञान
फ्लोरीन सामान्यत: सबसे हल्का, अत्यधिक क्रियाशील हैलाइड परिवार की सदस्य है। मिट्टी तथा चट्टानों में पाये जाने वाले खनिजों से क्रिया कर अलग-अलग तरह के पदार्थ बना लेती है इसके दो अणु मिलकर फ्लोराइड का निर्माण करते हैं। नदियों, झीलों के सतही जल, ज्वालामुखीय चट्टानें पहाड़ी इलाके एल्केलाइन, हाइड्रो-थर्मल स्प्रिंग, मैग्मा आदि भूमिगत जल के स्रोत हैं।
फ्लोराइड, फ्लोरोपेटाइट, क्रायोलाइट, टोपाज तथा मेइसचर इसके प्रमुख खनिज हैं। कुछ पेड़ पौधों भी कार्बनिक फ्लोराइड नामक विष का उत्पादन करते हैं जो शाकाहारी जीवों को गम्भीर रूप से प्रभावित करते हैं।
रसायनिक गुण- फ्लोरीन का परमाणु क्रमांक 9 है इसमें कुल 9 इलेक्ट्रॉन है जिसका इलेक्ट्रानिक विन्यास 2,7 है संयोजकता (-1) जिसके कारण यह अति क्रियाशील रहती है मिश्रित रूप में ही पाई जाती है। नान मेटल सल्फर, फासफोरस से विस्फोटक क्रिया करती है। हाइड्रोजन, कार्बन, लैम्प ब्लैक से क्रिया कर फ्लोरो मीथेन तथा ग्रेफाइट से 400 डिग्री सेलसियस पर क्रिया कर गैसीय पदार्थ फ्लोरो-कार्बन, कार्बन डाईऑक्साइड, हाइड्रोजन एवं फ्लोरीन क्रिया कर हाइड्रोजन फ्लोराइड बनता है जो जल में घुलनशील होने के कारण घुल कर हाइड्रो फ्लोरिक एसिड बनाता है जो पेयजल के रूप में मानव जीवन को अति प्रभावित करता है।
दन्त चिकित्सा विज्ञान तथा हड्डियों को मजबूती प्रदान करने के कारण, दांतों की कैविटी कन्ट्रोल के लिए पेयजल में अधिकतम 4.0 मिलीग्राम (4 पीपीएम) (1974 सेफ ड्रिकिंग वाटर एक्ट) प्रति लीटर रखा जा सकता है। इसकी उपयोगिता को देखते टूथ पेस्ट बनाने वाली कम्पनियां इसका उपयोग कर रही हैं।
फ्लोराइड का प्रभाव प्रति दिन ली गयी मात्रा तथा आयु पर निर्भर करती है। बच्चों में 80 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तथा प्रौढ़ में 60 प्रतिशत रूप जाता है शेष पेशाब के माध्यम से बाहर निकल जाता है। रूका हुआ फ्लोराइड का 70 प्रतिशत से 90 प्रतिशत भाग, खून द्वारा अवशोषित कर शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुंचता है जो हड्डियों, दांतों और अधिक कैल्शियमयुक्त भागों में जमा होता रहता है जो फ्लोरोसिस नामक रोग का कारण बनता है। यह शरीर में मुख्य रूप से पेयजल, टूथ पेस्ट, माऊथवास आदि डेन्टल उत्पाद पेस्टीसाइड, इन्सेक्टीसाइड, फॉसफेट युक्त रसायनिक खाद, टेन्डराइज माँस तथा चाय की पत्तियां आदि।
फ्लोरीन गैस का सर्वाधिक उपयोग लगभग 7 हजार मीट्रिक टन प्रति वर्ष न्यूक्लिर फ्यूल को बनाने में। 6 हजार मीट्रिक टन प्रतिवर्ष हाईवोल्टेज ट्रांसफार्मर, कूलेन्ट, सर्किट ब्रेकर तथा इलेक्ट्रॉनिक्स इन्डट्री में। स्टील निर्माण, वेल्डिंग रॉड के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल होता है। 23 किलोग्राम प्रतिटन फ्लोरोसिलिकेट के रूप में एल्यूमिनियम के शोधन में। कुल उत्पाद का 20 प्रतिशत फ्लोराइड तथा 40 प्रतिशत हाइड्रोफ्लोरिक एसिड, रेफ्रिजिरेटर इन्डस्ट्री, एअर कन्डीशन में। 30 प्रतिशत हरबी साइड, पेस्टी साइड, अन्य जीवाणु नाशक, फास्फोरसयुक्त रसायनिक खादें, तथा फसल चक्र को अनुकूलित करने में इसका उपयोग हो रहा है।
0.4 से 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर हड्डियों की मजबूती, दांतों की चमक तथा कैविटी के लिए उपयोगी है तो साथ ही साथ अधिक मात्रा विष की तरह है जो हाइड्रो के टूटने, टेढ़ी होने, दांतों का छयीकरण तथा मस्तिष्क पर पड़ता है। 4.0 मिग्राम से अधिक हानिकारक है ।