ताजा खबर
मवेशी चराने जंगल गए थे
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर, 28 जुलाई। छत्तीसगढ़ का शिमला सरगुजा के मैनपाट में हाथियों का उत्पात थमने का नाम नहीं ले रहा है। मंगलवार की शाम ढांडकेसरा में हाथियों के दल से भटके नर हाथी ने मचान पर सो रहे दो ग्रामीणों को कुचल कर मार डाला। हाथी ने चार अन्य ग्रामीणों को भी मारने की कोशिश की, लेकिन वे भागने में सफल रहे।
बताया जा रहा है कि 6 ग्रामीण मवेशी चराने के बाद जंगल में ही बने मचान पर सो रहे थे, तभी एक हाथी ने अचानक हमला कर दिया। हमले के बीच दो ग्रामीणों को हाथी ने कुचल कर मार डाला। इधर घटना की खबर लगते ही वन विभाग मौके पर पहुंचा हुआ था। विभाग द्वारा मृत ग्रामीणों के परिजनों को तत्कालिक सहायता राशि दी गई।
जानकारी के मुताबिक ढांडकेसरा के रामबली यादव, परपटिया निवासी लक्ष्मण यादव सहित 4 अन्य ग्रामीण जंगल में भैंस चराने के लिए गए हुए थे। भैंस चराने के बाद उक्त सभी ग्रामीण जंगल में बने मचान पर सो रहे थे। इसी दौरान 10 हाथियों के दल से भटके एक नर हाथी ने मचान पर हमला कर दिया। हमले से मचान टूट गया। ग्रामीण रामबली यादव एवं लक्ष्मण यादव जैसे ही नीचे गिरे हाथी ने कुचल कर मार डाला। अन्य मचानों की ओर भी हाथी हमला करने आ रहा था, तभी 4 अन्य ग्रामीणों ने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई। इस घटना से ढांडकेसरा व वहां के आसपास के ग्रामीणों में दहशत का माहौल निर्मित है।
गौरतलब है कि मैनपाट के तराई क्षेत्र में 10 सदस्यीय हाथियों के दल ने पिछले 6 महीनों से डेरा डाला हुआ है। इन्हीं में से एक नर हाथी जो कई महीनों पूर्व अपने दल से बिछड़ गया है। वह अलग-अलग क्षेत्रों में घूम कर लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है। इसके अलावा बचे 9 सदस्यीय दल में एक शावक का जन्म हुआ है, जिसके चलते यह दल मैनपाट के पतरापारा के जंगल में डेरा जमाए हुए है और ग्रामीणों के घरों को नुकसान पहुंचा रहे हंै। हाथियों को रोकने के लिए वन विभाग द्वारा बैरिकेडिंग भी की गई है, इसके बावजूद हाथी मैनपाट वन परिक्षेत्र के अलग-अलग बस्तियों में पहुंचकर ग्रामीणों के घरों एवं आम लोगों को निशाना बना रहे हैं।
कई परिवार को तिरपाल व मचान में रहने की मजबूरी
एक ओर जहां हाथियों के लगातार हमले से बारिश और धुंध के बीच ग्रामीणों को अपनी जान बचाना काफी कठिन हो रहा तो वहीं कई परिवार बरसात के इस मौसम में खुले जंगली मैदान में तिरपाल बांध व कई मचान बनाकर रहने को मजबूर है। ग्रामीण बताते हंै कि हाथियों द्वारा तोड़े मकान को बरसात में मरमत नहीं करा सकते। वहीं आंगनबाड़ी केंद्र में 12 से 15 परिवारों के रहने के कारण वहां वह सहज महसूस नहीं करते, इसलिए वह तिरपाल व मचान में अपने परिवार वालों के साथ रह रहे हैं।