विचार / लेख

शिक्षा को अनलॉक करना ही होगा
29-Jul-2021 12:51 PM
शिक्षा को अनलॉक करना ही होगा

-डॉ. संजय शुक्ला

 

छत्तीसगढ़ सरकार ने आगामी 2 अगस्त से कोविड संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी सुरक्षा और सावधानियों के साथ स्कूल और कॉलेज खोलने का फैसला किया है। देश के अनेक राज्यों में भी अब शिक्षण संस्थान खुल रहे हैं। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण बीते 15 महिनों से अमूमन देश के सभी स्कूल, कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में तालाबंदी है।शिक्षा किसी भी राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक विकास की बुनियाद होती है लेकिन कोरोना ने इस बुनियाद पर ही आघात किया है। संयुक्त राष्ट्र और यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक कोरोना के कारण दुनिया के 160 करोड़ बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है। भारत में सरकारी शिक्षा पहले से ही बदहाल थी लेकिन इस महामारी ने इस व्यवस्था पर ‘दुबले पर दो आषाढ़’ की कहावत को चरितार्थ कर दिया है। कोरोनाकाल के दौरान देश के शिक्षा व्यवस्था पर नजर डालें तो सरकारों की प्राथमिकता में यह हाशिये पर ही रहा। सरकार और शिक्षा विभाग से जुड़े नीति नियंताओं ने शिक्षा के नाम पर ऑनलाइन शिक्षा, डिजिटल पाठ्य सामग्री, सिलेबस में कटौती और परीक्षाओं को रद्द कर जनरल प्रमोशन को ही इस चुनौती का हल मान लिया जबकि दुनिया भर के महामारी विशेषज्ञ लगातार यह चेताते रहे कि इस महामारी की मियाद तय नहीं है और यह आपदा लहर दर लहर कहर बरपाएगी। अहम सवाल यह कि रणनीतिकारों ने चेतावनी के लिहाज से शिक्षण और परीक्षा की कारगर योजना क्यों तैयार नहीं किया ? गौरतलब है कि दुनिया के तमाम विकसित और विकासशील देशों ने महामारी के लिहाज से अपने क्लासरूम से लेकर पढ़ाई और परीक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव किए हैं ताकि सभी छात्रों को समान शिक्षा का अवसर मिले लेकिन भारत अभी भी अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है जिसका खामियाजा देश के भविष्य को भोगना होगा। बहरहाल अनलॉक के इस दौर में जब देश भर के बाजार, मॉल, मल्टीप्लेक्स, जिम, स्वीमिंग पूल और धार्मिक स्थल खुल चुके हैं तब स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की तालाबंदी खत्म करना आवश्यक है। गौरतलब है कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के चौथे सीरो सर्वे के नतीजों के मुताबिक देश के 67.6 फीसदी लोगों में कोरोना एंटीबॉडी बन चुकी है तथा बच्चों में संक्रमण का खतरा कम है इसलिए अब स्कूल और कॉलेज खोलने पर विचार किया जा सकता है।

भारत में बुनियादी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा व्यवस्था में शुरुआत से ही असमानता रही है, महामारी ने असमानता की इस खाई को और भी गहरा कर दिया है। एक तरफ संपन्न छात्र ऑनलाइन पढा़ई कर रहे हैं तो दूसरी ओर आर्थिक रूप से कमजोर छात्र इस वर्चुअल पढा़ई से कोसों दूर हैं। गौरतलब है कि कोरोना लॉकडाउन ने हजारों अभिभावकों के आजीविका और आय पर बुरा असर डाला है फलस्वरूप वे अपने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए जरूरी कम्प्यूटर, स्मार्टफोन और इंटरनेट उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। इन दुश्वारियों का परिणाम यह कि लाखों बच्चों और युवाओं की पढ़ाई बाधित हो रही है और उन्हें अपनी पढ़ाई छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।  हमारे समाज में पहले से ही बालिका शिक्षा के प्रति भेदभाव था लेकिन अब महामारी और गरीबी के कारण लड़कियों की पढ़ाई छूटने की संभावना बढ़ रही है। एक शोध के मुताबिक आर्थिक रूप से कमजोर 70 फीसदी परिवारों ने माना है कि आर्थिक तंगी के कारण वे अपने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने में दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। इन परिस्थितियों में अहम सवाल यह कि गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में बिना पढा़ई के समान अवसर के गरीब छात्र साधन संपन्न छात्रों से कैसे मुकाबला करेंगे? आर्थिक आधार पर संसाधनों की कमी के कारण गरीब छात्रों के मेधा का क्षरण निश्चित तौर पर कल के भारत में सामाजिक और आर्थिक असमानता की खाई को चौड़ा करेगी। विचारणीय तथ्य यह भी कि मेडिकल, इंजीनियरिंग, विधि और नर्सिंग जैसे प्रोफेशनल कोर्स में वर्चुअल पढा़ई आखिरकार कैसे संभव है? इन पाठ्यक्रमों में तो सैद्धांतिक पक्ष के साथ प्रायोगिक अध्ययन भी अत्यावश्यक है। इन परिस्थितियों में इन कोर्सेज से निकलने वाले प्रोफेशनल की गुणवत्ता और दक्षता पर भी सवालिया निशान लगेंगे।

दूसरी ओर अभिभावकों के मुताबिक ऑनलाइन पढ़ाई उतना कारगर साबित नहीं हो रही है बल्कि बच्चे इंटरनेट पर आपत्तिजनक चीजें देखने और ऑनलाइन गेम के आदी बन रहे हैं। राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग के हाल ही में कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 10 साल उम्र के 59.2 फीसदी बच्चे स्मार्ट फोन का इस्तेमाल सोशल मीडिया में चैटिंग के लिए कर रहे हैं और इनका सोशल नेटवर्किंग अकाउंट बन चुका है। आश्चर्यजनक रूप से केवल 10 फीसदी बच्चे ही मोबाइल फोन का उपयोग ऑनलाइन पढ़ाई के लिए कर रहे हैं। एक अन्य अध्ययन के अनुसार देश के लाखों अंध, मूक-बधिर छात्र वर्चुअल पढ़ाई में असमर्थ हैं। बुनियादी शिक्षा ही उच्च शिक्षा की बुनियाद होती है और शिक्षा का पूरा ढांचा उत्तरोत्तर एक समयबद्ध व्यवस्था में नियत है जिसका संचालन और मूल्यांकन शिक्षण और परीक्षा पर निर्भर है। बीते दो शिक्षा सत्रों के दौरान स्कूलों और कालेजों में कक्षा और परीक्षा दोनों बंद है।  महामारी के कारण चौपट होती शिक्षा व्यवस्था की चिंता शिक्षाविदों, अध्यापकों और अभिभावकों को बहुत ज्यादा है। दरअसल बच्चे और युवा स्कूल व कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ दोस्ती, धैर्य, आदर, सामूहिकता, विनम्रता और दूसरे की संस्कृति से परिचय इत्यादि सीखते हैं वे अपने शिक्षक और सहपाठियों से विषयों को समझते हैं लेकिन वे अभी इनसे वंचित हैं। स्कूल बंद होने तथा मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन पर घंटों बैठने का असर बच्चों, किशोरों व युवाओं के शारीरिक और मानसिक सेहत पर पड़ रहा है। हमारी भावी पीढ़ी मोटापा, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, भय, एकाकीपन,अनिद्रा और अवसाद जैसे रोगों का शिकार हो रहे हैं।

गौरतलब है कि शिक्षा के मूल में सीखने का कौशल, विषयों को समझना और विश्लेषण करना, शिक्षक और छात्र के बीच परस्पर सवाल -जवाब है जो वर्चुअल माध्यम में संभव नहीं है बल्कि फिजिकल स्कूल और क्लास ही इसके उपयुक्त माध्यम है। भारत जैसे कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देश में ऑनलाइन शिक्षा ग्रामीण भारत और गरीबों के लिए दूर की कौड़ी  है। दरअसल ऑनलाइन पढ़ाई एक मजबूरीवश व्यवस्था है, लिहाजा स्कूलों को सतर्कता के साथ खोलने पर विचार किया जाना चाहिए। दुनिया के 51 देशों में कोरोनारोधी सावधानियों के साथ स्कूल और कॉलेज खुल चुके हैं। भारत में भी लगातार अनलॉक और संक्रमण के कम होते मामलों के मद्देनजर शिक्षण संस्थानों को खोलने की दिशा में आगे बढऩा चाहिये, क्योंकि शिक्षा के पहिये को पीछे घुमाया नहीं जा सकता है। इस बीच विशेषज्ञों ने महामारी की तीसरी लहर और यह लहर बच्चों के लिए घातक होने संबंधी चेतावनी जारी की है हालांकि बच्चों पर प्रभाव के संबंध में मतभिन्नता है।बेशक बच्चों का स्वास्थ्य सर्वोच्च प्राथमिकता है और अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों के सेहत के खातिर उन्हें स्कूल भेजने के लिए सहमत नहीं हैं। दूसरा पहलू यह भी कि महामारी की अनिश्चितता और बच्चों के भविष्य के लिहाज से अभिभावकों को साकारात्मक होना होगा और अपने

बच्चों को जिम्मेदार और जागरूक बनाना होगा ताकि वे भविष्य की चुनौतियों से जूझ सके।हालांकि छत्तीसगढ़ सरकार ने स्कूल खोलने व संचालन के लिए ग्राम पंचायत, पार्षद,स्कूल प्रबंधन और पालक समिति को जिम्मा सौंपा है यानि इनके सहमति और व्यवस्थानुसार स्कूल संचालित होंगे।

हालिया परिस्थिति में शिक्षकों और स्कूली स्टाफ का टीकाकरण कर बच्चों को संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी सभी साधनों जैसे मास्क, सेनेटाइजर और सोशल डिस्टेसिंग का पालन सुनिश्चित करते हुए कालखंडों की अवधि कम कर स्कूल खोलने की दिशा में प्रयास होना चाहिये। स्कूलों में छात्रों के बीच सोशल डिस्टेसिंग कायम रखने के उद्देश्य से एक क्लास रूम में एक तिहाई छात्रों की बैच बनाकर हर बैच की एक दिन के अंतराल में कक्षाएँ लगाई जाएं तथा उन्हें अंतराल के बीच वाले दिन के लिए पर्याप्त होमवर्क दिए जाऐं ताकि छात्र घर में भी पढ़ाई करें। दरअसल यह देखा जा रहा है कि लगातार स्कूल बंद होने और जनरल प्रमोशन के कारण विद्यार्थियों में पढ़ाई के प्रति रूचि बहुत तेजी से खत्म हो रही है तथा वे पुस्तक-कापी से दूर हो रहे हैं। स्कूलों और कॉलेजों की कक्षाओं को साफ-सुथरा और हवादार रखते हुए नियमित सेनेटाइजिंग की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत रखने के उद्देश्य से स्कूली बच्चों को नियमित योगाभ्यास के साथ मध्याह्न भोजन में प्रोटीन और विटामिन सी युक्त पौष्टिक खाद्य सामग्री परोसे जाऐं। विचारणीय है कि शिक्षा से ही समाज में व्याप्त गरीबी, असमानता, भेदभाव, कुरूतियों और अंधविश्वास को दूर किया जा सकता है लेकिन जब समाज का ही एक हिस्सा शिक्षा के समान अवसर से अछूता रहेगा तो विसंगतियां कैसे खत्म होगी ? गौरतलब है कि महामारी की मियाद तय नहीं है लिहाजा सरकारों को अभिभावकों को भरोसे में लेकर शिक्षा को अनलॉक करने  की दिशा में गंभीरता से विचार करना ही होगा आखिरकार यह भारत के भविष्य से जुड़ा मसला है।
(लेखक शासकीय आयुर्वेद कॉलेज, रायपुर में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)

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