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माइनिंग प्रोजेक्ट और लेमरू प्रोजेक्ट को एक साथ हरी झंडी देने पर सवाल
संगठनों व ग्रामीणों की चेतावनी- हसदेव अरण्य क्षेत्र को नष्ट करने से लाखों लोगों की आजीविका पर खड़ा होगा संकट
राजेश अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 29 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। लेमरू हाथी परियोजना के लिये कॉरिडोर का क्षेत्रफल घटाने के फैसले से अपनी ही पार्टी के विधायकों के विरोध के चलते राज्य सरकार को पीछे हटना पड़ा है, मगर रिजर्व एरिया का नक्शा कुछ ऐसा तैयार किया गया है कि नये कोल ब्लॉक आबंटित करने के रास्ते में कोई रुकावट नहीं आयेगी। इससे न तो लेमरू में हाथियों का रहवास विकसित हो पायेगा न ही हसदेव-अरण्य के जंगल और जलग्रहण क्षेत्र को ही सुरक्षित रखा जा सकेगा।
हसदेव, चेरनेई और इनसे जुड़ने वाली सहायक नदियों को तथा इस इलाके के सघन वन को बचाने के लिये सरगुजा व कोरबा में कई संगठनों के साथ ग्रामीणों ने बीते डेढ़ दशक से आंदोलन छेड़ रखा है। वे यहां कोल ब्लॉक आबंटित करने का सन् 2005 से विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि हसदेव और चेरनई के कैचमेंट एरिया को ये खदानें लील लेंगीं। इसका छत्तीसगढ़ के जल-जंगल और जमीन को जो क्षति पहुंचेगी उसकी किसी कीमत पर भरपाई नहीं हो पायेगी।
इस इलाके में कोयला खदानों को मंजूरी देने की प्रक्रिया तब से चली आ रही है जब केन्द्र में यूपीए और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी। राज्य की तत्कालीन भाजपा सरकार ने 2005 में दो एलिफेंट रिजर्व एरिया प्रस्तावित किये। इसमें लेमरू क्षेत्र में 1143 वर्ग किलोमीटर को शामिल किया गया। पर इस पर आगे काम नहीं हुआ। इसी इलाके में कोयले का अकूत भंडार है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने 2007-08 में राज्य सरकार को पत्र भेजा और कहा कि आपने जिस इलाके को एलिफेंट रिजर्व के लिये प्रस्तावित किया है वहां कोयला खदानें नकिया-एक, नकिया-दो और स्यांग आबंटित किये जा चुके हैं। इसलिये सरकार एलिफेंट रिजर्व की योजना पर अमल नहीं करें।
तत्कालीन भाजपा सरकार ने लेमरू के साथ ही सरगुजा-जशपुर इलाके के बादलखोल, सेमरसोत और तैमूर पिंगला वन क्षेत्र को मिलाकर भी एक एलिफेंट रिजर्व की भी योजना बनाई थी। सीआईआई के पत्र के बाद लेमरू पर तो आगे कदम नहीं बढ़ाये गये पर बादलखोल-तैमूर पिंगला एलिफेंट रिजर्व को सन् 2011 में अधिसूचित कर दिया गया। हालांकि वहां भी हाथियों को स्थायी रहवास मिल सके इस पर अब तक कोई काम नहीं हुआ है। जशपुर, सरगुजा, धरमजयगढ़ में आये दिन मानव-हाथी संघर्ष हो रहे हैं। दो दिन पहले ही हाथियों के हमले से दो ग्रामीणों की मौत हुई है।
लेमरू परियोजना स्थगित, खदानों का रास्ता खुला
चूंकि लेमरू परियोजना स्थगित की जा चुकी थी तो कोयला खदानों के आबंटन के लिये रास्ता खुल गया। ऊपर जिन तीन खदानों का जिक्र किया गया है वे आबंटित कर दिये गये। सन् 2014 में यूपीए सरकार के दौरान ही नई कोयला खदानों के लिये प्रस्ताव तैयार हुए। इस बीच खदानों के आबंटन में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगने से केन्द्र की यूपीए सरकार हिल गई। असर ऐसा हुआ कि सन् 2014 के चुनाव में यूपीए गठबंधन के हारने का एक कारण कोल-गेट भी माना गया। सुप्रीम कोर्ट ने कोयला खदानों के आबंटन की यूपीए सरकार की प्रक्रिया को ही अवैध ठहरा दिया था। इसके बाद सन् 2015 में भाजपा-एनडीए की सरकार ने नये सिरे से ‘पारदर्शिता के साथ’ कोयला खदानों की नीलामी शुरू की, जिसका विरोध इस इलाके के 20 से अधिक गांवों के लोगों ने दिल्ली जाकर किया और प्रेस कांफ्रेंस भी की। ग्रामीणों ने संविधान की पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों का हवाला देते हुए बताया कि ग्राम-सभाओं की अनुमति के बिना खदानों का आबंटन नहीं किया जा सकता। खदान क्षेत्र में पेसा कानून और भूमि अधिग्रहण कानून लागू है, जिसका पालन किया जाये। इस क्षेत्र को खनन से पूरी तरह मुक्त रखा जाये। न केवल मौजूदा स्वीकृति रद्द की जाये बल्कि भविष्य की खनन परियोजनाओं को भी निरस्त किया जाये। कोयला खदानों को मंजूरी देने से हजारों वर्ग किलोमीटर में फैला घना जंगल और हसदेव नदी का कैचमेंट एरिया खत्म हो जायेगा, जिसका लाखों लोगों की आजीविका पर असर पड़ेगा। वन्य जीवों का अस्तित्व संकट में पड़ जायेगा।
न केवल कोरबा बल्कि सरगुजा, सूरजपुर जिले के गांवों के लिये यह महत्वपूर्ण मुद्दा था। भाजपा सरकार को घेरने के लिये तब केन्द्र व राज्य दोनों ही जगह पर विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने इसे हाथों-हाथ लिया। स्थानीय कांग्रेस नेताओं का समर्थन मिलने के बाद छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को ई मेल भेजकर बताया था कि सन् 2010 में यूपीए के कार्यकाल में पर्यावरण मंत्रालय ने सघन वन क्षेत्र होने के कारण इसे नो- गो एरिया घोषित कर रखा था लेकिन अब यहां करीब 20 कोयला खदानों की खोज कर ली गई है। अब इनकी नीलामी की तैयारी चल रही है। इससे सघन वन, हसदेव और सहायक नदियों का कैचमेंट एरिया ही नहीं बल्कि जांजगीर-चाम्पा जिले में 3 लाख हेक्टेयर की सिंचाई सुविधा से भी किसान वंचित हो जायेंगे।
समर्थन में राहुल ने दो सभायें ली थीं
इन्ही हलचलों के बीच 15 जून 2015 को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी विशेष विमान से बिलासपुर आये फिर यहां से कोरबा जिले के मदनपुर पहुंचे। वहां आमसभा में उन्होंने कहा कि जंगली हाथियों का प्रकोप और हसदेव-अरण्य कोयला क्षेत्र का आघात झेल रहे किसानों के पक्ष में वे खड़े हैं, आगे भी खड़े होंगे। ये जंगल आपका है। पर, केन्द्र व राज्य दोनों सरकारें महज दो-तीन उद्योगपतियों के लिये काम कर रही हैं। इसके बाद राहुल गांधी ने कुदमुरा में चौपाल लगाई, यही बात कही और सक्ती के रेस्ट हाउस में विश्राम किया।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद राहुल गांधी के इस आश्वासन पर काम शुरू हुआ और सरकार के फैसलों से यह ध्वनित हुआ कि वह हसदेव इलाके में कोयला खदानों की मंजूरी के पक्ष में नहीं है। इस इरादे को तब और मजबूती मिली जब पूर्व में प्रस्तावित 1995.48 वर्ग किलोमीटर के लेमरू एलिफेंट रिजर्व को करीब दो गुना, 4 हजार वर्ग किलोमीटर तक बढ़ाने का प्रस्ताव वन विभाग की ओर से लाया गया। हालांकि नये इलाकों के ग्रामीणों, एलिफेंट रिजर्व और हसदेव-अरण्य को बचाने के लिये संघर्ष कर रहे लोगों की ऐसी कोई मांग नहीं थी। इस नये प्रस्ताव पर विवाद तब खड़ा हुआ जब उदयपुर और लखनपुर के 52 गांवों को इसमें शामिल किया जाना बताया गया। वन व राजस्व विभाग के कर्मचारी इन गांवों में घूम-घूमकर इस प्रस्ताव पर सहमति देने के लिये ग्रामीणों पर दबाव बनाने लगे। इसका ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने सरगुजा जिले के इन गांवों को हाथी रिजर्व में लेने के खिलाफ आंदोलन का साथ दिया। इनमें से अधिकांश राजस्व गांव हैं। इन गांवों को रिजर्व एरिया में शामिल करने की योजना बनाते समय किसी ग्राम सभा से भी सहमति नहीं ली गई। सरगुजा से ही प्रतिनिधित्व करने वाले स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने भी कह दिया कि सरकार में होना न होना अपनी जगह, लेकिन वे ग्रामीणों के साथ खड़े हैं। उन्होंने वन मंत्री मो.अकबर के समक्ष विरोध दर्ज कराया। कलेक्टर को भी पत्र लिखकर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को रोकने कहा।
इसी बीच केन्द्र सरकार ने 24 दिसम्बर 2020 को कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन एवं विकास) अधिनियम 1957 की धारा 7 की उप धारा (1) के प्रावधानों का उपयोग करते हुए हसदेव अरण्य क्षेत्र में भू-अर्जन की प्रक्रिया शुरू करने की अधिसूचना जारी की। इसके अंतर्गत मदनपुर साउथ, पतुरिया, गिदमुड़ी एवं केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक शामिल हैं। हसदेव बचाने के लिये संघर्ष कर रहे ग्रामीणों का कहना है कि पांचवी अनुसूची में उन्हें मिले अधिकारों की अवहेलना कर यह अधिसूचना जारी की गई है। ग्रामीणों के विरोध के बाद संज्ञान में आने के बाद विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरण दास महन्त ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखा था और कहा था कि पांचवीं अनुसूची में शामिल होने के बावजूद अधिग्रहण से पूर्व ग्रामसभाओं से कोई सहमति नहीं ली जा रही है। इससे लेमरू हाथी परियोजना पर अतिक्रमण होने, हसदेव नदी के कैचमेंट और सघन जंगल के नष्ट होने का खतरा है।
पिछले साल 18 जून को कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की तरफ कदम बताया था। जवाब में प्रभावित ग्रामों के सरपंचों ने उन्हें पत्र लिखकर कहा था कि आत्मनिर्भर रहने के लिये ही नहीं चाहते कि हमें विस्थापित किया जाये और हमारे जल, जंगल को नष्ट किया जाये।
अवर सचिव के पत्र से फिर सुलग गया मामला
नया विवाद तब खड़ा हुआ जब 26 जून 2021 को वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अवर सचिव ने पीसीसीएफ को पत्र लिखकर कहा कि विधायक चक्रधर सिंह सिदार, गुलाब कमरो, डॉ. विनय जायसवाल, प्रीतम राम, पुरुषोत्तम कंवर, यू डी मिंज, मोहित राम केरकेट्टा सहित मंत्री टीएस सिंहदेव लेमरू हाथी रिजर्व एरिया को कम करने का अनुरोध कर चुके हैं। इसलिये एक नया प्रस्ताव दें जिसमें लेमरू हाथी रिजर्व के लिये प्रस्तावित क्षेत्रफल 1995 वर्ग किलोमीटर को घटाकर 450 वर्ग किलोमीटर कर दिया जाये।
इस पत्र का सीधा अर्थ यह लगाया गया कि हाथी रिजर्व एरिया में तीन चौथाई से ज्यादा की कमी लाने का प्रस्ताव सिर्फ इसलिये लाया जा रहा है जिससे इस वन क्षेत्र में कोल ब्लॉक आबंटन में आ रही बाधाओं को दूर किया जा सके।
अवर सचिव वन का पत्र सामने आते ही टीएस सिहंदेव ने तुरंत पत्र में लिखी बातों का खंडन कर दिया कि उन्होंने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दिया है। साफ किया कि सरगुजा क्षेत्र के उदयपुर और लखनपुर के जिन 52 गावों को 4000 वर्ग किलोमीटर के नये प्रस्ताव में शामिल किया जा रहा है, इससे वहां के ग्रामीण सहमत नहीं है। इनमें से अधिकांश राजस्व ग्राम भी हैं, जहां हाथियों के लिये कोई रिजर्व एरिया नहीं बनाया जा सकता। 1995 वर्ग किलोमीटर के पूर्व के प्रस्ताव पर नहीं बल्कि क्षेत्रफल बढ़ाने के नये प्रस्ताव पर उनका विरोध है। दिलचस्प यह है कि अवर सचिव के पत्र में जिन विधायकों का नाम लिया गया है उनमें से अधिकांश के क्षेत्र में लेमरू अभयारण्य नहीं आता है।
बहरहाल, यह मामला तब ठंडा हो सका, जब केबिनेट ने एलिफेंट रिजर्व एरिया को घटाने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया। विधानसभा में भी यह जानकारी दी गई।
एलिफेंट कॉरिडोर की जगह पर कोयला खदान
अब सवाल इस 1995 वर्ग किलोमीटर के नक्शे पर उठ रहा है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं कि यह नक्शा बहुत सावधानी से तैयार किया गया है। इसके चलते लेमरू हाथी रिजर्व के लिये 1995 वर्ग किमी क्षेत्रफल इस तरह से तय रखा गया है कि किसी भी वर्तमान में संचालित और भविष्य में प्रस्तावित होने वाले कोयला खदानों के आबंटन में कोई दिक्कत नहीं खड़ी हो। नकिया-1, 2 और श्यांग कोल ब्लॉक को छोड़कर कोई ब्लॉक एलिफेंट रिजर्व की सीमा में नहीं आ रहा है बल्कि 10 किलोमीटर पहले ही समाप्त कर दिया गया है, ताकि कोल ब्लॉक की अनुमति के लिये अड़चन खड़ी नहीं हो। शुक्ला ने कहा कि कोल ब्लॉक का एरिया घटाकर 450 वर्ग किलोमीटर करने का प्रस्ताव शायद इसलिये लाया जा रहा था ताकि हम 1995 वर्ग किलोमीटर की पूर्ववत स्थिति को बनाये रखने की लड़ाई में उलझ जायें और इस रिजर्व एरिया के क्षेत्रफल को और बढ़ाने की हमारी मांग पर कोई बात ही नहीं करनी पड़े। उन्होंने कहा कि रिजर्व लैंड को 4000 वर्ग किलोमीटर तक बढ़ाने की मांग हमने या ग्रामीणों ने कभी नहीं की थी। 1995.48 वर्ग किलोमीटर में 4-5 सौ वर्ग किलोमीटर बढ़ाने की मांग जरूर उठाई गई थी, जिसमें बसंतपुर के आसपास के जंगल से लेते हुए केंदई के जंगल तक के एरिया को शामिल करने की मांग थी, जिसे नहीं किया गया। इस हिस्से में कम से कम 17 कोल ब्लॉक प्रस्तावित हैं। और यही हसदेव अरण्य का कैचमेंट एरिया है।
दूसरा सवाल यह भी है कि चारों तरफ कोल ब्लॉक रहेंगे तो क्या हाथियों की वहां बसाहट मुमकिन है? नक्शा देखने पर पता चलता है कि एक छोर पर धरमजयगढ़ के कोल ब्लॉक, दूसरी तरफ पसान और एक तरफ बांगो। हाथियों के लिये सेफ कॉरिडोर नहीं मिल पायेगा। एक इलाका खाली बचता है जो बालको और कोरबा शहर की ओर जाता है। खदानों के खुलने के बाद हाथियों को आबादी की ओर रुख करना पड़ेगा। हाथी तभी रुक सकते हैं जब जंगल और पानी बचा रहेगा। वन मंत्री का यह कहना कि केन्द्र सरकार को नीलामी करने का अधिकार केन्द्र सरकार को है। पर शुक्ला का कहना है कि पहले भी श्यांग, मदनपुर उत्तर, मोरगा और मोरगा-2 कोल ब्लॉक की नीलामी पर राज्य सरकार ने असहमति जताई थी तब केन्द्र ने रोक लगाई थी। मगर, जिस तरह से हाथी रिजर्व एरिया का मैप बनाया गया है उससे साफ होता है कि इन कोयला खदानों को लेकर राज्य सरकार का भी कोई विरोध नहीं है। शुक्ला का कहना है कि अभी वे वन विभाग की ओर से अधिकारिक रूप से जारी होने वाली अधिसूचना का इंतजार कर रहे हैं।
खदान अदानी को तोहफे में देने का आरोप
इधर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के नेता विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर ने विधानसभा में इस विषय पर चर्चा के दौरान कल कहा कि मिनीमाता हसदेव बांगो बांध छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा बांध है। इससे करीब 2.55 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होती है। यह बांध स्व. बिसाहूदास महन्त और डॉ. रामचंद्र सिंहदेव की धरोहर है। यहां परसा ईस्ट आबंटन राजस्थान राज्य विद्युत मंडल को दिया गया है और एमओडी के तहत अडानी की कम्पनी कोयला उत्खनन कर रही है। इस खदान से 1898 हेक्टेयर घना जंगल नष्ट हो चुका है। क्षेत्र से अटेम नदी निकलती है, जो गेज नदी में जाकर मिलती है और गेज नदी हसदेव में मिलती है। केते बसान खदान भी चालू है जिसमें 1742 हेक्टेयर सघन वन है। परसा ब्लॉक में अलग से 800 हेक्टेयर घना जंगल है। हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ का एकमात्र ऐसा कोलफील्ड है जिसे कांग्रेस सरकार ने ही 100 प्रतिशत नो गो एरिया के रूप में चिन्हांकित किया था।
धर्मजीत सिंह ने राहुल गांधी के मदनपुर प्रवास, सांसद ज्योत्सना महंत और स्पीकर डॉ. चरण दास महन्त के पत्रों का जिक्र करते हुए सदन में कहा कि सरकार फिर भी यह भूमि अडानी को तोहफे के रूप में दे रही है। इससे केवल उद्योगपति का भला होगा।
हाथियों को एक जगह घेरकर रखना संभव नहीं- सिंघवी
वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी जो हाथियों के मुद्दे पर हाईकोर्ट में जनहित याचिकायें भी लगा चुके हैं, उनका कहना है कि विधानसभा में ही जानकारी दी गई है कि 300 से अधिक हाथी छत्तीसगढ़ में विचरण कर रहे हैं। 2000 वर्ग किलोमीटर का प्रस्तावित लेमरू हाथी रिजर्व प्रोजेक्ट उनके लिये पर्याप्त नहीं है। यह निष्कर्ष सही नहीं है कि प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में, जिनमें रायपुर संभाग के भी वन्य क्षेत्र हैं वहां से हाथियों को लेमरू तक खदेड़ा जा सकेगा। हाथियों के लिये रिजर्व एरिया जरूर बनना चाहिये, जिससे वे आबादी की ओर कम विचरण करेंगे, पर सभी हाथियों को समेटने के लिये जंगलों को प्राकृतिक रूप से बचाये रखने की जरूरत है। हाथियों को खूब पानी और आहार की जरूरत होती है, जंगल में यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तब भी वे 40-50 साल पुराने रास्तों को पहचानते हैं और दल के दल निकल पड़ते हैं। हाथी स्वभाव से अपने झुंड में रहना पसंद करता है और दूसरे जानवरों और यहां तक कि मनुष्यों को भी अपने नजदीक रखना पसंद नहीं करता। जिस तरह लेमरू रेंज में कोल ब्लॉक की मंजूरी की और जलग्रहण क्षेत्र पर उसके चलते संकट आने की बात कही जा रही है, इस पर संदेह है कि हाथियों को उपयुक्त वातावरण वहां मिल सकेगा। लेमरू प्रोजेक्ट और माइनिंग प्रोजेक्ट दोनों एक साथ चलेंगे तो हाथी-मानव के बीच संघर्ष ही बढ़ेगा।