विचार / लेख
-रमेश अनुपम
छत्तीसगढ़ एक उर्वर और रत्नगर्भा भूमि है जिसकी कोख में न जाने कितने अनमोल रत्न छिपे हुए हैं। जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ छत्तीसगढ़ के एक ऐसे ही अनमोल रत्न हैं।
जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ छत्तीसगढ़ के ही नहीं, संपूर्ण हिंदी साहित्य गैलेक्सी के एक उज्ज्वल सितारे हैं। इस गैलेक्सी के उन तीन उज्ज्वल सितारों में (ठाकुर जगमोहन सिंह तथा माधवराव सप्रे सहित) वे भी शामिल हैं। तीनों ही समकालीन, तीनों ही अभिन्न मित्र, तीनों ही छत्तीसगढ़ गैलेक्सी के सबसे उज्ज्वल सितारे।
जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ के बिना छत्तीसगढ़ का इतिहास लिखा जाना कभी संभव न होगा। वे छत्तीसगढ़ के दुर्लभ और मूल्यवान रत्न थे। बिलासपुर और छत्तीसगढ़ को संस्कारित किए जाने में उनके अमूल्य अवदान को आज छत्तीसगढ़ ने ही भुला दिया है।
आज छत्तीसगढ़ में ही जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ को कितने लोग जानते होंगे? कितने लोग उनके बहुमूल्य योगदान के बारे में जानकर प्रमुदित होते होंगे कि हमारे इस राज्य में उनके जैसा एक बहुमूल्य रत्न भी था, जिससे हमारा अंचल बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में गौरवान्वित हुआ करता था।
बिलासपुर का नाम पूरे देश और दुनिया में रौशन करने वाले जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’, ई राघवेंद्र राव, बैरिस्टर छेदीलाल और पंडित सत्यदेव दुबे जैसे छत्तीसगढ़ के बेशकीमती हीरों को जानने तथा पहचानने वाले आज कितने लोग बिलासपुर तथा छत्तीसगढ़ में बचे होंगे ?
आधुनिक बिलासपुर के निर्माण में जिस मनीषी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं उसी को आज हम सबने भुला दिया है।
जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ ने ही सन 1915 में देश की आजादी से बत्तीस वर्ष पूर्व बिलासपुर नगर में को-ऑपरेटिव बैंक की स्थापना की तथा मध्यप्रदेश में (हालांकि तब तक यह सी.पी.एंड बरार. का एक हिस्सा भर था) सहकारिता आंदोलन को जन्म दिया।
जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ जितने उच्चकोटि के साहित्यकार थे उतने ही समाज में अपनी अग्रणी भूमिका निभाने वाले एक महान और सच्चे सपूत भी थे।
यह उल्लेखनीय है कि हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू के विद्वान जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ ने लगभग पंद्रह ग्रंथों की रचनाएं की है, जो हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि मानी जाती है। ‘भानु’ जी काव्य शास्त्र के निष्णात पंडित थे।
हिंदी में लिखे गए महत्वपूर्ण ग्रंथों में ‘छंद प्रभाकर’, ‘काव्यप्रभाकर’, ‘छंद सारावली’, ‘हिंदी काव्यालंकार’, ‘काव्यप्रबंध’, ‘काव्य कुसुमांजलि’, ‘रस रत्नाकर’ और ‘अलंकार दर्पण’ उनके काव्य शास्त्र संबंधी सुप्रसिद्ध ग्रंथ हैं।
इसके अतिरिक्त ‘नवपंचामृतरामायण’, श्री तुलसी तत्व प्रकाश’, ‘रामायण वर्णावली’, ‘श्री तुलसी भाव प्रकाश’, ‘काल प्रबोध’, ‘अंक विलास’ उनके उल्लेखनीय ग्रंथ हैं।
इनके अतिरिक्त ‘जयहरीचालीसा’ तथा ‘तुम ही तो हो’ दो अन्य काव्य ग्रंथ है।
अंग्रेजी में लिखे गए ग्रंथों में ‘की टू परपेचुवल कैलेंडर बी सी’, ‘की टू परपेचुवल कैलेंडर ए डी’, ‘कॉम्बिनेशन एंड परमुरेशन ऑफ फिंगर्स’ प्रसिद्ध ग्रंथ हैं।
‘भानु’ जी के दो उर्दू में भी कलाम हैं ‘गुलजारे सुखन’ और ‘गुलजारे फैज’।
‘गुलजार ए सुखन’ और ‘गुलजार ए फैज’ दोनों का हिंदी लिप्यांतरण सन 2007 तक उपलब्ध नहीं था। जब मैं छत्तीसगढ़ के छ: सौ वर्षों की काव्य यात्रा पर काम कर रहा था, उन्हीं दिनों मैंने उर्दू के विद्वान डॉ. मुहम्मद खालिद अली इकबाल जो बिलासपुर के ही कॉलेज में उर्दू पढ़ा रहे थे उनसे अनुरोध कर ‘गुलजार ए सुखन’ के कुछ गजलों का हिंदी में तर्जुमा करवाया था और उसे ‘जल भीतर इक बृच्छा उपजै’ में प्रकाशित भी किया था।
सुप्रसिद्ध पिंगलाचार्य जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ का जन्म 8 अगस्त सन 1859 को नागपुर के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था।
वे बचपन से ही अपने पिता बख्शी राम जी के साथ छत्तीसगढ़ के बिलासपुर आ गए थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा भी बिलासपुर में ही संपन्न हुई थी।
सन 1880 में बिलासपुर में शिक्षा विभाग में उन्हें नौकरी भी मिल गई थी। मेधावी होने के फलस्वरूप उन्हें शासकीय सेवा में लगातार पदोन्नतियां मिलती चली गई। कालांतर में वे बिलासपुर में ही असि.सेटलमेंट ऑफिसर के पद पर नियुक्त किए गए। बिलासपुर में ही वे 17 वर्षों तक आनरेरी मजिस्ट्रेट के पद पर कार्य करते रहे।
हिंदी साहित्य के प्रति जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ के समर्पण को देखते हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन 1938 में महात्मा गांधी, डॉ. ग्रियर्सन तथा पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी के साथ भानु जी को भी च् साहित्य वाचस्पति ’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
भारत सरकार द्वारा उनकी अद्वितीय प्रतिभा के फलस्वरूप उन्हें सन 1940 में ‘महा महोपाध्याय’ जैसी गौरवशाली उपाधि से विभूषित किया गया था।
(बाकी अगले हफ्ते)