सामान्य ज्ञान

हलियून या एस्परागस
31-Jul-2021 5:01 PM
हलियून या एस्परागस

हलीयून की वनस्पति मूत्रवद्र्धक, पेट को साफ करने वाली , हृदय के लिए शक्तिशाली और मन को शांति प्रदान करने वाली होती है। इसके अंकुर, पेट की वायु को नष्ट करने वाले, पेट को साफ करने वाला होता है। इसके फल गर्म, स्थापक, जलिस्नग्ध और पौष्टिक होते हैं। इसकी जड़ों में इसके अंकुरों की अपेक्षा मूत्रल यानी पेशाब अधिक लाने वाले तत्व अधिक होते हैं। इसकी जड़ों के ठंडे रस का सेवन करने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है। यह यकृत की जड़ता और सुस्ती को दूर करके उत्तेजना लाती है। 
विभिन्न भाषाओं में नाम- हिन्दी- हलियून, हलयून, बंगला- हिकुआ, अरबी-इस्फेराज, खशुबुलहास्स, फारसी- मारहियाह, मारचोव, ईरान-हालियून, अंग्रेजी- एस्पेरेगस, लैटिन- एस्पेरेगस आफिसिनेलेसिस।

निम्बार्क संप्रदाय 
निम्बार्क का अर्थ है- नीम पर सूर्य। इस संप्रदाय के संस्थापक भास्कराचार्य एक सन्यासी थे। उन्हें एक बैरागी को भोजनार्थ आमंत्रित किया। भोजन की सब तैयारी हो गई थी। किन्तु बैरागी को आने में देर हो गई। सूर्य छिपने तक आचार्य अतिथि को बुलाने न पहुंच सके। वह पवित्र व्यक्ति अपने सिद्धान्तानुसार दिन में ही भोजन प्राप्त करता था। आचार्य को लगा कि वह सूर्यास्त के बाद आएंगे ही नहीं। आतिथेय की प्रार्थना पर सूर्य नारायण नीम के पेड़ पर उतर आए और तब तक चमकते रहे, जब तक कि दोनों ही खाना खाते रहे। तब से उस संत का नाम निम्बार्क या निम्बार्काचार्य पड़ गया।
इस संप्रदाय को  हंस संप्रदाय ,  देवर्षि संप्रदाय , अथवा  सनकादि संप्रदाय भी कहा जाता है। मान्यता है कि सनकादि ऋषियों ने भगवान के हंसावतार से ब्रह्म ज्ञान की निगूढ़ शिक्षा ग्रहण करके उसका प्रथमोपदेश अपने शिष्य देवर्षि नारद को दिया था। इसके ऐतिहासिक प्रतिनिधि हुए निम्बार्काचार्य इससे यह निम्बार्क संप्रदाय कहलाता है।
 इस संप्रदाय का सिद्धान्त  द्वैताद्वैतवाद कहलाता है। इसी को  भेदाभेदवाद भी कहा जाता है। भेदाभेद सिद्धान्त के आचार्यों में औधुलोमि, आश्मरथ्य, भतृ प्रपंच, भास्कर और यादव के नाम आते हैं। इस प्राचीन सिद्धान्त को  द्वैताद्वैत  के नाम से पुन: स्थापित करने का श्रेय निम्बार्काचार्य को जाता है। उन्होंने- वेदान्त पारिजात-सौरभ, वेदान्त-कागधेनु, रहस्य षोडसी, प्रपन्न कल्पवल्ली और कृष्ण स्तोत्र नामक ग्रंथों की रचना भी की थी। वेदान्त पारिजात सौरभ ब्रह्मसूत्र पर निम्बार्काचार्य द्वारा लिखी गई टीका है। इसमें वेदान्त सूत्रों की सक्षिप्त व्याख्या द्वारा द्वैता-द्वैतव सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है।
 

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