संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मोदी-शाह की सीधी निगरानी के बाद भी असम-मिजोरम में इतना लहू क्यों बह रहा है ?
31-Jul-2021 5:26 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मोदी-शाह की सीधी निगरानी के बाद भी असम-मिजोरम में इतना लहू क्यों बह रहा है ?

हिंदुस्तान के उत्तर पूर्व के 2 राज्यों असम और मिजोरम के बीच जैसा हिंसक संघर्ष शुरू हुआ है, वह भारत और चीन के बीच पिछले एक-डेढ़ बरस में कई बार हुई हिंसक मुठभेड़ के टक्कर का है। भारत और चीन के सीमा संघर्ष में कुछ दर्जन हिंदुस्तानी फौजियों के मारे जाने की बात भारत सरकार ने मंजूर की है, और हो सकता है कि चीन में भी कई सैनिक मारे गए हों, लेकिन हिंदुस्तान के भीतर के अगल-बगल के ये दो राज्य, असम और मिजोरम, दोनों भाजपा की, या गैरकांग्रेस सरकार के रहते हुए जिस तरह से हिंसक संघर्ष में असम पुलिस के 6 लोग मारे गए हैं और असम ने मिजोरम के कई सरकारी लोगों के खिलाफ जुर्म कायम किया है। यह पूरा सिलसिला भारत के 2 राज्यों के बीच है पिछले बहुत समय में तो कभी सुनाई नहीं पड़ा था। असम और मिजोरम का इतिहास बताता है कि अंग्रेजों के वक्त 1873 में जो सीमा तय की गई थी, मिजोरम उस सीमा को लागू करवाना चाहता है, और अंग्रेजों के ही वक्त 1933 में एक दूसरी सीमा तय हुई थी, जिसे कि असम मानता है। इन दोनों राज्यों के बीच झगड़े की एक दूसरी वजह यह भी है कि 1972 के पहले तक मिजोरम असम का हिस्सा था, उसके बाद मिजोरम को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया था, और 1987 में वहां लंबे समय से चली आ रही उग्रवादी हिंसा को खत्म करने के लिए मिजोरम समझौते के बाद उसे राज्य का दर्जा दिया गया, और 20 साल से चले आ रहा विद्रोह खत्म हो गया।

असम और मिजोरम के बीच कई किस्म के नक्शे और कई किस्म की सरहदों के चलते हुए दोनों राज्य एक-दूसरे पर अपनी जमीनों पर अवैध कब्जे की शिकायतें लंबे समय से करते आ रहे हैं लेकिन लोगों को यह उम्मीद थी कि पिछले 6 बरस से जिस तरह केंद्र में बहुत ही मजबूत माने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अभी के गृह मंत्री अमित शाह देश पर अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं और उन्हीं की पार्टी की राज्य सरकार असम में है, और मिजोरम में उनके समर्थन से है, तो ऐसे में इस तरह की कोई नौबत किसी के लिए भी अकल्पनीय है। इन प्रदेशों में गैरकांग्रेस मुख्यमंत्रियों के रहते हुए और दिल्ली की लगातार निगरानी के बीच ऐसी हिंसा जिसमें एक राज्य के पुलिस के लोग मारे जाएं इसकी देश में दूसरी कोई मिसाल याद नहीं पड़ती है।

अभी 24 जुलाई को ही उत्तर पूर्व के दौरे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहुंचे थे और उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी की सरकार इस इलाके के सीमा संबंधी सभी मामलों को सुलझाना चाहती है और इसके 2 दिन के भीतर ही इन दो राज्यों के बीच बीच इतना बुरा हिंसक संघर्ष छिड़ गया। अमित शाह ने एक किस्म से असम के बीजेपी मुख्यमंत्री को सारे उत्तर-पूर्वी राज्यों का मुखिया बनाकर रखा है। फिर भी आज हालत यह है कि असम सरकार ने मिजोरम आने-जाने वाले अपने लोगों और मिजोरम में गए हुए या रहने वाले अपने लोगों के लिए चेतावनी जारी की है कि वे बहुत ही सावधानी बरतें। जानकारों का मानना है कि देश में इसके पहले कभी किसी राज्य ने पडोसी के लिए ऐसी चेतावनी जारी नहीं की थी। दोनों ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच जुबानी जंग छिड़ी हुई है, दोनों सुप्रीम कोर्ट तक जमीनों पर अपने दावे लेकर कानूनी लड़ाई लडऩे के लिए तैयार हैं, और सरहद पर तो धमाकों के साथ ऑटोमैटिक हथियारों के साथ संघर्ष चल ही रहा है।

कांग्रेस ने ऐसी नौबत के लिए गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा की इन दोनों राज्य सरकारों पर तोहमत लगाई है। लेकिन भाजपा का यह कहना है कि यह सीमा विवाद नया नहीं है और लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार के रहते हुए कांग्रेस ने इन विवादों को निपटाया नहीं, नतीजा यह निकला कि वे आज भडक़ रहे हैं। अभी हम ऐसे किसी इतिहास की तरफ जाना नहीं चाहते क्योंकि इतिहास में जितना पीछे जाएंगे, उतना तो सरहदी विवाद बढ़ा हुआ दिखेगा, लेकिन यह बात तो है की इन दो राज्यों के बीच हाल के वर्षों में ऐसा खूनी संघर्ष कभी हुआ नहीं था। और किसी एक पार्टी की सरकार देश पर भी हो और इन दोनों प्रदेशों में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष उसी की सरकार हो और उसके बाद ऐसी नौबत आए तो वह अधिक फिक्र की बात है। अदालत से लेकर सरहद तक यह तनाव बना हुआ है और केंद्र सरकार को कुछ हजार हथियारबंद सिपाही केंद्रीय बलों से इस सरहद के लिए भेजने पड़े हैं। केंद्र सरकार अपने असर का इस्तेमाल करे, और भाजपा अपने असर का इस्तेमाल करे, और देश की आज की नौबत बताती है कि इन दोनों की सारी ताकतें कुल मिलाकर दो ही हाथों में केंद्रित है। इसलिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह को इन दोनों प्रदेशों के भले के लिए, देश के भले के लिए, और अपनी पार्टी की सरकारों के भले के लिए इस टकराव पर तुरंत काबू पाना चाहिए। यह काम वह कैसे करेंगे यह बताना मछली के बच्चे को तैरना सिखाने जैसा होगा क्योंकि मोदी और शाह ऐसी नौबतों से जूझने की समझ रखते हैं, और ताकत भी रखते हैं। हैरानी तो इस बात की है इन दोनों के रहते हुए असम और मिजोरम के बीच इतना खून बह रहा है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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