विचार / लेख

टीबी उन्मूलन में रोड़ा कोरोना की दवा
02-Aug-2021 2:38 PM
टीबी उन्मूलन में रोड़ा कोरोना की दवा

-जेके कर

आईसीएमआर के पूर्व निदेशक एनके गांगुली का कहना है कि कोरोनाकाल में जिस तरह से एंटीबायोटिक का धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है उससे भारत में साल 2025 तक टीबी उन्मूलन संभव नहीं है. आईसीएमआर के पूर्व निदेशक एनके गांगुली ने कहा कि "रोगाणुरोधी प्रतिरोध तब होता है जब परजीवी, कवक, बैक्टीरिया और वायरस जैसे रोग पैदा करने वाले उन दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध विकसित करते हैं जो कभी उन्हें बेअसर करने के लिए प्रभावी रूप से उपयोग की जाती थीं. रोगाणुओं की संरचना में वृद्धि के कारण प्रतिरोध में वृद्धि होती है क्योंकि एंटीबायोटिक दवाओं सहित विभिन्न दवाओं के लंबे समय तक संपर्क में रहने से रोगाणुओं की संरचना बदल जाती है. वास्तव में, तपेदिक के कारण भारत में हर साल लगभग 5 लाख मौतें होती हैं और यह संख्या दुनिया में सबसे अधिक है. यदि स्थिति आगे भी बनी रहती है और दुर्भाग्य से महामारी ने चीजों को और भी बदतर बना दिया है जिसके कारण एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग कई गुना बढ़ गया है और यह स्पष्ट है कि बहुत से लोग दवाओं के प्रति रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं और आने वाले दिनों में और अधिक मौतें हो सकती हैं."  

गौरतलब है कि कोविड-19 के पहली तथा दूसरी लहर के दौरान भारत में एंटीबायोटिक का अंधाधुंध उपयोग किया गया. जाहिर है कि जब संक्रमण के कारण जान पर बन आई तब कई तरह के एंटीबायोटिक तथा एंटी प्रोटोजोल का उपयोग करना मजबूरी रहती है. लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण देशभर में बड़े ही व्यापक पैमाने पर ऐसा किया गया नतीजन एंटीमाइक्रोबियल रेसिसटेंस की संभावना बढ़ गई है. इसका एक उदाहरण ब्लैक फंगस के केसों में बढ़ोतरी को भी माना जा सकता है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने संभावना जताई है कि  एंटीबायोटिक के अंधाधुंध उपयोग के कारण आने वाले कुछ वर्षो में भारत में करीब 1 करोड़ जाने जा सकती है. उनका कहना है कि “एंटीबायोटिक्स के अत्यधिक उपयोग से लोगों को बार-बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा जो बदले में जनता की वित्तीय स्थितियों पर प्रभाव डालेगा जिससे आर्थिक गिरावट आयेगी. मेरे विचार में, एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग को किसी न किसी तरह से तुरंत बंद कर देना चाहिये, अन्यथा यह देश में अगले बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को जन्म देगा."

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