विचार / लेख
“मैं अपने जीवन से भागना चाहती थी; बिजली की कमी से, सोते समय हमारे कानों में भिनभिनाने वाले मच्छरों से, बमुश्किल दो वक्त का खाना जुटाने की तंगी से लेकर बारिश होने पर घर में पानी भरते हुए देखने तक। मेरे माता-पिता ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, लेकिन वे इतना ही कर सकते थे-पापा एक गाड़ी चलाने वाले थे और माँ एक नौकरानी के रूप में काम करती थीं।
मेरे घर के पास एक हॉकी अकादमी थी, इसलिए मैं घंटों खिलाड़ियों को अभ्यास करते हुए देखती थी-मैं वास्तव में खेलना चाहती थी। पापा प्रतिदिन 80 रुपये कमाते थे और मेरे लिए एक हॉकी स्टिक नहीं खरीद सकते थे। हर दिन, मैं कोच से मुझे भी सिखाने के लिए कहती। उन्होंने अस्वीकार कर दिया क्योंकि मैं कुपोषित थी। वे कहते थे, 'तुम अभ्यास-सत्र के तनाव को झेलने लिए पर्याप्त मजबूत नहीं हो।'
मुझे मैदान पर एक टूटी हुई हॉकी स्टिक मिली और उसी के साथ अभ्यास करना शुरू किया। मेरे पास प्रशिक्षण के कपड़े नहीं थे, इसलिए मैं सलवार कमीज में इधर-उधर भागती। मैंने खुद को साबित करने की ठान ली थी। मैंने कोच से मौका मांगा- बहुत मुश्किल से कायल किया उन्हें आखिरकार!
लेकिन जब मैंने अपने परिवार को बताया, तो उन्होंने कहा, 'लड़कियां घर के काम ही करती हैं "और हम तुम्हारे स्कर्ट पहनने नहीं देंगे।' मैंने उनसे यह कहते हुए विनती की, 'प्लीज मुझे जाने दो। अगर मैं असफल होती हूं, तो आप जो चाहेंगे, मैं करूंगी।’ मेरे परिवार ने अनिच्छा से हार मान ली।
प्रशिक्षण सुबह से शुरू होता। हमारे पास घड़ी भी नहीं थी, इसलिए माँ उठती और आसमान की ओर ताकतीं कि क्या यह मुझे जगाने का सही समय है? अकादमी में प्रत्येक खिलाड़ी के लिए 500 मिलीलीटर दूध लाना अनिवार्य था। मेरा परिवार केवल 200 मिली दूध ही खरीद सकता था; बिना किसी को बताए मैं दूध में पानी मिलाकर पी लेती क्योंकि मैं खेलना चाहता थी।
मेरे कोच ने मेरी मदद की; वे मुझे हॉकी किट और जूते खरीद देते थे। उन्होंने मुझे अपने परिवार के साथ रहने दिया और मेरी आहार संबंधी जरूरतों का भी ध्यान रखा। मैं कड़ी मेहनत करती और अभ्यास का एक भी दिन नहीं छोड़ती। मुझे अपनी पहली तनख्वाह याद है; मैंने एक टूर्नामेंट जीतकर 500 रुपये जीते और पापा को दिए। इतना पैसा उनके हाथ में पहले कभी नहीं आया था।
एक दिन जब मैं अपने घर पर थी, पापा के एक दोस्त हमारे घर आए। वे अपनी पोती को साथ लाए थे और मुझसे कहा, 'वह तुमसे प्रेरित है और हॉकी खिलाड़ी बनना चाहती है!' मैं बहुत खुश थी; मैं बस रोने लगी।"
(रानी रामपाल, द इंडियन एक्सप्रेस)