सामान्य ज्ञान

एपिडोट उपरत्न
03-Aug-2021 12:06 PM
एपिडोट उपरत्न

एपिडोट  उपरत्न की जानकारी 18वीं सदी से प्राप्त होती है।  यह एक टिकाऊ उपरत्न है। यह पारदर्शी, पारभासी अथवा अपारदर्शी तीनों ही रुपों में पाया जाता है। इस उपरत्न का रंग लौह सांद्रता के आधार पर होता है। कई बार यह गहरा हरा, भूरा अथवा पूरा काला भी होता है। यह दिखने में एक चमकदार उपरत्न है।  इस उपरत्न का तत्व जल तथा पृथ्वी तत्व है।  यह उपरत्न अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है।  भौतिक रुप में यह उपरत्न आंतरिक अंत:स्त्रावी ग्रंथियों का विकास करता है। भावनाओं को स्थिर रखता है। 
 मान्यताओं के अनुसार यह उपरत्न आध्यात्मिक विकास के द्वार खोलने में मदद करता है और आध्यत्मिकता का विकास करता है।  भावनात्मक शरीर के आभामण्डल को साफ करने में सहायक होता है।  सभी पुरानी दमित भावनाओं को शुद्ध रखने में सहायक होता है।  यह उपरत्न व्यक्ति के चहुंमुखी विकास में मदद करता है।  यह धारक को अहसास दिलाता है कि वह कौन है और फिर उसकी सकारात्मक छवि लोगों के सामने लाता है।  यह उपरत्न धैर्य को बढ़ावा देता है।  जातक के भीतर बढ़ी बेचैनी को भी कम करता है। 
 यह उपरत्न धारणकर्ता को मुसीबतों से बचाने का कार्य करता है।  दुख तथा तकलीफों को कम करने में सहायक होता है। यह उपरत्न हर प्रकार से वृद्धि करने वाला उपरत्न है।  एपिडोट के प्रभाव में चाहे कुछ भी आए, चाहे वह भौतिक हो अथवा वह अन्य कोई और वस्तु हो, एपिडोट के छूने से सकारात्मकता आती है।  यह उपरत्न भावनात्मक तथा आध्यात्मिक ऊर्जा में वृद्धि करने में मदद करता है।   
यह उपरत्न गहरे हरे, भूरे तथा काले रंग में भी मिलता है।  हरे रंग में पीलेपन की आभा लिए भी यह उपरत्न पाया जाता है।  पीले तथा ग्रे रंग में भी यह उपलब्ध है।  यह उपरत्न मुख्य रुप से आस्ट्रिया, ब्राजील, फिनलैण्ड, चीन, फांस तथा मेक्सिको में पाया जाता है।  इसके अतिरिक्त यह अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा मोजाम्बीक में भी पाया जाता है।  इस उपरत्न को जातक अपनी सुविधाओं तथा आवश्यकताओं के अनुसार धारण कर सकते हैं।  ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह उपरत्न किसी भी मुख्य रत्न का उपरत्न नहीं है।  इसलिए इसे स्वतंत्र रुप से पहनने की सलाह दी जाती है। 
 

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