संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ऑनलाइन गेम के नाम पर ऐसा जुआ सबको बर्बाद कर देगा
03-Aug-2021 5:02 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ऑनलाइन गेम के नाम पर ऐसा जुआ सबको बर्बाद कर देगा

मध्य प्रदेश के छतरपुर में अभी 2 दिन पहले 13 बरस के एक लडक़े ने खुदकुशी कर ली। उसने एक ऑनलाइन गेम खेलते हुए अपनी मां के खाते से 40 हजार रुपये गंवा दिए थे और जब मां को अपने फोन पर अकाउंट से पैसे कटने की खबर मिली तो उन्होंने बेटे को फोन पर डांटा, और खुदकुशी की एक चिट्ठी छोडक़र लडक़े ने आत्महत्या कर ली कि उसने इस खेल के चक्कर में 40 हजार रुपये बर्बाद कर दिए और उसी डिप्रेशन में वह आत्महत्या कर रहा है। इसके अलावा देश में कुछ और जगहों पर ऑनलाइन गेम में लंबी हार के बाद अलग-अलग बच्चों ने आत्महत्या की है, और दिल्ली के एक सामाजिक संगठन ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी लगाई है जिसमें ऐसे ऑनलाइन गेमों पर प्रतिबंध की मांग की गई है। हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को बच्चों को ऑनलाइन गेम की लत से बचाने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने का नोटिस भी जारी किया है। उल्लेखनीय है कि अभी चार दिन पहले ही देश के दर्जनों प्रमुख अखबारों में पहले पूरे पन्ने का इश्तिहार ऐसे ही ऑनलाइन गेम का छपा था, जिसे लेकर सोशल मीडिया में लोगों ने फिक्र जाहिर की थी, और मध्यप्रदेश की यह आत्महत्या उसके बाद सामने आई है।

हिंदुस्तान में पिछले वर्षों में अर्थव्यवस्था, उदारवादी से अति उदारवादी की तरफ बढ़ चली है, और विदेशी पूंजी निवेश को तकरीबन हर दायरे में अंधाधुंध बढ़ाने की छूट दी गई है. नतीजा यह निकला है कि ऐसा पूंजी निवेश विदेश की कारोबारी-संस्कृति के साथ आ रहा है. ऑनलाइन खेल के नाम पर ऑनलाइन जुआ चल रहा है जिसमें किसी मौत तो खबरों में आ रही है, लेकिन लोगों के रात-दिन लुटने की कोई खबर खबरों में नहीं आ रही, क्योंकि इनमें हारे हुए लोग अपनी हार को अधिक उजागर भी नहीं करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि एक वक्त हिंदुस्तान का एक बड़ा हिस्सा जिस तरह रोजाना खुलने वाली लॉटरी में सट्टे का एक विकल्प ढूंढ चुका था, क्या अब घर बैठे मोबाइल फोन पर या कंप्यूटर पर अपने मां-बाप के खातों से या अपने खुद के बैंक का अकाउंट से भुगतान करके इस तरह के ऑनलाइन गेम में बच्चे-बड़े सभी लोग पैसा लगाते चलेंगे, जिसके साथ उनके सपने तो जुड़े रहेंगे, उनकी हसरतें भी जुड़ी रहेंगी, लेकिन उनकी हार इसमें तय रहेगी। पूरी दुनिया का जुए का इतिहास है कि जुआ खिलाने वाले कैसीनो या जिन देशों में ऑनलाइन सट्टेबाजी कानूनी है, वहां पर सट्टेबाजों के अलावा और कोई नहीं कमाते, अधिकतर लोग वहां से रकम गंवाकर निकलते हैं, और इसकी लत बढ़ते चलती है।

इस बारे में एक समाचार के मुताबिक दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका में कहा गया था कि इस एनजीओ को माता-पिता से कई शिकायतें मिल रही हैं, जो बच्चों के ऑनलाइन गेम खेलने की आदत से चिंतित हैं। इन गेम्स के ज़रिए बच्चों में मनोवैज्ञानिक समस्याएँ पैदा हो रही है। याचिका में यह भी कहा गया था कि बच्चों के आत्महत्या करने या अवसाद में जाने और ऑनलाइन गेम की लत के कारण चोरी जैसे अपराध करने की कुछ हालिया ख़बरों ने एनजीओ को याचिका दायर करने के लिए मजबूर किया। कोरोना महामारी के दौरान बच्चे पढ़ाई के लिए मोबाइल का बहुत इस्तेमाल कर रहे हैं और इसी कारण से गेम्स खेलने की आदत लग रही है। उनके मुताबिक़ समस्या उन बच्चों में ज़्यादा देखी जा रही है, जिनके माँ-बाप दोनों काम पर जाते हैं। 10 साल से 18 साल के बच्चे इसमें अधिक फँसते है और पैसे ख़र्च करते है।

यह समझना मुश्किल है कि हिंदुस्तान में ऐसी चीजों की इजाजत देने की क्या मजबूरी है एक तरफ तो यह सरकार अपने-आपको भारतीय संस्कृति की पहरेदार भी बताती है और लोगों के बीच अच्छे चाल-चलन को बढ़ावा देने का दावा भी करती है, दूसरी तरफ इस तरह की ऑनलाइन सट्टेबाजी या जुएबाजी में लोगों को डुबाने का इंतजाम करना, उसका खुला इश्तहार करना, उसे हर मोबाइल फोन और कंप्यूटर से खेलना मुमकिन बना देना, यह कहां की समझदारी है? खुदकुशी तो कम होंगी लेकिन अधिक लोग डिप्रेशन में रहेंगे, परिवारों के भीतर लोगों के संबंध खराब होंगे, और लोग अपनी जमा-पूंजी ऐसे ऑनलाइन जुए में खेल के नाम पर लुटा चुके रहेंगे। बिना देर किए हुए केंद्र सरकार को ऐसे तमाम ऑनलाइन खेल बंद करवाने चाहिए जिसकी जरूरत किसी को भी नहीं है। अगर ऐसे ऑनलाइन खेल की जरूरत लग रही है तो देशभर में जुए की फड़ में लोगों को क्यों गिरफ्तार करना  हर की रफ़्तार भी काम रहती है? और सट्टे की पट्टी लिखने वाले लोगों को क्यों गिरफ्तार करना? देश में आज वैसे भी फटेहाली में लोगों का जिंदा रहना मुश्किल हो गया है लोग किसी तरह जी रहे हैं, ऐसे में अगर कोई परिवार किसी तरह बैंक में कुछ रकम बचाकर चल रहा है और घर का कोई भी एक व्यक्ति ऑनलाइन गेम के नाम पर युवाओं में उस रकम को लुटा देगा, तो हो सकता है पूरे परिवार के मरने की नौबत आ जाए, या पूरे परिवार के जिंदा रहने की, बेहतर जिंदगी पाने की संभावनाएं खत्म हो जाएं।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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