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टोक्यो ओलंपिक: महिला हॉकी सेमी फ़ाइनल में गुरजीत, वंदना जैसे सितारों पर रहेगी नज़र
04-Aug-2021 8:28 AM
टोक्यो ओलंपिक: महिला हॉकी सेमी फ़ाइनल में गुरजीत, वंदना जैसे सितारों पर रहेगी नज़र

-वंदना

भारतीय महिला हॉकी टीम ने ओलंपिक सेमीफ़ाइनल में जगह बनाकर इतिहास रच दिया है.

हॉकी यूँ तो टीम गेम है और किसी भी जीत में पूरी टीम का योगदान रहता है, लेकिन आइए नज़र डालते हैं उन चंद खिलाड़ियों पर जिनकी इस ओलंपिक सफ़र में अहम भूमिका रही है.

वंदना कटारिया
भारतीय महिला हॉकी के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ- ओलंपिक में हैट्रिक. वंदना कटारिया ने दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ अहम ओलंपिक मैच में एक नहीं तीन-तीन गोल कर सबको रोमांचित कर दिया था. अगर ये मैच भारत हार जाता तो सेमीफ़ाइनल में जगह नहीं बना पाता. वंदना पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं जिन्होंने ओलंपिक में हैट्रिक बनाया.

29 साल की वंदना भारतीय हॉकी टीम की सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में से एक हैं. ओलंपिक में जाने से पहले तक वो 240 मैच खेल कर 64 गोल कर चुकी थीं.

हरिद्वार के पास रोशनाबाद गाँव से आने वाली वंदना ने जब हॉकी खेलनी शुरू की थी तो आसपास वालों को घोर आपत्ति थी. इन आपत्तियों के बीच दो ही लोग चट्टान की तरह अड़े रहे थे- ख़ुद वंदना और उनके पिता नाहर सिंह. वंदना छिप-छिप कर प्रैक्टिस करती थीं.

सब लोगों के ख़िलाफ़ जाकर पिता ने बेटी का साथ दिया और वंदना भारतीय टीम तक पहुँचीं.

इस साल जब कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी, तब वंदना की ओलंपिक की तैयारी भी ज़ोरों पर थी. उन्हीं दिनों उनके पिता का निधन हो गया. वंदना उनके अंतिम संस्कार में भी नहीं जा पाई थीं क्योंकि ओलंपिक की तैयारी चल रही थी और वो बायो बबल में थीं. तब वंदना ने कहा था कि उन्हें भारत और अपने पिता दोनों के लिए कुछ करना है.

ख़ुद को रॉजर फ़ेडरर फ़ैन बताने वाली वंदना ने ओलंपिक में ही नहीं दूसरी कई प्रतियोगिताओं में भी भारत को जीत दिलाई है. साल 2013 के जूनियर महिला वर्ल्ड कप में भी वो टॉप स्कोरर थीं.

गुरजीत कौर
महिला हॉकी टीम का ओलंपिक सेमीफ़ाइनल तक पहुँचना बहुत से लोगों के लिए किसी सपने की तरह है. क्वॉर्टर फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मुश्किल मैच में जिस खिलाड़ी के गोल ने भारत को जीत दिलाई वो थी पंजाब की गुरजीत कौर. ये गुरजीत का पहला ओलंपिक है.

गुरजीत कौर को भारत ही नहीं, दुनिया के सबसे बेहतर ड्रैग फ़्लिकर में गिना जाता है.

पंजाब में पाकिस्तान सीमा से सटे छोटे से गाँव से आने वाली गुरजीत के गाँव में लड़कियों के लिए खेल का माहौल नहीं था. उनके पिता की इच्छा था कि बेटियाँ पढ़-लिख जाएँ. वो गाँव से रोज़ पास के कस्बे में बेटी को छोड़ने जाते थे. चूँकि इतने पैसे नहीं थे कि वो शहर तक दो-दो चक्कर लगाएँ तो उनके पिता सुबह से शाम तक स्कूल के बाहर ही खड़े रहते थे. लेकिन बाद मे हॉस्टल में रहते हुए गुरजीत ने लड़कियों को हॉकी खेलते देखा और लगा कि इसमें कुछ कर सकते हैं. ड्रैग फ़्लिक क्या होती है तब गुरजीत ने इसका नाम भी नहीं सुना था.

लेकिन मैच दर मैच गुरजीत अपने खेल को निखारती गईं. ओलंपिक शुरू होने से पहले वो 87 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी थीं और 60 गोल कर चुकी थीं.

हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह को वो अपना आइडल मानती हैं. गुरजीत पर दोहरी ज़िम्मेदारी रहती है. वो डिफ़ेंडर भी हैं और ड्रैग फ़्लिकर भी. ओलिंपक में जाने से पहले गुरजीत से बातचीत में मैंने पूछा था कि इस ओलंपिक के उनके लिए क्या मायने हैं तो उन्होंने कहा था कि अगर भारतीय महिला टीम पदक जीतती है तो ये न सिर्फ़ ऐतिहासिक होगा बल्कि लड़कियों को एक संदेश जाएगा कि वो कुछ भी कर सकती हैं.

भारत को सेमीफ़ाइनल तक लाने का श्रेय जिन खिलाड़ियों को दिया जा रहा है उसमें गोलकीपर सविता का नाम ज़रूर लिया जाएगा. अगर सवीता ने गोल न रोके होते तो ये कहानी कुछ और ही होती.

ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ बहुत ही अहम मैच में सविता ने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया. जब गुरजीत कौर ने पहला गोल किया तो ऑस्ट्रेलियाई ख़ेमे ने भी दबाव बढ़ा दिया, लेकिन गोलकीपर सविता ने ऑस्ट्रेलिया की कोई कोशिश कामयाब नहीं होने दी. वो एक के बाद एक सेव करती चली गईं, ख़ासकर पेनल्टी कॉर्नर के दौरान.

एक मंझी हुई गोलकीपर की तरह सविता ने हर एंगल को कवर करते हुए गोल होने से रोका.

भारत के लिए 200 से भी ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी सविता को अब लोग 'द वॉल' कहने लगे हैं जिन्हें भेदना ऑस्ट्रेलिया के लिए मुश्किल हो गया था.

हरियाणा से आने वाली सविता ने 18 साल की उम्र में भारत के लिए खेलना शुरू किया था और 31 साल की उम्र में उनका सफ़र जारी है.

शुरुआत में तो सविता का हॉकी में रुझान भी नहीं था. ख़ासकर जब उनकी माँ बीमार रहतीं तब सविता घर का भी काम करती थीं. लेकिन सविता के दादा ने उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित किया. घर से कई किलोमीटर दूर, बसों में धक्के खाते हुए भारी हॉकी किट लेकर सविता को जाना पड़ता था.

लेकिन एक बार सविता ने दिलचस्पी लेनी शुरू की तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2019 के एशियन गेम्स के सिल्वर मेडल को वो अपना सबसे यादगार लम्हा मानती हैं, लेकिन अब शायद ये जगह ओलंपिक को मिल जाएगी.

नेहा गोयल
दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ ओलंपिक मैच में जब भारत 4-3 से जीता तो मैच में वंदना कटारिया की हैट्रिक के बाद अहम गोल नेहा गोयल का था. हरियाणा से आने वाली नेहा अपना पहला ओलंपिक ही खेल रही हैं.

हॉकी के मैदान और ज़िंदगी दोनों में नेहा ने बहुत संघर्ष किया है. बहुत ग़रीब परिवार से आने वाली नेहा का बचपन मुश्किलों भरा था, पिता को शराब की लत थी. माँ फ़ैक्टरियों में काम करके गुज़र करती थीं और पिता की मौत के बाद तो नेहा और उनकी बहनें भी माँ के साथ काम करती थीं ताकि गुज़ारा चल सके. उन्होंने हॉकी बचपन में तब खेलना शुरू किया जब किसी ने कहा कि वहाँ पहनने के लिए जूते और कपड़े मिलेंगे.

नेहा के टैलेंट को देखकर कोच प्रीतम सीवच ने उन्हें कोचिंग दी और साल 2011 में नेहा जूनियर टीम का हिस्सा बनीं और साल 2014 में सीनियर टीम का. नेहा कई बार टीम से अंदर-बाहर हुईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने पहले ही ओलंपिक में गोल कर चुकी हैं.

नवनीत
कुछ दिन पहले तक एक समय था जब भारतीय महिला टीम अपने सारे ओलंपिक मैच हार रही थी. ऐसे वक़्त में आयरलैंड के ख़िलाफ़ मैच में गोल कर नवनीत ने भारत को उसकी पहली जीत दिलाई थी. ये गोल हमेशा भारत के लिए ख़ास रहेगा.

25 साल की नवनीत हरियाणा से आती हैं. घर के पास ही शाहबाद हॉकी अकैडमी थी. वहीं से हॉकी में दिलचस्पी जागी और साल 2005 में हॉकी खेलना शुरू कर दिया.

जूनियर वर्ल्ड में साल 2013 में हिस्सा लेने वाली नवनीत अब ओलंपिक तक पहुँच गई हैं. ओलंपिक से पहले वो 24 अंतरराष्ट्रीय गोल कर चुकी थीं, लेकिन आयरलैंड के ख़िलाफ़ उनके गोल को लंबे समय तक याद रखा जाएगा. (bbc.com)

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