विचार / लेख
-रमेश अनुपम
सन् 1948 में किशोर साहू द्वारा निर्मित तथा निर्देशित फिल्म ‘नदिया के पार’ कई अर्थों में एक विलक्षण और ऐतिहासिक फिल्म है।
एक तरह से छत्तीसगढ़ अंचल को पहली बार हिंदी सिनेमा में इस फिल्म के माध्यम से एक नई पहचान देने की कोशिश की गई।
छत्तीसगढ़ी बोली, छत्तीसगढ़ी आभूषण, राजकुमार कॉलेज और छत्तीसगढ़ के शहर रायपुर, मोतीपुर, राजनांदगांव जो इस अंचल की पहचान हैं, उन्हें इस फिल्म के माध्यम से किशोर साहू ने पूरे देश को परिचित करवाया।
अन्यथा देश में आज से 75 वर्ष पहले छत्तीसगढ़ अंचल को इस तरह से कौन जानता था।
तब तक तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का ही कोई अस्तित्व नहीं था।
इस फिल्म का नायक दिलीप कुमार ( छोटे कुंवर ) राजकुमार कॉलेज रायपुर से अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने घर लौट रहा है। ट्रेन मोतीपुर (राजनांदगांव) स्टेशन पर खड़ी है, दिलीप कुमार ट्रेन के डिब्बे से नीचे उतरते हैं। फिल्म में उनका यह पहला दृश्य है।
दुबले पतले छैल-छबीले दिलीप कुमार उस समय केवल छब्बीस साल के युवा थे। हिंदी सिनेमा में वे अभी नए-नए थे। उनके बनिस्बत किशोर साहू अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक के रूप में हिंदी सिनेमा में अपनी सफलता के झंडे गाड़ चुके थे।
फिल्म के इस पहले ही दृश्य में दिलीप कुमार के अभिनय का जादू अभिभूत करता है। दिलीप कुमार के संवाद बोलने का अपना एक अलग अंदाज और उनकी अभिनय शैली का कहना ही क्या है।
भविष्य के एक सफलतम नायक को इस दृश्य के माध्यम से बखूबी चिन्हा जा सकता है और किशोर साहू के निर्देशन कौशल को सराहा जा सकता है।
इस फिल्म की नायिका कामिनी कौशल भी कम कमसिन और खूबसूरत नहीं है। दिलीप कुमार और कामिनी कौशल की जोड़ी इस फिल्म की जान है।
अपनी इस शानदार फिल्म ‘नदिया के पार’ के बारे में स्वयं किशोर साहू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है-
‘साजन’ के बाद मैंने फिल्मीस्तान के लिए जो तीसरा चित्र बनाया, उसका नाम ‘नदिया के पार’ था। कथा, पटकथा सदैव की भांति मेरी ही थी। कहानी की पृष्ठभूमि मैंने अपना चिरपरिचित छत्तीसगढ़ रखी थी। स्थानीय छत्तीसगढ़ी भाषा का मुक्त उपयोग किया था। मुख्य भूमिका में दिलीप कुमार और कामिनी कौशल को लिया था। दिलीप और कामिनी तब लगभग नए थे।’
किशोर साहू ने आगे अपनी इसी आत्म कथा में इस फिल्म की विशेषताओं को उद्घाटित करते हुए लिखा है-
‘नदिया के पार’ हिंदी चित्रों में पहला था जिसमें नायिका को मैंने चोली ब्लाउज न देकर केवल सूती साड़ी पहनाई थी। उस समय कामिनी कौशल इस वेशभूषा में सुंदर और कलात्मक लगी। उसके बाद से यह छत्तीसगढ़ी संथाली वेशभूषा कई बहाने और कई बार हिंदी चित्रों में आती रही।’
‘नदिया के पार’ की नायिका कामिनी कौशल (फुलवा) छत्तीसगढ़ की महिलाओं द्वारा गले में पहनी जाने वाली सर्वप्रिय आभूषण रुपिया माला और सुता, बाहों में पहने जाने वाली पहुंची से सुसज्जित है। संवाद और गाने छत्तीसगढ़ के रंग में रंगे हुए हैं।
यह किशोर साहू के मन में रचे बसे छत्तीसगढ़ के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करता है। सच्चाई तो यह है कि बंबई जाकर भी वे छत्तीसगढ़ को कभी भुला नहीं सके थे। छत्तीसगढ़ जैसे उनके हृदय में धडक़ता था।
अपनी आत्मकथा में उन्होंने अनेक जगहों पर छत्तीसगढ़ को दिल से याद किया है।
‘नदिया के पार’ एक दुखांत फिल्म होते हुए भी अतिशय सफल रही। दिलीप कुमार और कामिनी कौशल को इस फिल्म से अपार ख्याति और प्रतिष्ठा मिली।
इस फिल्म में संगीत सी.रामचंद्र का था। सिनेमैटोग्राफी के.एच.कापडिय़ा की थी। इस फिल्म को लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी और शमशाद बेगम ने अपने कर्णप्रिय गानों से गुलजार किया था।
‘कठवा के नैया बनिहै मल्लाहवा नदिया के पार दे उतार’तथा ‘ओ गोरी ओ छोरी कहां चली हो’ जैसे गाने अब कहां सुनने को मिलेंगे । ‘नदिया के पार’ जैसी सुंदर फिल्म भी अब कहां देखने को मिलेगी।
(बाकी अगले सप्ताह)