सामान्य ज्ञान

कलौंजी
09-Sep-2021 9:50 AM
कलौंजी

कलौंजी रेनुनकुलेसिया परिवार का झाड़ीय पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम  निजेला सेटाइवा है जो लेटिन शब्द नीजर (यानी काला) से बना है। यह भारत सहित दक्षिण पश्चिमी एशियाई, भूमध्य सागर के पूर्वी तटीय देशों और उत्तरी अफ्रीकाई देशों में उगने वाला वार्षिक पौधा है जो 20-30 सें. मी. लंबा होता है। इसके लंबी पतली-पतली विभाजित पत्तियां होती हैं और 5-10 कोमल सफेद या हल्की नीली पंखुडिय़ों व लंबे डंठल वाला फूल होता है। इसका फल बड़ा और गैंद के आकार का होता है जिसमें काले रंग के, लगभग तिकोने आकार के, 3 मि.मी. तक लंबे, खुरदरी सतह वाले बीजों से भरे 3-7 प्रकोष्ठ होते हैं। इसका प्रयोग औषधि, सौंदर्य प्रसाधन, मसाले तथा खुशबू के लिए पकवानों में किया जाता है।

 निजेला सेटाइवा को अंग्रेजी में फेनेल फ्लावर, नटमेग फ्लावर, लव-इन-मिस्ट (क्योंकि इसका फूल लव-इन-मिस्ट के फूल जैसा होता है), रोमन कारिएंडर, काला बीज, काला केरावे और काले प्याज का बीज भी कहते हैं। अधिकतर लोग इसे प्याज का बीज ही समझते हैं क्योंकि इसके बीज प्याज जैसे ही दिखते हैं। लेकिन प्याज और काला तिल बिल्कुल अलग पौधे हैं। इसे संस्कृत में कृष्णजीरा , बंगाली में कालाजीरो, मलयालम में करीम जीराकम, रूसी में चेरनुक्षा, ईरान में शोनीज, अरबी में हब्बत-उल-सौदा, मिस्र में हब्बा-अल-बराका  , पर्शिया में  सिया दाने, तमिल में करून जीरागम और तेलगू में नल्ला जीरा कारा कहते हैं। इसका स्वाद हल्का कड़वा व तीखा और गंध तेज होती है। इसका प्रयोग विभिन्न व्यंजनों नान, ब्रेड, केक और आचारों में किया जाता है। चाहे बंगाली नान हो या पेशावरी खुब्जा (ब्रेड नान) या कश्मीरी पुलाव हो कलौंजी के बीजों से जरूर सजाए जाते हैं।

सदियों से कलौंजी का प्रयोग एशिया, उत्तरी अफ्रीका और अरब मुल्कों में मसाले व दवा के रूप में होता आया है। आयुर्वेद और पुराने इसाईयों के ग्रंथों में इसका वर्णन है। ईस्टन के बाइबल शब्दकोष में हेब्र्यू शब्द का मतलब कलौंजी लिखा गया है। पहली शताब्दी में दीस्कोरेडीज नामक ग्रीक चिकित्सक कलौंजी से जुकाम, सरदर्द और पेट के कीड़ों का उपचार करते थे। उन्होंने इसे दुग्ध वर्धक और मूत्र वर्धक के रुप में भी प्रयोग किया। रोम में इसे  पेनासिया’ यानी हर मर्ज की रामबाण दवा माना जाता है। लेकिन मिस्र के इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि कलौंजी सबसे पहले मिस्र में तूतन्खामन के मकबरे में पाई गई। 

कलौंजी में पोषक तत्वों का अंबार लगा है। इसमें 35 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 21 प्रतिशत  प्रोटीन और 35-38 प्रतिशत  वसा होते है। इसमें 100 ज्यादा महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं। इसमें आवश्यक वसा अम्ल 58 प्रतिशत ओमेगा-6 (लिनोलिक एसिड), 0.2 प्रतिशत  ओमेगा-3 (एल्फा- लिनोलेनिक एसिड) और 24 प्रतिशत  ओमेगा-9 (मूफा) होते हैं। इसमें 1.5 प्रतिशत  जादुई उडऩशील तेल होते है जिनमें मुख्य निजेलोन, थाइमोक्विनोन, साइमीन, कार्बोनी, लिमोनीन आदि हैं। निजेलोन में एन्टी-हिस्टेमीन गुण हैं, यह श्वास नली की मांस पेशियों को ढीला करती है, प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करती है और खांसी, दमा, ब्रोंकाइटिस आदि को ठीक करती है।

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