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पर्युषण महापर्व में हम मन की उलझी ग्रंथियों को सुलझाते हैं, क्षमा मांग के और क्षमा करके पवित्र बनते हैं - सरिता बरलोटा
10-Sep-2021 6:17 PM
पर्युषण महापर्व में हम मन की उलझी ग्रंथियों को सुलझाते हैं, क्षमा मांग के और क्षमा करके पवित्र बनते हैं - सरिता बरलोटा

पर्युषण महापर्व में हम मन की उलझी ग्रंथियों को सुलझाते हैं, क्षमा मांग के और क्षमा करके पवित्र बनते हैं - सरिता बरलोटा

संवत्सरी का पर्व महान, करता आत्मा का कल्याण।

प्यारा पर्व सुहाना है, अंतर तिमिर हटाना है॥

पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है। पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना की जाती है। यह पर्व अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है। पर्युषण पर्व जैन एकता का प्रतीक पर्व है, जैन लोग इसे सर्वाधिक महत्व देते हैं।
सम्पूर्ण जैन समाज इस पर्व पर जाग्रत व साधनारत्‌ हो जाता है। संवत्सरी का दिन समाधि का दिन होता है जिसमें पूर्ण त्याग, प्रत्याख्यान, उपवास, पौषध, सामायिक व संयम से मनाया जाता है।

इस पर्व में सभी अपनी मन की उलझी हुई ग्रंथियों को सुलझाते हैं, अपने भीतर की राग-द्वेष की गांठ को खोलते हैं, वे एक दूसरे से क्षमायाचना करते हैं व क्षमा करके अपने जीवन को पवित्र बनाते हैं। यह पर्व धार्मिक भावनाएं भरता है, नई चेतना जाग्रत करता है। हर व्यक्ति में कोई न कोई कमी होती है, किसी में क्रोध की भावना हो तो वह प्रेम की भावना को भरने का प्रयास करता है। आक्रोश की भावना लाता है, यह मनोरंजन का नहीं आत्मरंजन का पर्व है। हे प्रभु मुझे ऐसी शक्ति दे कि मैं आत्मा का साक्षात कर पाऊँ, बाहर की दुनिया से हटकर मैं भीतर से भ्रमण कर पाऊँ।

त्यौहारों में जिस प्रकार आभूषणों के द्वारा हम अपने शरीर को सजाते हैं ठीक वैसे ही पर्युषण में हम तपस्या के द्वारा अपनी आत्मा को सजाते हैं। समस्या के समाधान में हम हिंसा का नहीं अहिंसा का सहारा लेते हैं। भगवान महावीर की वाणी है ‘सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ बैर नहीं है। इस कथन को सभी अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं। आचार्य महाश्रमण जी ने फरमाया कि जैन दर्शन को अच्छी तरह समझने के लिए जैन धर्म के आत्मवाद को समझे व इन दिनों में उसे अपने जीवन में उतारे। इन आठ दिनों में भगवान महावीर के २७ भवों को समझते हैं। भगवान महावीर की वाणी को जन-जन तक पहुंचाया जाता है।

परलोक सुधारने की भूल-भुलैया के प्रवेश करने से पहले इस जीवन पर हमारा ध्यान केंद्रित होना चाहिए। धर्म की दिशा में प्रस्थान करने के लिए यही रास्ता निरापद है। यही पर्युषण महापर्व की सार्थकता का आधार है। पर्युषण पर्व के इन आठ दिनों को इस रूप में मनाया जाता है - खाद्य संयम दिवस, स्वाध्याय दिवस, सामायिक दिवस, वाणी संयम दिवस, अणुव्रत चेतना दिवस, जप दिवस, ध्यान दिवस व संवत्सरी दिवस तथा दूसरे दिन क्षमापना दिवस इस प्रकार के अनुष्ठानों द्वारा पर्युषण पर्व की आराधना की जाती है।

आचार्य महाश्रमण जी ने पर्युषण पर्व पर पूरे भारत में एक बहुत सुन्दर संदेश दिया। पर्युषण पर्व जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा और दशलक्षण पर्व जैन धर्म की दिगम्बर परम्परा से सम्बंधित है। भादव मास की कृष्ण पक्ष में यह पर्व शुरू होता है। सात दिन पृष्ठभूमि के रूप में पर्युषण पर्व आराधना के होते हैं, आठवां दिन संवत्सरी का महापर्व होता है, जो इस पर्व का शिखर दिवस होता है और नवमा दिन खमत खामणा का दिन होता है।

क्षमा मैत्री की डाली में प्रेम के पुष्प खिलाये।
संवत्सरी के दिन पर, दिल से दिल मिल जाये॥
ओम अर्हम

सरिता बरलोटा
रायपुर (छत्तीसगढ़)

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