विचार / लेख

छत्तीसगढ़ एक खोज : चौतीसवीं कड़ी : हिंदी सिनेमा का नायाब सितारा-किशोर साहू
11-Sep-2021 6:34 PM
छत्तीसगढ़ एक खोज : चौतीसवीं कड़ी : हिंदी सिनेमा का नायाब सितारा-किशोर साहू

-रमेश अनुपम

‘नदिया के पार’ किशोर साहू के लिए छत्तीसगढ़ के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने और हिंदी सिनेमा में दो नए-नए आए हुए दिलीप कुमार और कामिनी कौशल को प्रमोट करने के लिए बनाई गई फिल्म थी।

छत्तीसगढ़ के लिए किशोर साहू के मन में गजब का आकर्षण और अपार प्रेम था। अपनी आत्मकथा में भी उन्होंने जगह-जगह पर छत्तीसगढ़ के प्रति अपने इस प्रेम का इजहार किया है।

राजनांदगांव, सक्ती और रायगढ़ का जगह-जगह बखान किया है। सक्ती में उनके दादा आत्माराम साहू दीवान थे। उस समय वहां लीलाधर सिंह राजा थे। राजा साहब आत्माराम साहू का बहुत सम्मान करते थे। किशोर साहू की दूसरी और तीसरी कक्षा की पढ़ाई सक्ती में ही संपन्न हुई। किशोर साहू के दादा की मृत्यु सक्ती में हो जाने के पश्चात उनका पूरा परिवार भंडारा चला गया था।

चूंकि भंडारा महाराष्ट्र में है इसलिए वहां मराठी मीडियम से पढ़ाई-लिखाई होती थी। किशोर साहू छत्तीसगढ़ से हिंदी मीडियम से पढक़र गए थे इसलिए जाहिर है मराठी मीडियम उन्हें रास नहीं आ रहा था।

इसलिए किशोर साहू को हिंदी मीडियम में आगे पढऩे के लिए उनके मामा श्यामलाल महोबे जो उन दिनों बी.एन.सी.मिल्स. में असिस्टेंट इंजीनियर थे अपने साथ राजनांदगांव ले आए।

राजनांदगांव के स्टेट हाई स्कूल में सातवीं कक्षा में उनका दाखिला करा दिया गया। राजनांदगांव का जितना सुंदर वर्णन किशोर साहू ने अपनी आत्मकथा में किया है, वह अद्भुत है, वैसा वर्णन अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है।

सच तो यह है कि छत्तीसगढ़ किशोर साहू के प्राणों में धडक़ता था और राजनांदगांव उनकी आत्मा में बसता था।

राजनांदगांव छत्तीसगढ़ का पहला शहर था जहां सबसे पहले बिजली पहुंची थी। किशोर साहू ने 12 वर्ष की उम्र में सन 1928 में पहली बार बिजली राजनांदगांव में ही देखी थी। उस समय का वर्णन करते हुए उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है-

‘राजनांदगांव रियासत अपने पूरे उत्थान पर थी। शहर पर बहार आई हुई थी। कुछ ही वर्षों पहले सर्वेश्वरदास गद्दी पर बैठे थे। राजा बनते ही उन्होंने शहर में बिजली लगवा दी, सडक़ें ठीक कराई, बाग के लिए बड़े वेतन पर लायक और डिग्री प्राप्त अनुभवी व्यक्ति को रखा जिससे शहर से लगा हुआ बलदेव बाग, जिसे उनके पूर्वज बलदेव दास ने लगाया था, खिल उठा।’

किशोर साहू ने राजनांदगांव के तीनों तालाब रानी सागर, लालसागर और बूढ़ा सागर का जिक्र और उसके विरल सौंदर्य का वर्णन अपनी इस आत्मकथा में शिद्दत के साथ किया है।
 
अब चलें किशोर साहू की फिल्मी यात्रा पर थोड़ा और नजर डालने।

‘नदिया के पार ’ को बहुत खूबसूरती के साथ पार करने के बाद किशोर साहू के पांव हिंदी सिनेमा के विराट समुद्र को लांघने की ओर बढ़ चले।

किशोर साहू पर हिंदी सिनेमा का जुनून सवार था। सफलता जैसे उनकी बाट जोहती हुई खड़ी थी। छत्तीसगढ़ के इस अनमोल रत्न के पास जैसे जादू की कोई छड़ी थी वे जिस पर भी अपनी छड़ी रख दें वह सोना हो जाए।

उन्होंने अपनी अगली फिल्म का नाम रखा ‘सावन आया रे’। यह फिल्म सचमुच किशोर साहू और हिंदी सिनेमा के लिए किसी सावन की तरह खुशगवार और बादलों की तरह अपार सफलता की बारिश करने वाला सिद्ध हुआ।

इस फिल्म की नायिका के रूप में उस जमाने की शोख नटखट चुलबुली नायिका रमोला को लिया गया। रमोला उन दिनों कोलकाता में रहती थी। किशोर साहू कोलकाता गए और रमोला से इस फिल्म के लिए बातचीत की। उस जमाने के सबसे सफलतम नायक , निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक किशोर साहू के साथ हर नायिका काम करने के लिए जैसे लालायित रहती थीं। रमोला को तो जैसे गड़ा हुआ कोई अनमोल खजाना हाथ लग गया था।

किशोर साहू ने अपनी इस नई फिल्म के माध्यम से हिंदी सिनेमा जगत में वर्षों से चली आ रही रूढि़ को भी तोड़ दिया। सन 1948 तक फिल्मों की सारी शूटिंग या तो स्टूडियो में होती थी या फिर बहुत ज्यादा हुआ तो बंबई के आस-पास शूटिंग कर ली जाती थी। आउटडोर शूटिंग उन दिनों प्रचलित ही नहीं थी। अपनी पूरी फिल्म यूनिट के साथ बंबई से बाहर जाकर फिल्म बनाने के बारे में तब तक किसी ने सोचा भी नहीं था।

किशोर साहू ने तय किया कि वे इस रूढि़ को तोड़ेंगे साथ में यह भी कि ‘सावन आया रे’ की सारी शूटिंग वे आउटडोर शूटिंग करेंगे। इसके लिए उन्होंने नैनीताल का चुनाव किया।

नियत समय पर किशोर साहू अपनी पत्नी प्रीति और पूरी फिल्म यूनिट के साथ तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार नैनीताल की वादी में पहुंच गए। नैनीताल में आउटडोर शूटिंग के निर्णय में उनकी पत्नी प्रीति का भी कोई कम योगदान नहीं था।


‘सावन आया रे’ 13 मई 1949 को बंबई के कृष्ण और कैपिटल थियेटर में रिलीज हुई और सुपर हिट फिल्म साबित हुईं । किशोर साहू और रमोला की जोड़ी ने हिंदी सिनेमा के दर्शकों का ही दिल नहीं जीता वरन फिल्म समीक्षकों का भी दिल जीत लिया था। उस जमाने की सुप्रसिद्ध फिल्मी पत्रिका ‘फिल्म इंडिया’ ने लिखा-

‘किशोर साहू कृत ‘सावन आया रे’ निर्देशकों के लिए एक पाठशाला है- एक महाकाव्य’

‘संडे न्यूज ऑफ इंडिया’ ने लिखा-

‘1949 का सर्वश्रेष्ठ चित्र’

सबसे सुंदर ‘ईव्ज वीकली’ ने लिखा :

‘सावन आया रे’ किशोर साहू की विलक्षण रचनात्मक कलाकृति है। यह ऐसा प्रतिभाशाली व्यक्ति है, जिसका फिल्म उद्योग में कोई जोड़ नहीं।’

सचमुच उस समय हिंदी सिनेमा में किशोर साहू का कोई जोड़ नहीं था।

हिंदी फिल्म में किशोर साहू का अन्य कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

(बाकी अगले हफ्ते)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news